रेटिंग: 2 **
कहने को तो आज चार फिल्में रिलीज़ हुईं, लेकिन किसी में भी वह बात नज़र नहीं आई, जो दर्शकों को बांध सके और एक सुपरहिट मूवी साबित हो सके.
द लेडी किलर
अर्जुन कपूर और भूमि पेडनेकर स्टारर द लेडी किलर एक मर्डर मिस्ट्री फिल्म है, जिसमें अर्जुन कपूर एक इन्वेस्टिगेटर की भूमिका में हैं. एक बंगले में खून होता है और अर्जुन वहां पर छानबीन करने के लिए जाते हैं. उनकी मुलाकात भूमि से होती है, जो बंगले की केयरटेकर है. दोनों क़रीब आते हैं. रोमांस, सस्पेंस, थ्रिलर सब कुछ होने के बावजूद ना ही अर्जुन कपूर अपने अभिनय की छाप छोड़ पाते हैं, नहीं भूमि ने ऐसा कोई कमाल दिखाया. यह एक औसत दर्जे की फिल्म बनकर रह गई. आजकल प्रमोशन का ज़माना है और लोग अपनी फिल्मों का प्रमोशन कई दिनों पहले ही करते हैं. लेकिन इस फिल्म के कलाकारों ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया, इसका भी असर फिल्म पर पड़ा है निर्देशक अजय बहल भी अपने डायरेक्शन का प्रभाव नहीं दिखा पाए.
आंख-मिचौली
मृणाल ठाकुर, परेश रावल, अभिमन्यु दसानी, शरमन जोशी, अभिषेक बनर्जी, विजय राज, अरशद वारसी स्टारर आंख-मिचौली को एक मज़ेदार फिल्म बनाने में निर्देशक उमेश शुक्ला ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. कहानी बस इतनी सी है मृणाल शादी करना चाहती है, लेकिन शाम के बाद उसे दिखाई देना बंद हो जाता है. परेश रावल को भूलने की बीमारी है, तो अभिषेक बनर्जी हकलाते हैं. शरमन जोशी को सुनाई नहीं देता है. फिल्म के हर क़िरदार की अपने एक दिलचस्प कहानी है. अभिमन्यु से मृणाल की शादी करने के लिए तमाम झूठ बोले जाते हैं, पर इन सबके बावजूद क्या दोनों की शादी हो पाती है ये देखने काबिल है. इतने मंजे हुए कलाकारों के होने के बावजूद फिल्म अपने उम्मीद पर खरी नहीं उतरती. फिर भी एक बार देखी जा सकती है.
यूटी 69
शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा जब पोर्न केस में आरोपी होकर गिरफ़्तार हुए थे, तब तमाम अफ़वाहों और विवादों का सिलसिला ख़त्म ही नहीं हो रहा था. इस घटना ने उनके जीवन में तूफ़ान ला दिया था. इसी को राज कुंद्रा ने अपने सहज अभिनय द्वारा समेट कर दिखाने की कोशिश की है अंडर ट्रायल 69 में. निर्देशक शाहनवाज़ अली ने राज के दर्द को बड़ी ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया है. बदनामी तो ख़ूब हुई थी और न जाने कितने उतार-चढ़ाव से रू-ब-रू हुए थे राज कुंद्रा. एक सच्ची घटना पर आधारित यूटी 69 प्रभावित करने के साथ एक सबक भी दे जाती है. ज़िंदगी के कई कड़वे पहलुओं को भी उजागर करती है.
हुकुस बुकुस
एक कश्मीरी पंडित पिता के सिद्धांत और बेटे का जुनून क्रिकेट को प्रभावशाली ढंग से फिल्म में निर्देशक की जोड़ी सौमित्र सिंह और विनय भारद्वाज ने दिखाने की कोशिश की है. अरुण गोविल, दर्शील सफारी, नायशा खन्ना, वाशु जैन व गौतम सिंह विग हर कलाकार ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है, पर इन सब के बावजूद कथा-पटकथा कमज़ोर होने के के कारण फिल्म ख़ास नहीं बन पाई.
चारों ही फ़िल्में एवरेज ही साबित हो पाई हैं. इन फिल्मों पर थोड़ी और मेहनत की जाती, तो फिल्म ज़बरदस्त बन सकती थी, लेकिन ऐसा हो ना सका.
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