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कहानी- दिल की सेल्फी (Short Story- Dil Ki Selfie)

यह जो ज़िंदगी है तमाम बेचैनी भरे दिनभर की थकान के बाद कहीं तो सुकून के लम्हे ढूंढ़ती है. नहीं मिलते हमें अपने आसपास या फिर अपनों के बीच ऐसे दो-चार पल भी जो सुकून के हों और तब दिल के भीतर एक तड़प, एक बेचैनी हिलोरें मारती है. ऐसे में कोई ऐसा संदेश, जो दिल को गुदगुदा दे… कोई ऐसी बात, जो दिल की धड़कनें बढ़ा दे… कुछ ऐसा, जो हमें हमारी थकान भरी ज़िंदगी से दूर ले जाकर हमें सुकून दे दे. ऐसा कोई मिल जाए, तो बेसाख़्ता यह दिल थोड़ी देर ही सही, तड़प उठता है.

वह दस मिनट से लगातार सौरभ की लिखी चार लाइनें पढ़ रही थी.
तुम्हारी प्रोफाइल और अबाउट बहुत अच्छा लगा, स्टेटस में लोड फोटो बहुत सुंदर हैं. वैसे इनडायरेक्टली कह रहा हूं तुम बहुत सुंदर हो, ख़ासतौर से जो सेल्फी तुमने पिंक साड़ी में ली है वह लाजवाब है. हां, हो सके तो मेरे लिए अलग से अपने दिल की सेल्फी भेज देना, ज़िंदगीभर संभाल कर रखूंगा और जब कभी उदास हुआ, तो उसे देख लूंगा. मुझे अपनी ज़िंदगी में तुम्हारे दिल से ख़ूबसूरत दिल कोई और नहीं मिला…
यक़ीन करो, मुझे तुम्हारे दिल का एक्सरे नहीं चाहिए कि उस दिल में
क्या-क्या है, किस-किस का नाम है… मुझे तो स़िर्फ यह एहसास ही रुला देता है कि तुम्हारे दिल की दीवार पर कहीं हल्की-सी लकीर मेरे नाम की हुई, तो कहीं ख़ुशी से पागल न हो जाऊं…
मैं तुम्हारे दिल की ख़ूबसूरती को हर पल अपने दिल के भीतर छुपा के रखने के लिए बेताब हूं, जिससे यह जो मेरा तड़पता हुआ दिल है, वह भी ख़ूबसूरत बन जाए.
ओह माई गॉड! कोई किसी के लिए ऐसा लिख सकता है क्या? वह भी इतनी बेबाक़ी से. यह न तो प्यार का इज़हार था, न फ्लर्टिंग कि “श्‍वेता तुम बहुत सेक्सी लग रही हो…” या आम छिछोरे लोगों की तरह, “क्या यार इस ड्रेस में तो तुम मार ही डालोगी.” “उफ़ तुम्हारे पति बहुत लकी हैं, क्या क़िस्मत पाई है उन्होंने जो हर व़क्त तुम उनके लिए हाज़िर हो… काश! थोड़ी सी हमारी क़िस्मत भी ऐसी होती…”
फ्लर्टिंग करने वाले सभी मर्द एक से एक शातिर होते हैं. इशारों-इशारों में कुछ ऐसा शो कर देते हैं कि चाहते क्या हैं. बस, समाज और बदनामी का डर न हो, तो सुबह से शाम तक न जाने कितने लोग उसे खा जाने की हसरत रखते हैं. स्त्री के लिए अच्छी निगाह और सम्मान क्या होता है एक बार भी किसी मर्द के दिल का एक्सरे सामने आए, तो पता चले. कोई कितना भी क़रीब हो या शरीफ़ बने, उसके दिल का एक्सरे काला ही निकलेगा.

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और यह सौरभ आज दस साल से अधिक हो गए, सिवाय मेरे दिल को गुदगुदाने और मेरे भीतर लहरें उठने के इसने कुछ किया ही नहीं. यहां तक कि कई बार अकेले मिलने पर मैंने हल्की मुस्कुराहट के इशारे भी किए कि तुम्हारी फ्लर्टिंग का बुरा नहीं मानूंगी, मुझे छूना है तो मेरे हाथ सहला सकते हो… मेरे क़रीब आ सकते हो, लेकिन…
पता नहीं किस मिट्टी का बना है कि ऐसे मौ़के पर भी तारीफ़ करेगा भी तो मेरे व्यक्तित्व की, मेरे मन, विचार, भावना और अच्छे होने की. सुंदरता के लिए बोलना भी पड़ा, तो मुश्किल से बस एक-दो लाइन, “सच कहूं तो तुम इतनी सुंदर हो कि परियां भी नहीं हो सकतीं.”
भला सुंदरता की इस कूल तारीफ़ में कहीं किसी लड़की के खून में गरमी और दिल में लहरें उठती हैं आज के ज़माने में!


लेकिन यह क्या, यह उसे हुआ क्या है? वह क्यों उसकी लिखी लाइनों को आज इस तरह बार-बार पढ़ रही है. उफ़्फ़ कहीं वह उसे प्यार तो नहीं करने लगी है?
बस, यही एक लाइन तो उसने अपनी अंतिम लाइन में लिखी थी कि मैं तुम्हारे दिल की सेल्फी में स़िर्फ यह देखना चाहता हूं कि क्या मेरे नाम की हल्की सी लकीर मौजूद है उसमें. मुझे तुम्हारे दिल का एक्सरे नहीं, उसकी ख़ूबसूरती चाहिए, जिसके सहारे अपनी ज़िंदगी जी सकूं. बस इतनी सी बात आज उसके भीतर तूफ़ान उठा रही थी.
क्या मेरे लिए किसी की तमन्ना इतनी बड़ी हो सकती है कि जो मेरी ख़ूबसूरती से परे मेरे व्यक्तित्व की सेल्फी के सहारे अपनी ज़िंदगी गुज़ारने का ख़्वाब देख ले. बिना उसे छुए, बिना उसके साथ एक रात गुज़ारने की तमन्ना के साथ. यह किसी इंसान का प्यार है या दीवानगी का आलम, क्योंकि आज तक उसने उसे ‘आई लव यू’ नहीं कहा था.
और जितना ही वह उसके विचारों की ऊंचाई को सोचती, लिखने की नज़ाकत को देखती और उसके धीर-गंभीर व्यक्तित्व की छवि को निहारती, अपने ही भीतर उसे एक बार पाने को बेकाबू हो उठती. सौरभ आज यह तुमने क्या कर दिया है..? क्यों आज मैं तुम्हारे विचार, तुम्हारी सोच की गिरफ़्त से बाहर नहीं आ पा रही हूं? ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि रातभर तुम्हें सोचते और तुम्हारी बातों को अपने भीतर दोहराते सुबह उठ कर फिर तुम्हारे ही ख़्याल में खो गई हूं.
सौरभ आई लव यू… उसने मन ही मन कहा. लेकिन वह जानती थी कि इसे सौरभ से नहीं कहा जा सकता. यह महसूस तो किया जा सकता है, लेकिन शब्दों से कहा नहीं जा सकता, क्योंकि सौरभ का अपना परिवार है. हंसता-खेलता परिवार और वह भी किसी की अमानत है. उसकी ज़िंदगी भी बहुत ख़ुशहाल है. शादी के तमाम बंधन के बाद भी उस पर कोई रोक-टोक नहीं है. वैसे भी आशीष में कोई कमी नहीं है. क़िस्मत से मिलता है ऐसा पति. फिर आज उसका झुकाव सौरभ की तरफ क्यों हो उठा है? न जाने सुबह से शाम तक कितने लोग मिलते हैं… उसकी तारीफ़ करते हैं… बात आई-गई हो जाती है, लेकिन सौरभ के प्रति उसके भीतर बढ़ते झुकाव ने उसे असमंजस में डाल दिया था. क्या ज़िंदगी में एक बार फिर से प्यार हो सकता है. प्यार सही और ग़लत के ख़्याल से बाहर की बात है. प्यार दिल से होता है और सही-ग़लत का ़फैसला दिमाग़ को करना होता है. कोई दिल में उतर जाए, तो दिमाग़ उसे रोक नहीं सकता, बस बता सकता है कि यह नैतिक है कि अनैतिक. इसके हानि-लाभ क्या हैं और न जाने क्या-क्या… मगर यह जो दिमाग़ है, सुकून नहीं दे सकता. किसी इंसान की बेचैनी नहीं ख़त्म कर सकता. सुकून मिलता है, तो दिल से, क्योंकि बेचैनी भी दिल से पैदा होती है भले ही वह वहां जन्म लेकर दिमाग़ में भर जाए.

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यह जो ज़िंदगी है तमाम बेचैनी भरे दिनभर की थकान के बाद कहीं तो सुकून के लम्हे ढूंढ़ती है. नहीं मिलते हमें अपने आसपास या फिर अपनों के बीच ऐसे
दो-चार पल भी जो सुकून के हों और तब दिल के भीतर एक तड़प, एक बेचैनी हिलोरें मारती है.
ऐसे में कोई ऐसा संदेश, जो दिल को गुदगुदा दे… कोई ऐसी बात, जो दिल की धड़कनें बढ़ा दे… कुछ ऐसा, जो हमें हमारी थकान भरी ज़िंदगी से दूर ले जाकर हमें सुकून दे दे. ऐसा कोई मिल जाए, तो बेसाख़्ता यह दिल थोड़ी देर ही सही तड़प उठता है. इंसान को लगता है क्यों न इन मासूम और दिल को हल्का कर देने वाले लम्हों को दामन में समेट लें.
सौरभ की बातें मुझसे कुछ ले तो नहीं रहीं.  वो मुझसे कुछ मांग भी नहीं रहा. अनजाने ही उसके शब्द मेरे दिल में समा कर उसे गुदगुदा देते हैं. मेरी रूह को सुकून देते हैं.
अचानक मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए. मैं हंसने लगी. मेरे पति ने पूछा, “क्या हुआ? हंस क्यों रही हो इतनी रात गए?”
“ऐसे ही एक चुटकुला पढ़ रही थी.”
इतनी आज़ादी तो थी मुझे कि कोई मेरा मोबाइल न देखे. हर किसी की एक पर्सनल लाइफ होती है. और आशीष ने कभी मेरी पर्सनल लाइफ में दख़ल नहीं दिया था. आज जब पति-पत्नी दोनों वर्किंग हो गए हैं, तो मानी बात है ऑफिस के कुछ संबंध होंगे, कुछ काम रात में भी कहे जा सकते हैं. कभी भी किसी को सुबह जल्दी जाना हो सकता है. कोई भी लेट हो सकता है. ऐसे में बेकार के सवाल और बेवजह के शक किसी की भी ज़िंदगी को बर्बाद कर सकते हैं. विश्‍वास ही वह शब्द हैं, जो वर्तमान समय में किसी भी परिवार को सुचारू रूप से चला सकते हैं. एक-दूसरे पर भरोसा रखना और सम्मान करना वर्तमान समय की बहुत बड़ी पारिवारिक ज़रूरत है.
ऐसे में जब आशीष ने कहा, “लाइट ऑफ कर दूं.” तो मैंने नींद आने का बहाना करते हुए कहा, “हां.” और इतना कहकर मैंने नेट ऑफ कर दिया.


हम दोनों के बीच हमारा छोटा सा बच्चा श्री लेट कर सो चुका था. अब मैं पूरी तरह घर में लौट चुकी थी. अचानक मैं उठने लगी, तो पतिदेव बोले, “क्या हुआ?
“कुछ नहीं कल के लिए राजमे भिगोना भूल गई. तुम लेटो बस अभी आई.” मैं उठ कर किचन में आई. मैंने थोड़ी खटर-पटर की जैसे डिब्बे से राजमे निकाल रही हो. पतिदेव थके थे बस दस मिनट में खर्राटे भरने लगे, जिसकी आवाज़ मेरे कानों तक पहुंच रही थी.
मैंने एक बार फिर नेट ऑन कर लिया. सौरभ के शब्द मेरे दिल में बस चुके थे. मैं एक बार फिर ख़्यालों में खो गई. मैं कितनी भोली थी. मुझे जब कॉलेज के लड़के सलवार-सूट और दुपट्टा पहनकर कॉलेज आने के लिए चिढ़ाते, तो मैं समझ नहीं पाती. कोई बहाने से मेरे हाथ को छू लेता या कभी गाल पर मक्खी उड़ाने के बहाने हाथ लगा देता, तो मुझे कुछ फील नहीं होता. जब मेरी सहेलियां मेरे भोलेपन पर हंसतीं, तो मैं उनसे पूछती, “मैंने ऐसा क्या किया है, जो तुम सब हंस रही हो.”
सब कहतीं, “अरे कुछ नहीं, तुमने थोड़ी कुछ किया है. वो तो सनी बदमाश है. वह ऐसे ही बहाने से लड़कियों को छू लेता है.”
यह सुनकर भी मैं नाराज़ नहीं होती. कहती, “इसमें क्या है जैसे तुम मेरी फ्रेंड हो, वैसे ही सनी भी अपनी क्लास में पढ़ता है. उसे मेरा हाथ छूने से थोड़ी-सी ख़ुशी मिलती है, तो उसमें क्या है.”
कोई बात करता और डबल मीनिंग संवाद बोलता, तो मैं उससे बड़े भोलेपन से चुटकुले का अर्थ पूछने लगती. अब भला स्कूल-कॉलेज के लड़कों में इतनी हिम्मत कहां कि वे चुटकुले का अर्थ बता सकें. वे डर कर भाग जाते कि कहीं मेरी शिकायत न हो जाए और साल ख़राब न हो जाए. तब मैं अपनी सहेली से पूछती, “आख़िर वो मतलब बताए बिना भाग क्यों गया?”
इसके जवाब में मेरी सहेलियां ज़ोर से हंस देतीं, “सुन तुझे इस ज़माने में पैदा नहीं होना चाहिए था. यार तू न किसी और ही दुनिया की है.”
मैं इन सब बातों पर ध्यान नहीं देती थी. धीरे-धीरे मेरे इस व्यवहार के चलते सब मुझे प्यार करने लगे. कभी कोई कुछ उल्टी-सीधी बात हो भी जाती, तो मैं क्षमा पर्व पर सबको माफ़ कर देती. कहती, “भगवान ने ये पर्व इसीलिए तो बनाया है कि जाने-अनजाने अगर किसी से ग़लती हो जाए और उसे उस ग़लती का एहसास हो, वह अपनी ग़लती के लिए माफ़ी मांगे, तो माफ़ कर देना सबसे बड़ा पुण्य का काम है. आप किसी को सज़ा देकर नहीं सुधार सकते, लेकिन किसी की ग़लती पर उसे माफ़ कर देने से वह हमेशा के लिए एक अच्छा इंसान बन जाता है.”
वैसे भी मेरी एक ज़रा सी किसी की गई ग़लती माफ़ कर देने से वह अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा सकता है. अच्छे नंबर ला सकता है, तो मुझे क्या फ़र्क पड़ता है. देख ना ये ज़िंदगी कितनी छोटी है इसमें किसी से शिकायत रख कर क्या करना है. अब कॉलेज का थर्ड ईयर आ गया है. कुछ महीने बाद कब किसे कहां मिलना है.”
ऐसे ही कॉलेज में एक दिन मेरा दिल क्लास के टॉपर रवि सेन के लिए धड़कने लगा था. आए दिन बातें होतीं.
“रवि प्लीज़ वो नोट्स दे दो… रवि तुम तैयारी कैसे करते हो?.. रवि तुम्हारा आगे का क्या प्लान है?..” लेकिन रवि को कहां ़फुर्सत थी. वह बस कॉलेज की चारदीवारी में ख़्वाब और ख़्याल बन कर रह गया था.
लड़की तो मुश्किल से ही ख़ुद किसी से प्यार का इज़हार करती है, बस वह अनजाने ही प्यार में डूब जाती है. कॉलेज को ख़त्म होना था हो गया. सब अपने-अपने रास्ते चले गए. मैंने भी अपनी राह ले ली. पढ़ाई-लिखाई पूरी हुई नौकरी लगी और शादी हो गई. लेकिन मेरे दिल में एक तड़प… एक टीस रह गई. किसी के द्वारा चाहे जाने की प्यास…
वो कहते हैं न- तुमसे उलफ़त के तकाज़े न निबाहे जाते, वरना हमको भी तमन्ना थी कि चाहे जाते…
सौरभ ने आज मेरे दिल में वही चाहे जाने की तड़प जगा दी थी. मैं जानती थी कि कभी अपने दायरे नहीं तो़ड़ूंगी. कभी किसी को धोखा नहीं दूंगी, लेकिन एक मैसेज तो भेज ही सकती है अपने कलीग को, जो मेरे लिए इतना ख़ूबसूरत मैसेज भेज रहा है.

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मैंने धीरे से नेट ऑन किया और लिखा-
‘ज़रूर भेजूंगी अपने दिल की सेल्फी, बस मोबाइल में वह कैमरा आने दो.’
और जैसे ही मैंने मैसेज का जवाब भेजा, उधर से ब्लू टिक हो गया.
उफ़्फ़ तो क्या सौरभ इतनी रात गए जाग कर मेरे जवाब का इंतज़ार कर रहा था. मैं सोचने लगी, कोई तो है जो मेरे दिल को जानता और समझता है.
और सौरभ सोच रहा था, अगर श्‍वेता का  जवाब रात बारह बजे आ रहा है, तो भला यह कैसे हो सकता है कि उसके दिल पर उसके यादों के कुछ अक्स न उभरे हों… भला ऐसे ही क्यों कोई किसी के लिए इतनी देर तक जाग कर कुछ लिखेगा…
श्‍वेता के दिल की सेल्फी बिना कैमरे के उसके पास पहुंच चुकी थी. दोनों जानते थे दिल की सेल्फी किसी की ज़िंदगी को डिस्टर्ब नहीं करती, बस ख़त्म हो रही ज़िंदगी को एक नए अहसास से भर देती है.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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