“… यह सब क्या है? तुम मुझे यह क्यों दे रहे हो?” तनिक अटकते हुए उसने मुझसे पूछा.
तभी उसकी ख़ास सहेली बोल पड़ी, “कम ऑन कालिंदी! अब इतनी भी मासूम ना बनो. विराज तुम्हें बहुत चाहता है. तुम्हें शिद्दत से पसंद करता है. तुमसे शादी करना चाहता है. आज वैलेंटाइन डे है यार,
भूल गई?”
“तुम मुझे चाहते हो! पसंद करते हो! मुझे इस दाग़ के साथ? क्यूं मज़ाक कर रहे हो विराज?” कहते हुए हा… हा… कर हंसते हुए उसने मुझे एक ज़ोर की धौल जमा दी.
मैं हिंदी की क्लास अटेंड करके तेज़ चाल से यूनिवर्सिटी के विशाल बगीचे की संकरी ऊबड़-खाबड़ पगडंडी पर अपनी रौ में चला जा रहा था. बगीचे के किनारे पर बनी क्यारी में शीतल बसंती पुरवाई में झूमते मदमस्त रंग-बिरंगे पिटूनिया, जीनिया, ल्यूपिन और बुरांश के रंग-बिरंगे फूलों से लदे-फदे महकते-गमकते पेड़-पौधों ने एक दिलकश समां बांधा हुआ था. हवा में तैरती फूलों की मीठी मदमस्त सुगंध से तन-मन प्रफुल्लित हो रहे थे. ज़ेहन में अभी तक प्रोफेसर वर्मा की कामायनी की नायिका के दिव्य सौंदर्य की व्याख्या गूंज रही थी कि यकायक किसी लड़की की जलतरंग-सी खनक भरी मीठी आवाज़ से चौंक कर मैंने जो आवाज़ की दिशा में नज़रें उठा कर देखा, मेरे पांव धरती से चिपके रह गए.
मेरे सामने मानो कामायनी की श्रद्धा अवतरित हो उठी थी. हल्के गुलाबी रंग के कपड़ों में दूधिया संदली रंग, तीखे कटीले नयन-नक्श की स्वामिनी स्वयं ही फूलों से लदी-फदी एक डाली का आभास देती हुई, एक अन्य लड़की से बतिया रही थी.
यह भी पढ़ें: रिलेशनशिप हेल्पलाइनः कैसे जोड़ें लव कनेक्शन?(Relationship helpline)
मैं निरंतर उसकी ओर बढ़ रहा था. तभी एकाएक उस ख़ूबसूरत लड़की ने अपने बगल खड़े विशाल बुरांश वृक्ष की शाखाओं पर सितारों से टंके फूलों को तोड़ने के लिए अपना एक हाथ बढ़ाया ही था कि उसके चेहरे का अगला काला हिस्सा देख मैं आश्चर्य मिश्रित सदमे से जैसे सन्न रह गया. उस लड़की का दांया चेहरा काला था, और बायां हिस्सा बेहद ख़ूबसूरत था, मानो कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा.
बहुत देर तक वह अद्भुत चेहरा मेरे ज़ेहन में तैरता रहा.
उस दिन यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में उसी लड़की से किसी ने मेरा परिचय करवाया, “यह कालिंदी. हमारी जूनियर.”
उस दिन हम सीनियर्स का प्रोग्राम बना, जूनियर्स की हल्की-फुल्की रैगिंग करने का. सो हम यूनिवर्सिटी के बगीचे में कड़कड़ाती ठंड की गुनगुनी धूप में वहां लगी बेंच पर बैठ गए और एक-एक कर जूनियर्स का परिचय लेते गए. उनमें कालिंदी भी शामिल थी.
हम पांच-छह बेहद क़रीबी दोस्तों का ग्रुप था.
हमने जूनियर्स को निर्देश दिया, “सब जूनियर्स एक लाइन में खड़े हो कर अपने-अपने स्वेटर, जैकेट और शॉल उतारकर ऊपर हाथ कर पूरे बगीचे का एक चक्कर लगाकर आओ.”
सभी हमारे निर्देशानुसार बागीचे का चक्कर लगाने लगे कि तभी मैंने देखा, कुछ देर चलने के बाद कालिंदी ने अपने हाथ नीचे कर दिए.
हम शैतानों की टोली आनन-फानन में उसके पास जा पहुंची और उससे हाथ नीचे करने की कैफियत मांगी. पांच-छह डिग्री सेल्सियस के तापमान में कड़कड़ाती ठंड और तेज हवा की वजह से उसकी आंख-नाक से पानी बह रहा था. कुल मिलाकर उसकी दशा बेहद ख़राब थी. ना जाने क्यों उसकी यह दशा देख मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने अपने दोस्तों के मना करने के बावजूद उन सब को वापस अपनी क्लास में जाने के लिए कह दिया.
अगले ही दिन स्कूटी से यूनिवर्सिटी आते वक़्त मैंने देखा कालिंदी एक दवाई की दुकान में अकेली जा रही थी और उसकी आंख-नाक से पिछले दिन की तरह पानी बह रहा था.
मैंने तुरंत अपनी स्कूटी रोकी और उससे पूछा, “कालिंदी! क्या हुआ तुम्हें? तुम रो रही हो क्या?”
वह कुछ नहीं बोली और उसने केमिस्ट से कुछ दवाइयां मांगी.
“तुम बीमार हो?”
“नहीं, नहीं.”
“तुम तो गर्ल्स हॉस्टल में रहती हो ना? अपने साथ किसी और को क्यों नहीं लाई?”
“मेरी रूम मेट आजकल घर गई हुई है और किसी को मैं नहीं जानती.” कहते हुए वह तनिक रुआंसी-सी हो आई.
उसका लाल चेहरा और चढ़ी, भारी आंखें देख मैंने उससे कहा, “तुम्हें हुआ क्या है?”
मेरे बहुत कुरेदने पर उसने बताया कि उसे ठंड से एलर्जी है और रैगिंग वाले दिन ठंड में बिना स्वेटर के बगीचे का राउंड लगाने की वजह से उसे पिछली रात से बहुत तेज बुखार आ गया था.
उसकी बात सुनकर मैं गिल्टी फील करने लगा और अपने अपराध भाव से मुक्त होने के लिए मैंने उसे हॉस्टल के पास स्थित अपनी डॉक्टर मौसी के क्लीनिक ले जाकर उसे उनसे समुचित दवाइयां दिलवाईं.
बहरहाल, वह लगभग एक पखवाड़े बीमार रही और बीमारी के उस दौर में हम दोनों की अमिट दोस्ती की बुनियाद पड़ी. उसे हर दूसरे-तीसरे दिन अपनी डॉ. मौसी के घर ले जाते-लाते हम दोनों अच्छे फ्रेंड बनते जा रहे थे.
जैसे-जैसे वक़्त के साथ हमारी नज़दीकी बढ़ रही थी, उसके स्वभाव की सीवन परत दर परत मेरे सामने उघड़ती जा रही थी.
मैंने गौर किया कि उसमें आत्मविश्वास की बेहद कमी थी.
उसी ने मुझे बताया, बचपन से अपने चेहरे पर उस जन्मजात निशान की वजह से उसने अपने क्लास में, जान-पहचान वाले, यहां तक कि अपने पिता और भाई के मुंह से निरंतर व्यंगात्मक ताने-उलाहने सुने थे, जिसकी वजह से वह उन्हे लेकर बेहद कॉशंस हो गई थी. घर में भी उसी की वजह से उसे अपने भाई की अपेक्षा कमतर समझा जाता.
मैं देखता, जब भी कोई उसे पहली बार उसके चेहरे के दोनों हिस्सों का विरोधाभासी रूप देखता, उसकी दृष्टि में अचरज, कौतूहल और करुणा का मिलाजुला भाव घुल जाता, जिससे वह बड़ी होते-होते ख़सी परिचित हो चुकी थी. प्रतिक्रिया स्वरूप वह अपना चेहरा झुका कर अपने खोल में सिमट जाती. कभी-कभी कुछ बड़बोले लोग उसे पहली बार देख कर उसे बेचारी का तमगा भी थमाने से नहीं चूकते, जिसके जवाब में वह उन्हें ग़ुस्से से अपने कड़वे अल्फ़ाज़ों से यह कहकर चुप कर देती, “क्या मैंने आपकी राय मांगी?”
उसी ने मुझे बताया कि इस धब्बे की वजह से स्कूल में शुरू से उसे कुछ दादा टाइप बच्चे काली कलूटी कहने तक से बाज़ नहीं आते थे.
बचपन से यह सब झेलते-झेलते उसमें अदम्य आक्रोश और क्रोध का भाव भर गया था और वह अंतर्मुखी एवं आत्म केंद्रित बन गई थी. लेकिन इतना सब झेल कर भी उसके स्वाभाव की मृदुता बरक़रार थी.
जैसे जैसे समय बीत रहा था, मैं उसके मीठे स्वाभाव और सहृदयता का क़ायल होता जा रहा था और उसके प्रति एक अबूझ खिंचाव महसूस करने लगा था.
एक बार की बात है, मैं उसके साथ था और किसी बड़बोली लड़की ने उसके बर्थ मार्क को देखकर कुछ अभद्र टिप्पणी की और वह उसके जाने के बाद घंटों तक रोती रही.
उस दिन उसे रोता देख मेरे मन में पहली बार तमन्ना जगी कि मैं उसे अपना बनाऊंगा. उसे दुनिया के फेंके पत्थरों से ढाल बनकर बचाऊंगा.
इतने दिनों के साथ से न जाने कब मेरे अंतर्मन में उसके लिए प्यार का बिरवा फूट पड़ा था, जो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था.
उसे यूं फूट-फूट कर रोता देख मैंने उसे लाख समझाया, “ऐसे लोगों के कमेंट से तुम क्यों दुखी हो रही हो, जिनकी तुम्हारी ज़िंदगी में कोई अहमियत नहीं.”
“मैं लोगों की चीर-फाड़ करती एक्स-रे नज़रों से आजिज़ आ चुकी हूं. उनकी तरस खाती निगाहों में छिपी सहानुभूति से मन ग़ुस्से से भर उठता है. अब लोगों की बातें सुनना मेरी बर्दाश्त के बाहर हो गया है. घर पर भी पापा हर समय मुझे सुनाते रहते हैं, “इस काली माई से कौन शादी करेगा. इसका बोझ तो मुझे ज़िंदगीभर झेलना पड़ेगा.”
बचपन में तो मैंने उनके मुंह से यहां तक सुना है, “यह पैदा होते ही मर क्यों नहीं गई.”
भाई भी पिता की तरह मुझे हिकारत भरी निगाहों से देखता है.
बस एक मां है, जो हर मोड़ पर मेरा साथ देती है. बचपन में जब पिता मां को मेरी जैसी बेटी पैदा करने पर ताने देते थे, मां एकांत में मुझे अपने कलेजे से लगा कर मुझे अपनी प्रिंसेस बताती थी. आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी मां की बदौलत. वह हमेशा मुझसे कहा करती, “बेटा, मन लगाकर पढ़ा कर. तेरी पढ़ाई ही तुझे तेरी उलझनों से तारेगी. उन्हीं की दी हुई हिम्मत की वजह से मैं यूनिवर्सिटी में आ पाई.”
“मैं समझ सकता हूं तुम्हारे अपनों ने ही तुम्हें कितना दर्द दिया है, लेकिन उन्होंने ही तो तुम्हारी हिम्मत भी तो बढ़ाई है ना. पापा और भाई की बातों को दिल पर लेना छोड़ दो और खामख़्वाह दुखी होना बंद करो. अपने आप पर भरोसा रखो.”
हॉस्टल के रास्ते भर उसे लाख समझाने पर भी उसका रोना बंद नहीं हुआ. उसका यूं नॉनस्टॉप रोना देख मैं घबरा कर उसे शालू मौसी के क्लीनिक ले गया, यह सोच कर कि शायद वह उसे समझा सकें. मुझसे मात्र 5 वर्ष बड़ी शालू मौसी मेरी अभिन्न फ्रेंड, फिलॉसफर और गाइड थीं.
उन्होंने रोती कालिंदी से बस इतना कहा, “अगर तुम अपने आपको एक्सेप्ट नहीं करोगी, तो दुनिया ही तुम्हें एक्सेप्ट क्यों करेगी. सबसे पहले तुम अपने आप को एक्सेप्ट करो और फिर देखो दुनिया भी तुम्हें स्वीकार ना करे, तो मेरा नाम बदल देना. तुम्हारे इतने अच्छे फ्रेंड हैं, जो तुम्हें कदम-कदम पर सपोर्ट करते हैं. इतना सपोर्ट और प्यार करने वाली मां है और तुम्हें आख़िर क्या चाहिए?”
मौसी की बातें शायद उसकी समझ में आने लगी थीं और वह धीमे-धीमे सुबकियां भरते हुए आख़िर में पूरी तरह से चुप हो गई.
उस दिन उसे यूं दुख में रोते देख मुझे गहन पीड़ा हुई. बस आंसू नहीं निकले, ह्रदय जार-जार रोया था.
उस दिन बहुत तसल्ली से मैंने उसके प्रति अपनी फीलिंग्स का लेखा-जोखा लिया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मैं उसे बेहद चाहने लगा था, शायद अपने आप से भी ज़्यादा. अब मैं उसके बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.
मैं अक्सर उसे अपनी सकारात्मकताओं पर फोकस करने के लिए प्रोत्साहित करता. वह स्टेज शोज़ की एक मंजी हुई सूत्रधार थी, जो विभिन्न कार्यक्रमों का बेहतरीन संचालन करती थी. यूनिवर्सिटी में सत्रारंभ से उसने लगभग सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक संचालन किया था.
तभी यूनिवर्सिटी ख़त्म होते ही कुछ महीनों में उसकी नौकरी ऑल इंडिया रेडियो में लग गई. जिस दिन उसने वहाँ अपने प्रथम लाइव कार्यक्रम का संचालन किया, वह बहुत नर्वस थी. तब मैंने उसे समझाया कि उसे कार्यक्रम संचालन का इतना अनुभव है वह रेडियो स्टेशन पर भी बढ़िया प्रदर्शन करेगी. बस, उसे अपने आप पर, अपनी क्षमताओं पर भरोसा रखना होगा… और सच में उसने अपने पहले लाइव प्रोग्राम में ही मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप शानदार प्रदर्शन किया.
अपने पहले सफल प्रोग्राम के बाद उसकी सफलता का जश्न मनाने उसने मुझे एक रेस्त्रां में ट्रीट दी और मुझसे कहा, “माइक पर पहली कुछ पंक्तियाँ बोलने के बाद मैं प्रवाह में आ गई और तभी सहसा मुझे एहसास हुआ कि अब तक मैंने ही अपनी क्षमताओं को, अपनी संभावनाओं को नहीं पहचाना था. मैंने ही ख़ुद को स्वीकार नहीं किया था, लेकिन आज जब मैंने यह मुक़ाम हासिल कर लिया है, तो अब मैं पीछे मुड़ कर नहीं देखूंगी. मुझे समझ आ गया है, सबसे पहले मुझे अपने आप को स्वीकारना होगा. तभी यह दुनिया मुझे स्वीकारेगी. आज के बाद कोई मुझे किसी भी दृष्टि से क्यूं न देखे, मैं अपनी नज़रें नहीं झुकाऊंगी. थैंक्यू सो मच माई डियरेस्ट फ्रेंड, मेरी अपने आप से मुलाक़ात करवाने के लिए.”
अगले ही दिन वैलेंटाइन डे था. उसके प्रति अपने प्यार का इज़हार करने का इससे बेहतर मौक़ा मुझे और नहीं मिलता.
मैंने एक बढ़िया होटल में एक कमरा बुक करवाया और उसे बहुत सुंदर ढंग से सजवाया. मैंने अपने और कालिंदी के कुछ क़रीबी दोस्तों को वहां आमंत्रित कर दिया. हम दोनों की ख़ास फ्रेंड उसे लेकर होटल की उस कमरे में आई, जहां मैं उसका इंतज़ार कर रहा था.
उसके रूम में आते ही हमारे फ्रेंड्स ने उस पर फूलों की पंखुड़ियों की बारिश कर उसका वेलकम किया. वह विस्फ़ारित नेत्रों से सब कुछ देख रही थी.
मैंने तत्क्षण ही घुटने पर बैठ उसे अपने हाथों में थमा सुर्ख गुलाबों का बुके उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “क्या तुम ज़िंदगी के सफ़र में मेरी हमसफ़र बनोगी?”
“… यह सब क्या है? तुम मुझे यह क्यों दे रहे हो?” तनिक अटकते हुए उसने मुझसे पूछा.
तभी उसकी ख़ास सहेली बोल पड़ी, “कम ऑन कालिंदी! अब इतनी भी मासूम ना बनो. विराज तुम्हें बहुत चाहता है. तुम्हें शिद्दत से पसंद करता है. तुमसे शादी करना चाहता है. आज वैलेंटाइन डे है यार, भूल गई?”
“तुम मुझे चाहते हो! पसंद करते हो! मुझे इस दाग़ के साथ? क्यूं मज़ाक कर रहे हो विराज?” कहते हुए हा… हा… कर हंसते हुए उसने मुझे एक ज़ोर की धौल जमा दी.
“मैं मज़ाक नहीं कर रहा. मैं सीरियस हूं यार. हम इतने सालों से एक-दूसरे को जानते हैं. क़रीबी दोस्त हैं. अब मैं इस दोस्ती को प्यार के रिश्ते में बदलना चाहता हूं. बस और क्या?”
तभी मेरा एक फ्रेंड चिल्लाया, “क्या यार कालिंदी! तुमने तो हमारे सरप्राइज़ का सत्यानाश कर दिया. अरे, उसके हाथ से बुके तो ले लो. बेचारा कब से एक घुटने पर तपस्या कर रहा है.”
“नहीं… नहीं… मैं यह बुके नहीं ले सकती. तुम सब तो पागल हो गए हो.”
फिर उसने मुझे कंधों से उठाया और बोली, “मुझे तुमसे बात करनी है अभी. सीरियस एडल्ट टॉक!”
तभी मेरा एक और फ्रेंड ज़ोर से हंसते हुए बोला, “क्या यार कालिंदी! तुम तो बड़ी स्पॉयल स्पोर्ट निकली. अच्छे-ख़ासे प्रपोजल की रेड़ पीट दी. तुमने तो वैलेंटाइन डे के बदले स्लैप डे मना दिया.”
वह मेरा हाथ पकड़कर होटल की बिल्डिंग के बाहर के बड़े से लॉन के एक सूने कोने में जा कर मुझसे बोली, “यह क्या मज़ाक था? वह भी इतने दोस्तों के सामने. तुम होश में तो हो? तुम मुझसे शादी करोगे? मेरे इस दाग़ के साथ?”
“बिल्कुल करूंगा कालिंदी! इसी दाग़ के साथ! मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं. शिद्दत से चाहने लगा हूं. तुम्हें हमेशा के लिए अपनी ज़िंदगी में शामिल करना चाहता हूं.”
“नहीं! नहीं! तुम मुझे नहीं चाह सकते! यह तुम नहीं तुम्हारी सहानुभूति बोल रही है. मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती. तुमसे ही नहीं किसी से भी शादी नहीं करूंगी.”
“नहीं कालिंदी. यह मेरी सहानुभूति नहीं मेरा प्यार बोल रहा है. अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. तुम्हारे बिना मेरी हर सांस बेमानी है. तुम मेरी रूह में उतर चुकी हो. आज तुमने हां नहीं की, तो मैं जीते जी मर जाऊंगा, सच कह रहा हूं.”
“नहीं! नहीं! यह नहीं हो सकता. कहां तुम कहां मैं? तुम हैंडसम हंक! दुनिया कहेगी मैंने तुम्हें फंसा लिया. तुम्हारे घरवाले कतई मुझे स्वीकार नहीं करेंगे.”
“बस कालिंदी! अब बस भी करो! मैंने शालू मौसी से बात कर ली है. वह हमारे रिश्ते के फेवर में हैं. मैं हंड्रेड परसेंट श्योर हूं कि वह मम्मा-पापा को हमारे रिश्ते के लिए पटा लेंगी. कालिंदी प्लीज़ मान जाओ ना.”
“ओह विराज! मैं क्या कहूं? मेरी-तुम्हारी जोड़ी बिल्कुल बेमेल लगेगी. सोचो जरा, शादी के बाद दिन-रात मेरा यह काला चेहरा देख रोज़ सौ-सौ मौतें मरोगे,” कहते-कहते उसकी आंखों से मोती ढुलकने लगे और मैंने उन्हें चूमते हुए पास के पौधे से एक सुर्ख गुलाब की कली तोड़ उसे थमाते हुए कहा, “आई लव यू विद माई हार्ट एंड सोल! वादा करता हूं, अब कभी तुम्हारी इन आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा. चलो अब तनिक मुस्कुरा दो.”
मैंने उसके थरथराते होंठों पर एक मयूरपंखी स्नेह चिह्न जड़ दिया. पूरी कायनात झूम उठी थी.
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
Photo Courtesy: Freepik