बात उन दिनों की है जब मैं बीए फर्स्ट ईयर में थी. इसी बीच हमारे शहर में भाभी का कज़िन किसी एग्ज़ाम की तैयारी करने आया था. जाहिर है, हमारे घर में ही रुकना था उसे.
“ये क्या बात हुई मम्मी, आपने मेरा कमरा उसे क्यों दे दिया?”
मम्मी ने मुझे डांट दिया था, “कुछ महीनों के लिए इतना भी एडजस्ट नहीं कर सकती? तुम्हारा कमरा छत पर है, एकांत में, आराम से बैठकर पढ़ लेगा. कल सुबह वो आ रहा है, जरूरत भर का सामान उठाओ और मेरे कमरे में आकर रख लो.”
अगली सुबह नवीन का आगमन हुआ और भाभी ने प्यार से उसको गले लगाकर कहा, “तुम्हारा कितना इंतजार हो रहा था. निधि ने अपनाकमरा भी तुम्हारे लिए खाली कर दिया है.“
नवीन सच में बिल्कुल अपने नाम जैसा ही तो था. तरोताज़ा चेहरा, मनमोहक मुस्कान और बेहद विनम्र.
“थैंक यू निधि. मैं तुम्हारे रूम का बहुत ध्यान रखूंगा.“
पहली मुलाकात में ही बात ‘तुम’ से शुरू हुई थी जो कि मुझे अच्छा लगा था. नवीन खूब जमकर पढ़ाई करते थे लेकिन तैयारियों के बीचजैसे ही सुस्ताने के लिए कमरे से बाहर आते, धूप में बैठी मम्मी के साथ मटर छीलने में लग जाते. कभी भाभी के साथ धुले हुए कपड़ेफैलाने लगते. मैं छुप-छुपकर किसी ना किसी बहाने से नवीन को देखती रहती. नवीन कितने अलग थे बाकी लड़कों से. मन था जो पंखलगा कर कहीं और उड़ता जा रहा था. कितनी बार ऐसा हुआ जब मैंने भाभी के हाथ से कपड़ों की बाल्टी झटक ली, “आप रहने दो भाभी, मैं फैला आती हूं कपड़े.“
कितनी आवाज़ करके झिटक-झिटककर कपड़े फैलाती कि शायद आवाज़ सुनकर ही नवीन कमरे से बाहर आ जाएं, लेकिन हर बारकोशिश बेकार रहती. फिर थक-हारकर मैंने कुछ गमले छत पर रखवा दिए थे, उनमें पानी देने के बहाने छत पर एक चक्कर और लगजाता था, लेकिन मेरी सारी कोशिशें बेकार थीं. नवीन को तो बस अपनी पढ़ाई, अपने लक्ष्य के आगे और कुछ सूझता ही नहीं था.
उस समय मोबाइल फोन नहीं होता था, बल्कि एक लैंडलाइन होता था. इसी बीच घर में एक घटना और होनी शुरू हो गई थी, जब देखोतब लैंडलाइन पर फोन आता था. मम्मी या भाभी उठाती थीं तो कोई उधर से कुछ बोलता ही नहीं था. उस दिन मैंने भैया की बात सुन लीथी, जब वो भाभी को डांट रहे थे, “इसीलिए मैं नहीं चाहता था कि कोई लड़का घर में आकर रहे. देख रही हो ना जब से नवीन आया है, तब से ही ऐसी ब्लैंक कॉल आ रही हैं, पूछ लो उससे कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड है क्या जो उसको फोन करती रहती है? इससे पहले तोअपने यहां इस तरह की ब्लैंक कॉल नहीं आईं.”
यह बात सच थी. नवीन के आने के तीन-चार दिनों बाद ही इन कॉल्स का सिलसिला शुरू हुआ था और जो शुरू हुआ तो रुकने का नामही नहीं ले रहा था. उस दिन घर पर सिर्फ भाभी और मैं ही थे. थोड़ी देर बाद आकर नवीन ने भाभी से कहा, “आप कह रही थीं मार्केट काकुछ काम है, अभी मैं फ्री हूं, चलना हो तो चलिए.”
दो मिनट के अंदर ही भाभी और नवीन मार्केट के लिए निकल गए थे और अगले दस मिनट के अंदर फिर लैंडलाइन फोन बजने लगा था. ऐसा मौका कम ही होता था कि घर में कोई ना हो और मैं फोन उठाऊं, मैंने लपक कर फोन जैसे ही उठाया और हेलो कहा, उधर से किसीलड़के की आवाज़ सुनाई दी, “हेलो! मैं नवीन बोल रहा हूं.”
“अरे! क्या हुआ? भाभी ठीक हैं ?अभी अभी तो आप लोग यहां से गए हैं.”
नवीन ने जल्दी से कहा, “मैंने तुमसे बात करने के लिए फोन किया है. मैं अक्सर तुमको फोन करता हूं, कोई और फोन उठा लेता है.” मेरीहैरानी की तो कोई सीमा नहीं रह गई थी. जो लड़का सामने बात करता नहीं है, वो बाहर से जाकर मुझे घर पर फोन कर रहा है.
उधर से धीमी आवाज आई , “निधि! तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. क्या मैं भी तुमको पसंद हूं?”
मैंने हड़बड़ा कर फोन रख दिया था. यह सब जो मैंने सुना वो सच था क्या? यानी जो ब्लैंक कॉल आती थी वो मेरे लिए आती थी और वोनवीन करते थे. उस दिन के बाद से तो जैसे मेरे पंख थोड़े और बड़े हो गए थे. मैंने नवीन की बात का जवाब तो नहीं दिया था, लेकिननवीन की लिखी चिट्ठियों को स्वीकार करने का मतलब ‘हां’ ही था. एक निश्चित गमले के नीचे नवीन चिट्ठी रख जाते, मैं मौका देखकरचिट्ठी उठा लेती फिर धीरे-धीरे उसी जगह पर मैं जवाब भी लिख कर रखने लगी. चिट्ठियों के मौसम थे, खुशनुमा थे… लेकिन हर मौसमएक निश्चित अवधि के लिए ही तो आता है. उस दिन जब मैं कॉलेज से आई तो पता चला कि नवीन के पापा की तबीयत खराब थी औरउन्हें अचानक जाना पड़ा. मैंने तुरंत छत पर जाकर उसी गमले के नीचे फिर से टटोला, सच में वहां एक चिट्ठी थी.
‘मेरी निधि, मेरा इंतजार करना. एग्जाम क्लियर करते ही मैं पापा-मम्मी को लेकर आऊंगा. तुम्हारा हाथ मांगने. तब तक तुम रुकोगी ना?
सिर्फ तुम्हारा नवीन’
उस चिट्ठी को अपने सीने से लगाकर मैंने कितनी ही बार कहा था, “हां मैं करूंगी इंतज़ार.”
वो चिट्ठी ही मेरे जीने का संबल बनी रही, फोन बजता तो उम्मीद रहती कि नवीन का ही होगा, लेकिन न फोन आया, न कोई संदेश, बसएक कार्ड आया था भइया-भाभी के नाम पर, नवीन की शादी का. भाभी चहकते हुए बता रही थीं, “इतने बड़े घर में रिश्ता हो रहा है नवीनका… लेटेस्ट मॉडल की कार दे रहे हैं वो लोग. साथ में इतना कैश. सब बता रहे हैं कि लड़की बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिनइतना दे रहे हैं कि नवीन और पापा-मम्मी ने तुरंत हां कह दी.”
मैंने बहुत कोशिश की, आंसुओं को रोकने की, लेकिन तब भी जब आंखे भरने लगीं तो तुरंत मैंने अपने कमरे में जाकर दरवाजा अंदर सेबंद कर लिया था. नवीन की महक अभी भी जैसे उसी कमरे में थी. मैंने अपनी अलमारी खोलकर वो चिट्ठी निकाली, आखिरी बार उसेफिर से पढ़ा और उसके अनगिनत टुकड़े करके उसी गमले की मिट्टी में गाड़ दिया. नवीन के लिए शायद मैं सिर्फ टाइमपास थी, लेकिनमेरे लिए तो ये रिश्ता मेरा पहला प्यार था, जिसको मैंने आज दफ्न कर दिया था.
लकी राजीव