लो आया मौसम सावन का
यादों के महकते मधुवन सा
बाबुल के बोलते आंगन सा
कुछ सखियों सा कुछ साजन सा
वो गुड़िया, गुड्डे याद आए
पेड़ों के झूले याद आए
याद आए रसोई के खेल सभी
वो चूल्हे-चकली याद आए
मेरे बीते हुए बचपन सा
लो आया मौसम...
कजरी के मेले याद आए
मेहंदी के कटोरे याद आए
याद आए बिंदिया और झुमके
चूड़ी के हरे रंग याद आए
वो पहले श्रृंगार के दर्पण सा
लो आया मौसम...
भाई की कलाई याद आई
भाभी और माई याद आई
याद आया बीता हर लम्हा
पीहर से विदाई याद आई
इस माह से रिश्ता है मन का
लो आया मौसम सावन...
यादों के महकते मधुवन सा
बाबुल के बुलाते आंगन सा
कुछ सखियों सा कुछ साजन सा
लो आया मौसम सावन का...
- पूर्ति वैभव खरे
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