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कहानी- तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय (Short Story- Tumahari Bhi Jai Jai, Humari Bhi Jai Jai)

लंबा और हैंडसम है. सामने के बाल गिर गए हैं, पर केश पतन से भव्य दिखता ललाट इसे बुद्धिमान दर्शा रहा है.
“नौकरी नहीं छोड़ना चाहतीं?”
“लड़कियों को ख़ुद को साबित करने का मौक़ा मिलना चाहिए.” “मैं आपको कैसा लगा? पसंद हूं?” श्रेष्ठी को प्रश्‍न आकस्मिक कम, पर अस्वाभाविक अधिक लगा. अभी तक जिन लड़कों से सामना पड़ा वे उसे पसंद, बल्कि नापसंद करने आए. यह पहला है, जो ख़ुद को पसंद करवाने आया है.

दो बेटों के बीच अकेली बेटी श्रेष्ठी. अच्छे संस्थान से एच.आर. में एम.बी.ए., लंबी और ख़ूबसूरत भी. पिता हरे कृष्ण की आर्थिक स्थिति अच्छी है. श्रेष्ठी के विवाह को लेकर सभी अच्छी कल्पना और कामना से भरपूर हैं. श्रेष्ठी और आर्थिक स्थिति दोनों श्रेष्ठ हैं, अतः इस परिवार का अनुमान है कि वे ऐसे लड़के को ढूंढ़ ही लेंगे, जो सबकी चाहतों को पूरा करता हो.
श्रेष्ठी ने चुनौती दी, “पापा, आप लड़का तलाशो, मैं नौकरी.” हरे कृष्ण सुरूर में, “देखें, किसकी तलाश पहले पूरी होती है.” अनुमान अक्सर ग़लत हो जाते हैं. कल्पनाएं जब यथार्थ की भूमि पर उतरीं, तो ज्ञात हुआ कि श्रेष्ठी जैसी श्रेष्ठ लड़की का विवाह भी उतना आसान नहीं है, जितना सोचा जा रहा था. श्रेष्ठी की तलाश पहले पूरी हो गई. उसे पूना की अच्छी कंपनी में रिक्रूटमेंट एक्ज़ीक्यूटिव का जॉब मिल गया.
कंपनी में नौकरी की चाह लिए आनेवाले आवेदकों का वो बड़ी कुशलता से इंटरव्यू लेने लगी. सिलेक्शन प्रक्रिया के पहले चरण में वह जिसे योग्य पाती, उसे तुरंत बॉस के पास भेजती. जल्दी ही वह अपने काम को एंजॉय करने लगी. हरे कृष्ण की तलाश ज़ारी है. श्रेष्ठी को अपनी नुमाइश करनी पड़ती है और वह बहुत संस्कारी बनकर लड़केवालों के सम्मुख प्रस्तुत होती है. प्रयास ज़ारी है. उप पुलिस अधीक्षक लड़का, सीए, इंजीनियर हर जगह पर कोशिशें की गईं. कोई न कोई बहाना बना लड़केवाले दो टूक जवाब दे देते.

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हरे कृष्ण और अनुराधा निराशा और अपमान से गुज़र रहे हैं. श्रेष्ठी मानसिक उत्पीड़न और हीनता बोध से. वह ख़ुद को लेकर आश्‍वस्त थी. सोचा ही नहीं था कि उसे कोई लड़का रिजेक्ट कर सकता है. सोचा ही नहीं रिजेक्शन के कैसे-कैसे कारण होते हैं. वो इस देखने-दिखाने से तंग आ गई थी. एक दिन बहस पर उतर आई, “मां, लड़का ही क्यों लड़की पसंद करता है? लड़की क्यों नहीं लड़का पसंद या नापसंद करती? मेरे पास डिग्री है, नौकरी, कॉन्फिडेंस व क्वालिटीज़ हैं, इन सबके बावजूद मुझे सिलेक्शन का अधिकार नहीं है.”
“श्रेष्ठी, अब तो लड़की भी लड़के को देखती है. तुमने भी देखे हैं.”
“ग़लत. लड़की, लड़के को देखती नहीं है, ख़ुद को दिखाती है. लड़की को लड़का पसंद है या नहीं है, कोई नहीं जानना चाहता. तुमने कभी नहीं पूछा, मुझे कौन-सा लड़का पसंद है.”
“समाज का यही चलन है.”
“समाज में क्या-क्या तो बदल गया मां और क्या-क्या नया आ गया. बस, ये कायदा और नियम नहीं बदल रहा है, जबकि इस नियम पर चलनेवालों को मुंह की खानी पड़ती है. मेरा वश चले तो मैं नियम बना दूं कि लड़केवाले लड़कीवालों को दहेज दें. आख़िर लड़की ज़िंदगीभर लड़के और उसके परिवार की ख़िदमत में रहती है.”
“श्रेष्ठी, तुम भोली हो. तुम्हें हम लोग बहुत-सी बातें नहीं बताते हैं कि तुम्हें बुरा लगेगा. एक लड़के के पिता ने तुम्हारे पापा से यहां तक कह दिया कि एक बार ले-देकर आप तो अपनी लड़की से छुटकारा पा जाएंगे. उसका जीना-मरना, हारी-बीमारी, तमाम ख़र्च जीवनभर हमको उठाने पड़ेंगे.” श्रेष्ठी लगभग चिल्ला पड़ी, “ओ गॉड! ऐसी कैलक्यूलेशन. मां, मैं शादी नहीं करूंगी.”
“जहां संयोग होगा, आसानी से बात बन जाएगी. परेशान क्यों होती हो?”
“मेरी शादी नहीं हो रही है, इसलिए मैं परेशान हूं, तुम इस तरह क्यों सोच रही हो मां? मैं अपनी नौकरी में ख़ुश हूं. सचमुच शादी नहीं करूंगी.”
“अकेली लड़की का रहना आसान नहीं है. रिश्तेदार वैसे भी जब-तब पूछते रहते हैं कि श्रेष्ठी की शादी कब करेंगे?”
“हम सेमी अरबन, सेमी रूरलवाले सज़ा भोग रहे हैं. सामंती संस्कार हमसे नहीं छूट रहे हैं. हम ख़ुद को बहुत आधुनिक मानते हैं, तब भी ये संस्कार अपभ्रंश के रूप में हमारे दिमाग़ में मौजूद हैं. तुम और पापा लड़केवालों के हाथ जोड़ते फिरते हो. जबकि मेरे ऑफिस की कुछ लड़कियां लिव इन रिलेशनशिप में हैं और ख़ुश हैं. उन्हें कोई द़िक्क़त नहीं है.”
“श्रेष्ठी, कोई भी तरीक़ा या प्रथा ऐसी नहीं है, जहां द़िक्क़त न हो.”

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“पर ये लड़कियां मेरी तरह नुमाइश नहीं करतीं. ये लड़केवाले बड़े चालाक बनते हैं. इन्हें सुंदर, शिक्षित, स्वस्थ व सलीकेदार लड़की चाहिए और लाखों का दहेज भी चाहिए, फिर भी तेवर इनका ऐसा होता है, जैसे लड़की का उद्धार कर रहे हैं. बिल्कुल नहीं सोचते कि इस तरह कोई आत्मविश्‍वासी लड़की अपना आत्मविश्‍वास खो देती है. मुझे लड़केवालों की मेहरबानी नहीं चाहिए. शादी नहीं करूंगी.”
घर में कभी मस्ती का माहौल होता था. अब मातम का है. श्रेष्ठी का जो आत्मविश्‍वास, माता-पिता को प्रभावित करता है, द्रवित करने लगा. सबकी चाहतों को पूरा करनेवाला लड़का आकाश कुसुम की तरह होता है. आकाश कुसुम को पाने की ज़िद नहीं छोड़ेंगे, तो श्रेष्ठी आत्मविश्‍वास खो देगी. समझौता किसे नहीं करना पड़ता? बल्कि करना चाहिए. अपनी कल्पना और कामना को थोड़ा नीचे लाना होगा. तो यह जो श्रेयस अपने माता-पिता व भैया-भाभी के साथ श्रेष्ठी को देखने आ रहा है इकलौता नहीं है, लेकिन अनुराधा को संतोष है बड़े भाई और तीन विवाहित बहनों के बाद सबसे छोटा है.
श्रेष्ठी पर दायित्व भार नहीं रहेगा. हरे कृष्ण को संतोष है, श्रेयस के पिता कृषि महाविद्यालय के रिटायर प्रिंसिपल हैं और फायनांस में एम.बी.ए. श्रेयस का पैकेज 15 लाख है. उधर श्रेष्ठी इन सब से बहुत व्यथित थी. बड़ी आरज़ू-मिन्नत के बाद आने को तैयार हुई, “आ रही हूं मां, पर लड़केवालों ने दंभ दिखाया, तो सबक सिखाऊंगी.”
“लड़कीवालों को नम्र होना चाहिए.”
“नम्रता से सबक सिखाऊंगी.” लड़केवालों के लिए होटल में दो रूम बुक कर दिए गए. मैहर समीप होने से वे लोग शारदा देवी के मंदिर भी जाएंगे. होटल के माध्यम से मैहर के लिए बड़ी गाड़ी बुक की है. श्रेष्ठी का बड़ा भाई और भाभी मिर्ज़ापुर में रहते हैं, इसलिए नहीं आ सके. माता-पिता के साथ रहता श्रेष्ठी का छोटा भाई हर्ष मुस्तैदी से तैयारी में लगा है. हर्ष अपनी बाइक से श्रेयस को और हरे कृष्ण कार से बाकी लोगों को रेलवे स्टेशन से होटल ले आए. पिता-पुत्र का चेहरा ऐसा हो रहा है, मानो कृतार्थ किए जा रहे हैं.
शाम को बाइक और कार से मेहमान घर लाए गए. बैठक की सजावट देख संभावित लेन-देन का अनुमान बनेगा. ऐसे प्रायोजित अवसर पर वही तयशुदा बातें होती हैं, जिनका ज़िक्र बायोडाटा में साफ़-साफ़ छपा होता है, “हरे कृष्णजी आपका बड़ा बेटा क्या करता है? बहू कहां की है? आपका नेटिव प्लेस... परिवार में और कौन-कौन हैं...?” हरे कृष्ण और अनुराधा कभी हंसते, कभी मुस्कुराते हुए वही बता रहे हैं, जो श्रेष्ठी के बायोडाटा में लिखा है. ऐसे मौक़ों पर लड़कीवालों को वजह-बेवजह हंसना पड़ता है कि ख़ुशहाल मिलनसार परिवार जान पड़े.
संकेत मिलने पर हर्ष श्रेष्ठी को बुला लाया. जींस-टॉप श्रेष्ठी की फेवरेट ड्रेस है, लेकिन लड़के वालों के सम्मुख भारतीयता पर ज़ोर देना चाहिए. वह सलवार-कुर्ते और अत्यधिक सलीके से डाले गए दुपट्टे के साथ प्रस्तुत हुई. अतिथियों की खोजी नज़रें श्रेष्ठी पर. बायोडाटा से काफ़ी कुछ मालूम होने के बावजूद श्रेयस की अल्पशिक्षित मां ने तुम्हारा नाम क्या है? पूछने जैसी मूर्खता न दिखाकर यह पूछा, “एम.बी.ए. कउन कॉलेज से की हो?” यद्यपि बायोडाटा में संस्थान का नाम अंकित है, “सिमबॉयसिस, पूना.” श्रेयस के पिता बोले, “तुम पूना में जॉब कर रही हो, श्रेयस दिल्ली में. कैसे होगा?” श्रेष्ठी बोली, “तमाम लड़कियां जॉब कर रही हैं. मैनेज हो जाता है.”
“नीति (श्रेयस की भाभी) नौकरी नहीं करती.” कहकर पिता इस तरह मुस्कुराए कि अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता कि श्रेष्ठी को नौकरी करने देंगे या नहीं. श्रेष्ठी की इच्छा हुई कहे, “हो सकता है नीतिजी मेरी तरह डिज़र्विंग न हों, हो सकता है नौकरी न करना चाहती हों, हो सकता है नौकरी न मिल रही हो...” पर नहीं कहा, वरना लड़की तेज़ है का ठप्पा लग जाएगा.
डिनर के बाद हर्ष श्रेष्ठी और श्रेयस को छत पर छोड़ गया कि श्रेयस श्रेष्ठी से कुछ पूछना चाहता हो, तो पूछ ले. श्रेयस ने अब तक कई लड़कियों को छेड़ा है. एक लड़की से एकतरफ़ा प्रेम किया. दो लड़कियों से ब्रेकअप हो चुका है. तीन लड़कियों को रिजेक्ट किया. दो लड़कियों को लटकाए हुए है कि सोचने के लिए वक़्त चाहिए. इस वक़्त असमंजस में शांत बैठा है. आत्मविश्‍वास से भरपूर श्रेष्ठी. रोमियो टाइप लड़कों को टाइट करना जानती है. अपने बॉस के ग़लत इरादे को नेस्तनाबूद कर चुकी है. आवेदकों का इंटरव्यू कुशलतापूर्वक लेती है, पर वो भी इस वक़्त असमंजस में शांत बैठी है. आख़िर श्रेयस ने बात शुरू की, “आप पूना में जॉब करती हैं, मैं दिल्ली में. डिस्टेंट मैरिज में फैमिली लाइफ प्रभावित होती है.”

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“दोनों मिलकर एडजस्ट करें, तो कोई परेशानी नहीं होती. वैसे मैं रिक्वेस्ट करूंगी मुझे दिल्ली ऑफिस में भेज दिया जाए या जॉब छोड़कर दिल्ली में दूसरे जॉब के लिए ट्राई करूंगी.” कहते हुए श्रेष्ठी ने निर्णायक नज़र से श्रेयस को देखा. लंबा और हैंडसम है. सामने के बाल गिर गए हैं, पर केश पतन से भव्य दिखता ललाट इसे बुद्धिमान दर्शा रहा है.
“नौकरी नहीं छोड़ना चाहतीं?”
“लड़कियों को ख़ुद को साबित करने का मौक़ा मिलना चाहिए.” “मैं आपको कैसा लगा? पसंद हूं?” श्रेष्ठी को प्रश्‍न आकस्मिक कम, पर अस्वाभाविक अधिक लगा. अभी तक जिन लड़कों से सामना पड़ा वे उसे पसंद, बल्कि नापसंद करने आए. यह पहला है, जो ख़ुद को पसंद करवाने आया है. वो बोली, “पहले आप बताएं.” श्रेयस ने एक भौंह ऊपर चढ़ा ली. लड़की बुद्धिमान है. सोच-समझकर उत्तर दे रही है.
“मैं आपकी स्टाइल से प्रभावित हूं, लेकिन आप थोड़ी मोटी हैं. आगे चलकर अधिक मोटी हो सकती हैं. मोटापा कम करना होगा.” श्रेष्ठी ने माना लड़केवाले अपनी कल्पना को कितना ही नीचे खिसका लाएं, इनके अहंकार में फ़र्क़ नहीं आता. अब तक के अनुभव और अनुमान उसके जेहन में दबाव बनाने लगे. अब तक बात नहीं बन पाई, क्योंकि लेन-देन लड़केवालों को नहीं जम रहा था. इस तरह मुंह पर उसे किसी लड़के ने मोटी नहीं कहा. यह बड़ा घाघ है. सीधे मोटी. बाद में पता नहीं क्या-क्या कहेगा. इसे पाठ पढ़ाना पड़ेगा कि लड़केवाले सर्वश्रेष्ठ नहीं होते. उनमें भी कमियां होती हैं.
“आप थोड़ा टकलू हैं.”
“क्या मतलब?”
“मैं एक्सरसाइज़ और डायट कंट्रोल से मोटापा कम कर लूंगी. आप बाल कहां से लाएंगे?”
“कहना क्या चाहती हैं आप?” श्रेयस की अचंभित उंगलियां अनायास चकरा रहे माथे पर जा टिकीं. सोचता था ख़ुश होकर कहेगी कल से एक्सरसाइज़ शुरू कर देती हूं. यह केश पतन बता रही है.
“क्या आप मेरी कमी बता रही हैं?”
“आप भी तो. आपको सब अच्छा चाहिए, तो मुझे भी चाहिए.” कहते हुए श्रेष्ठी को लगा उसने अपने आत्मविश्‍वास को वापस पा लिया है. इधर श्रेयस को लगा श्रेष्ठता खोकर हीन हो गया है. सीधे ‘टकलू’ कह दिया. ऐसी मुंहफट लड़की के साथ गुज़र. नो मैन. यह नादान-बेवकूफ़ है या दंभी है, जो भी है ऐसी लड़कियां फ्लर्ट करने के लिए बेहतर हैं, पर शादी के लिए नहीं. उसका मुंह सूख गया. आगे कुछ कहने-पूछने की इच्छा, बल्कि साहस न हुआ. बस, इतना ही कहा, “नीचे सब लोग हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे.”
वे लोग चले गए. एक बार फिर नाकाम हुए. श्रेष्ठी की बेफ़िक्री तो देखो. श्रेयस को टकलू कहकर गुड़-गोबर कर दिया और अब पूना के लिए रवाना होते हुए कह गई, “वे लोग फोन नहीं करेंगे. तुम लोग कॉल कर बिल्कुल नहीं गिड़गिड़ाओगे कि आप लोगों ने क्या फ़ैसला किया.” सप्ताह बीत गया. 
श्रेष्ठी के व्यवहार से लज्जित हरे कृष्ण श्रेयस के पिता को फोन करके माफ़ी मांगने का भी साहस न कर सके. वे सुस्त बैठे थे कि श्रेयस का कॉल आ गया. हरे कृष्ण से आदर से बात की और श्रेष्ठी का मोबाइल नंबर पूछा. उम्मीद का सिरा थामते हुए हरे कृष्ण ने नंबर दे दिया. अनुराधा ने श्रेष्ठी को समझाते हुए थोड़ा तमीज़ से बात करने की सलाह दी. सलाह पर श्रेष्ठी ने ग़ौर नहीं किया. श्रेयस जिस टोन में बात करेगा, वो उसी टोन में बात करेगी. वह अकड़ेगा, तो वह भी अकड़ेगी. वह तमीज़ दिखाएगा, तो वह भी दिखाएगी.
श्रेयस के कॉल पर श्रेष्ठी सदमा खाई-सी लगी. नकारात्मक भाव के कारण नहीं, श्रेयस के सकारात्मक भाव के कारण.
“श्रेष्ठी, उस दिन तुमने मेरा बड़ा इंटरव्यू लिया. जानना चाहता हूं मैं रिक्रूट हुआ या नहीं.”
“क्या मतलब?”
“मैं जब तुम्हारे घर से चला, ग़ुस्से और नफ़रत से भरा हुआ था. लग रहा था कि तुम्हें कॉल करूं और दो-चार खरी-खोटी सुना दूं. मेरा उतरा चेहरा देखकर भाभी अलग सता रही थीं. लंगूर को हूर मिल रही है और क्या चाहिए. जब मेरा ग़ुस्सा शांत हुआ, तब मुझे लगा तुम्हारी साफ़गोई से मुझे ग़ुस्सा नहीं, प्रेरित होना चाहिए.”
“मैं समझी नहीं.”
“तुमने टकलू कहकर मेरी कमी बताई, तब मुझे बुरा लगा, लेकिन...”
“टकलू कहने का मेरा इरादा नहीं था, बस ज़ुबान फिसल गई.” “तुम्हारी ज़ुबान न फिसलती तो मैं अपनी सोच न बदल पाता. अब लग रहा है रिजेक्शन लड़की को कितना निराश करता होगा. लड़केवाले छोटी-छोटी, नामालूम-सी कमियां, बल्कि वे कमियां भी ढूंढ़ लेते हैं, जिन कमियों पर आमतौर पर ध्यान नहीं जाता. ऐसा कर वे अपनी बेवकूफ़ी या घमंड साबित करते हैं. सच कहता हूं, नीति भाभी के लिए मुझे पहली बार अफ़सोस हुआ.”
“वो कैसे?”
“भैया के तिलक की रस्म हो चुकी थी, पापा ने तब भाभी के पिता से अचानक कार की मांग की थी. उन्होंने कार दी, क्योंकि अब शादी टूटती है, तो बदनामी होगी. इतने पर भी मम्मी भाभी से ख़ुश नहीं हैं. कुछ न कुछ कमी निकालती रहती हैं. अब मैं भाभी का फेवर करने लगा हूं.”
“सो स्वीट.”
“मैंने तीनों दीदियों को भी बहुत याद किया. उनकी शादियों में मम्मी-पापा ने बहुत पापड़ बेले थे. मझली दीदी की शादी के कार्ड छप गए, तब लड़केवालों का फ़रमान आया कि और कैश चाहिए. पापा ने शादी तोड़ दी. लड़केवालों ने नहीं सोचा था कि पापा ऐसी कठोरता दिखाएंगे. फिर तो लड़केवालों ने ख़ूब फोन किए कि हमारे भी कार्ड छप गए हैं. बदनामी हो रही है. आपको जो देना है, दें, न दें पर शादी होने दीजिए. पापा नहीं माने. बाद में दीदी की दूसरी जगह शादी हो गई और अच्छी हो गई, पर उस समय घर में जो मनहूस माहौल बना था, हमारी बदनामी हुई थी, तुमने अनजाने में मुझे वह सब याद दिला दिया. मैं मानता हूं लड़के फ़रिश्ते नहीं होते. उनमें भी कमी होती है. वे टकलू हो सकते हैं.”
“कहा न, ज़ुबान फिसल गई थी.”
“तुम्हारी यही ईमानदारी मुझे अच्छी लगी. तुम मुझे पसंद हो.” 
 “मोटापे के बावजूद?”
“यदि तुम मुझे टकलेपन के बावजूद पसंद करो.”
“मैं इस देखने-दिखाने से ऊब गई हूं. शादी नहीं करूंगी.” “तुम्हारे दर पर धरना दूंगा, तब तो करोगी और हां, एक्सरसाइज़ मत करना. तुम मोटी ही अच्छी लगती हो.”
श्रेष्ठी ठहाका मारकर हंस पड़ी, “आप भी बाल उगानेवाली कोई भी क्रीम न आज़माइएगा. टकलेपन के कारण बुद्धिमान लगते हैं.”
श्रेयस ने भी ठहाका लगाया, “तब तो तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय.” और दोनों एक साथ ज़ोर से हंस पड़े.

सुषमा मुनीन्द्र


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