"ऐसा प्यार और परवाह किस काम के जो किसी की आज़ादी छीन ले. सच में दीदी तुम कितनी भाग्यवान हो कि जीजाजी कभी भी तुमसे कुछ नहीं कहते. कहीं भी आओ-जाओ, कुछ भी करो. कितनी स्वतंत्रता है तुम्हे." रेवा ने रेवती के भाग्य की सराहना की.
"नरेश बात-बात में मुझसे बहस करते हैं. हर काम में टोका-टाकी करते हैं. जब-तब हर किसी बात पर नाराज़ हो जाते हैं, जवाब तलब करते हैं. मैं तो बहुत तंग आ गई हूं दीदी.
अपनी मर्ज़ी से कहीं आ-जा नहीं सकती. ओढ़-पहन नहीं सकती. उन्हें मेरी हर बात जानना ज़रूरी होता है. हर काम में दख़ल होता है." रेवा ग़ुस्से से भुनभुनाते हुए बोली.
"पगली वो तेरी परवाह करते हैं. तुझसे प्यार करते हैं, इसलिए तेरी हर बात से जुड़ना चाहते हैं. बस सिर्फ़ इसीलिए पूछ-परख करते हैं और कुछ नहीं." रेवती ने उसे समझाया.
"ऐसा प्यार और परवाह किस काम के जो किसी की आज़ादी छीन ले. सच में दीदी तुम कितनी भाग्यवान हो कि जीजाजी कभी भी तुमसे कुछ नहीं कहते. कहीं भी आओ-जाओ, कुछ भी करो. कितनी स्वतंत्रता है तुम्हे." रेवा ने रेवती के भाग्य की सराहना की.
जवाब में रेवती के चेहरे पर एक फीकी-सी मुस्कुराहट आ गई. कह नहीं पाई वह छोटी बहन से कि भले ही नोंक-झोंक हो, चाहे झगड़ा ही होता हो, लेकिन फिर भी तेरे रिश्ते में कहीं सरोकार, संवाद और प्रेम की उष्मीय तरलता का प्रवाह तो है.
चाहे तू आज उसे समझ नहीं पा रही, लेकिन कितना तकलीफ़देह और यातनादायी होता है एक सरोकारहीन, तटस्थ, संवादहीन, प्रेम रहित रिश्ते में बंधकर रहना. ठीक बर्फ़ की परतों के बीच फैले अंधेरे, भयावह, निर्जन ठंडेपन की तरह कि आंख के आंसू और होंठों तक आते शब्द भी बर्फ़ की कतरों से वहीं जमकर रह जाते हैं…
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Photo Courtesy: Freepik
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