“इस घर में वही होगा जो मैं चाहता हूं. मैंने तुम्हें पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस घर में रहना है तो मेरी टर्म्स और कंडीशन्स के हिसाब से ही रहना होगा.” अभि कठोर स्वर में बोला.
“तो ठीक है मि. अभिजीत वर्मा आज मैं आपकी सारी टर्म्स और कंडीशन्स को अस्वीकार करते हुए आपकी नौकरी से रिज़ाइन करती हूं.” मीरा के ये ठंडे, मगर बहुत गहरे स्वर में बोले गए वाक्य सुनकर दो क्षण को अभि स्तब्ध रह गया और मनु आवाक् होकर मीरा का मुंह देखने लगा.
“नौकरी?” अभि तिलमिलाकर बोला, “तुम बीवी हो मेरी.”
“आई डोंट वॉन्ट एनी नॉनसेन्स इमोशनल ड्रामा. मैंने आपको नौकरी पर रखते वक़्त ही बता दिया था कि मेरे द्वारा तय की गई छुट्टियों के अलावा आपको और कोई छुट्टी नहीं दी जाएगी. अगर भूल गयीं हो, तो अपनी अपॉइंटमेंटवाली फाइल निकलवाकर टर्म्स एण्ड कंडीशन्स एक बार और पढ़ लीजिए.” कहते हुए बिना सामनेवाले की बात सुने अभिजीत ने खटाक से फोन काट दिया.
टेबल पर अभिजीत का नाश्ता लगाती मीरा ने एक उड़ती हुई नज़र उस पर डाली और फिर गर्दन नीचे झुकाकर उसकी प्लेट में नाश्ता लगाने लगी. मीरा के दिल में फोन करनेवाली के प्रति हमदर्दी हो आयी, “पता नहीं बेचारी को क्या परेशानी और ज़रूरत होगी, जो छुट्टी मांग रही है.”
उतने में अभिजीत ग़ुस्से में बड़बड़ाता हुआ नाश्ता करने आ बैठा, “औरतें सारी शर्तों को मान कर नौकरी तो हथिया लेती हैं और थोड़े ही दिनों के बाद उनके नाटक शुरू हो जाते हैं. कभी पति बीमार तो कभी बच्चा बीमार, कभी घर में मेहमान तो कभी कोई मर जाता है. जब देखो तब छुट्टियों के लिए हाथ फैलाए खड़ी रहती हैं. बॉस को तो बेवकूफ़ समझती हैं. पहले नौकरी हथिया लो फिर टेसुए बहाकर मनमानी करवा लेंगी…”
इसके बाद अभिजीत ने एक ऐसा अपशब्द बोला समस्त नारी जाती के बारे में कि मीरा को लगा किसी ने कानों में पिघला शीशा भर दिया हो. अभिजीत के चेहरे के भावों और बोलने के तरीक़े से मीरा के शरीर पर घृणा से शहारे आ गए.
ब्रेकफास्ट करके जब अभिजीत ऑफिस चला गया, तो मीरा एक गहरी सांस लेकर उस औरत के बारे में सोचने लगी, जो अभिजीत से छुट्टी की प्रार्थना कर रही थी. मीरा को उस अनजान स्त्री से सहानुभूति हो आयी. पता नहीं बेचारी को क्या परेशानी होगी, जो छुट्टी के लिए इतना विकल हो रही थी, लेकिन बेचारी अभि जैसे निष्ठुर बॉस के पल्ले पड़ गयी. अभि कभी किसी की परेशानियों या दुख-दर्द को समझ नहीं पाया, तो उसकी तकलीफ़ों को क्या समझेगा. अभि के लिए तो पैसा ही सब कुछ है. संवेदनाओं के संदर्भ में तो अभि एकदम कंगाल आदमी है.
रात में डिनर के समय अभि फोन पर अपने किसी एंपलॉई से चर्चा कर रहा था कि रश्मि ने जॉब छोड़ दी है, महज़ अपने बेटे की बीमारी की वजह से. वह रश्मि को भला-बुरा कह रहा था कि इन लोगों में जॉब रिस्पॉन्सबिलिटी नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं है. यह नहीं सोचते कि कंपनी को कितना नुक़सान होगा. बस मुंह उठाया और जॉब छोड़ दिया. बच्चा बीमार है, तो हॉस्पिटल में नर्सें तो हैं उसकी देखभाल करने के लिए.
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“पर ये लोग तो अपना नफ़ा-नुक़सान समझते ही नहीं हैं, ये फ़ालतू की भावनाएं अच्छे-भले आदमी को भी नाकारा बना देती है.” अभी फोन पर अपनी तिलमिलाहट पता नहीं किस पर निकाल रहा था.
मीरा अभि से कहना चाह रही थी कि तुम्हारी तरह सबके लिए सिर्फ़ पैसा ही सब कुछ नहीं होता. लोग पैसा कमाते हैं, ताकि अपने प्रियजनों की ज़रूरतों को पूरा कर सकें, उन्हें ख़ुशियां दे सकें. लोगों के लिए अपनी पत्नी, बच्चे और प्रियजन पहले होते हैं और पैसा बाद में, लेकिन तुम्हारे लिए सब कुछ पैसा ही है. तुम तो रिश्ते भी सिर्फ़ उन्हीं लोगों से रखते हों, जो तुम्हें पैसा कमाने में सहायक सिद्ध हो सकें, वरना तो तुम मक्खी की तरह सबको अपने जीवन से बाहर निकाल देते हो.
मगर प्रकट में मीरा एक ठंडी सांस लेकर रह गई. पिछले तेईस सालों में वह भलीभांति समझ चुकी थी कि अभि इंसान नहीं पत्थर है, जिस पर सिर पटकने से ख़ुद को ही पलट कर चोट लगती है उस पर रत्ति भर भी असर नहीं पड़ता.
अभि के सो जाने के बाद मीरा दो कप गरम-गरम कॉफी बनाकर बेटे अभिमन्यु के कमरे में चली गयी.
“मम्मा मि. अभिजीत वर्मा सो गए क्या?” मनु ने पूछा.
“बेटा वो तुम्हारे पापा हैं.” मीरा ने नकली ग़ुस्से से आंखें तरेरी और फिर हंसते हुए बोली, “हां सो गए.”
मनु ने एक लंबी गहरी चैन की सांस लेने का नाटक किया और जल्दी से अपनी आलमारी से कुछ निकालने लगा. मीरा के दिन का यह समय सबसे अच्छा और सुखद गुज़रता है. मनु भी अपनी फायनेंस की पढ़ाई से फ़ुर्सत पा लेता है और मीरा अपने कामों से. रात में देर तक दोनों मां-बेटे पेंटिंग करते रहते हैं. मनु बहुत अच्छा चित्रकार है. मीरा उसके चित्रों में भावनाओं की इतनी संवेदनशील अभिव्यक्ति को देखकर अभिभूत हो जाती है. स्वयं मीरा को भी चित्रकारी का बहुत शौक था. अब वह मनु को मार्गदर्शन देकर अपना शौक पूरा कर लेती है.
मगर सारा काम अभि से छुपकर होता है. अभि को इन सब कोमल भावनाओं में कोई दिलचस्पी नहीं है.
उसकी नज़र में यह सब नाकारा लोगों के शौक हैं. जो जीवन में कुछ नहीं कर सकते, वे काग़ज़ों पर रंग फेंककर अपनी असफलताओं की भड़ास निकालते हैं.
मनु एक बड़ा और सफल चित्रकार बनना चाहता है. उसे फायनेंस, रुपए-पैसे, अभि के बिज़नेस में कोई दिलचस्पी नहीं है. पर मनु और मीरा दोनों ही अभि के साथ कोई बखेड़ा खड़ा करने से डरते हैं. मीरा देख रही थी मनु मन ही मन घुटता जा रहा है. उसका व्यक्तित्व कुंठित होता जा रहा है. वह पंख फैलाकर अपनी कल्पनाओं के आसमान में निर्बाध उड़ना चाहता है, लेकिन अभि मीरा की तरह उसके भी पंख काट कर उसे भी अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करेगा.
अगले कई दिनों तक अभि बहुत ज़्यादा परेशान रहा. पूरे समय फोन पर रश्मि के बारे में ही बात करता रहता.
मीरा को उत्सुकता होने लगी कि आख़िर यह रश्मि है कौन जिसने अभि जैसे आदमी को इतना विचलित कर दिया. अभि के जाने के बाद उसने ऑफिस में फोन करके रश्मि के बारे में पूछताछ की. पता चला रश्मि अभि की कंपनी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण व ज़िम्मेदारी वाला पद संभालती थी. वह अपने काम में अत्यंत परफेक्ट थी. अभि जैसा आदमी भी उसके काम में आज तक कोई ग़लती नहीं निकाल पाया. वह सबसे दुगुनी तनख़्वाह पाती थी, लेकिन कुछ दिन पहले उनका इकलौता दस साल का बेटा स्कूल में गिर गया और उसकी थाई बोन टूट गयी. उसके ऑपरेशन और देखभाल के लिए ही रश्मि को छुट्टी चाहिए थी. उसके पति नहीं हैं. वह यहां अपनी मां के साथ रहती है. आख़िर में बेटे के लिए उन्होंने अभिजीत सर की सारी टर्म्स और कंडीशन्स की धज्जियां उड़ाते हुए नौकरी ही छोड़ दी, जबकि उन्हें पैसों की सख़्त ज़रूरत है. अब सर उस काम को लेकर बहुत परेशान हैं, क्योंकि कोई भी उतना महत्वपूर्ण काम रश्मि जितनी ज़िम्मेदारी से पूरा नहीं कर पा रहा है.
मीरा को अभि पर तरस आ गया. अभि के लिए रिश्ते भी व्यवसाय थे. वह रिश्तों में भी नफ़ा-नुक़सान की नाप-तौल करता था. जबकि मीरा के लिए रिश्ते भावनात्मक थे. फ़ायदा-नुक़सान वह क्या जाने. अभि उसे कई बार किसी ज़रूरतमन्द रिश्तेदार की मदद करने पर बुरी तरह अपमानित करता था. वह उन्हीं रिश्तेदारों या लोगों से मतलब रखता, जो आगे उसके व्यवसाय के लिए लाभदायक हो सकते थे. इसलिए उसे भी वैसे ही लोग मिलते थे. उन लोगों में मीरा का दम घुटता था. अभि ने कभी मीरा को उसके जैसे भावुक, बौद्धिक और उत्साही लोगों के साथ मिलने-जुलने नहीं दिया. मीरा का मन घुटता रहता था किसी से अपनी दिल की बातें करने को. जीवन के तपते रेगिस्तान में मनु ही बस एक मधुर और आत्मीयता से भरा स्नेह निर्झर था.
व्यवसाय की तरह वैवाहिक रिश्ते के लिए भी अभि ने कई टर्म्स और कंडीशन्स तय कर रखे थे. मीरा को उसी दायरे में रहना पड़ता. जबकि मीरा निश्चल निःस्वार्थ प्रेम पर विश्वास करती थी. यहां तक कि अपने बेटे को भी अभि अपने भविष्य और कंपनी के लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहता है. उसे मनु की इच्छाओं और ख़ुशी से कोई लेना-देना नहीं है.
लेकिन आज रश्मि की हिम्मत ने उसे नई दृष्टि दी. वह अपने बेटे के लिए अपने करियर को अभि की नौकरी को ना कह सकती है तो वह अपने बेटे के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकती.
“मम्मा, देखो देश के सबसे बड़े चित्रकार लालजी ने मुझे अपने पास बुलाया है. मैंने उन्हें अपनी पेंटिंग्स की फोटोग्राफ्स भेजी थी. उनका पत्र आया है. देखो मां, तुम्हारे बेटे की कितनी तारीफ़ की है उन्होंने. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. लिखा है अगले महीने फ्रांस में होनेवाली विख्यात चित्रकारों के चित्रों की प्रदर्शनी में वे मेरा भी चित्र शामिल करवाना चाहते हैं उन्होंने तुरंत मुझे शिमला अपने पास बुलवाया है.” मनु मीरा के गले से लिपटता हुआ ख़ुशी और उत्साह से बोलता रहा.
“फ्रांस के बाद जर्मनी, फिर इंग्लैंड. ओह! मम्मा सोचो तुम्हारा बेटा दुनिया के बड़े-बड़े चित्रकारों से मिलेगा. उनका काम देखेगा, उनसे सीखेगा.”
“तुम कहीं नहीं जाओगे मनु. ये क्या पागलपन लगा रखा है तुम दोनों ने. अगले महीने तुम्हारा एम.बी.ए. का आख़िरी इम्तिहान है. बस उसके बाद तुम सीधे मेरी कंपनी ज्वाइन करोगे और कुछ नहीं.” अभि का कड़ा स्वर सुनकर मीरा और मनु दोनों चौंक गए.
पता नहीं कब अभिजीत मनु के कमरे में आ खड़ा हुआ दोनों की बातें सुन रहा था. अभि ने एक जलती हुई दृष्टि मनु की पेंटिंग्स पर डाली और हिकारत भरे स्वर में मीरा से बोला, “आख़िर तुमने अपनी मिडिल क्लास और टाइम बर्बाद करनेवाली आदतें मनु में भी डाल ही दी. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसकी ज़िंदगी से खिलवाड़ करने की. पढ़ाई की जगह तुम उसका समय ऐसी फ़ालतू चीज़ों में बर्बाद करवा रही हो. व्हाट द हेल इज़ गोइंग ऑन हियर?”
“ये फ़ालतू बातें नहीं हैं अभि. मनु को पेंटिंग करने का शौक है और वो सचमुच बहुत अच्छा चित्रकार है.” मीरा तिलमिलाकर बोली.
“नहीं, मनु सिर्फ़ एक सफल व्यवसायी ही बनेगा और कुछ नहीं.” अभि ज़ोर से चीखा.
मनु का हाथ कांप गया और पत्र उसके हाथ से गिरने को ही था कि मीरा ने मज़बूती से उसका हाथ थाम लिया.
“नहीं अभि, मनु शिमला जाएगा लालजी के पास और वही बनेगा, जो वो बनना चाहता है.” मीरा दृढ़ स्वर में बोली.
“इस घर में वही होगा जो मैं चाहता हूं. मैंने तुम्हें पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस घर में रहना है तो मेरी टर्म्स और कंडीशन्स के हिसाब से ही रहना होगा.” अभि कठोर स्वर में बोला.
“तो ठीक है मि. अभिजीत वर्मा आज मैं आपकी सारी टर्म्स और कंडीशन्स को अस्वीकार करते हुए आपकी नौकरी से रिज़ाइन करती हूं.” मीरा के ये ठंडे, मगर बहुत गहरे स्वर में बोले गए वाक्य सुनकर दो क्षण को अभि स्तब्ध रह गया और मनु आवाक् होकर मीरा का मुंह देखने लगा.
“नौकरी?” अभि तिलमिलाकर बोला, “तुम बीवी हो मेरी.”
“बीवी तुमने मुझे समझा ही कब है, और टर्म्स एण्ड कंडीशन्स तो नौकरी में ही होती हैं रिश्तों में नहीं. जब तुमने मुझे अपनी निश्चित शर्तों के दायरे में क़ैद कर लिया था, उसी दिन से मैं तुम्हारे जीवन और घर में बीवी नहीं, बल्कि बस एक एंपलॉई की भूमिका ही निभा रही थी. आज अपने बेटे की इच्छाएं और ख़ुशियों को पूरा करने के लिए मैं आपकी नौकरी से त्याग पत्र देती हूं.” मीरा ने भी पलट कर करारा जवाब दिया.
“छोड़ो मां. जाने दो मेरे लिए तुम इतना बड़ा फ़ैसला मत लो.” मनु ने विह्वल स्वर में कहा.
“नहीं मनु, जब रश्मि अपने बेटे की बीमारी के लिए इनकी नौकरी छोड़ सकती है, तो फिर मेरे सामने तो मेरे बेटे की पूरी ज़िंदगी और ख़ुशियों का सवाल है. उसके बेटे की देखभाल तो उसकी नानी और डॉक्टर्स भी कर लेते, मगर फिर भी उसने अपनी मां होने की ज़िम्मेदारी निभाई. फिर मेरे बेटे को तो ख़ुशियां देेनेवाला दूसरा कोई भी नहीं है.” मीरा बोली.
“मगर फिर भी मां…” मनु ने मीरा का हाथ पकड़कर याचना भरे स्वर में कहा.
“तुम संकोच मत करो मनु. मि. अभिजीत वर्मा को भावनात्मक रूप से कभी मुझसे या तुमसे किसी भी तरह का लगाव नहीं रहा है. ये हर इंसान को व्यावसायिक दृष्टिकोण से बस अपने फ़ायदे या नुक़सान के तराज़ू पर ही तोलते हैं. ये तो तुम्हें भी अपने बिज़नेस के फ़ायदे के लिए ही इस्तेमाल करना चाहते हैं बस. इन्हें तुम्हारी ख़ुशियों से कोई लेना-देना नहीं है. मैं तो इस घर में आज तक बस तुम्हारे ख़ातिर ही रहती आयी हूं. पर अब इनकी महत्वाकांक्षाओं की वेदी पर तुम्हारी ख़ुशियों की बलि नहीं चढ़ने दूंगी.” मीरा दृढ़ निर्णायक स्वर में बोली.
“सोच लो मीरा.” अभि व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए मीरा का उपहास करते हुए बोला, “इस घर के बाहर पैर रखते ही आटे-दाल का भाव पता चल जाएगा.”
“जब आत्मा और मन को संतुष्टि और ख़ुशी मिलती है न अभि तब दुनिया में कभी किसी बात का अभाव और डर नहीं रहता. मन प्राण का संतोष दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है. मैं और मेरा बेटा वही कमाने जा रहे हैं और देखना हम मां-बेटा कल से दुनिया के सबसे बड़े धनवान होंगे.
तुमने अपने अहं और काग़ज़ के नोटों की चमक में हमेशा हमारी छोटी-छोटी इच्छाओं और ख़ुशियों को छीनकर हमारे मन और व्यक्तित्व को दबाकर हमारे जीवन में अंधेरा रखा. अब हम अपना आसमान तलाशने जा रहे हैं. बाय मि. अभिजीत वर्मा. चल मनु अपनी पेंटिंग्स और ब्रश वगैरह का सामान पैक कर ले.” मीरा और मनु सामान पैक करने लगे. अभि ठगा-सा खड़ा रह गया. आज जीवन में दूसरी बार किसी ने उसके मुंह पर इस्ती़फे का तमाचा मारा था.
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