बदली के घूंघट को तोड़, धूप सखी इठलाकर बोली
अब तो मैं मुँह दिखलाऊंगी ही, आने को है होली
बिन मेरे मेरी सखियाँ, चिप्स-पापड़ कैसे बनाएंगी
आंगन में बडियाँ दे-देकर, चुहल न बिखरा पाएंगी
तपिश जो न आई तो, बच्चों को पानी से डराएंगी
सुंदर रंगों में रंगी टोलियाँ, घर-घर कैसे जा पाएंगी
सौहार्द की नौका लेकर, सौजन्य की लेकर पतवार
नेह-नदी में कर लो सब, मिलकर के आनंद-विहार
संदेश होली का ले लेकर, मुझको जाना द्वार-द्वार,
लोगों में अलख जगानी है, क्यों आते हैं ये त्योहार…
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Photo Courtesy: Freepik
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