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कहानी- फौजी की पत्नी (Short Story- Fauji Ki Patni)

“मेरे लिए रहना क्या आसान होगा तुम्हारे बिना? बस, कुछ ही महीनों की तो बात है. सरहद और सीमा के आसपास के इलाकों में शांति हो जाए, फिर मैं तुम्हें भी अपने साथ ले चलूंगा या अपनी पोस्टिंग यहां करवाने की कोशिश करूंगा. अपने कमांडो पर भरोसा रखो. तुम्हारा प्यार और साथ है न मेरे साथ, विश्‍वास रखो मुझे कुछ नहीं होगा.” परम उसे गले लगाते हुए बोला.

दुख के दिन जेठ की दोपहरी जैसे होते हैं. लंबे, ऊबाऊ, त्रासदायक, जो ख़त्म होने में नहीं आते हैं और सुख के दिन थकान के बाद की रात की तरह होते हैं, जो कब गहरी नींद में गुज़र जाते हैं पता ही नहीं चलता. परम की छुट्टियां ख़त्म होने को आ गई थीं और उसका वापस ड्यूटी पर जाने का समय आ गया था. गैस पर चाय का पानी उबल रहा था और वैसा ही उबाल तनु के मन में भावनाओं का उठ रहा था. दिल कुछ बैठा-बैठा-सा था. सीमा पर नित नए बवाल खड़े हो रहे थे. फौजियों की छुट्टियां रद्द हो गई थीं.
परम भी तो पूरे सात-आठ महीने बाद इस बार घर आ पाया था, वो भी बस चंद दिनों के लिए. पिछले आठ महीनों से वह लगातार सर्च ऑपरेशन पर ही आतंकवादियों की धर-पकड़ में जंगल-जंगल और ख़तरनाक इलाकों में घूमता रहा है. महीनों से वह एक दिन भी चैन से नहीं बैठ पाया है. आगे अचानक पता नहीं क्या इमर्जेंसी आ जाए, इसलिए उसे कुछ दिनों की छुट्टी दी गई. फिर पता नहीं कब…
परम का मन भी अंदर से अजीब-सा हो रहा था. तनु को छोड़कर ड्यूटी पर वापस जाना, सोचकर ही उसकी जान पर बन आ रही थी, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी है. हर हाल में निभानी पड़ेगी और फिर वो ठहरा पैरा कमांडो. उसके कंधों पर तो अतिरिक्त ज़िम्मेदारी है.
वह तनु को ख़ुश रखने का प्रयत्न कर रहा था, ताकि उसके साथ मिले ये चंद दिन प्यार और सुकून से कट जाएं, लेकिन वह देख रहा था कि तनु की आंखें बार-बार भर आतीं. वह मुंह दूसरी ओर करके चुपचाप आंसू पोंछ लेती. परम के सीने में कसक-सी उठी. पंद्रह दिन की छुट्टी में से दस दिन बीत चुके थे. ड्यूटी पर उसके लिए रात-दिन बराबर थे और यहां आकर भी उसकी आंखों में नींद नहीं थी. वह रातभर जागकर तनु के सिर पर हाथ फेरता उसे देखता रहता. पता नहीं यहां से वापस जाने के बाद कितने महीनों तक उसे दोबारा देख नहीं पाएगा. देख भी पाएगा या नहीं, ये भी नहीं पता. और उसके दिल में बुरी तरह से एक हौल उठता. आंखें भर आतीं. कब किस जंगल में सर्च ऑपरेशन के समय वह आतंकवादियों की गोली का निशाना बनकर अख़बारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में ही बाकी रह जाए… आंखों से बहते आंसू वह चुपचाप पोंछ लेता. कमांडो है तो क्या हुआ, एक पति भी तो है, जो अपनी पत्नी से जान से ज़्यादा प्यार करता है.
थोड़े दिनों की छुट्टी में भी उसे घर की चिंता सताती है. सब ठीक है कि नहीं. घर में ज़रूरत का सामान है या नहीं. उसके चले जाने के बाद तनु को परेशान न होना पड़े. हर संभव वह तनु को हंसाने की कोशिश करता रहता. माहौल सामान्य बनाए रखने का प्रयत्न करता. तनु का भी चेहरा सामान्य रहता. वह अपने पति के साथ दिनभर हंसी-ख़ुशी रहती, लेकिन दिल अंदर से बुरी तरह धड़कता रहता. घड़ी के कांटे को आगे बढ़ते देख तनु का मन करता समय को यहीं रोक ले. हर क्षण उसके मन की आकुलता बढ़ती जाती. मिलन के क्षण हर पल के साथ कम होते जा रहे हैं. जब भी परम के फोन की घंटी बजती, उसके चेहरे पर तनाव घिर आता और तनु का दिल आशंका से धड़क उठता. कहीं किसी इमर्जेंसी के कारण वापस तो नहीं बुला रहे. पति से मिलन के समय में ख़ुशी के साथ ही एक फौजी की पत्नी के मन में आशंका की तलवार भी सिर पर सवार रहती है.
तनु ने घर पर अख़बार मंगवाना भी बंद कर दिया था. टीवी पर न्यूज़ भी वह नहीं देखती. क्या फ़ायदा बुरी ख़बरें देखकर मन और दुखी होता रहता. जब भी समय मिलता, परम फोन पर अपनी आवाज़ सुनाकर उसे आश्‍वस्त कर देता. एक बार बात हो जाने पर वह दोबारा बात होने के इंतज़ार में अपना समय काटती रहती. कभी परम बस इतना भर बोल पाता, “तनु मैं ठीक हूं, तू मेरी चिंता मत करना. काम थोड़ा ज़्यादा है कल बात करता हूं.”
और एक फौजी की पत्नी समझ जाती कि कौन-सा काम अर्थात् आज भी कहीं घुसपैठ की आशंका, आज भी दिनभर और रातभर जंगलों और पुराने घरों में छिपे आतंकवादियों के साथ मुठभेड़, गोलीबारी, बमबारी और… तनु की सांस सूली पर टंग जाती. कान एक व्यग्र प्रतीक्षा में लग जाते कि कब फोन आए और परम बस इतना बोलेंगे, “तनु मैं ठीक हूं.” गले से निवाला तो क्या पानी का घूंट भी नीचे नहीं उतर पाता.
एक बार दो दिन तक परम का फोन नहीं आया था. तीसरे दिन रात को ढाई बजे परम को मौक़ा मिला उसे फोन करने का. उसके ठीक होने की ख़बर के साथ ही पता चला दो दिन से जंगलों में घुसपैठियों का पीछा करते हुए उसने खाना भी नहीं खाया. रात के ढाई बजे दुश्मनों को मारने के बाद जंगल की लकड़ियां इकट्ठा करके उन्हें जलाकर एक बर्तन में वे लोग साथ लाए नूडल्स उबालकर खा रहे हैं- परम और उसके चार साथी कमांडो. तनु का जी भर आया. गले में कुछ अटक गया. तीसरे दिन शाम को जब पूरा जंगल अच्छे से छानकर सभी दुश्मनों को ख़त्म करके परम ने यूनिट में जाकर खाना खाया, तब तनु के गले से रोटी नीचे उतरी.

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“अरे, ये आप क्या कर रहे हैं?” परम को रसोईघर में कुछ काम करते देखकर तनु ने पूछा. वह अभी नहाकर निकली थी.
“पनीर की सब्ज़ी बना रहा हूं.” परम ने जवाब दिया.
“आप बैठिए न, मैं बनाती हूं.” तनु ने प्यार से कहा.
“तू रोटी बना, आज सब्ज़ी मैं अपने हाथ से बनाकर खिलाता हूं.” परम प्याज़, टमाटर काटते हुए बोला. तनु ने देखा कितना ख़ुश लग रहा था परम रसोई का काम करते हुए. हमेशा ग्रेनेड और बंदूक थामकर रखने को मजबूर हाथ आज अपनी पत्नी के लिए खाना बना रहे हैं. काश! ये ख़ुशियों के, सुकून के, खिलखिलाहटों के पल यहीं थम जाएं और हमेशा बने रहें. क्यों कुछ लोग चैन से रहना नहीं चाहते और अपनी महत्वाकांक्षाओं की आग में बसे हुए घरों को स्वाहा करते रहते हैं.
परम की छुट्टी के पंद्रह दिन भी बीत गए. आज रात वह वापस जानेवाला था. तनु नहाने गई, तो बहते पानी के नीचे देर तक आंसू भी बहाती रही. सीने में अजीब-सा दर्द हो रहा था. परम के सामने रोकर वह उसे कमज़ोर नहीं करना चाहती थी, इसलिए शॉवर के नीचे ही अपने मन का गुबार निकाल रही थी. रात जब परम को बस स्टैंड तक छोड़ने के लिए ड्राइवर ने कार निकाल ली, तो तनु से फिर अपने आपको संभाला नहीं गया. वह परम के कंधे से लगकर सिसक पड़ी. “मत जाओ मुझे छोड़कर.”
“पगली! तू तो हमेशा मुझे हिम्मत बंधाती रहती है. तू ही ऐसे कमज़ोर पड़ जाएगी, तो मेरा क्या होगा.” परम उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ बोला. “मैं कैसे रहूंगी अब आपके बिना? आजकल तो एक पल के लिए भी चैन नहीं मिलता. हर पल एक डर लगा रहता है.” तनु बिलखते हुए बोली.
“मेरे लिए रहना क्या आसान होगा तुम्हारे बिना? बस, कुछ ही महीनों की तो बात है. सरहद और सीमा के आसपास के इलाकों में शांति हो जाए, फिर मैं तुम्हें भी अपने साथ ले चलूंगा या अपनी पोस्टिंग यहां करवाने की कोशिश करूंगा. अपने कमांडो पर भरोसा रखो. तुम्हारा प्यार और साथ है न मेरे साथ, विश्‍वास रखो मुझे कुछ नहीं होगा.” परम उसे गले लगाते हुए बोला.
तनु की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. “तनु लिपस्टिक लगाकर आ न.” अचानक परम बोला. “क्यों?” तनु आश्‍चर्य से बोली.
“जा न लगाकर आ.” परम आग्रह से बोला. तनु जाकर लिपस्टिक लगाकर आई.
“इस पर अपने होंठों के निशान दे न.” परम ने अपना मोबाइल फोन तनु के चेहरे के सामने कर दिया. तनु ने अपने होंठ मोबाइल के कवर पर रख दिए. उसके लाल होंठ स़फेद कवर पर छप गए. अब आगे कुछ महीनों के लिए यही स्मृति परम का आधार बनी रहेगी. दोनों ने भगवान को प्रणाम किया. परम ने तनु की मांग में सिंदूर भरा. एक नज़रभर उसे देखा. मन में पीड़ा की एक लकीर कौंधी और एक भयावह विचार आया, जिसे उसने बलपूर्वक उसी समय झटक दिया. तनु का हाथ थामकर भारी मन से घर के बाहर आया. जैसे-तैसे ताला लगाया और एक नज़र घर को देखा. क्या पता फिर देखना नसीब हो या न हो. किस बार का जाना आख़िरी बार का हो जाए, एक कमांडो के लिए इस बात का कोई भरोसा नहीं होता.
बस में चढ़ने से पहले परम ने तनु को समझाया, “अपना ध्यान रखना और देख रोना बिल्कुल नहीं, वरना वहां मेरे लिए ड्यूटी निभाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. हर पल मन तुझमें ही अटका रहता है.”
“आप मेरी चिंता बिल्कुल मत करिए. आप बस अपना ध्यान रखना जी और जल्दी वापस आना.” तनु रोते हुए बोली. बस निकलने का समय हो गया था. परम ने बैग उठाया, एक नज़र तनु को देखा, उसे गले लगाया और पलटकर तेज़ी से बस में चढ़ गया. अगर वो एक पल और तनु के पास खड़ा रहता, तो जाना और भी मुश्किल हो जाता.
“अपना ध्यान रखना तनु.” परम ने बस के दरवाज़े पर खड़े होकर कहा और हाथ हिलाकर उससे विदा ली. तनु भी उसे विदा करने लगी. बस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी. आंसुओं के बीच धुंधली होती हुई परम की बस आख़िर में ओझल हो गई. तनु आकर कार में बैठ गई. सिर बुरी तरह सुन्न हो रहा था. फौजी की पत्नी के जीवन का यह क्षण सबसे कठिन होता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने दिल शरीर से बाहर निकालकर निचोड़ दिया है. कब घर आया, कब उसने ताला खोला पता नहीं. ड्राइवर गाड़ी रखकर अपने घर चला गया. नीचे के सारे दरवाज़े बंद करके वह ऊपर आ गई. कमरे में पैर रखते ही तनु के दिल में एक हौल उठी. खाली घर, खाली कमरा, खाली पलंग. कटे पेड़-सी वह पलंग पर गिर पड़ी. आंखों से आंसुओं की धाराएं बह रही थीं. सिर घूम रहा था. दिल में अजीब-सा दर्द हो रहा था. परम के बिना खाली घर, परम के बिना खाली कमरा, परम के बिना सूना बिस्तर, परम के बिना खाली-खाली मन और जीवन.
इधर परम की बस सड़क पर आगे बढ़ती जा रही थी और उसके दिल में तनु से दूर होने का एहसास भी बड़ी तेज़ी से गहराता जा रहा था. हर पल उसका मन कर रहा था कि उतरकर वापस चला जाए. बेचैनी में उसका हाथ दिल पर चला गया. देखा टी-शर्ट की जेब पर तनु की लिपस्टिक का निशान था. आते हुए जब तनु को गले लगाया था शायद तब लग गया होगा. बहुत रोकने पर भी उसकी आंखों से आंसू बह निकले. उसने जल्दी से खिड़की के बाहर देखने के बहाने अपने आंसू पोंछे. मन में एक बार फिर ख़्याल आया कि बस रुकवाकर उतर जाए. जाकर अपने घर में, अपने पलंग पर सो जाए तनु के साथ, लेकिन पिछले ग्यारह-बारह सालों की नौकरी में उसके रिकॉर्ड में एक भी लाल निशान नहीं था. अब भी वह नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो. उसके अंदर के पति और एक फौजी के बीच ज़बर्दस्त जंग चल रही थी.
एक तरफ़ पत्नी का प्यार था और एक तरफ़ देश के प्रति कर्त्तव्य भावना. इस समय दोनों ही भावनाएं पल-पल में एक-दूसरे पर हावी हो रही थीं. दोनों का ही आवेग उससे संभाला नहीं जा रहा था. उसने अपनी जेब से मोबाइल फोन बाहर निकाला. उसके कवर पर तनु के होंठ छपे थे. परम ने उस पर अपने होंठ रख दिए. बस शहर से बाहर निकल चुकी थी. उसने सोचा तनु अब घर पहुंच गई होगी. परम ने उसे फोन लगाया. तनु पलंग से पीठ टिकाकर बैठी थी. उसका पलंग पर लेटने का भी मन नहीं कर रहा था. तभी परम का फोन आया. तनु ने फोन उठाया. परम की आवाज़ सुनते ही तनु को ज़ोर की रुलाई आ गई.
“ऐ मेरी जान!” परम विचलित होकर बोला, “तुम ऐसी कमज़ोर पड़ जाओगी, तो मुझे कौन हिम्मत बंधाएगा. ये दिन भी निकल जाएंगे. तुम तो इतनी हिम्मती हो. हमेशा ही तुमने मेरा साथ दिया है, मुझे सहारा दिया है. तुम्हारे मनोबल के कारण ही मैं देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को पूरी निष्ठा से निभा पाता हूं.” तनु हमेशा ही मज़बूत और ख़ुश रहकर परम को अपनी चिंता से मुक्त रखती थी. अंदर वह चाहे कितने भी तनाव में रहती हो, लेकिन वह कभी इस बात का साया या भनक भी परम को लगने नहीं देती थी, ताकि वह उसकी तरफ़ से पूरी तरह से निश्‍चिंत रहकर स़िर्फ और स़िर्फ देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को निष्ठापूर्वक निभा सके.

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वह जानती थी, उसका पति एक कमांडो है. उसकी ज़िम्मेदारियां अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण हैं. वह ख़ुद को कमज़ोर करके परम को भावनात्मक स्तर पर कमज़ोर नहीं करना चाहती थी, इसलिए हर अच्छी-बुरी परिस्थिति में वह अपने को स्थिर रखती थी. वह सच्चे और कर्मठ फौजी की पत्नी थी, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए थे कि हर पल तनु के मन को एक डर सताता रहता था.
आजकल उसका मन बड़ा कच्चा-सा हो गया था. हर समय मन में एक आशंका सिर उठाए रहती थी. फिर भी जैसे-तैसे अपने को संयत करके बोली, “आप मेरी चिंता मत करिए जी, मैं ठीक हूं.”
“चल लाइट बंद करके सो जा. मैं पूरी रात तुझसे बातें करता रहूंगा. यही समझना कि तेरे साथ ही हूं.” परम प्यार से बात करता रहा. दोनों के पास स़िर्फ एक-दूसरे की आवाज़ का ही तो सहारा था अब. दिल को थोड़ी तसल्ली रही. अब अगली बार मिलने तक बस एक-दूसरे की आवाज़ सुनकर ही ख़ुद को बहलाए रखना होगा.
परम को ड्यूटी पर गए आठ दिन हो गए. उसके साथ छुट्टी पर बिताए पंद्रह दिन तनु को सपने जैसे लग रहे थे. जीवन में फिर वही सन्नाटा, खालीपन और इंतज़ार कि कब दुबारा मिलन हो. ये सब तो शायद फौजी की पत्नी को विवाह के गठबंधन में ही बांध देता है विधाता. फौजी तो एक ही सरहद पर ड्यूटी देता है, लेकिन फौजी की पत्नी रात-दिन डर, आशंकाओं, अकेलेपन, असुरक्षा, खालीपन की न जाने कितनी ही सरहदों पर रोज़ अनगिनत जंग लड़ती है और तब भी अपने अंदर चल रही सारी जंग को छुपाकर अपने पति को ढा़ंढस बंधाती रहती है, ताकि वह देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को भलीभांति निभा सके.
तनु भी परम से फोन पर बात हो जाती, तो चैन की सांस लेती और फोन रखते ही फिर से बात होने तक भावनाओं के न जाने कितने सागरों में डूबती-उतराती रहती. आज सुबह ही परम ने बताया था कि ज़रूरी काम से बाहर जा रहा हूं. दिन में फोन नहीं कर पाऊंगा. शाम को वापस आते ही बात करूंगा. दिन तो जैसे-तैसे कट गया, लेकिन चार बजे के बाद से साढ़े छह बजे तक तनु की सांस सीने में अटकी रही. गले में कुछ फंसा हुआ था. अंतर में एक अकुलाहट रही. पचासों बार फोन उठाकर देखा, लगाया, हर बार स्विच ऑफ. सात बजे तक वह क्षणभर भी चैन से बैठ नहीं पाई. छाती में सांस घुट-सी रही थी. यह हर दूसरे रोज़ की कहानी थी. तभी मोबाइल फोन की रिंग बजी. परम का फोन था. उसकी आवाज़ सुनते ही तनु की आंखें छलछला आईं और उसे लगा न जाने कितने दिनों बाद उसने चैन की सांस ली है. यह चैन अभी तो है, कितने घंटों तक बरक़रार रह पाएगा, अगले ही पल क्या होगा, वह फौजी की पत्नी नहीं जानती.

विनीता राहुरीकर

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