भीड़ में से किसी ने बताया, “सड़क टूट-फूट रही थी और पिछले दिनों यह दुबारा बनाई गई है, इससे सड़क की ऊंचाई थोड़ी बढ़ गई लगती है."
कारण तो पता चल गया, पर समस्या तो वैसे ही रही. ‘इस फंसी हुई बस को निकाला कैसे जाए?’
एक स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए पर्वतीय प्रदेश की एक यात्रा का आयोजन किया. उनके साथ एक शिक्षक भी था.
पहाड़ी रास्तों पर जब राह में पर्वत आ जाते हैं, तो उसे पूरी तरह हटाने की बजाय उसमें अपनी आवश्यकतानुसार सुरंग बना ली जाती है. इन सुरंगों की चौड़ाई, तो पूरी सड़क जितनी ही होती है, ऊंचाई ज़रूरत अनुसार रखी जाती है.
इन स्कूली बच्चों की राह में भी एक ऐसी ही सुरंग आ गई.
उस पर स्पष्ट शब्दों में लिखा था- ‘सुरंग की ऊंचाई पांच मीटर.’
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ड्राइवर इस मार्ग से पहले भी अनेकों बार गुज़र चुका था, अतः उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ बस सुरंग के अंदर घुसा दी. परन्तु इस बार बस सुरंग थोड़ी ही दूर जाकर छत से रगड़ खा बीच में ही फंस गई.
ड्राइवर हैरान था. कहने लगा, “अनेकों बार तो मैं इसी सुरंग से गुज़रा हूं, बिना किसी समस्या के. फिर यह आज क्या हुआ?"
वहां एक भीड़ इकट्ठी हो गई.
भीड़ में से किसी ने बताया, “सड़क टूट-फूट रही थी और पिछले दिनों यह दुबारा बनाई गई है, इससे सड़क की ऊंचाई थोड़ी बढ़ गई लगती है."
कारण तो पता चल गया, पर समस्या तो वैसे ही रही. ‘इस फंसी हुई बस को निकाला कैसे जाए?’
सुरंग की चौड़ाई कम नहीं थी. एक भला व्यक्ति अपनी कार को सुरंग के आगे की तरफ़ ले गया और बस को रस्सी से अपनी कार के पीछे बांध कर खींचने का प्रयास किया. लेकिन बस को ज़रा भी न हिला पाया. किसी विशेष जगह से वह ऊपर छत से अटकी हुई थी, जिससे वह आगे नहीं बढ़ पा रही थी.
सड़क को खोदने, क्रेन मंगवाने जैसे अनेक सुझाव रखे गए, परन्तु ऐसे इलाकों में नेट न होने पर यह भी सरल नहीं था.
इतने में एक छात्र बस से उतरा और बोला, "क्यों न हम सब टायरों से थोड़ी-थोड़ी हवा निकाल दें? इससे बस थोड़ी नीचे हो जाएगी और आगे बढ़ सकेगी."
बच्चे की सलाह काम आई.
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टायरों से हवा का दबाव कम हो जाने से बस नीचे हो गई और सुरंग की छत से बिना रगड़ खाए बाहर निकल आई.
इसी तरह हम भी झूठे अहंकार, स्वार्थ, घृणा इत्यादि से फूले रहते हैं. यदि हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल दें, तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना भी सरल हो जाएगा.
- उषा वधवा
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