दिन-ब-दिन साहिल अंजली के साथ रोमांटिक होता जा रहा था जैसे कॉलेज के स्टूडेंट हो. वह अपने जज़्बात भेजते-भेजते कब उसके साथ नींद का हमसफ़र बन गया उसे होश ही न रहा. और ऐसे ही अचानक उसने आज शाम जब रात आठ बजे से अंजली को मैसेज करना शुरू किया, तो कोई जवाब नहीं मिला. उसकी बेचैनी बढ़ने लगी. चार-पांच मैसेज भेजने पर भी जब मैसेज नहीं जा पाए, तो वह चौंका. बस थोड़ी देर में ही उसे एहसास हो गया कि मैसेज ब्लॉक हो गए हैं.
वह जिन पलकों की छांव में बैठा था उसे लगा अब वहां से उठ कर चलने का वक़्त आ गया है. ज़िंदगी सिर्फ़ ख़्वाबों और ख़्यालों की अमानत नहीं होती उसे हक़ीक़त की धरातल पर भी उतरना होता है.
साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
मैं शौके इम्तहान में घबरा के पी गया…
सामने ग्लास रखा था, ग़ज़ल बज रही थी और साहिल लाल आंखों से कभी मोबाइल देखता, कभी खाली ग्लास और कभी आंखें बंद कर ग़ज़ल सुनता. उसे लगा उसकी आंखों से आंसू गिर रहे हैं, लेकिन यहां कौन था, जो उसके आंसू देखता और जब देखनेवाला कोई नहीं, तो पोंछनेवाला कौन होगा.
ज़िंदगी में अकेले होना शायद सबसे बड़ी सज़ा है. नहीं अकेले होने से बड़ी सज़ा है अकेलेपन का एहसास होना. अकेला होना और अकेलेपन का एहसास होना दो अलग बातें हैं. अकेले होना ज़िंदगी की एक उपलब्धि हो सकती है, लेकिन अकेलेपन का एहसास ज़िंदगी को तोड़ देता है, जबकि अकेले होने के बाद भी अगर किसी के साथ होने का एहसास बना रहे, तो ज़िंदगी जीना मुश्किल नहीं होता.
कौन किसे क्या देता और क्या लेता है.. गौर से देखें, तो बस सुबह-शाम रोटी-पानी का हिसाब, रहने को एक छत, कपड़े, इंटरनेट, मोबाइल, एक छोटा-सा टीवी, ठीक-ठाक सेहत और कुछ दवाएं चाहिए और क्या. दोस्त यार हों, तो और अच्छा.. न हों, तो सोशल मीडिया है ज़िंदगी की हर कमी पूरी करने के लिए.
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए…
साहिल पसंदीदा ग़ज़ल बज उठा. उसे पता था अभी ज़िंदगी की शाम दूर है. अजीब बात है भला कोई अपने ज़िंदगी और मौत की भविष्यवाणी कैसे कर सकता है. कहते हैं, यहां अगले पल का भरोसा नहीं और प्लानिंग हम बरसों की करते हैं.
साहिल कभी बोतल को देखता, कभी ख़ुद को.. उसे हंसी आ रही थी कि इतनी पीने के बाद तो उसे नींद की आगोश में उतर जाना था, जबकि उसे आज नशे का एहसास ही नहीं हो रहा था. उसने सिगरेट सुलगाई और बालकनी में टहलने लगा.
यह ज़िंदगी इंसान को इतना अकेला क्यों कर देती है यह सवाल उसके दिलोदिमाग़ को चैन नहीं लेने दे रहा था.
फिर उसने सोचा अकेला तो वह काफ़ी सालों से है, फिर आज यह बेचैनी क्यों? उसे लगा कि जो दो पैग उसने पी है उसका नशा भी धीरे-धीरे उतरने लगा है.
वह न उसके साथ तब थी, न अब है और यह हक़ीक़त है आगे भी कभी नहीं होगी. तो आज उसके न होने पर यह बेचैनी क्यों है? बस, यही तो एहसास है, जिसे इंसान को समझना है.
यह कहानी शुरू होती है फेसबुक चैप्टर तीन से.
सोशल मीडिया पर खोए हुए लम्हों को ढूढ़ लेने की बीमारी एक ख़तरनाक रोग बन बैठी है. उसे हंसी आई उसका साथ ही नहीं हुआ, तो ब्रेकअप कैसे हो गया. ज़मीं पर तो कुछ था ही नहीं, जो कुछ था वह उसके ख़्वाबों ख़्यालों की दुनिया थी.
उसे लगा इश्क़ एक बीमारी है, बीमारी किसी से पूछ कर तो दस्तक नहीं देती. यही हुआ था उसके साथ. उसे पता था उसकी नींद लैपटॉप में क़ैद है. अगर वह लैपटॉप खोल ले, तो बस दस मिनट में सो जाएगा. मगर किसके लिए लैपटॉप पर बैठे. अब शायद कुछ नहीं बचा था कि वह फेसबुक पर आए. फेसबुक चैप्टर थ्री…
ढलती जाए रात, कर ले दिल की बात.. शमा परवाने का न होगा कभी साथ… ये गाने उसे दीवाना बना देते हैं. उसका दिल हुआ उठे और ब्लू टूथ ऑफ कर दे. यह उसकी ही प्ले लिस्ट थी, जिसमें वह डूब जाता था. उसने नेक्स्ट फारवर्ड कर दिया. हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए, सागर में ज़िंदगी को उतारे चले गए…
उसे लगा यह ठीक है. रात के दो बजे थे. अचानक उसके हाथ लैपटॉप पर चले गए. टेबल पर खाना लगाकर दीपक बगल के सर्वेंट रूम में सो गया था. उसने जैसे ही लैपटॉप ऑन किया, ऑटो रिफ्रेश होकर मेल लिस्ट आ गई.
अंजली, अरे यही तो वह बीमारी थी, जिसका इलाज उसे आज इतना पीने के बाद भी नहीं मिल रहा था. अचानक उसका नशा काफ़ूर हो गया.
अंजली, उसे यहीं मिली थी इसी लैपटॉप पर फेसबुक में. अनजाने ही उसे अंजली से प्यार हो गया था. दोनों घंटों बातें करते और अब तो जैसे साहिल के रोज़ का रूटीन हो गया था. दिनभर ऑनलाइन अंजली से कुछ न कुछ कहते रहना. वह भी कुछ मना नहीं करती और साहिल के कदम बहकने लगे.
दिन-ब-दिन साहिल अंजली के साथ रोमांटिक होता जा रहा था जैसे कॉलेज के स्टूडेंट हो. वह अपने जज़्बात भेजते-भेजते कब उसके साथ नींद का हमसफ़र बन गया उसे होश ही न रहा. और ऐसे ही अचानक उसने आज शाम जब रात आठ बजे से अंजली को मैसेज करना शुरू किया, तो कोई जवाब नहीं मिला. उसकी बेचैनी बढ़ने लगी. चार-पांच मैसेज भेजने पर भी जब मैसेज नहीं जा पाए, तो वह चौंका. बस थोड़ी देर में ही उसे एहसास हो गया कि मैसेज ब्लॉक हो गए हैं.
उसके आंसू निकल पड़े. अंजली यह क्या?.. कुछ बुरा लगा, तो मुझे कह दिया होता. मैं ख़ुद ही किसी मोड़ पर ठहर जाता. कम से कम इस तरह बिना बताए मुझे ब्लॉक कर देना… तुम नहीं समझोगी अंजली मैं तुम्हें कितना चाहता हूं और अब तो मैं तुम्हारे शहर आ कर तुमसे मिलने का प्लान भी बना रहा था. मैंने होटल की बुकिंग भी कर दी थी. ओह! लेकिन नहीं यह सच था कि अंजली अब उससे बात नहीं करना चाहती.
फिर अचानक यह मेल… साहिल, आई एम सॉरी, तुम पुरुष कभी स्त्री और उसकी भावना नहीं समझ सकते. मैंने तुमसे इसलिए बात करना शुरू किया कि मुझे सचमुच तुम डिसेंट और डैशिंग लगे. ज़िंदगी में हल्का-फुल्का रोमांस किसे अच्छा नहीं लगता. तुम्हारी बातें मुझे हंसाती और गुदगुदाती रहीं. लेकिन इधर कुछ दिनों से तुम्हारी बातों के उद्देश्य बदल गए और तुम न जाने क्या-क्या बहकी-बहकी बातें करने लगे. और जब तुमने अपने ख़्वाबों में ही मुझसे मिलने और वह भी होटल में अकेले मिलने की फैंटेसी कर डाली, तो मुझे रुकना पड़ा. मैं तुम्हारे ख़्वाब के आगे एक मां और किसी की पत्नी भी हूं. चैट एक और बात है, लेकिन उसे हक़ीक़त में बदल लेने का सपना, सपना तो हो सकता है हक़ीक़त नहीं, क्योंकि तब मेरी अच्छी भली चलती हुई ज़िंदगी ख़राब हो जाएगी.
सच कहूं, तो उस दिन मैं हिल गई थी, जिस दिन तुमने अपनी बेडरूम फैंटेसी मुझे शेयर की. जानते हो उस दिन रात के दस बजे थे और मैं अपने बेटे के सिरहाने बैठी उसके सिर पर पट्टियां रख रही थी. वह बुखार से तप रहा था. यह जो सोशल मीडिया है यह इंसान की असली सूरत कहां देख पाता है. तुम्हें जब रात में मेरे भीतर ग्लैमर दिख रहा था, उस वक़्त मैं भीतर से इस तरह टूटी थी कि मुझे होश नहीं था कि हो क्या रहा है. वह तो शुक्र है मेरे पति इतने अच्छे हैं कि उन्होंने मेरी हालत देख लैपटॉप ऑफ कर दिया. वैसे भी वो मेरी प्राइवेसी में दख़ल नहीं देते.
हमारे बीच न पहले कुछ था, न अब कुछ है. यह सब एक सपनों की दुनिया है, जो हक़ीक़त नहीं हो सकती. जो ख़ुशी के लम्हे तुमने दिए उसका शुक्रिया, हां अब बस क्योंकि इसे हक़ीक़त में बदलने की कोशिश मुझे ख़त्म कर देगी…
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ओह, तो वह ग़लत सोचता था. हां, वह हमेशा ही ग़लत सोचता है. कितनी दूर निकल जाता है वह किसी का साथ पाते ही. वह जानता है कि उसकी दीवानगी में कोई उसका साथ नहीं दे सकता. उसका नशा उतर गया था. उसने आवाज़ दी, "दीपक, ज़रा खाना गरम कर दो."
और दीपक जो सोने और जागने में फर्क़ ही नहीं जानता था, क्योंकि वह इतने बड़े साहब के यहां काम करता था कि बड़े बड़े लोग साहब से मिलने के लिए उसे सलाम करते थे.
वह खाना गरम करने उठ गया. साहिल सोचने लगा, इसका रिवर्स भी तो हो सकता था. अगर वह इस सोशल मीडिया के चक्कर में पड़ कर अपनी बेडरूम फैंटेसी को हक़ीक़त में बदलने की कोशिश करता. ओह गॉड! वह भी तो शादीशुदा है और उसकी पत्नी कितना भरोसा करती है उस पर और उसका घर-परिवार कितना प्यार करते हैं सब उसे. अभी उसने कोई ग़लत कदम उठाया नहीं था. आज के ज़माने में यह जो सोशल मीडिया है, जिसने ख़्वाब और हक़ीक़त के फ़ासले को मिटा दिया है.
दीपक खाना गर्म कर ले आया. दो चपाती, मटर पनीर, आलू गोभी की सूखी सब्ज़ी. उसे भूख लग गई थी.
"साहब, कल मेमसाहब और रवि भैया आ रहे हैं फोन आया था."
साहिल के कान खड़े हो गए, "तुमने मुझे पहले नहीं बताया."
"वो आप काम में बिज़ी थे इसलिए बोला नहीं."
उसे हंसी आई. दीपक क्या सभी डरते हैं कि कहीं साहब को टोका, तो पता नहीं क्या हो. साहब के मूड का कुछ पता नहीं होता.
तभी दीपक बोला, "पूरा बंगला साफ़ करा दिया है और दोनों बेडरूम में नई धुली चादर बिछा दी है. कल से रामवती भी आएगी खाना बनाने. बस, आपका कमरा बाकी है. पप्पू को बोल दिया है सुबह ही आकर सफ़ाई कर जाएगा."
साहिल ने बड़े प्यार से दीपक को देखा, "बहुत समझदार हो गए हो."
वह हंसा, "आपके साथ काम करना आसान थोड़ी है."
साहिल ने कपड़े चेंज कर नाइट सूट डाला. "दीपक, ये कपड़े वॉशिंग मशीन में डाल देना और कमरे का हर कोना साफ़ करा देना और वो जो दो-चार खाली बोतलें पड़ी हैं सुबह ही फिंकवा देना."
"जी साहब." वह सोचने लगा अगर दीपक न हो, तो उसे कौन संभालेगा.
"और सुनो, इस छुट्टी में जब घर जाना हो बता देना, वो बच्चों को कुछ सामान भेजना है."
"अरे साहब, अब क्या भेजना है. सब कुछ तो घर में है आपका दिया हुआ."
"वह तुम नहीं समझोगे और अब मुझे सोने दो."
साहिल को पता था दीपक सुबह ही रूम साफ़ करा देगा, लेकिन दिल, दिमाग़, लैपटॉप और मोबाइल तो उसे ही साफ़ करना था. उसने हिस्ट्री डिलीट की. मोबाइल के मैसेज क्लीन किए और माइंड को फैक्टी री सेट पर लाने की कोशिश करने लगा. उसके दिल ने कहा- बहुत बड़े हादसे से बचे हो. कहीं फैंटेसी सच हो जाती, तो अपने ही आपको क्या जवाब देते. यही वह सपनों का परिवार है, जो तुमने बीस साल में बनाया है. इसे ही तुम इस उम्र में अपने दो मिनट के सुख के लिए दांव पर लगाने चले थे…
लेकिन नहीं यह भी तो एक स्त्री का एहसान था, जो उसे बर्बाद होने से बचा गई थी. उसके दिल में आया वह मैसेज करे- थैंक्यू अंजली… लेकिन मैसेज ब्लॉक था. उसने फेसबुक वॉल पर लिखा- थैंक्स. नीचे बस इतना लिखा- नथींग इज़ परमानेंट. तुम मुझसे नाराज़ हो सकते हो दूर नहीं ऐ दोस्त.. जुदा तो वे होते हैं, खोट जिनकी चाहत में होती है…
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