"बहू, सर्दी शुरू हो गई हैं, पर इस बार लड्डू बनाने की ज़रूरत नहीं है. तुम हर बार तरह-तरह के लडडू बना के रख देती हो, फिर मीठे के शौकीन तुम्हारे बाबूजी मीठा देखकर ख़ुद को रोक नहीं पाते. बेमतलब में अपनी शुगर बढ़ा लेते हैं. अब तो वे अपने दांतों से भी परेशान है, तो अब कैसे वे मेवे वाले लडडू खा पाएंगे? इसलिए अब की बार लडडू बनाना ही नहीं." सरलाजी ने न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरीवाले अंदाज़ में कहा.
सरलाजी अपने पति केदरनाथजी से तीखे तेवर और ऊंचे स्वर में कह रही थीं, "सुनो जी, कल पड़ोसवाली गुप्ताइन कह रही थीं कि आपको डायबिटीज़ अपनी बहू प्रीति के वज़ह से हुई है."
"अरे, प्रीति बहू का इसमें क्या दोष?" केदरनाथजी ने पूछा.
"बहू की ही ग़लती है. उसे मीठा बनाने का शौक है और आपको मीठा खाने का." सरलाजी ने मुंह फुलाते हुए कहा.
"नहीं सरला, मैं ही अपने खानपान का ध्यान न रख सका और यह डायबिटीज़ कोई थोड़े दिनों के खानपान का नतीज़ा नहीं है. यह तो लबे समय से ग़लत दिनचर्या और उल्टे-सीधे खानपान का परिणाम है और आजकल तो यह बड़ी फैली हुई समस्या है. अमूमन लोगों को हो जाती है. बहू को इसका दोष देना ग़लत है."
इत्तेफ़ाक़ से कमरे के बाहर खड़ी प्रीति के कानों में ये सारी बातें पड़ गईं.
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कुछ देर बात सरलाजी किचन के कामों में लगी प्रीति से बोलीं, "बहू, सर्दी शुरू हो गई हैं, पर इस बार लड्डू बनाने की ज़रूरत नहीं है. तुम हर बार तरह-तरह के लडडू बना के रख देती हो, फिर मीठे के शौकीन तुम्हारे बाबूजी मीठा देखकर ख़ुद को रोक नहीं पाते. बेमतलब में अपनी शुगर बढ़ा लेते हैं. अब तो वे अपने दांतों से भी परेशान है, तो अब कैसे वे मेवे वाले लडडू खा पाएंगे? इसलिए अब की बार लडडू बनाना ही नहीं." सरलाजी ने न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरीवाले अंदाज़ में कहा.
तभी केदरनाथजी प्रीति का उदास चेहरा देखकर बोले, "प्रीति बेटा, तुम बनाओ लडडू. मेरे कारण घर के अन्य सदस्य क्यों स्वादिष्ट लड्डूओं से वंचित रहें और मैं भी अगर थोड़ा-बहुत खा लूंगा, तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा?"
"कोई पहाड़ नहीं टूटेगा, टूटेगें आपके बचे-कूचे दांत फिर घुमना पूपले बनकर." केदरनाथजी की तरफ़ आंखें तरेरते हुए सरलाजी ने कहा.
"लेकिन मांजी, आपके जोड़ों के दर्द में मेथी और अलसी के लड्डु तो फ़ायदेमंद हैं न?" प्रीति ने विन्रम भाव से कहा.
"होते होगें, पर मेरे लिए तेरे ससुरजी का स्वास्थ्य मेरे अपने स्वास्थ्य से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है." यह कहती हुई सरलाजी बाहर धूप सेंकने को चल दीं.
पर जब सरलाजी लौटकर घर आईं, तब उनकी आंखें यह दृश्य देखकर मारे आश्चर्य के फटी की फटी रह गईं. केदारनाथजी स्वादिष्ट लड्डू खाते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे. तिल और मेवों की ख़ुशबू पूरे घर में फैली हुई थी.
यह देखकर सरलाजी का ग़ुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया, "प्रीति, यह क्या है? मेरे मना करने पर भी तुमने लडडू बनाए…"
"अरे शांत हो जाओ सरलाजी, यह लड्डू बहू ने नई रेसिपी से बनाए हैं एकदम शुगर फ्री." लड्डुओं का स्वाद मुंह में घोलते हुए केदरनाथजी ने कहा.
तभी प्रीति ने बताया कि कैसे उसने अलग से बड़ी सूझ-बूझ से बाबूजी के लिए मेवों को पीसकर, शुगर फ्री लड्डू बनाए हैं.
"मांजी, बाबूजी का मन भी तो तरह-तरह की चीज़े खाने का होता होगा न? बस यही सोचकर मैंने लड्डू बना दिए." प्रीति ने धीमे स्वर में अपनी बात कही.
फिर क्या? सरलाजी अपनी बहू की समझदारी की मुरीद हो गईं और हर तरह का एक-एक लड्डू लेकर बाहर को चल दीं.
"कहां जा रही हो भाग्यवान?" केदरनाथजी ने पूछा.
"जा रही हूं उस गुप्ताइन को ये सेहत से भरे लड्डू खिलाने और साथ में यह भी बताने की हमारी लड्डू एक्सपर्ट बहू हर तरह के लड्डू बनाना जानती हैं और हमारी बहू से ज़्यादा हमारे स्वास्थ्य का कोई ख़्याल नहीं रख सकता. हमारी प्यारी लड्डू एक्सपर्ट बहू प्रेम भाव से सरलाजी ने प्रीति की ओर देखा और मुस्कुराती हुई सरलाजी गुप्ताइन के घर को चली गईं.
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