हम एक शब्द हैं वह पूरी भाषा है
बस यही मां की परिभाषा है…
जब भी कोई रिश्ता उधड़े करती है तुरपाई मां
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे गरम-गरम रजाई मां
इस दुनिया में मुझे उससे बहुत प्यार मिला है
मां के रूप में मुझे भगवान का अवतार मिला है
मैं तन पर लादे फिरता दुसाले रेशमी
लेकिन तेरी गोदी की गर्माहट कहीं मिलती नहीं मां
ये जो सख़्त रास्तों पे भी आसान सफ़र लगता है
ये मुझको मां की दुआओं का असर लगता है
एक मुद्दत हुई मेरी मां नहीं सोयी
मैंने एक बार कहा था कि मुझे अंधेरे से डर लगता है…
मुझे अपनी दुनिया, अपनी कायनात को एक लफ़्ज़ में
बयां करनी हो, तो वो लफ़्ज़ है मां
सहनशीलता पत्थर-सी और दिल मोम-सा
ना जाने किस मिट्टी की बनी है मां
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
हालात बुरे थे मगर अमीर बनाकर रखती थी
हम गरीब थे, ये बस हमारी मां जानती थी
मांगने पर जहां पूरी हर मन्नत होती है
मां के पैरों में ही तो वो जन्नत होती है
गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुज़ारे है कितने
भला कैसे कह दूं मां अनपढ़ है मेरी…
घर में ही होता है मेरा तीरथ
जब नज़र मुझे मां आती है
स्याही ख़त्म हो गई मां लिखते-लिखते
उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी थी…