जब कभी किसी अलग काॅन्सेप्ट पर कोई फिल्म बनती है, तो उसकी प्रशंसा के साथ आलोचना भी ख़ूब होती है, कुछ ऐसा ही हो रहा है नितेश तिवारी निर्देशित 'बवाल' फिल्म के साथ. बवाल मूवी को लेकर एक अलग तरह का ही बवाल मचा रहे हैं आलोचक. कुछ इसे बेहतरीन कह रहे, तो कुछ बेकार. अब यह बहुत हद तक दर्शकों पर निर्भर करता है कि वह इसे कितना पसंद करते हैं… एक युनिक परिकल्पना द्वितीय विश्व युद्ध के साथ एक पति-पत्नी के रिश्ते और प्यार को जोड़ती कहानी थोड़ी अलग और विचित्र ज़रूर लगती है. लेकिन फिल्म का ट्रीटमेंट इसे एक अलग ही मोड़ पर ले जाता है, जो भावनाओं के साथ मनोरंजन का अच्छा तड़का देता है. दंगल और छिछोरे जैसी ख़ूबसूरत और अर्थपूर्ण संदेश देने वाली फिल्म बनाने वाले नितेश तिवारी का बवाल में एक अलग ही अंदाज़ देखने मिलता है.
फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार है अजय दीक्षित, अज्जू यानी वरुण धवन स्कूल में इतिहास पढ़ाते हैं, लेकिन उन्हें इसकी ख़ुद बहुत कम जानकारी है. वे एक दिखावे की ज़िंदगी जीने में यक़ीन रखते हैं. लखनऊ शहर में अपने माता-पिता के साथ रहते हैं. उन्होंने अपने इर्द-गिर्द ऐसा माहौल बना रखा है कि वह काफ़ी ज्ञानी और ऑलराउंडर शख़्सियत हैं. वे साइंटिस्ट बनना चाहते थे, नासा में जाना चाहते थे, किसी कारणवश नहीं जा पाए. आर्मी ऑफिसर, कलेक्टर, क्रिकेटर भी बनना चाहते हुए बन नहीं पाए… मनगढ़ंत कहानियां और क़िस्से सुनाकर अपनी एक अलग छवि लोगों के दिलों में बना रखते हैं. सब उनकी इमेज व कारनामे की वजह से उन्हें मानते हैं और सराहना करते हैं.
लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब अपनी इसी छवि को और मज़बूत करने के लिए हक़ीक़त में जो औसत दर्जे की पढ़ाई करने वाले अज्जू भैया की है, वे कॉलेज की टॉपर निशा, जाह्नवी कपूर को अपने जीवन में लाना चाहते हैं. इससे उनकी इमेज अच्छी बनेगी और मान-सम्मान भी मिलेगा.
निशा एक समझदार व बुद्धिमान युवती है, पर इसके बावजूद एक कमी है कि उसे मिर्गी के दौरे पड़ते थे. लेकिन पिछले काफ़ी सालों से हुआ नहीं और अज्जू से शादी होने के बाद सुहागरात के दिन ही उसे दौरे पड़ जाते है. पति-पत्नी के रिश्ते में दूरियां आ जाती है.
इसी बीच अज्जू अपने स्कूल के एक छात्र को थप्पड़ मार देता है, जो विधायक का बेटा निकलता है और उन्हें सस्पेंड कर दिया जाता है. अपनी इमेज को ठीक करने के वह यूरोप की टूर पर जाकर सेकंड वर्ल्ड वॉर के बारे में जानकारी एकत्र कर अपने छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाने की प्लानिंग करता है. अकेले जाने नहीं दिया जाएगा मजबूरी में पत्नी को भी साथ ले जाता है. अब देखने वाली बात यह है कि क्या यूरोप में पति-पत्नी के रिश्ते मधुर बन पाते हैं..? वे आपस में जुड़ पाते हैं… अज्जू अपनी इमेज को ठीक कर पाते हैं… उन्हें अपनी नौकरी वापस मिलती है… यह सब देखने-जानने के लिए फिल्म देखना बहुत ज़रूरी है. एक अलग तरह एक्सपेरिमेंट किया गया है, जो मनोरंजन करने के साथ संदेश भी देती है.
वरुण धवन और जाह्ववी कपूर दोनों ने ही अपने लाजवाब अभिनय से प्रभावित किया है. एक तिकड़म करने वाला इंसान और बाद में संघर्ष करते हुए अपने आपको टटोलने वाले शख़्स के रूप में कमाल की एक्टिंग की है वरुण ने. वहीं पर जाह्नवी कपूर ने ख़ूबसूरत एक्टिंग की है.
अज्जू के पिता के रूप में मनोज पाहवा ने और मां के रूप में अंजुमन सक्सेना ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. इसके अलावा अन्य कलाकारों में गुंजन जोशी, मुकेश तिवारी, व्यास हेमांग, प्रतीक पचौरी ने भी ठीक-ठाक काम किया है.
तनिष्क बागची मिथुन और आकाशदीप सेनगुप्ता का संगीत मधुर है और अरिजीत सिंह का गाया गाना तुम्हें कितना प्यार करते… गाना मधुर बन पड़ा है.
फिल्म की कहानी नितेश तिवारी की पत्नी अश्विनी अय्यर ने लिखी है. लेखन-पटकथा नितेश तिवारी के साथ श्रेयस जैन, पीयूष गुप्ता, निखिल मेहरोत्रा ने लिखी है. फिल्म को साजिद नाडियावाला और अश्विनी अय्यर ने मिलकर प्रोड्यूस किया है.
एक इंसान की जद्दोज़ेहद और अपनी छवि को लेकर इस कदर जुनूनी होना देखने काबिल है. आज के दौर में ज़्यादातर लोग अपनी इमेज बनाने के चक्कर में क्या कुछ कर गुज़रते हैं, इसी पर एक व्यंग भी है.
फिल्म के कई पहलू अच्छे और ख़ूबसूरत है, तो कमियां भी कुछ कम नहीं है. द्वितीय विश्व युद्ध के साथ एक पति-पत्नी के रिश्ते को जोड़ना कहीं-कहीं अटपटा भी लगता है, मगर यहां पर भी निर्देशक ने सूझबूझ से काम लेते हुए कहीं भी बोर होने नहीं दिया. यूरोप की ख़ूबसूरती को सिनेमैटोग्राफर मितेश मीरचंदानी ने बेहद आकर्षक ढंग से दर्शाया है.
निर्देशन में दंगल और छिछोरे वाली बात तो नहीं देखने मिलती, लेकिन अलग नज़रिया एक अलग कहानी ज़रूर प्रभावित करती है. ओटीटी के अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ बवाल कितना बवाल मचाती है, यह तो वक़्त ही बताएगा.
रेटिंग: *** 3
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