अपने नाम के अनुरूप गुमराह फिल्म कई जगह पर गुमराह करती नज़र आती है. आदित्य राय कपूर, मृणाल ठाकुर, रोनित रॉय जैसे मंझे हुए कलाकार गुमराह को एक अलग लेवल तक ले जाने की कोशिश करते हैं, फिर भी फिल्म साधारण ही बन पाती है. तेलुगु फिल्म थडम की रीमेक गुमराह एक सस्पेंस मर्डर मिस्ट्री फिल्म है, लेकिन फिल्म का फर्स्ट हाफ जहां स्लो है, वही सेकंड हाफ में थोड़ी तेजी ठीक लगती है.
दिल्ली में रातोंरात एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर का मर्डर हो जाता है. इसकी तहक़ीक़ात ऑफिसर मृणाल ठाकुर और रॉनित रॉय को दी जाती है. वे क़ातिल के रूप में गुड़गांव के अर्जुन सहगल, आदित्य राय ठाकुर को ट्रेस कर लेते हैं. वे केस को क्लोज करने ही वाले होते हैं कि एक झड़प में एक व्यक्ति रॉनी को गिरफ़्तार किया जाता है, जो हूबहू अर्जुन की तरह दिखता है. अब हमशक्ल के कारण पुलिस कंफ्यूज हो जाती है. सबूत ऐसे मिलते हैं कि दोनों में से कोई एक या दोनों ही क़ातिल हो सकते हैं. अब पुलिस को लगता है कि ये हमशक्ल उन्हें गुमराह कर रही है, जबकि अर्जुन-रॉनी सोचते हैं कि पुलिस ज़बरदस्ती सता रही है. क्या ये पुलिस के शिकंजे से बच पाते हैं? अर्जुन सहगल और रॉनी दोनों में से कौन है असली क़ातिल?.. यह तो फिल्म देखने पर ही आप जान पाएंगे. लेकिन फिल्म का ट्रीटमेंट ऐसा है कि बोरियत महसूस होती है. कलाकारों की एक्टिंग कई जगह पर ओवरएक्टिंग लगती है.
आदित्य रॉय कपूर एक जैसी एक्टिंग करते हैं. उनकी एंट्री तो शानदार रही, पर फिल्म में आगे नीरस लगते हैं. मृणाल ठाकुर ने अपनी भूमिका के साथ किया है, लेकिन कई जगह पर वो भी ओवरएक्टिंग से बच नहीं पाती है. अलबत्ता रॉनित रॉय हमेशा की तरह अपनी भूमिका से न्याय करते नज़र आते हैं. उन्होंने अच्छी एक्टिंग की है. चड्डी के रूप में दीपक कालरा ने भी अपनी छाप छोड़ी है. वहीं एक्ट्रेस वेदिका पिंटो ने भी प्रभावित किया है.
यदि आप आदित्य रॉय कपूर के फैंस है तो एक बार यह फिल्म देख सकते हैं, वरना फिल्म देखना समय को बर्बाद करना होगा. टी सीरीज़ म्यूजिक ठीक-ठाक है. पर कोई भी गाना या म्यूज़िक ध्यान में रखने लायक नहीं रह पाती. सिनेमैटोग्राफी अच्छी है. वर्धन केतकर जो पहले 'कपूर एंड संस' में असिस्टेंट डायरेक्टर रह चुके हैं 'गुमराह' से निर्देशक के तौर पर अपनी नई पारी शुरू की है, जिसमें वे ख़ास कामयाब नहीं रहे.
भूषण कुमार और मुराद खेतानी
ने निर्माता के तौर पर एक अच्छी मर्डर मिस्ट्री फिल्म बनाने की कोशिश की थी, लेकिन बन नहीं पाई. मागीज थिरुमेनी व असीम अरोड़ा की लेखनी में दम नहीं है.
रेटिंग: 2 **
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