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काव्य- स्त्री-पुरुष (Poetry- Stri-Purush)

पुरुष खोदता है कुआं
स्त्री खिंचती है पानी

पुरुष डालता है बीज
स्त्री सिंचती है पौधा

पुरुष उगता है सूरज
स्त्री बटोरती है ऊर्जा

पुरुष लाता है अनाज
स्त्री पकाती है रोटी

पुरुष निभाता है कर्तव्य
स्त्री उठाती है ज़िम्मेदारी

पुरुष निगलता है ज़ख्म
स्त्री गुटकती है पीड़ा

पुरुष देता है कंधा
स्त्री फैलाती है आँचल

पुरुष लेता है चिंता
स्त्री ढोती है परेशानी

पुरुष रख लेता है दिल में
स्त्री ढुलका देती है गालों पर

दोनों की ज़िंदगी समकोण सी होती है
जो एक निश्चित बिंदु पर पाते हैं सुख

और तय करते हैं बराबर का संघर्ष
बराबर का दुख

दो सम रेखाओं की तरह
दोनों में प्रेम है,भाव हैं,
गुण हैं, दोष हैं,
एक-दूजे से कम न ज़्यादा
स्त्री और पुरुष हैं..

- पूर्ति वैभव खरे

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