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लघुकथा- सौ सुनार की… (Short Story- Sau Sunar Ki…)

विनय चिल्लाए, "नीरजा, ए नीरजा, तुमने गुड न्यूज़ बताई सबको या नहीं?" विनय ने एक बड़ा घूंट गटका.
"कैसी गुड न्यूज़." नीरजा

सकपका गई.
"अरे वही कि वो क्या कहते हैं, हां, साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए तुम्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. ऐं… हो हो हो…" अपने घटिया मज़ाक पर विनय ख़ुद ही हंसा जा रहा था. माहौल बिगड़ गया था. नीरजा का चेहरा क्रोध और पीड़ा से लाल हो गया था.

उस दिन नीरजा को देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. वो बहुत ख़ुश थी और उसे देखकर मैं. नीरजा बच्चों जैसी हरकतें कर रही थी, कभी मेरे गले लग जाती थी, कभी गुदगुदी कर देती थी. मैंने बनावटी ग़ुस्से से डांटा, "पगलाओ नहीं, दो बच्चों की मां हो, ढंग से बैठो." वो फिर आकर लिपट गई.
नीरजा, मेरी छोटी बहन, बेहद ख़ूबसूरत, कुशाग्र, लेकिन दिल भी दिया, तो एक बिल्डर को. जोड़ी बेमेल थी. वो सीमेंट, बालू से बिल्डिंग बनाने वाला और मेरी नीरू, कविताएं, कहानी बुनने वाली. शादी बस घिसट रही थी, नीरजा बुझी-बुझी रहती थी, फिर मेरे समझाने पर इसने फिर से लिखना शुरू किया. कविताएं, कहानियां प्रकाशित होने लगीं और देखो ये फिर चहकने लगी.


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कल शाम इसका फोन आया, "दीदी, शादी की १०वीं सालगिरह मना रहे हैं संडे को. जीजाजी और बच्चों सबको लेकर आना."
"ये कैसे बुला रही है बिना मन के? लड़ाई हुई है क्या विनय से?"
"क्या बोलूं दीदी, वहीँ हर दिन आकर दो-चार पैग लगाना, रात-रात भर कैन्डी क्रश खेलना, लेकिन मैं लिखने बैठ जाऊं, तो आफत है. कल बहुत चिल्लाए, "क्या समझती हो? ये दो कौड़ी की कविताएं लिखकर ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं मिल जाएगा तुम्हें."
"लेकिन क्या दिक़्क़त है उनको तेरे लिखने से?"
"शायद मेरी प्रसिद्धि हजम नहीं कर पा रहे." इतना कहकर वो सुबकने लगी. मुझे लगा कि इसकी हंसी को मेरी ही नज़र लग गई. नीरजा पार्टी में भी बुझी-बुझी थी, मैंने डांटा, "क्या नीरू? दस हज़ार की साड़ी पोंछे की तरह लपेट ली है. तैयार होने का समय नहीं मिला तुम्हें?"
"आज अख़बार में कविता छपी है मेरी. तब से इनका मुंह बना है. दीदी, लिखना छोड़ दूं क्या?"
मैं कुछ कहती तब तक केक काटने के लिए सब बुलाने लगे. नशे में धुत्त विनय चाकू तक नहीं पकड़ पा रहे थे. जैसे-तैसे केक कटा. तब तक एक दोस्त बोला, "आजकल तो भाभीजी का ख़ूब नाम आ रहा है पेपर में. बधाई हो साले, तुम तो सेलिब्रिटी के पति बन गए."


ये क्या, आग में घी पड़ चुका था.
विनय चिल्लाए, "नीरजा, ए नीरजा, तुमने गुड न्यूज़ बताई सबको या नहीं?" विनय ने एक बड़ा घूंट गटका.
"कैसी गुड न्यूज़." नीरजा सकपका गई.
"अरे वही कि वो क्या कहते हैं, हां, साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए तुम्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. ऐं… हो हो हो हो…" अपने घटिया मज़ाक पर विनय ख़ुद ही हंसा जा रहा था. माहौल बिगड़ गया था. नीरजा का चेहरा क्रोध और पीड़ा से लाल हो गया था.
इतना अपमान? इतने लोगों के बीच?
"बताओ, नीरजा, क्यों नहीं बताया भाई, हा हा हा…"

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नीरजा अचानक मुड़ी. विनय के पास गई, मुस्कुराते हुए बोली, "आपने भी तो किसी को नहीं बताया कि कैन्डी क्रश में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए आपको राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है."
अब नीरजा हंस रही थी और सभी मुस्कुरा रहे थे और विनय का नशा उतर चुका था!

Lucky Rajiv
लकी राजीव

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Photo Courtesy: Freepik

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