करवट लेती है रात
धीरे से झरती है ओस
उतार देती है काला आँचल पूरब
होता है अनावरण भोर का…
मीठी सी धुन कोई
गुनगुनाते रहते हैं लब
धड़कने जाने किसके नाम पर
शरमा जाती हैं जब
उठती पलकों के बीच आँखें
करती हैं अनावरण प्रेम का…
भीगी सी मन की धरती पर
प्रीत का बीज कोई बो गया
दिल का सागर यूं छलक उठा
बहकी हुई कलम
ज़िंदगी की किताब पर
करती है अनावरण
एक रिश्ते में ढली कविता का…
- विनीता राहुरीकर
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Photo Courtesy: Freepik
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