फिल्म- घूमर
निर्देशक- आर. बाल्की
कलाकार- अभिषेक बच्चन, सैयामी खेर, शबाना आज़मी अंगद बेदी, इवांका दास, शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर, नासिर खान, गुनीता संधू, अमिताभ बच्चन
लेखन- आर बाल्की, ऋषि विरमानी, राहुल सेनगुप्ता
गीत-संगीत- अमित त्रिवेदी
रेटिंग: **** 4 स्टार
खेल से जुड़ी फिल्मों को लेकर दर्शकों के मन में उत्सुकता हमेशा से रहती है. फिल्म पसंद आने पर वे अपना भरपूर प्यार भी लुटाते हैं, इसके बेहतरीन उदाहरण रहे हैं- ८३, इकबाल, चक दे इंडिया, मैरी कॉम जैसी फिल्में.
लेखक-निर्देशक आर. बाल्की का जादू उनकी हर फिल्मों में चलता ही है, फिर चाहे वह चीनी कम फिल्म हो या पा... उनकी फिल्मों की कहानी और निर्देशन लाजवाब और कुछ अलग से होते हैं, जो दर्शकों को बांधे रखने की क्षमता रखते हैं, यही ख़ूबी घूमर में भी देखने मिलती है.
अनीना दीक्षित, सैयामी खेर एक बेहतरीन बल्लेबाज हैं और उनका सपना भारतीय टीम में शामिल होना है. वे सेलेक्ट भी हो जाती हैं, लेकिन एक दुर्घटना में अपना दाया हाथ गंवा बैठती हैं. इस हादसे से तनावग्रस्त हो डिप्रेशन में चली जाती हैं. ज़िंदगी के प्रति उनका नज़रिया नेगेटिव होता जाता है. ऐसे में द्रोणाचार्य के रूप में पदम सिंह सोढ़ी, अभिषेक बच्चन की एंट्री उनकी लाइफ में होती है और सब कुछ बदल सा जाता है.
अनीना के दादी के रूप में शबाना आजमी ने उम्दा अभिनय किया है क्रिकेट की प्रतिमता लगाओ और उनकी नॉलेज प्रभावित करती है वही पिता के रूप में नरेंद्र ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है अंगद बेदी को छोटा सा रोल अनीना के बॉयफ्रेंड के रूप में मिला है पर उन्होंने उसे अच्छी तरह से निभाया है. उनके पिता पूर्व भारतीय क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी भी नज़र आए हैं.
अब बात करते हैं फिल्म की जान और केंद्रीय भूमिका में अनीना यानी सैयामी खेर की. वैसे भी वे बल्लेबाज बनना चाहती थीं, मगर ज़िंदगी ने उन्हें अभिनेत्री बना दिया. लेकिन उनके क्रिकेटर बनने का सपना फिल्मों में ही सही पूरा ज़रूर हुआ. अपने हाव-भाव और अद्भुत अदाकारी से सैयामी ने हर किसी का दिल जीता है. तक़रीबन यही कमाल अभिषेक बच्चन ने भी असफल टेस्ट क्रिकेटर के दर्द से कोच के अक्खड़पन, ज़िम्मेदारी, हौसला अफ़जाई करने को एक अलग अंदाज़ में बढ़िया तरीक़े से निभाया है. वे पैडी सर की भूमिका में इस कदर घुलमिल जाते हैं कि लगता है यह रोल उनके सिवा कोई कर ही नहीं सकता था. अभिषेक बच्चन के अभिनय में दिनोंदिन निखार आता जा रहा है.
अमिताभ बच्चन की ख़ासियत रही है कि वे अपनी छोटी सी भूमिका में भी पूरी तरह से छा जाते हैं. उनकी हिंदी-अंग्रेज़ी कमेंट्री के साथ काव्यात्मक लहज़ा लोगों का भरपूर मनोरंजन करता है.
बाल्की, ऋषि, सेनगुप्ता की तिकड़ी ने कहानी लिखने में गज़ब की मेहनत की है, जो पर्दे पर दिखती है. अमित त्रिवेदी का संगीत जोश भरने के साथ कर्णप्रिय भी है ख़ासकर घूमर... विशाल सिन्हा की सिनैमाटोग्राफी उत्कृष्ट है. निपुण गुप्ता ने एडिटिंग भी अच्छी तरह से की है, इससे कहीं फिल्म कहीं भी अखरती नहीं है. खेल निर्देशक ध्रुव पी. पंजुआनी ने भी कमाल दिखाया है. खेल में नकली भीड़ के शोर से अलग वास्तविक सा दिखता है. आर. बाल्की और रमेश पुलापका के अलावा अभिषेक बच्चन भी निर्माताओं में से एक हैं और होप फिल्म मेकर्स सरस्वती एंटरटेनमेंट के बैनर तले फिल्म रिलीज़ की गई है.
सवा दो घंटे की फिल्म कहीं बोर नहीं करती. हां, अलबत्ता फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा धीमा ज़रूर है, लेकिन सेकंड हाफ उसकी भरपाई कर देता है. यह स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म सभी को ख़ूब पसंद आ रही है. आम जनता से लेकर खिलाड़ियों ख़ासकर भारतीय क्रिकेटर फिल्म के कलाकार और निर्देशक की जमकर तारीफ़ कर ही रहे हैं. एक ने तो यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार लेने की क़ाबिल है तक कह दिया.
Inspirational
घूमर फिल्म की कहानी हादसे में दायां हाथ खोने के बावजूद कड़ी मेहनत, हिम्मत व जुझारूपन दिखाते हुए गोल्ड मेडल हासिल करने वाले हंगरी के शूटर खिलाड़ी कैरोली टकास से प्रेरित है. उन्होंने अपने बाएं हाथ को ही अपना बेस्ट हैंड बनाते हुए लगातार प्रैक्टिस, संघर्ष और साहस के बलबूते समर ओलंपिक्स में 1948 और 1952 में 25 मीटर पिस्टल शूटिंग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था. बुडापेस्ट में जन्मे कैरोली आर्मी में थे. निशानेबाज़ी के खेल के महारथी थे. कैरोली की कहानी किसी भी निराशा-हताश खिलाड़ी के लिए प्रेरणास्रोत है.
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