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कहानी- सूर्य की अर्धांगिनी हो तुम (Short Story- Sury Ki Ardhangini Ho Tum)

संजीव जायसवाल 'संजय'

सविता का कलेजा बुरी तरह धड़क उठा. माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आईं और सांसें फूलने-सी लगीं. जिस नग्न सत्य की वह स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकती थी, वह पूर्ण प्रचंडता के साथ सामने उपस्थित था. कामिनी का रोम-रोम सुलग उठा. वह बिस्तर से उठकर दरवाज़े के क़रीब पहुंची और उसकी झिर्री पर अपनी आंख लगा दी.

धाड़… धाड़… धाड़… सविता का कलेजा तेज़ी से धड़कने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे वह बहुत दूर से दौड़ कर आ रही होे. ठंड के मौसम में भी उसके कानों के पीछे पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं. जो कुछ भी उसकी आंखें देख रही थीं, उस पर वह स्वप्न में भी विश्‍वास नहीं कर सकती थी. विश्‍वास! हां विश्‍वास ही तो किया था उसने कामिनी पर. सगी बहन से भी ज़्यादा विश्‍वास. वही कामिनी विश्‍वास की इमारत को गिरा इतनी रात देवेश के कमरे में जा रही थी.
पतन की पराकाष्ठा! छल की प्रत्यंचा पर चढ़ा बाण सविता की अंतरात्मा को बींधे डाल रहा था. क्रोध की अधिकता से उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, तो पिछले दो माह की घटनाएं क्षणांस में आंखों के सामने तैर गईं.
“हेलो.” उस दिन मोबाइल की रिंग सुन उसने फोन उठाया. “हेलो सवि कैसी हो?” उधर से अपनत्व भरा स्वर सुनाई पड़ा.
“अरे कामिनी तू? कैसी है? कहां चली गई थी? इतने वर्षो बाद आज मेरी याद कैसे आ गई? तू बोल कहां स बोल रही है?” सविता ने एक सांस में प्रश्‍नों की झड़ी लगा दी. वह अपने बचपन की सहेली कामिनी को पहचान गई थी.
“इतने सारे प्रश्‍न एक साथ…” कामिनी खिलखिलाकर हंसी. फिर बोली, “अच्छा चल, सभी के उत्तर सुन. मैं तेरे शहर से ही बोल रही हूं. मैं बिल्कुल ठीक हूं. भले ही वर्षो से हमारी मुलाक़ात न हुई हो, लेकिन मैं तुझे एक पल के लिए भी भूल नहीं सकी हूं. कुछ और पूछना है तो बता?”
“बहुत कुछ पूछना है तुझसे. शायद इतना कि तू बता भी न सकेगी. अरे बचपन की दोस्ती को तूने एक झटके में तोड़ दिया और फिर पलट कर भी नहीं देखा. क्या खता थी मेरी? कौन-सा गुनाह किया था मैंने?” बोलते-बोलते सविता का स्वर भारी हो गया.


“जब हम मिलेंगे, तब धीरे-धीरे तू स्वयं सब कुछ जान जाएगी, मेरे बताने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. वैसे इसमें खता तेरी नहीं, बल्कि मेरी ही थी.” कामिनी का भी स्वर भारी हो गया.
“तू हैदराबाद कब आई और यहां कब तक रहेगी?”
“इन्होंने हैदराबाद की एक बड़ी कंपनी को टेकओवर किया है और अब हम लोग यहीं रहेंगे.”
“तब तो बहुत मज़ा आएगा. शाम को तुम लोग घर आ जाओ. देवेश भी तुम्हें देख कर बहुत ख़ुश होंगे.” सविता उत्साह से भर उठी.
“मैं अकेले आ जाऊंगी.”
“और जीजाजी?”
“वे नहीं आ पाएंगे. नया शहर और नया काम है, इसलिए उनकी व्यस्तताएं बहुत ज़्यादा हैं.” कामिनी ने ठंडी सांस भरी.

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“ठीक है तू ही आ जा. जीजाजी से बाद में मिल लूंगी. वैसे उनसे मिलने का बहुत मन है. मैं भी तो देखूं कि वो कौन है कामदेव का अवतार जिसने हमसे हमारी हुस्न परी को छीन लिया है.” सविता हंसते हुए बोली.
अचानक फोन कट गया. सविता ‘हेलो हेलो…’ करती रह गई. उसने कई बार कोशिश की, लेकिन कामिनी का मोबाइल स्विच ऑफ था. उसे कामिनी से बहुत सारी बातें पूछनी थीं, लेकिन अब शाम की प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई चारा न था.
कामिनी और सविता में बचपन से दांत काटी दोस्ती थी. सविता की शादी पहले हो गई थी. उसकी कोई बहन नहीं थी, लेकिन कामिनी ने कभी उसे बहन की कमी महसूस नहीं होने दी थी. उसकी शादी में भी उसने नटखट साली की भूमिका बख़ूबी निभाई थी. जूता चुराने से लेकर दरवाज़ा रोकने की रस्म पूरी करते-करते उसने देवेश को नाकों चने चबवा दिए थे. ससुराल जाने के बाद भी सविता और कामिनी के मधुर संबध बने रहे. सविता जब मायके आती दोनों दिनभर साथ रहतीं. देवेश की खातिरदारी की ज़िम्मेदारी भी कामिनी अपने ही सिर ले लेती थी. फिर अचानक सब कुछ बिखर-सा गया. कामिनी ने बिना किसी कारण सारे सम्पर्क सूत्र तोड़ लिए थे. उड़ते-उड़ते ख़बर मिली थी कि किसी अरबपति से कामिनी का विवाह हो गया है. उसके पति रवि के माता-पिता का काफ़ी पहलेे देहांत हो गया था. अनाथ रवि ने ट्यूशन करके पढ़़ाई पूरी की थी. इंजीनियरिंग के दौरान ही उसने एक नया सॉफ्टवेयर बना लिया था. दो साल नौकरी करने के बाद उसने अपना स्टार्टअप शुरू कर दिया. आई.टी. इंडस्ट्री ने उसके बनाए सॉफ्टवेयर को हाथोंहाथ ले लिया था. रवि की कंपनी सफलता के नित नए कीर्तिमान स्थापित करने लगी थी. एक समारोह में कामिनी को देख उन्होंने स्वयं उसके माता-पिता से उसका हाथ मांग लिया था. बिना दहेज के अपनी बेटी का विवाह एक मल्टी मिलेनियर से कर कामिनी के माता-पिता अभिभूत थे.
कामिनी का विवाह अरबपति से हुआ है, ये जान सविता को बहुत प्रसन्नता हुई थी. किन्तु उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर कामिनी ने उसे अपने विवाह की सूचना क्यों नहीं दी? उसका दिल यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि अकूत पैसेवाले से विवाह होने के कारण उसकी सहेली के मन में घमंड आ गया होगा. वैसे इस रहस्य पर से आज पर्दा उठ ही जाएगा.
सविता ने जब देवेश को कामिनी के आने की सूचना दी, तो उनका चेहरा भी प्रसन्नता से खिल उठा.उन्होंने कहा, “तुमने पूछा कि उसने अपनी शादी में हम लोगों को क्यों नहीं बुलाया और इतने दिनों तक सम्पर्क क्यूं नहीं रखा?”
“पूछा था, लेकिन उसने बताया नहीं. कहने लगी कि धीरे-धीरे स्वयं सब जान जाओगी.” सविता के स्वर में न चाहते हुए भी उदासी उभर आई.
“ज़रूर कोई ख़ास बात होगी, लेकिन अगर वह स्वयं न बताना चाहे तो तुम भी कुछ मत पूछना.”
सविता, देवेश की राय से सहमत नहीं थी, फिर भी उसने इस संबंध में चुप रहने का ही निश्‍चय किया. कामिनी आते ही किसी बच्चे की तरह सविता के गले से लिपट गई. उसका प्यार देख सविता की आंखें छलछला आईं. सारे गिले-शिकवे पल भर में दूर हो गए.
कामिनी के पीछे उसका वर्दीधारी शोफर ढेर सारे पैकेट लिए खड़ा था.
“ये सब क्या है?”
“तेरे लिए साड़ी, जीजाजी के लिए सूट और सनी के लिए खिलौने और चॉकलेट.” कामिनी ने बताया.
“अरे, इसकी क्या आवश्यकता थी.” सविता अचकचा उठी. उपहारों की पैेेकेजिंग देख उसे उनकी क़ीमत का अंदाज़ा हो गया था.


“चुप्प, दादी अम्मा की तरह भाषण मत झाड़ और सनी को बुला.” कामिनी ने साधिकार डपटा.
सनी चंद क्षणों तक तो शर्माता रहा, लेकिन कामिनी की मीठी-मीठी बातों और उपहारों ने उसकी झिझक दूर कर दी. वह उसकी गोद में ऐसे चढ़ कर बैठ गया जैसे बहुत पुरानी जान-पहचान हो.
थोड़ी देर बाद जब सविता चाय बनाने के लिए उठी तो कामिनी ने ज़बरदस्ती उसे सोफे पर ढकेलते हुए कहा, “तू यहीं बैठ, चाय मैं बना कर लाती हूं.”
“तू चाय बनाएगी?”
“क्या मैं नहीं बना सकती? क्या मेरे हाथ-पैर टूट गए हैं?” कामिनी ने आंखें तरेरी.
“अरे तू मेहमान है…”
“मेहमान होगी तू…” कामिनी ने सविता के गालों पर चुटकी काटी, फिर आंखें नचाते हुए बोली, “इतने दिनों से जीजाजी की सेवा तू कर रही है. आज मुझे कर लेने दे.”
कामिनी ने यह बात ऐसे अंदाज़ में कही कि सविता मुस्कुरा कर रह गई और देवेश ठहाका लगाते हुए बोले, “भाई, साली साहिबा के नाज़ुुक हाथों के बने स्वादिष्ट व्यंजन खाए एक ज़माना बीत गया है. जल्दी कीजिए, मेरे मुंह में पानी आ रहा है.”
“चिंता मत करिए, आज ऐसे व्यंजन खिलाउंगी कि उंगलियां चाटते रह जाइएगा.” कामिनी मुस्कुराई.
“किसकी? अपनी या तुम्हारी.” देवेश ने नहले पर दहला जड़ा. इसी के साथ एक सम्मिलित ठहाका गूंज पड़ा.
कामिनी थोड़ी ही देर में गर्मागर्म पकौड़ियां और चाय बना लाई. देवेश ने एक पकौड़ी उठाकर मुंह में रखी और कामिनी की ओर देख मुस्कुराते हुए बोले, “अरे वाह, मज़ा आ गया. ये तो तुम्हारी ही तरह स्वादिष्ट हैं.”
“एक पकौड़ी मेरे हाथ से खाकर देखिए, स्वाद और बढ़ जाएगा.” कामिनी ने बड़े इसरार के साथ एक पकौड़ी देवेश की ओर बढ़ाई.
देवेश ने बड़ा-सा मुंह फैलाकर गप्प से पकौड़ी मुंह में रख ली, पर अगले ही पल उनके मुंह से सिसकारी निकल गई और वे चीखने लगे.
“क्या हुआ जीजाजी.” कामिनी ने मासूमियत से पलकें झपकाईं.
“हाय मार डाला. पकौड़ी में मिर्च ही मिर्च भर दी हैं.” देवेश सिसकारी भरते हुए बोले. जलन के कारण उनका चेहरा लाल हो गया था.
उसकी हालत देख दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं. काफ़ी देर तक यूं ही हंसी-मज़ाक होता रहा. डिनर कर कामिनी वापस चली गई. उसकी संगत में समय कितनी जल्दी बीत गया, पता ही नहीं चला. इतने वर्षो की रहस्यमय चुप्पी के बारे में न तो सविता ने कुछ पूछा और न ही कामिनी ने कुछ बताया.
अगले दिन कामिनी फिर आई, तो सनी के लिए ढेर सारी मिठाई और चॉकलेट ले आई. उसके बाद दो दिनों तक वह नहीं आई. रविवार की सुबह वह बिना बताए ही आ गई और बोली, “चलो आज लुंबनी पार्क में पिकनिक मनाते हैं. बहुत नाम सुना है उसका.”
“अगर तू पहले बता देती, तो मैं लंच तैयार कर लेती.” सविता ने टोका.
“उसकी चिंता मत कर. मैंने ताज में लंच पैक करने के लिए फोन कर दिया है. रास्ते में ले लेंगे.” कामिनी ने बताया.

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यह सुन सविता का चेहरा फक्क हो गया. वह जानती थी कि पांच सितारा ताज शहर का सबसे महंगा होटल है. वहां का लंच लेने में पूरे महीने का बजट गड़बड़ा जाएगा. ऐसा ही कुछ देवेश भी सोच रहे थे.
“क्या हुआ, आप लोग इस तरह मुंह लटका कर क्यों बैठे हैं? फटाफट तैयार हो जाइए.” कामिनी ने टोका.
सविता की समझ में नहीं आया कि क्या कहे. तभी देवेश ने गंभीर स्वर में कहा, “कामिनी, तुम हमारे परिवार की सदस्य की तरह हो, इसलिए मैं तुमसे कुछ छुपाना नहीं चाहता.”
“मैं कुछ समझी नहीं.” कामिनी अचकचा उठी.
“मैं एक मध्यमश्रेणी का वेतन भोगी इंसान हूं. मेरी इतनी हैसियत नहीं कि पांच सितारा होटल में सबको लंच करा सकूं.”
“इसकी चिंता मत करिए, आज का लंच मेरी तरफ़ से है. प्लीज़ ये मत कहिएगा कि बड़ा होने के नाते यह अधिकार आपका ही है. क्या मेरा कोई अधिकार नही?” कामिनी ने उसकी बात काटते हुए कहा. उसकी आंखें अचानक छलछला आई थीं.
उसकी आंखों से छलक रहे अश्रुकणों को देख देवेश आवाक रह गए. वे अपनी भूमिका तय नहीं कर पा रहे थे. तभी कामिनी ने गंभीर स्वर में कहा, “आपको शायद पता नहीं कि हम पति-पत्नी ने अपने-अपने कामों का बंटवारा कर रखा है. वे स़िर्फ कमाते हैं और मैं स़िर्फ ख़र्च करती हूं. भरसक प्रयत्न करती हूं कि धन से उफनाती उनकी गागर को खाली कर दूं, लेकिन लगता है उसमें सागर समाया हुआ है, जो कभी खाली ही नहीं होता. मैं गैरों पर पानी की तरह पैसे बहाती हूं, लेकिन आप लोग तो मेरे अपने हैं. आपके लिए कुछ करके मुझे रूहानी ख़ुशी हासिल होती है. प्लीज़, मुझसे ये ख़ुशी मत छीनिए.”
कहते-कहते कामिनी फफक पड़ी. उसका यह रूप देवेश और सविता के लिए नितान्त अप्रत्याशित था. बहुत मुश्किल से वे उसे चुप करा सके. वातावरण काफ़ी गंभीर हो गया था, किन्तु लुंबनी पार्क तक पहुंचते-पहुंचते कामिनी सामान्य हो गई थी. सनी को गोद में उठा वह बहुत उत्साह के साथ सभी चीज़ों को दिखा रही थी.
आधा पार्क घूमने के बाद सभी एक फव्वारे के पास बैठ गए. सविता और कामिनी ने मिलकर लंच लगा दिया. खाना बहुत ही स्वादिष्ट था. देवेश ने उसकी तारीफ़ करते हुए कहा,“कामिनी, अगर तुम्हारे पति भी साथ आए होते, तो मज़ा दोगुना हो जाता.”
अचानक कामिनी के मुंह में कौर अटक गया. खांसते-खांसते उसका ख़ूूबसूरत चेहरा लाल हो गया. सविता ने मिनरल वॉटर की बोतल उसकी ओर बढ़ा दी और उसकी पीठ सहलाने लगी. पानी पीने से कामिनी को कुछ राहत मिली. इस बीच बातचीत का विषय बदल गया था.
पिकनिक से वापस घर लौटने पर सविता ने कहा, “अगली बार जीजाजी को साथ लेकर ही आना.”
“क्या मैं अकेले नहीं आ सकती?” कामिनी ने अपनी पलकें उठाईं.
“मेरा यह मतलब नहीं था. दरअसल, उनसे मिलने का बहुत मन था.”
“वे बहुत व्यस्त रहते हैं. इधर-उधर जाने का समय ही नहीं निकाल पाते.” कामिनी ने बताया.
“अब ऐसी भी क्या व्यस्तता कि इंसान अपनों से एक बार भी मिलने का समय न निकाल सके?” सविता के स्वर में उसका रोष झलक उठा.
“अब तुम्हें कैसे समझाऊं.” कामिनी ने ठंडी सांस भरी फिर बिना कुछ कहे चली गई. सविता को उसका व्यवहार बहुत अजीब-सा लगा. वह देवेश की ओर मुड़ते हुए बोली, “लगता है कि रवि जी को अपने पैसों पर बहुत घमंड है. तभी हम लोगों से मेलजोल नहीं
रखना चाहते.”
“ऐसी बात नहीं है. रवि जी तो बहुत अच्छे इंसान हैं. घमंड तो उन्हें छू भी नहीं गया है.”
“क्या आप उन्हें जानते हैं?”
“हां, उनकी कंपनी का खाता मेरे बैंक में ही है. वे अक्सर वहां आते रहते हैं. मैनेजर से लेकर पूरा स्टाफ उनकी बहुत इज़्ज़त करता है. वे सेल्फमेड आदमी हैं. शून्य से शिखर तक पहुंचने की उनकी कहानी किसी के लिए भी प्रेरणा का काम कर सकती है.” देवेश ने बताया.
“आपने अभी तक उन्हें घर आने का निमंत्रण क्यूं नहीं दिया?” सविता के स्वर में रोष उभर आया.
“जब तक कामिनी स्वयं उनसे हमारा परिचय न करा दे, तब तक अपनी तरफ़ से परिचय गांठना ठीक नहीं होगा. पता नहीं क्या बात है, जो कामिनी उनसे हमारी दूरी बनाए रखना चाहती है.” देवेश ने समझाया.
सविता को कोई जवाब नहीं सूझा, तो चुप हो गई. कामिनी का उसके घर आना-जाना पूर्ववत जारी था. जब भी आती, ऐसा घुल-मिल जाती जैसे इसी परिवार की सदस्य हो. लेकिन भूल कर भी किसी को अपने घर चलने के लिए न कहती. न ही कभी रवि को साथ लेकर आती. सविता का मन कभी-कभी क्रोध से भर उठता. किन्तु कामिनी का निश्छल व्यवहार देख चुप रह जाती. एक दिन सुबह वह कपड़े फैलाने छत पर गई, तो सीढ़ियों से पैर फिसल गया. फ्रैक्चर तो नहीं हुआ, किन्तु चोट काफ़ी लगी थी.
कामिनी को ख़बर मिली, तो भागी-भागी आई. सविता को दवा देने से लेेकर सनी को खिलाने-पिलाने तक की ज़िम्मेदारी उसने संभाल ली. उसके आ जाने से देवेश को काफ़ी राहत मिल गई थी, वरना उनके तो हाथ-पैर ही फूल गए थे. सविता को काफ़ी दर्द हो रहा था, अत: कामिनी रात में वहीं रुक गई. उसके पति तीन दिनों के लिए बाहर गए हुए थे.
सविता ने कामिनी को अपने साथ बेडरूम में सुला लिया. देवेश ड्रॉइंगरूम में दीवान पर सो गए.
देर रात कुछ आहट सुन सविता की आंख खुली, तो उसने कामिनी को दबे पांव ड्रॉइंगरूम की ओर जाते देखा. आहिस्ता से दरवाज़ा खोल कामिनी भीतर घुसी, फिर बहुत सावधानी से दरवाज़े को बंद कर लिया.
सविता का कलेजा बुरी तरह धड़क उठा. माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आईं और सांसें फूलने-सी लगीं. जिस नग्न सत्य की वह स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकती थी, वह पूर्ण प्रचंडता के साथ सामने उपस्थित था. कामिनी का रोम-रोम सुलग उठा. वह बिस्तर से उठकर दरवाज़े के क़रीब पहुंची और उसकी झिर्री पर अपनी आंख लगा दी.
दीवान पर लेटे देवेश के चेहरे पर अभूतपूर्व शांति छाई हुई थी. कामिनी उनके बगल में लेट गई और अपना हाथ देवेश के चौड़े सीने पर रख दिया. देवेश के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और उसने कामिनी को अपनी बांहों में समेट लिया.
उनका यह रूप देख सविता का खून खौल उठा, कामिनी को वह अपनी बहन मानती थी और वह उसकी आंखों में धूल झोंक वासना का गंदा खेल खेल रही थी. देवेश पर उसने हमेशा अपने से ज़्यादा विश्‍वास किया था और वह उसके साथ इतना बड़ा विश्‍वासघात कर रहा था.
क्रोध की अधिकता से सविता की मुट्ठियां भिंच गईं. उसने दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, तभी देवेश ने अपनी आंखें खोलीं और कामिनी को देख हड़बड़ाते हुए उठ बैठे और आश्‍चर्य से बोले, “कामिनी तुम?”
“हां मैं.” कामिनी फुसफुसाई.
सविता के बढ़े हुए हाथ अपनी जगह रुक गए. तभी देवेश का स्वर सुनाई पड़ा, “तुम यहां क्या कर रही हो?”
“जीजाजी, आज की रात के लिए मुझे अपना बना लीजिए.”
“ये तुम क्या कह रही हो?” देवेश झटके से दीवान से नीचे उतर पड़े.
“मुझे निराश मत करिए. जब से हैदराबाद आई हूं, इसी मौ़के की तलाश में थी. आज जाकर अवसर मिल पाया है.” कामिनी ने देवेश का हाथ थाम लिया.


देवेश ने उसका हाथ झटक दिया और नफ़रत भरे स्वर में बोले, “शर्म आनी चाहिए तुम्हें. अगर शरीर की आग ही बुझानी थी, तो दुनिया में मर्दों की कौन-सी कमी थी, जो अपनी बहन जैसी सहेली के मांग के सिंदूर को कलंकित करने चली आयी हो?”
“आप मुझे ग़लत समझ रहे हैं.” कामिनी का स्वर कातर हो उठा.
“तुम्हारा यह रूप देखने के बाद अब समझने को रह ही क्या जाता है…” देवेश के स्वर से उनकी घृणा टपक रही थी.
“अभी बहुत कुछ समझना बाकी है.” कामिनी ने सिसकारी-सी भरी फिर बोली, “मैं तन की प्यास बुझाने आपके पास नहीं आई थी.”
“तो फिर?”
“अपनी वंश बेल चलाने के लिए मुझे एक बच्चा चाहिए. मैं कोई बाज़ारू औरत नहीं हूं, जो किसी ऐरे-गैरे मर्द को अपने शरीर पर हाथ लगाने दूंगी. आप मुझे अपने लगे थे, इसीलिए आपसे अपनी कोख के लिए वरदान चाहती थी.” कामिनी नज़रें झुकाते हुए बोली. शर्म और अपमान से उसका चेहरा लाल हो रहा था.
“क्या रवि बाबू में कोई कमी है?”
“नहीं वे एक शक्तिशाली पुरुष हैं और अपनी इस शक्ति का भरपूर प्रयोग मुझ पर करते रहते हैं. शादी के पहले वर्ष ही मैं उनके बच्चे की मां बनने वाली थी, लेकिन मैंने उन्हें बताए बिना एर्बाशन करवा दिया था. उसके बाद से मैं पूरी सावधानी बरतती हूं.” कामिनी ने अंगूठे से फ़र्श खुरचते हुए बताया.
“तुम क्या कह रही हो, मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा? अगर रवि बाबू पूर्णतया सक्षम हैं, तो तुम्हें दूसरा सहारा खोजने की क्या आवश्यकता है?” देवेश झल्ला उठे.
“आप मेरे पति को नहीं जानते, इसीलिए ऐसा कह रहे हैं.”
“मैं उनको अच्छी तरह जानता हूं. उनका खाता हमारे ही बैंक मेें है. वे अक्सर हमारे यहां आते रहते हैं. तुमने उनसे हमारा परिचय नहीं करवाया था, इसलिए मैंने भी उनसे कभी कुछ नहीं कहा.”
“आप उन्हें जानते हैं फिर भी मुझसे कारण पूछ रहे हैं?” कामिनी का स्वर आश्‍चर्य से भर उठा.
“कामिनी, पहेलियां मत बुझाओ. साफ़-साफ़ बताओ बात क्या है.” देवेश खीजते हुए बोले. उनकी अकुलाहट बढ़ती जा रही थी.
कामिनी के चेहरे पर दर्द की रेखाएं तैर गईं. उसने अपनी आंखें बंद कर ली. ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर कोई संघर्ष चल रहा हो. चंद क्षणों पश्‍चात उसने अपनी आंखें खोलीं, फिर भारी स्वर में बोली, “उन्होंने मुझसे शादी नहीं की है, बल्कि अपने पैसों के दम पर ख़रीदा है. दुनिया की कोई भी औरत उनके जैसे काले कलूटे व्यक्ति से शादी नहीं करना चाहेगी, लेकिन मेरे मां-बाप को उनके पैसों के चकाचौंध के आगे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा. मैं उनके साथ घर के बाहर कदम नहीं रख सकती, क्योंकि लोग हमारी बेमल जोड़ी को देखकर जब मुस्कुराते हैं, तब मेरा दम घुटने लगता है.”
इतना कहकर कामिनी पल भर के लिए रुकी, फिर बोली, “औरत अपने पति को प्यार किए बिना ज़िंदा रह सकती है, लेकिन अपनी संतान को प्यार किए बिना ज़िंदा नहीं रह सकती. यह सोच कर मेरा कलेजा दहल उठता है कि अगर मेरी औलाद भी अपने बाप की ही तरह कुरूप हुई और मैं उसे भी प्यार न कर सकी, तो क्या होगा? अपने बाप के कारण उस मासूम को अकारण ही दंड भोगना पड़ेगा, इसलिए मैंने आज तक रवि के बच्चे को जन्म नहीं दिया.”

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यह सुन देवेश का चेहरा संज्ञाशून्य-सा हो गया. ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी तूफ़ान का सामना कर रहे हों. चंद क्षणों पश्‍चात उन्होंने अपने को संभाली और कामिनी की आंखों में झांकते हुए बोले, “मैं तुम्हें बहुत समझदार समझता था, लेकिन तुम भी स़िर्फ बाहरी सुंदरता पर विश्‍वास करती हो. प्रतिभा, योग्यता और शराफ़त जैसे शब्द तुम्हारे लिए अर्थहीन हैं?”
“आप कहना क्या चाहते हैं?” कामिनी अचकचा उठी.
“रवि की आरम्भिक दरिद्रता, उनके परिश्रम, स्वावलंबन और सफलता की कहानी आज देश के सभी उद्योगपतियों की ज़ुबान पर है. पूरा समाज उस प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति को सम्मान की दृष्टि से देखता है. हर संघर्षशील व्यक्ति उन्हें अपना आदर्श मानता है, लेकिन सफलता के शिखर पर बैठा वह व्यक्ति तुम्हारी दृष्टि में इतना हीन है, मुझे मालूम न था.” देवेश ने एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा. फिर गहरी सांस भरते हुए बोले, “तुम्हारी भावनाएं क्या हैं तुम्हीं जानो, लेेकिन मैं एक बच्चे का बाप हूं और इस हैसियत से कह सकता हूं कि दुनिया का हर बाप चाहेगा कि उसका बच्चा रवि बाबू जैसा ही सुयोग्य हो. वह इंसान घृणा का नहीं, बल्कि पूजा के योग्य है, लेेकिन तुम…”
देवेश ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया था, लेकिन उसके निहितार्थ ने कामिनी की अंतराात्मा तक को झकझोर दिया था. उसके होंठ कांप कर रह गए, वह चाहकर भी कुछ कह नहीं पा रही थी. तस्वीर का जो रुख देवेश ने प्रस्तुत किया था, उस ओर आज तक उसने देखा ही न था.
अपनी बात का प्रभाव होता देख देवेश ने स्नेह भरे स्वर में समझाया, “नारी, पुरुष की अर्धांगिनी होती है. रवि बाबू सर्वगुण सम्पन्न हैं, स़िर्फ शारीरिक सुंदरता नामक नश्‍वर गुण की कमी है उनमें. एक अर्धांगिनी के रूप में तुम उनकी इस कमी को पूरा कर सकती हो. यदि तुम्हारी सुंदरता और उनकी योग्यता का एक अंश भी तुम्हारी संतान में आ गया, तो वह लाखों में एक होगी.”
“जीजाजी…” कामिनी के होंठ कांप कर रह गए.
“सूर्य की अर्धांगिनी हो तुम और जुगनुओं से अपने घर में उजियारा करना चाहती हो? अमृत कलश तुम्हारे हाथ में है और तुम विषपान को तत्पर हो? अलौकिक सौंदर्य को बिसरा कर लौकिक सौंदर्य के मोहपाश में बंधना चाहती हो?” देवेश अपने रौ में कहे जा रहे थे.
किंतु उनके मुंह से निकला एक-एक शब्द कामिनी के अंर्तमन में उतरता चला जा रहा था. आज तक वह कोयले के बाहरी आवरण को ही देखती रही थी, उसके भीतर छुपे हीरे को पहचान ही नहीं पाई थी. रवि उसकी छोटी-सी-छोटी ख़ुशी का ध्यान रखते थे और उसने आज तक उन्हें जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी से वंचित रखा था?
सोचते-सोचते कामिनी की आंखें भर आईं और वह देवेश के सामने हाथ जोड़ फफक पड़ी, “जीजाजी, मुझे माफ़ कर दीजिए. रूप के झूठे अहंकार के कारण मैं आज तक अंधेरे मेंं भटकती रही. अज्ञानतावश मैंने अपने साथ-साथ रवि की ख़ुशियाेंं को भी निगल डाला है, लेेकिन आपने मेरी आंखें खोल दी हैं. आपका यह उपकार मैं जीवनभर नहीं भूलूंगी.”
“मैंने तुम्हें हमेशा अपनी छोटी बहन की दृष्टि से देखा है. मुझे विश्‍वास है कि तुम्हारे कदम फिर कभी नहीं डगमगाएंगे.” देवेश ने स्नेह से कामिनी के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, “सौभाग्यशाली हो तुम, जो तुम्हें रवि बाबू जैसे महान व्यक्ति की पत्नी और उनकी संतान की जननी होने का अवसर मिला है. मुझे विश्‍वास है कि तुम अपने वरदान को अभिशाप में बदलने की नादानी नहीं करोगी.”
“मैं आपका यह विश्‍वास जीवनभर बनाए रखूंगी, लेकिन एक अनुरोध है.”
“क्या?”
“हमारे बीच आज जो कुछ भी हुआ, उसे सविता को मत बताइएगा.” कामिनी ने हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना की.
“पति-पत्नी का रिश्ता विश्‍वास का होता है. मैं सविता को अच्छी तरह जानता हूं, मुझे विश्‍वास है कि अगर मैं उसे पूरी बात बता दूंगा, तब भी तुम्हारे प्रति उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आएगा. वह तुम्हें बहुत प्यार करती है.”
“लेकिन तब मैं उसकी नज़रों का सामना नहीं कर पाऊंगी. अपनी नादानियों के कारण मैं पहले ही बहुत कुछ खो चुकी हूं. अब मैं सविता जैसी दोस्त को नहीं खोना चाहती.” कामिनी का स्वर कातर हो गया और वह सिसक उठी.
“ठीक है, अगर तुम नहीं चाहती, तो मैं उसे कुछ नहीं बताऊंगा. अब जाओ चुपचाप सो जाओ.” देवेश ने स्नेहपूर्वक कहा.
इससे पहले कि कामिनी दरवाज़े की तरफ़ बढ़ती, सविता फुर्ती से आकर बिस्तर पर लेट गई. उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन उसमें देवेश की मुस्कुराती हुई तस्वीर ़कैद थी. उसकी दृष्टि में आज देवेश का कद बहुत ऊंचा हो गया था. उसे इस बात का गर्व था कि वह देवेश जैसे इंसान की पत्नी है.

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