“रामजसी, ख़ुद को संभालो. लोग कहते हैं जन्म और मृत्यु के समय को टाला नहीं जा सकता. जब जहां होना होता है, हो जाता है. पीताम्बर को मौत वहां खींच ले गई, वरना दो-चार मिनट आगे-पीछे वहां पहुंचता. समझ लो यही होना था.”
“कहानियों से हम कब सीखेंगे? एक बीमार, दूसरे बीमार को उम्मीद देना चाहता है. हमने पीताम्बर को मरने के लिए छोड़ दिया. संवेदनाएं मरने लगें, तब मान लेना चाहिए दुनिया ख़त्म होनेवाली है.”
आज की डाक में शोक संदेश आया है. एक कोने से फटे पोस्ट कार्ड साइज़ स़फेद कार्ड में छपे काले अक्षर की इबारत पढ़ते हुए रामजसी सोच रही है- ऐसे संदेश छपे हुए काले अक्षर मात्र नहीं होते, किसी का शेष हो गया जीवन होते हैं. शिथिल भाव में बोली, “इरावान इस तरह चला गया.
27-28 साल का रहा होगा.”
पति रहीस सिंह ने उसके कातर मुख को देखा, “हां, आनंद से डेढ़ साल ही बड़ा था.”
“परसों तेरहवीं है. बरखेड़ा चले जाना.”
“बरखेड़ा लगभग सौ किलोमीटर दूर है. आने-जाने में समय लगेगा. अदालत में कई पेशी लगी हैं. तेरहवीं के बाद अवस्थीजी बरखेड़ा (अवस्थी का पैतृक गांव) से कृपालपुर लौट आएंगे. वहां मिल आऊंगा. तुम भी चलना.”
“इरावान दोनों बहनों से छोटा अकेला भाई था. निरूपा की क्या दशा होगी?”
“वे तो मां हैं. इतना बड़ा दुख सहन करना आसान नहीं होगा. अप्रैल में इरावान की शादी होनी थी. सोचता था शादी में जाएंगे. अब मातमपुर्सी में जाना पड़ेगा.”
अवस्थी का ज़मीन को लेकर
नाते-रिश्तेदारों से विवाद चल रहा था. उन्होंने रहीस को अपना वकील लगाया. रहीस दीवानी और फौजदारी के सक्षम अधिवक्ता माने जाते हैं. ़फैसला अवस्थी के पक्ष में हुआ. तब से दोनों परिवारों में मित्रता है. मोबाइल पर बात होती रहती है.
रहीस ने मोबाइल पर कॉल कर मालूम कर लिया. अवस्थी कृपालपुर लौट आए हैं.
“रामजसी, अवस्थीजी आ गए हैं. कचहरी के बाद शाम पांच बजे कृपालपुर चलेंगे. रात आठ-नौ बजे तक वापस आ जाएंगे.”
“कचहरी से जल्दी लौटना. ठंड के दिन हैं. अंधेरा जल्दी होता है.”
लॉन्ग रूट पर अक्सर रामजसी ड्राइव करती है. इस तरह कुछ अभ्यास कर लेती है. जैसे ही वे शहर की सीमा से बाहर आए, वह ड्राइविंग सीट पर आ गई. रहीस उसकी सीट पर चले गए. स्वभाव के अनुसार उसे
निर्देश देने लगे, “मजे से चलो स्पीड कम. अंधेरे में गड्ढे ठीक से नहीं दिख रहे हैं. सामने गड्ढा, उधर काटो. दुर्घटना का एक कारण सड़कों की बुरी हालत है.” रामजसी का मन भारी है. दुर्घटना शब्द डराने लगा है. इरावान सड़क दुर्घटना में ही तो गया.
अनायास उसका ध्यान आनंद की ओर चला गया. पूना में पढ़ता है. बाइक तेज़ चलाता है. इस समय कहां होगा? सड़क पर तो नहीं? आनंद लंबे इंतज़ार के बाद जन्मी इकलौती संतान है.
वह कहती, “आनंद, बच्चे हमारी ज़िंदगी का सबसे सुंदर पक्ष होते हैं. तुम न होते, तो ज़िंदगी पता नहीं कैसी होती?”
वह छाती फुलाकर हंस पड़ता, “मेरा एहसान मानती हो न.”
रामजसी आनंद के ख़्यालों में है.
ठीक सामने अंधा मो़ड़. मोड़ के इस पार से उस पार का आभास नहीं मिलता. अंधेरे ने जैसे मोड़ का वजूद ही ख़त्म कर दिया है. उस पार से आ रही तेज़ प्रकाशवाली बाइक जैसे एकाएक प्रकट हो गई हो. वह पहली बार जान रही थी हादसा इस तेज़ी से घटता है. उसने तेज़ टंकार सुनी. हाथ स्टेयरिंग से छिटक गए. डगमगाती कार मोड़ के उस पार आकर रुक गई. नहीं जानती उसने रोकी या स्वत: रुकी. नहीं जानती बाइक अंधेरे में कहां गई. उसमें कितने लोग सवार थे. मानो उसका तंत्रिका तंत्र शून्य हो गया हो. रहीस की चीख सुनाई दी, “क्या करती हो?”
रामजसी को लग रहा था चेतना खो देगी, पर चेतना कठोर होती है. एक अज्ञात मज़बूती उसे खोने से बचाए रखती है. उसने
पीछे देखा.
अंधेरे में सब कुछ स्याह था.
“कौन था? कहां गिरा?”
“मेरे सिर पर गिरा. गाड़ी चलाने का भूत सवार है. स्टार्टिंग ट्रबल आ गई होगी, तो एकांत में पड़ी रहना. इधर बैठो.”
वह रहीस की सीट पर आ गई. रहीस ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट करने का प्रयास करने लगे.
“कौन था? कहां गिरा?”
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“होश की बात करो रामजसी. तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बना है. बिना लाइसेंस के वाहन चलाना गैरक़ानूनी है. सड़क के दोनों ओर खेत हैं. यदि वहां आदमी होंगे, इधर आ सकते हैं. बाइकवाला आ सकता है. कार स्टार्ट नहीं हो रही. थैंक गॉड स्टार्ट हो गई.”
वकालत करते हुए रहीस को क़ानून की धाराओं का विषद ज्ञान है. तेज़ी से सोच रहे हैं, पकड़े जाने पर रामजसी पर
कौन-सी धारा लागू होगी. रामजसी को रहीस का आचरण अव्यावहारिक लग रहा था. भय से आवाज़ नहीं खुल रही थी, लेकिन बोली, “कार रोको. हमें देखना चाहिए वह कौन है. अकेला है या…”
“एक ही बात रट रही हो. सदमे में हो.”
“वापस चलो. मुझे घबराहट हो रही है. अवस्थीजी के घर में नॉर्मल नहीं
रह पाऊंगी.”
रहीस समझ गए हैं. टक्कर तेज़ थी. कुछ न कुछ हो गया है, पर इस तरह बोले जैसे टक्कर होना गंभीर बात नहीं है.
“लौटेंगे तो पकड़े जाएंगे… हो सकता है बाइकर वहां मौजूद हो. कार का नंबर देख लिया हो. हो सकता है खेतों में जो लोग रहे होें, वहां आ गए हों. हमें पकड़ लें. वैसे तेज टक्कर नहीं हुई है. बाइकर अपनी राह चला गया होगा. अपने चेहरे को ठीक करो. चेहरे से लग रहा है तुमसे कुछ ग़लत हुआ है.”
रामजसी जानती है रहीस अपनी सुरक्षा और पक्ष को सर्वोपरि मानते हैं. एक बार वह रहीस के साथ कार से जा रही थी. कार साइकिल पर सवार स्कूल के विद्यार्थी से टकरा गई. विद्यार्थी गिर गया. कार से उतर कर रहीस ने विद्यार्थी के गाल पर दो तमाचे लगा दिए, “हीरो बनता है. ग़लती करेगा, मरेगा, मुसीबत मेरी कि मैं कार ठीक से
नहीं चलाता.”
स्तब्ध विद्यार्थी स्थिति समझता, लोग आते, तब तक रहीस कार भगा ले गए. वह हैरान थी, “क्रिमिनल केस लड़ते हुए हिंसक होने लगे हो.”
“मैं उसे न मारता, तो लोग मुझे मारने लगते. लड़का पैसे मांगता. आजकल यही होता है.”
विद्यार्थी बच गया था. बाइकर का पता नहीं क्या हुआ?
रहीस मज़बूत दिखना चाहते हैं, पर शिथिल पड़ रहे हैं. कृपालपुर की 30 किलोमीटर वाली दूरी पलक झपकते पूरी हो जाती थी. आज मानो पथ ख़त्म नहीं हो रहा था. किसी तरह अवस्थी के घर पहुंचे. उनका घर गली में है, वहां कार नहीं जा सकती. गली के मुहाने पर एक ओर कार खड़ी कर रहीस कार का अवलोकन करने लगे. हेडलाइट फूट गई थी, कुछ हिस्सा पिचक गया था.
“रामजसी नॉर्मल हो जाओ. असाध्य रोग की रोगी लग रही हो.”
रामजसी चुप रही. गली पार कर वे अवस्थी के घर पहुंचे. घर वीरान, बल्कि करुण प्रतीत हो रहा था. अपने प्रिय के अवसान पर पदार्थ भी शायद दरकता होगा, तभी तो रौनक से भरा रहनेवाला घर भुतहा लग रहा है. रामजसी को तेज़ रुलाई आई. वह जब भी यहां आई है, यदि इरावान मौजूद होता था, सबसे पहले वही बाहर आकर पैर छूता था. वह आशीर्वाद देती, ‘ख़ुश रहो.’ वह हंसता, ‘एक नहीं, कई आशीर्वाद चाहिए. आईआईटी में अच्छा पर्सेंटेज, अच्छा जॉब, अच्छा पैसा, अच्छी कार, अच्छी लड़की.’ निरूपा कहती, ‘यह मुंबई चला जाता है, इसकी हंसी यहीं रह जाती है.’
उसकी हंसी के बिना घर सांस कैसे ले रहा होगा?
आहट पाकर अवस्थी ने सदर द्वार खोला. दोनों ख़ामोशी से बैठक में आ गए. बड़ी बेटी अपने घर लौट गई है. छोटी आराधना रुकी हुई है.
वह दोनों को बैठा कर निरूपा को भीतर से बुला लाई. न कहने को कुछ, न बताने को. एक मुश्त समय मौन में बीता. रामजसी, इरावान की पुष्प हारवाली तस्वीर देखती रही. बुरे ख़्याल जकड़ने लगे. बाइकर तस्वीर तो नहीं बन गया? आनंद इस समय कहां होगा? सड़क पर तो नहीं? इरावान-बाइकर-आनंद तीन नाम फेंट रहे हैें. बाइकर को नहीं देखा फिर भी लग रहा है, उसका चेहरा इरावान या आनंद से मिलता होगा. उसने आराधना को कहते पाया, “इरावान अपने साथ जॉब करनेवाली नीली को पसंद करता था.
इसी अप्रैल में दोनों की शादी होनेवाली थी. सब ख़त्म.”
रामजसी को लगा इरावान नहीं मरा है, कई संबंध मर गए हैं. किसी का बेटा, किसी का भाई, किसी का मित्र, किसी का भावी पति मर
गया है. एक होते हुए भी व्यक्ति अनेक हिस्सों में बंटा होता है. बोली, “एक्सीडेंट करनेवाले पकड़े नहीं गए?”
अवस्थी और निरूपा शिथिल हैं. सूचनाएं देने का भार पूरी तरह आराधना पर है, “नहीं. किसी की जान चली जाती है, जान लेनेवाले छुट्टा घूमते हैं. मेरा दिल कहता है वे जहां होंगे, सुखी नहीं होंगे. जो किसी को मरने के लिए अकेला छोड़ जाए, वह सुखी नहीं रह सकता. इरावान को व़क्त पर उपचार नहीं मिला. मिल जाता तो शायद बच जाता.”
रामजसी, रहीस को झिंझोड़ डालना चाहती है. बाइकर की सहायता क्यों नहीं की? उसे उपचार मिलना चाहिए था. आनंद बाइक तेज़
चलाता है, यदि उसके साथ… उसने बावरी सी दिख रही निरूपा को देखा. निरूपा को ढा़ंढस देने आई है, पर ख़ुद इतनी विचलित है
कि शब्द नहीं मिल रहे हैं. किसी तरह बोली, “बहुत बुरा हुआ. इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता.”
आराधना मानो बेसुध में कह रही है, “इरावान को सांप और मौत से बहुत डर लगता था. यदि वह होश में रहा होगा, अपने मरने को समझ रहा होगा, वह समय उसके लिए भारी रहा होगा. ख़ुद को अकेला और लाचार पाया होगा. मुझे उसके न रहने का दुख तो है ही, यह दुख अधिक है कि वह किस असहायता में गया.”
बाइकर भी सांप और मौत से डरता होगा? असहायता में मरा होगा? क्या बच गया होगा? भगवान करे बच गया हो…
“विश्वास नहीं होता इरावान नहीं है.”
आराधना इस तरह बोल रही है जैसे उसकी बातें करके ही जीना संभव हो सकेगा.
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“सेंटीमेंटल था. हॉस्टल में रहता था. एक बार रूममेट सदानंद के साथ बाइक पर जा रहा था. बाइक सदानंद चला रहा था. पैदल चले आ रहे आदमी से बाइक टकरा गई. आदमी गिर गया. सदानंद बाइक नहीं रोक रहा था. बाइक रुकवा कर इरावान ने आदमी को संभाला. सदानंद, इरावान को छोड़कर बाइक भगा ले गया. आदमी ने इरावान के पूरे पैसे छीन लिए. इरावान हॉस्टल पहुंचा. घटना सुनकर सदानंद बोला, ‘तुम बेवकूफ़ हो, इसलिए आदमी ने तुम्हारे पैसे छीन लिए.’ इरावान बोला, ‘मेरे पैसे छिन गए, पर मेरे दिल पर बोझ नहीं है.’ इतना
सेंटीमेंटल था…”
रामजसी के दिल पर बोझ है. उसे इरावान से अधिक बाइकर अधीर कर रहा है. तस्वीर की ओर संकेत कर एकाएक कहने लगी, “इतना ख़ूबसूरत बच्चा था. उसकी यह तस्वीर कभी नहीं भूलेगी.”
आराधना ऐसे बोल रही है जैसे बोलने से ही छाती पर रखी शिला पिघलेगी.
“मरने के बाद भी बेचारे की दुर्गति हुई. पोस्टमार्टम हुआ. बड़े टांकों से देह सिली गई. चेहरा ऐसा काला हो गया था कि लग नहीं रहा था वही इरावान है, जो इस तस्वीर में है.” अवस्थी कंधे झुकाए बैठे हैं.
निरूपा की सिसकियां तेज़ हो गईं.
रामजसी पूरी तरह ग्लानि में डूबी हुई.
रहीस ने निरूपा को देखा. रामजसी को देखा. समझ गए रामजसी अधिक देर तक बैठी नहीं रह सकेगी. उन्होंने अवस्थी से चलने की अनुमति मांगी. फिर आने को कहा. चोरों की भांति दबे पांव बाहर निकल आए.
वापसी के लिए बाई पासवाला लंबा मार्ग चुना. उनकी वकील बुद्धि विलक्षण रूप से सतर्क थी. हो सकता है बाइकर सड़क पर पड़ा हो… हो सकता है किसी ने पुलिस को सूचित कर दिया हो… हो सकता है वाहनों की चेकिंग चल रही हो… उनकी क्षतिग्रस्त कार पर संदेह.
देर रात घर पहुंचे.
दोनों को नींद नहीं आ रही थी. दिल पर बोझ हो, तो नींद नहीं आती. वे रामजसी को
दिलासा देने लगे, “आजकल लोग जान हथेली पर रखकर चलते हैं. तेज़ गाड़ी चलाएंगे, मर्दानगी झाड़ेंगे, मरेंगे. दस-बीस मिनट देर से पहुंचोगे, तो भारी नुक़सान नहीं हो जाएगा. वह बाइकर अंधाधुंध स्पीड में रहा होगा.”
“हो सकता है उसकी ग़लती रही हो, पर ठहर कर देखना चाहिए था.”
“मैं कम परेशान नहीं हूं. कार चलाने की तुम्हारी सनक ने यह दिन दिखाया.”
“जी घबरा रहा है. अच्छी बात करो.”
“क्या हम चाहते थे ऐसा हो? हो गया. पछता रहा हूं. मदद करनी चाहिए थी. मैं इतना असंवेदनशील हो गया. कुछ सूझ नहीं रहा था. तुम घटना को भूलने की कोशिश करो. कई बार अपराधी अपनी बेवकूफ़ी और हड़बड़ाहट के कारण पकड़ा जाता है. पुलिस चाह ले, तो
अपराधी को पाताल से ढूंढ़ लेती है.”
रामजसी को रातभर नींद नहीं आई. सुबह स्थानीय अख़बार पढ़ते हुए हृदय गति बढ़ रही थी. पेज नंबर चार दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, बलात्कार, मारपीट जैसी अपराधिक ख़बरों से भरा रहता है. वह इन्हें पढ़कर चौंकती नहीं थी. आज समझ में आ रहा है ऐसी ख़बरों में कितना त्रास और हाहाकार छिपा होता है. उसने अधीरता में पूरा पृष्ठ पढ़ डाला. अंधे मोड़वाली दुर्घटना का ज़िक्र नहीं है. उसे तात्कालिक दिलासा मिली. ख़बर नहीं छपी इसका मतलब मामूली घटना रही होगी. नहीं सोच रही थी कि अगले दिन का अख़बार हृदय को विदीर्ण कर देगा. घटना की जानकारी मिलने से पूर्व अख़बार छप चुका था, अन्यथा यह आज की नहीं कल की प्रमुख ख़बर होती.
‘अंधे मोड़ ने ली एक और बलि’ जैसे शीर्षक के साथ घटना का सचित्र समाचार छपा है. चित्र में घटनास्थल पर बाइकर औंधा पड़ा था.
चित्र के ऊपरी कोने में इनसेट में उसकी जीवित अवस्था की तस्वीर थी. आनंद और इरावान की तरह युवा और ख़ूबसूरत.
पीताम्बर पाण्डेय (मृतक) मित्र की बर्थडे पार्टी में सम्मिलित होने के लिए घर से निकला, तब नहीं जानता होगा कि घर नहीं लौटेगा. वह अंधे मोड़ पर अज्ञात वाहन की चपेट में आ गया. टक्कर इतनी तेज़ थी कि बाइक से दूर गिर गया. सिर पर गहरी
चोटें आईं.
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार मृत्यु रात ग्यारह के आसपास हुई. अधिक रक्तस्राव और ठंड को मृत्यु का कारण माना जा रहा है. समय पर उपचार मिल जाता, तो शायद किसी घर का चिराग़ असमय न बुझता. लोग ख़ुदगर्ज और क्रूर होते जा रहे हैं.
रामजसी आगे न पढ़ सकी. लगा ठीक इसी क्षण दिमाग़ की कोई शिरा फट जाएगी. हैमरेज हो जाएगा, उसके स्याह मुख को देख रहीस बोले, “क्या हुआ?”
“देखो.”
रहीस ने अख़बार थाम लिया, “हे भगवान! आनंद के साथ ऐसा हो तो…”
“तुम सदमे में हो. भूलने की
कोशिश करो.”
“यह भुला देनेवाली जैसी घटना नहीं है. कुछ कहानियां ऐसी होती हैं, जो नहीं भूलतीं. सच्ची घटना कैसे भूलेगी?” वह मानो बेसुध में कहानी सुनाने लगी, “अस्पताल के एक रूम में दो बीमार भर्ती थे. दोनों के बेड आमने-सामने की दीवार से लगे थे. पहले बीमार को
हड्डियों की गंभीर बीमारी थी. वह उठ-बैठ नहीं पाता था. दूसरे बीमार के बेड के पास खिड़की थी. वह खिड़की से दिखनेवाली
गतिविधियों को सुनाकर पहले का मन बहलाता, “बाहर मौसम सुहाना है. क्यारियों में फूल खिले हैं… आज पीले फूल अधिक हैं… बच्चे स्कूल जा रहे हैं… चारों ओर जीवन है… एक दिन दूसरा मर गया. पहला परेशान हो गया. वे गतिविधियां कौन सुनाएगा, जो उम्मीद देती हैं. नर्स से बोला, “सिस्टर, मुझे खिड़कीवाले बेड में शिफ्ट होना है. शिफ्ट होते हुए उसने देखा खिड़की के बाहर काली भद्दी दीवार है. पूछने लगा, “खिड़की के बाहर सुंदर बगीचा था न!”
नर्स बोली, “नहीं.”
वह हैरान हुआ, “इस बेड का मरीज़ बगीचे के दृश्य मुझे बताता था.”
नर्स ने चौंका दिया, “वह तुम्हें हताशा से बचाने के लिए अच्छी बातें करता था.” रामजसी से आगे न बोला गया. वह जी भर कर रोना चाहती है. रोना उसकी ज़रूरत है.
उसे हिलक कर रोते देख रहीस को लगा यही स्थिति रही, तो दिमाग़ी संतुलन बिगड़ सकता है. उन्हें एकाएक लगने लगा ग़लती को छिपाना ग़लती करने से अधिक घातक होता है. यदि मदद की होती, पीताम्बर नाम का यह युवक शायद बच जाता.
“रामजसी, ख़ुद को संभालो. लोग कहते हैं जन्म और मृत्यु के समय को टाला नहीं जा सकता. जब जहां होना होता है, हो जाता है.
पीताम्बर को मौत वहां खींच ले गई, वरना दो-चार मिनट आगे-पीछे वहां पहुंचता. समझ लो यही होना था.”
“कहानियों से हम कब सीखेंगे? एक बीमार, दूसरे बीमार को उम्मीद देना चाहता है. हमने पीताम्बर को मरने के लिए छोड़ दिया. संवेदनाएं मरने लगें, तब मान लेना चाहिए कि दुनिया ख़त्म होनेवाली है.”
रहीस को रामजसी से डर लगने लगा. इस घटना ने इसके शब्द, अर्थ, संदर्भ, प्रयोजन बदल दिए हैं. किसी के सम्मुख भेद खोल सकती है.
इसे सदमे से बाहर लाने के लिए कुछ अच्छी बातें करनी होंगी.
अफ़सोस!
उन्हें एक भी अच्छी बात नहीं सूझ रही थी.
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