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फिल्म समीक्षा: शिव शास्त्री बेल्बोआ- अनुपम खेर-नीना गुप्ता की लाजवाब अदाकारी, एक आम इंसान की ख़ास कहानी… (Movie Review: Shiv Shastri Balboa)

ज़िंदगी हर मोड़ पर हमें जीना सिखाती है और समझाती भी है, पर यह हम पर या व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह उसे किस तरह से स्वीकारते हैं, देखते हैं या फिर यूं ही जीते चले जाते हैं. शिव शास्त्री बेल्बोआ एक ऐसी ही फिल्म है, जो प्रेरित करती है और हौसला बढ़ाती है कि जीवन के तीसरे पड़ाव पर भी आप एक नई इनिंग शुरू कर सकते हैं बस, दिल में जज़्बा, कुछ कर गुज़रने की हिम्मत और पॉजिटिव एटीट्यूड होना चाहिए.


अनुपम खेर समर्थ कलाकार, एक ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने जीवन में हर क़िरदार में क्या खूब रंग भरा है. फिर वह भूमिका चरित्र कलाकार की हो, नायक, खलनायक या फिर कॉमेडियन ही क्यों ना हो… सब में अनुपम खेर ने अपने ज़बरदस्त परफॉर्मेंस से एक नया अंदाज़ दिया. बरसों से आ रही इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अपनी 534 फिल्म शिव शास्त्री बेल्बोआ जो उन पर केंद्रित है में गज़ब के अंदाज़ में नज़र आते हैं. उनका अभिनय और एनर्जी लेवल देखकर लगता ही नहीं कि उम्र ने उनको कहीं छुआ भी है. एक यंग एक्टर को भी टक्कर देते हुए उनका अभिनय हर किसी को प्रभावित करता है.

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मध्य प्रदेश के शिव शंकर शास्त्री बैंक से रिटायरमेंट के बाद बॉक्सिंग क्लब में कोच का काम करने लगते हैं. वे खुद बॉक्सर नहीं है, लेकिन उन्होंने ऐसे कई बॉक्सर को बेहतरीन कोचिंग दी, जिन्होंने भारत का नाम रोशन किया. जब इंडिया टीवी के रजत शर्मा उनका साक्षात्कार लेते हैं, तब उन्हें सलाह देते हैं कि अमेरिका के रॉकी स्टेप्स पर उनका एक वीडियो शूट होना चाहिए, जिसे वे उनके इंटरव्यू के शुरुआत में लगा सके.
यहां आपको बता दें कि शिव शास्त्री हॉलीवुड मूवी रॉकी सीरीज़ फेम सिल्वेस्टर स्टेलॉन के ज़बरदस्त फैन हैं. हॉलीवुड की यह मूवी सीरीज़ सुपर डुपर हिट फिल्म थी. 6 रॉकी के हर पार्ट को लोगों ने काफ़ी सराहा. हॉलीवुड में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में यह फिल्म लोगों ने ख़ूब पसंद की. इसमें एक बॉक्सर के रूप में सिल्वेस्टर स्टेलॉन का नाम रॉकी बेल्बोआ रहता है. वो कैसे गिरते-उठते, संघर्ष करते हुए अपने करियर को एक मुक़ाम शिखर पर लाते हैं, रॉकी की फिलॉसोफी से शिव शास्त्री को इस कदर प्रभावित और इतने ज़बरदस्त प्रशंसक रहते हैं कि वे शिव शास्त्री बेल्बोआ कहलाने लगते हैं.


कई प्रसंग और पड़ाव आते हैं जब अनुपम खेर यह साबित करते हैं कि उम्र केवल नंबर ही है. अगर आप में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा है और आप सकारात्मक सोच रखते हैं, तो अपने जीवन में कुछ भी कर सकते हैं. जो आप चाहते वह पा सकते हैं. अपनी इसी चाहत को पूरा करने के लिए वे अमेरिका में अपने डॉक्टर बेटे जुगल हंसराज के पास जाते हैं. वहां परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि उनका बेटा अपने रोज़मर्रा की ज़िंदगी के आपाधापी में इस कदर बिज़ी है कि वह चाह कर भी अपने पिता की इच्छा कि फिलेडेल्फिया के रॉकी स्टेप्स जाकर वीडियो बनाने पूरी नहीं कर पाता है.
यहीं पर एक दिन अपने पोतों को स्कूल छोड़ते हुए अनुपम की मुलाक़ात एल्सा नीना गुप्ता से होती है, जो यहां अमरीका में हाउस कीपर का काम कर रही है. भारत के हैदराबाद की रहने वाली हैं. परिस्थितियां कुछ ऐसी हुई कि वे अमेरिका में आकर फंस गई हैं. उनका पासपोर्ट भी नहीं उनके पास की वे वापस देश लौट सकें. वे हैदराबाद में अपनी बेटी-नातिन के पास जाना चाहती हैं, लेकिन उनके पास कोई ज़रिया नहीं है जाने का. शिव के साथ उनकी एक प्यारी सी दोस्ती भरी बॉन्डिंग हो जाती है. वे अपनी दर्द भरी दास्तान बताती हैं. तब शिव के मन में ख़्याल आता है कि उन्हें भी अपनी इच्छा पूरी करनी है और एल्सा की भी इच्छा पूरी कर सकते हैं. दोनों ही एक नए सफ़र के लिए निकल जाते हैं. तब कई उतार-चढ़ाव आते हैं.
एक मोड़ पर आकर वे जब बुरी तरह से फंस जाते हैं, तब उनकी मुलाक़ात शारिब हाशमी और उनकी पत्नी नरगिस फाखरी से होती है. दोनों उनकी मदद करते हैं. अब जानने वाली बात यह है कि अनुपम अपनी इच्छा को पूरी कर पाते हैं कि नहीं और नीना अपने नातिन से मिल पाती है कि नहीं… इसे जानने के लिए तो फिल्म देखना ज़रूरी है.


फिल्म के सभी कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया है. इसमें कोई दो राय नहीं कि उम्र के इस पड़ाव पर भी अनुपम खेर और नीना गुप्ता के सशक्त अभिनय पूरी फिल्म को बांधे रखती है. दोनों के लाजवाब एक्टिंग के लिए जितनी प्रशंसा की जाए कम है. मगर एक बात ज़रूर है कि नीना हाउस कीपर के रूप में हैं, पर साउथ हैंडलूम सिल्क की साड़ियां पहनती हैं, जो थोड़ी खटकती है. शारिब हाशमी गायक बनना चाहते हैं, उनके बालों का रंग नीला दिया, तो कुछ कलर उनके माथे पर भी दिखाई देते हैं, जो अटपटा सा लगता है. कई छोटी-छोटी बातें हैं, जो शायद निर्देशक अजय वेणुगोपालन की नज़र में नहीं आ सकी. लेकिन मलयालम निर्देशक अजयन की यह पहली हिंदी फिल्म है. उनकी कोशिश बहुत बढ़िया रही है. उन्होंने बड़े ही हल्के-फुल्के अंदाज़ में गंभीर बातों को मनोरंजन के साथ भी रखा है, ख़ासकर अनुपम खेर के डॉगी कैस्पर, जिसकी सोच को शब्दों में दिखाया है, एक अलग रंग देता है और ख़ूब हंसाता भी है.

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अनुपम खेर, नीना गुप्ता, शारिब हाशमी, नरगिस फाखरी, जुगल हंसराज सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है. हां, फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी. कहीं थोड़ी धीमी भी रही है. इस पर फिल्म के निर्देशक-लेखक अजयन थोड़ा ध्यान देते तो ज़्यादा अच्छा रहता. गीत-संगीत ठीक-ठाक है. फिल्म में विदेश में रह रहे प्रवासियों की परेशानियां, नक्सलवाद, छोटे-मोटे काम कर रहे हैं देशवासियों के साथ ग़लत व्यवहार जैसे पहलुओं को भी उजागर किया गया है.
अनुपम खेर ने अपनी यह फिल्म अपने पिता पुष्कर जी को समर्पित की है. उनका कहना है कि जीवन के न जाने कितने सबक उन्होंने अपने पिता से सीखें. उनके पिता भी शिव जैसे साधारण, पर असाधारण व्यक्तित्व वाले थे.

रेटिंग: 3 ***

Photo Courtesy: Instagram

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