ऑफिस से निकलते ही मेरी नज़र सामने बैठे एक प्रेमी जोड़े पर पड़ी, जो एक-दूसरे से चिपककर बैठे थें. उस जोड़े को देखकर मैं ख़्यालों में खो गई. अनुष्का ने आकर जब मेरे कंधे पर हाथ रखा तब मैं वर्तमान में लौटी.
अनुष्का ने कहा, “निशा तू जिस तरह से उस कपल को देख रही है, लगता है अपने बीते दिनों की याद ताज़ा कर रही है. क्यों सच है न...” थोड़ा झेपते हुए मैंने हां कह दिया. दरअसल, मैं जब ग्यारहवी में पढ़ती थी, तो मेरे बड़े भाई का दोस्त प्रशांत अक्सर हमारे घर आता-जाता था. तब मेरी उससे बात नहीं होती थी. एक दिन उसने मेरे मोबाइल पर फोन किया और इधर-उधर की बात करने लगा. उस दिन के बाद से फोन का ये सिलसिला काफ़ी लंबा चलता रहा.
एक दिन रोज़ डे था और उसने फोन पर ही मुझे प्रपोज़ कर दिया. मैं उसकी बात सुनकर चौंक गई, “मैंने कहा तुम मेरे भाई के दोस्त हो और मैं तुम्हें अपने भाई जैसा ही मानती हूं,” पर वो नहीं माना. रोज़ फोन करके मिन्नते करने लगा. हर बार मैं उसे मना कर देती, लेकिन उसने कोशिश करना नहीं छोड़ा. मैंने उससे कहा, “मेरे इम्तिहान आने वाले है. अतः मुझे पढ़ने दो.” उसने जवाब दिया, “तुम बस एक बार मेरे प्यार के रंग में रंगकर हां बोल दो, मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करूंगा, प्रॉमिस.” मैं फिर भी नहीं मानी.
उसने घर पर आना-जाना और फोन करना बंद कर दिया. अब मुझे उसकी कमी खलने लगी क्योंकि उससे बात करने की आदत जो पड़ गई थी. जब मुझसे रहा नहीं गया तो एक दिन मैंने ख़ुद उसे फोन किया और हां बोल दिया. प्रशांत बोला, “इतनी छोटी-सी बात बोलने के लिए निशा तुमने इतना टाइम लगा दिया. हमारा वैलेनटाइन डे भी निकल गया.”
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मैंने कहा, “अगले साल मना लेंगे.” फिर पहले की तरह हमारी बात होने लगी. हम अक्सर मिलते थे, जब मैं उसके साथ होती तो मुझे लगता कि सारी दुनियां की ख़ुशियां मेरे दामन में समा गई है. काश! व़क्त थम जाता पर व़क्त किसी के लिए नहीं थमता. एक दिन हम अलग हो गए.
दरअसल, प्रशांत के पापा इंजीनियर थे और उनका ट्रांस्फर दूसरे शहर हो गया था. जब यह ख़बर मुझे मिली तो मैं प्रशांत पर भड़क गई और प्रशांत भी गर्दन नीचे झुकाकर रोने लगा. मैंने प्रशांत को गले लगा लिया. वो बोला, “तुमसे भी ज़्यादा मैं तुम्हें प्यार करता हूं, मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहता, निशा मुझे अपने पास रख लो.” मगर ये संभव नहीं था. फिर प्रशांत अपने मम्मी-पापा के साथ दूसरे शहर चला गया. वहां से अक्सर उसका फोन आता, मगर धीरे-धीरे फोन का सिलसिला कम और फिर बिल्कुल बंद हो गया.
हम दोनों अपनी-अपनी दुनिया में मश्गूल हो गए. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद घरवालों ने मेरी शादी तय कर दी. एक दिन लड़के वाले मुझे देखने आए. चाय का ट्रे लेकर जैसे ही मैं कमरे में दाख़िल हुई मेरी आंखे फटी की फटी रह गई... क्योंकि जिस लड़के से मेरी शादी तय हुई थी वो और कोई नहीं, बल्कि प्रशांत था. सालों बाद आख़िरकार मुझे अपना प्यार मिल ही गया. शादी के इतने सालों बाद भी जब अपनी लव स्टोरी याद आती है, तो होठों पर मुस्कान बिखर जाती है.
- नूतन जैन