"उस रात क्या तुमने सोचा था की आज से 20-22 साल बाद ठीक इसी वक़्त मैं इस लड़की के साथ होऊंगा? नहीं न? लेकिन आज अगर हम साथ है, तो इसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही वजह है और वो है हमारे बीच का प्यार. तुम्हे सर्दियों में आइसक्रीम खाना पसंद नहीं, फिर भी तुम खा रहे, क्योकि ये मुझे पसंद है ये भी तो प्यार ही है. तुमने देखा है मेरे बाल सफ़ेद होने लगे है, लेकिन क्योकि तुम अपने बालों में कलर नहीं करते मैं भी नहीं करती ये प्यार ही है शिवम. उम्र के इक पड़ाव के बाद प्यार जताया नहीं जाता उसे सिर्फ़ साथ रहकर निभाया जाता है, जो तुम बहुत अच्छे से निभा रहे हो..."
हम सब की ज़िंदगी में कोई न कोई ऐसा दिन ज़रूर होता है, जो हमारे लिए बहुत ख़ास होता है, फिर चाहे वो हमारी किसी बड़ी उपलब्धि की बात हो या फिर हमे मिली कोई ख़ास याद हो. शिवम की ज़िंदगी में वो दिन था 11 नवंबर.
11 नवंबर के दिन उसका जन्मदिन होता है. 11 नवंबर के ही दिन मेघा का भी जन्मदिन होता है. मेघा कोई और नहीं वही लड़की है, जिसको आज से 24 साल पहले शिवम ने अपना दिल दिया था और फिर उसे अपना बना लिया था. आज मेघा, शिवम की पत्नी है. मेघा और शिवम का जन्मदिन एक ही दिन होता है. शिवम ने मेघा को आज के ही दिन यानी की 11 नवंबर को पहली बार देखा था. 11 नवंबर के ख़ास होने के पीछे एक लंबी कहानी है.
आज से 45 साल पहले 11 नवंबर 1974 की रात डेढ़ बजे लखनऊ में मिस्टर सिंह के घर एक लड़के का जन्म हुआ था. उन्होंने इसका नाम शिवम रखा. वहीं लखनऊ से सैकड़ों किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के अंबिकापुर शहर में 11 नवंबर 1974 की शाम 5 बजे मिस्टर शुक्ला के घर एक बेटी पैदा हुई थी. उस समय अंबिकापुर मध्य प्रदेश का ही भाग हुआ करता था. शुक्ला परिवार ने इसका नाम मेघा रखा.
वैसे तो दोनों बहुत दूर-दूर पैदा हुए थे. दोनों परिवारों के बीच जान-पहचान तो छोड़ो, मिस्टर सिंह ने अंबिकापुर में रहने वाले किसी शुक्ला परिवार के बारे में सुना तक नहीं था. शुक्ला परिवार तो क्या मिस्टर सिंह ने अंबिकापुर के बारे में ही सिर्फ़ समाचार में सुना था, लेकिन उनकी भी क़िस्मत बेटे के जन्म के साथ ही लिखी जा चुकी थी. बच्चे सिर्फ़ अपनी तकदीर ही नहीं, अपने मां-बाप की तकदीर लेकर भी पैदा होते है और मेघा और शिवम् अपने मां-बाप की तकदीर के उन हिस्सों को लेकर पैदा हुए थे, जो उनके मां-बाप की हथेलियों में बनी लकीरों में कहीं धुंधली पड़ चुकी थी. दोनों के पैदा होने के साथ ही वो धुंधली लकीरें गहराने लगी थी. उनमे लिखी क़िस्मत चमकने को थी. खैर अभी इनके मिलने में कई सालों का समय बाकी था.
शिवम और मेघा ने लगभग एक ही समय पर चलना शुरू किया था. लगभग एक ही समय पर बोलना. दोनों को तीन पहियेवाली साइकिल भी लगभग एक ही समय पर मिली थी. दोनों ने एक ही समय पर स्कूल जाना शुरू किया था. दोनों साथ-साथ बढ़ रहे थे, ताकि मिल सकें. मेघा ने अंबिकापुर से ही कॉलेज किया और शिवम ने लखनऊ से. दोनों का कॉलेज साथ ही ख़त्म हुआ था और फिर समय आ गया था उनके मिलने का.
अगस्त का महीना था. दिल्ली में बारिश जारी थी. लखनऊ से दिल्ली जाने वाली ट्रेन अपने निर्धारित समय से कुछ देरी से दिल्ली स्टेशन पहुंची थी. शिवम ने अपना सामान समेट स्टेशन के बाहर एक रिक्शे में रखा और दिल्ली यूनिवर्सिटी के हॉस्टल की तरफ़ चल पड़ा था. वहीं मेघा शिवम के दिल्ली आने से 4 दिन पहले ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के गर्ल्स हॉस्टल में अपना सामान व्यवस्थित कर चुकी थी.
जोड़ियां बेशक आसमान में बनती होंगी, लेकिन धरती पर कॉलेज इसीलिए बनाए गए हैं, ताकि वो जोड़ियां आपस में मिल सकें, वरना एक पंजाब का लड़का किसी राजस्थान की लड़की को अपना दिल कैसे दे बैठता. एक साउथ इंडियन लड़की किसी मुंबई के लड़के से कैसे शादी कर लेती और फिर ये उत्तर प्रदेश का लड़का शिवम मध्य प्रदेश की मेघा से कैसे मिलता.
शिवम को दिल्ली आए दो महीने आसानी से बीत गए. कॉलेज का तीसरा महीना चालू था. दिल्ली में गुलाबी सर्दियां शुरू हो चुकी थी. शिवम और मेघा एक कॉलेज में, लेकिन अलग-अलग कोर्सेज में होने की वजह से अब तक मिल नहीं सके थे. सर्दियां बढ़ती रही और समय बीतता रहा. सुबह की धूप सबको अच्छी लगने लगी थी. गर्ल्स हॉस्टल में सुबह चाय और धूप के साथ रेडियो पर गाने बजते रहते. वहीं बॉयज हॉस्टल में लड़के धूप में नहाने लगे थे. ऐसे करते अक्टूबर कब बीत गया किसी को पता ही नहीं चला. नवंबर का महीना था. दिल्ली हड्डियों को जमा देने वाली ठंड के साथ इश्क़ में थी.
10 नवंबर की रात बॉयज हॉस्टल में ख़बर फैल गई की अगले दिन शिवम का जन्मदिन है. देर रात बधाई देने के साथ ही सब ने शिवम को अगले दिन कैंटीन में पार्टी के लिए तैयार कर लिया था.
अगली सुबह जहां शिवम के दिन की शुरुआत दोस्तों के साथ धूप में नहाने से हुई थी, वहीं मेघा ने अपना दिन मंदिर जाकर शुरू किया था. दोपहर में मेघा ने भी सहेलियों को कैंटीन में पार्टी दी. शिवम और मेघा कुछ ही दूरी पर अलग-अलग टेबल्स पर बैठे थे. शिवम ने दोस्तों के लिए केक के साथ, नाश्ते और ड्रिंक्स का ऑर्डर किया था. मेघा ने भी अपनी सहेलियों के लिए कई चीज़ें मंगवाई थी. कुछ ही देर में वेटर आया था. उसने शिवम् के नाम वाला केक उसके सामने रखा ही था कि उसके एक दोस्त ने वेटर के हाथ में दूसरे केक को देखकर सवाल किया की दूसरा केक किसके लिए है.
वेटर ने बताया की लड़कियों के टेबल से भी केक का ऑर्डर है और किसी लड़की का जन्मदिन है. ये बात सुनकर शिवम को अचरज हुआ था. मतलब कोई लड़की है, जो आज के ही दिन पैदा हुई थी. उसने एक नज़र लड़कियों के टेबल की तरफ़ देख अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कि आख़िर वो लड़की कौन हो सकती है. मगर आपस में बातों में उलझी हुई लड़कियों को देख उसे अंदाज़ा नहीं हुआ की वो लड़की कौन हो सकती है. जल्द ही शिवम के केक पर मोमबत्तियां लगाई जा चुकी थी. बगल के टेबल पर भी कुछ ऐसा ही मौहाल था. शिवम ने मोमबत्ती बुझाकर केक काटा. उसके दोस्तों ने तालियां बजाई और केक खाना शुरू कर दिया था. दोस्तों को केक खिला वापस से शिवम की नज़र लड़कियों के टेबल की तरफ चली गई थी.
नीले रंग के नए सलवार कमीज और बालों को इकठ्ठा कर बनाई गई एक हाई पोनी टेल वाली लड़की शिवम की तरफ़ ही देख रही थी. लड़की के नए कपड़ो से शिवम ने अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कि शायद आज उसी लड़की का जन्मदिन था और लड़कों की बजती हुई तालियों ने लड़की को इस तरफ़ आकर्षित किया था. शायद उसने भी यही सोचकर की उसके साथ आख़िर किस लड़के का आज जन्मदिन है इधर देख लिया था और फिर शिवम के हाथ में केक लगा चाक़ू देख उसने शायद अंदाज़ा भी लगा लिया था की बर्थडे बॉय यही है. ये मेघा और शिवम की पहली मुलाक़ात थी. सिर्फ़ आंखों ही आंखों में.
आगे चलकर जीवनभर साथ रहने वाले लोग जब पहली बार एक-दूसरे की आंखों में देखते होंगे, तो वो ऐसा क्या देखते होंगे, जो वो बाकी लोगो की आंखों में नहीं देख पाते हैं. शायद वो आंखों ही आंखों में देख जाते होंगे कई अनकही कहानियां. शायद वो देख जाते होंगे समर्पण. शायद वो देख लेते होंगे सच्चाई. शायद वो देख लेते होंगे अपने लिए ठहराव. अभी शिवम और मेघा एक-दूसरे की आंखों में ऐसा ही कुछ खोजने की कोशिश में थे जब शिवम के दोस्त ने उसे “क्या देख रहा है?” कहकर मेघा की आंखों से बाहर खींच लिया था. उसके साथ ही मेघा भी शिवम की आखों से बाहर चली गई थी. शिवम ने कोई जवाब नहीं दिया. जल्दी ही लड़कियों का ग्रुप कैंटीन से बाहर जा चुका था.
देर शाम दिल्ली ठंड की आगोश में घुलती रही. कोहरे की चादर शहर को अपने आप में समेटती रही. शिवम ने नजदीक के एसटीडी बूथ जाकर घर पर फोन करने का विचार किया और फिर अपना पर्स जेब में डालते हुए बाहर की तरफ़ निकल गया था.
थोड़ी ही देर में शिवम एसटीडी बूथ पर था. उसने ख़ुद को कांच के कमरे में बंद कर घर का नंबर लगाया था. उसकी बात मां से शुरू हो चुकी थी. बात शुरू हुए चंद मिनट ही बीते थे की शिवम की नज़र एसटीडी बूथ के बाहर की तरफ़ गई. एक लड़की ख़ुद को शॉल में लपेटे शिवम के फोन रखने का इंतज़ार बूथ के बाहर कर रही थी. ये वही सुबह कैंटीन वाली लड़की थी. शिवम माँ की बातों को भूल उसे देखता रहा. लड़की इस बात से अनजान की कोई उसे देख रहा है शिवम् के बाहर निकलने का इंतज़ार करती रही. शिवम ने उसे फ़ुर्सत से देखना शुरू किया था.
क़रीबन 5 फ़ीट 5 इंच का कद. कमर तक लंबे बाल. ठंड से गुलाबी पड़ चुका चेहरा. गुलाबी ही रंग का सलवार कमीज जो उस लड़की के चेहरे को और भी गुलाबी बना रहा था. उसने गुलाबी कपड़ों के ऊपर काले रंग का शॉल ओढ़ रखा था.
वो बीच-बीच में अपनी पानी हो रही हथेलियों को आपस में रगड़ उन्हें गर्म करने की कोशिश करती जा रही थी. अभी उसने एक बार फिर से अपनी हथेलियां रगड़ चेहरे से लगाई ही थी की मम्मी की "हेलो… हेलो" की रिसीवर से आ रही आवाज़ ने शिवम् का ध्यान तोडा था.
“जी, जी मम्मी.” कहते हुए शिवम ने वापस फ़ोन पर ध्यान लगाया था.
“हां ठीक है ध्यान रखूंगा.आप भी ध्यान रखना.” कहकर शिवम ने फोन रख दिया और पीसीओ बूथ से बाहर आ गया. शिवम के बाहर आते ही मेघा बूथ के अंदर पहुंच गई थी. उसने शिवम के चेहरे की तरफ़ ध्यान नहीं दिया था, पर शिवम अभी कुछ और देर उसे देखना चाहता था. वो उसके चेहरे के पल-पल बदलते भावों को पढ़ना चाहता था. उसकी आंखों में एक बार फिर से देखना चाहता था.
उसने सामने चाय की दुकान पर पहुंच चाय का ऑर्डर दिया और पीसीओ बूथ को देखता रहा. मेघा लगातार फोन पर बात कर रही थी. शिवम चुपचाप उसे देख रहा था, जब अचानक मेघा ने उसकी तरफ़ देख लिया था. दोनों की आंखें फिर से मिल गई थी. शिवम ऐसी किसी बात के लिए तैयार नहीं था. मेघा के अचानक से देख लेने से वो बेचैन हो उठा था. उसने हड़बड़ाते हुए आंखें नीचे कर ली थी. मेघा कुछ और देर तक बात करती रही और फिर फोन रख कर बाहर आ गई.
मेघा के फोन रखते ही शिवम् वापस हॉस्टल की तरफ़ चल पड़ा था. मेघा ने पैसे दिए और शिवम के पीछे ही हॉस्टल के लिए चल दी. गर्ल्स हॉस्टल और बॉयज हॉस्टल का रास्ता एक ही था. स्ट्रीट लाइट की रोशनी में दोनों कुछ ही दूरी पर चल रहे थे. खाली सड़क पर सूखे पत्तों के पैर पड़ने से टूटने की आवाज़ आसानी से सुनी जा सकती थी. मेघा ने शॉल अपने चारों तरफ़ लपेट रखा था, वहीं शिवम अपनी पैंट की जेब में हाथ डाले आगे-आगे चल रहा था. कुछ दूरी बीत जाने के बाद मेघा ने ही शिवम को आवाज़ दी थी.
“अरे सुनो.”
मेघा के इतना कहते ही शिवम के कदम ठहर गए थे. उसने पीछे की तरफ़ पलटते हुए मेघा की ओर देखा था.
“कौन मैं?” शिवम् ने अपने हाथ से ख़ुद की तरफ़ इशारा करते हुए सवाल किया.
मेघा ने सिर हिला कर हां में जवाब दिया था. हां का जवाब मिलते ही अपनी जगह पर रुके हुए शिवम् ने कहा.
“हां बोलो.”
उसके इतना कहते ही मेघा ने उसकी तरफ़ चलना शुरु कर दिया था और फिर उसके नजदीक आकर ठहर गई थी.
“तुम वही हो न जो आज सुबह कैंटीन में केक काट रहे थे.” मेघा ने नजदीक पहुंच वापस से सवाल किया था.
“हां, क्यों?” शिवम ने बदले में बस इतना ही कहा.
“नहीं कोई ख़ास बात नहीं है, बस अच्छा लगा देखकर की कोई ऐसा है जिसका जन्मदिन मेरे जन्मदिन के साथ आता है और फिर तुम्हे अभी देखा तो आवाज़ दे दी. खैर जन्मदिन की शुभकामनाएं.” मेघा ने धीरे-से कहा था.
“थैंक यू एंड विश यू द सेम. वैसे मैंने भी तुम्हे कैंटीन में देखा था. कितना अजीब है न आज हम दोनों का ही जन्मदिन है और हम दोनों ही अकेले है. एक-दूसरे को विश कर रहे हैं. हर साल कितना कुछ होता था घर पर, लेकिन इस साल मैं बिल्कुल अकेला हूं. तुम्हारा पता नहीं, लेकिन मैंने अपना जन्मदिन आज से पहले इतना अकेले कभी नहीं बिताया. थैंक यू सो मच, सच में मुझे इस वक़्त अकेले बहुत बुरा लग रहा था.“ शिवम ने वापस से हाथ अपनी पैंट की जेब में डालते हुए कहा था.
“अरे इट्स ओके, अकेलापन तो मुझे भी लग रहा था. मैंने भी आज से पहले अकेले रहकर अपना जन्मदिन नहीं बिताया है. हर साल घर पर पूजा होती थी. फिर कुछ दोस्तों और परिवार के साथ छोटी-सी ही सही पर पार्टी होती थी. और आज सुबह सब ने विश किया और अब किसी को याद भी नहीं की आज कुछ है भी या नहीं.”
“अच्छा मतलब तुम भी इसी साल घर से आई हो?”
“हां, कुछ महीने पहले ही दिल्ली आई हूं. घर की बहुत याद आ रही थी, तो बहन से बात करने आ गई.”
“ओह, मैं भी अगस्त में ही आया हूं. उसके पहले मैं लखनऊ में रहता था अपने परिवार के साथ. सुबह मम्मी का फोन आया था, तो बात हो नहीं पाई, इसलिए अभी बात करने आ गया था.” दोनों हॉस्टल की तरफ़ चल पड़े थे.
“वैसे मैं लखनऊ से हूं और तुम?” शिवम् ने बातों बातों में ही कहा.
“मैं अंबिकापुर से हूं."
“ओके, तो तुम यहां यूनिवर्सिटी हॉस्टल में रहती हो?”
“हां, दिल्ली में अपना कोई है नहीं.”
“मैं भी यूनिवर्सिटी हॉस्टल में ही रहता हूं और एमएससी का स्टूडेंट हूं. तुम?”
“मैं एमए कर रही हूं.”
“ओह, वैसे देखो हम दोनों लगभग एक से समय से दिल्ली में हैं, एक ही कॉलेज में हैं, लेकिन आज तक मिलना तो दूर टकराए भी नहीं और मिले भी तो आज के दिन जब हमारे जन्मदिन हैं. कैसा इत्तेफ़ाक़ है, है न…” शिवम ने पैदल चलते हुए मेघा की तरफ़ देख कर कहा.
“इत्तेफ़ाक़ नहीं शायद भगवान भी नहीं चाहते थे की आज के दिन हम दोनों अकेले बोर होते रहे, इसलिए हम दोनों मिल गए. वैसे मेरा हॉस्टल आ गया है.” मेघा ने रुकते हुए कहा. शिवम ने देखा की गर्ल्स हॉस्टल आ चुका था.
“अरे, बातों बातों में पता ही नहीं चला की कब हॉस्टल आ गया. खैर कुछ पल ही सही, लेकिन अच्छा लगा तुमसे मिल कर." शिवम ने चलने के इरादे से कहा.
“मुझे भी. चलो बाय एंड हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन.”
“थैंक यू एंड यू टू हैप्पी बर्थडे.” कहते हुए मेघा हॉस्टल की तरफ़ चल पड़ी थी. फिर उसने रुकते हुए कहा, “अरे, तुमने अपना नाम तो बताया ही नहीं.”
“सॉरी, वैसे मेरा नाम शिवम सिंह है.” शिवम ने कुछ दूर खड़े ऊंची आवाज़ में बताया.
“नाइस टू मीट यू शिवम, माई नेम इज मेघा शर्मा एंड गुड नाइट." मेघा ने भी उसी ऊंची आवाज़ में कहा और मुस्कुराते हुए गर्ल्स हॉस्टल की तरफ़ चल पड़ी थी.
एक ही कॉलेज में होने की वजह से दोनों कभी न कभी टकरा ही जाते. कभी कॉरिडोर में, कभी कैंटीन में, तो कभी मार्किट में. हर मुलाक़ात पर थोड़ी "हाय हेलो" हो जाती. आज के ज़माने की तरह तब रोज़-रोज़ मिल पाना, मिलते ही नंबर एक्सचेंज कर लेना संभव नहीं था. छोटी-सी मुलाक़ात के लिए कई दिन तक इंतज़ार करना होता था. छोटी-सी बात कहने के लिए कई महीनो तक भटकना पड़ता था. मेघा और शिवम की हर मुलाक़ात पर कुछ बातें होती और बहुत सारी बातें अधूरी रह जाती.
वक़्त बीतता रहा. सर्दियां बीतती रही. फ़रबरी का महीना लग चुका था. गुलाबी ठंड जा चुकी थी. दिन बड़े और रातें छोटी होने लगी थी. शिवम जब भी गर्ल्स हॉस्टल के सामने से गुज़रता न चाहते हुए भी एक नज़र मेघा को खोजते अंदर की तरफ़ चली ही जाती. बॉयज हॉस्टल से गर्ल्स हॉस्टल की खिड़कियों को देख वो अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता की आख़िर किस खिड़की में मेघा रहती होगी.
मार्च का महीना लग गया था. दिल्ली और दिल दोनों तपने लगे थे. शाम क़रीबन सात बजे शिवम एक बार फिर घर बात करने के इरादे से पीसीओ बूथ पहुंचा था. उसने बात ख़त्म की ही थी की सामने से मेघा आती हुई नज़र आ गई थी. मेघा ने उसे एक मुस्कान दी और बूथ के अंदर चली गई थी. शिवम बाहर मेघा का इंतज़ार करने लगा. मेघा जल्द ही बाहर आई थी. बाहर आते ही दोनों बिना कुछ कहे वापस जाने को साथ-साथ चल पड़े थे. इस बार बात शिवम ने ही शुरू की.
“तो कैसा चल रहा है सब?”
“सब ठीक ही है. अगले हफ़्ते होली की छुट्टियां हैं, तो घर जाने वाली हूं.”
“अरे हां, अगले हफ़्ते तो होली है, मुझे तो याद ही नहीं था.”
“क्यों तुम घर नहीं जा रहे?”
“जाऊंगा, बस तारीख़ याद नहीं थी. अच्छा हुआ तुमने याद दिला दिया.”
शिवम के इतना कहते ही एक लंबी ख़ामोशी फ़ैल गई थी. एक बार फिर दोनों स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में साथ-साथ चल रहे थे. पत्तो के टूटने की आवाज़ फिर से आ रही थी. बात दोनों ही करना चाहते थे, लेकिन क्या दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था. कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मेघा का हॉस्टल आ गया था. उसने शिवम् को बाय कहा और अंदर जाने को चल पड़ी थी. शिवम भी बाय बोल वापस जाने को मुड़ गया था. फिर अचानक से वापस घुमते हुए शिवम ने मेघा को आवाज़ दे दी थी.
“मेघा?”
“हां?” इतना सुनते ही मेघा तेज़ी से पलटी थी जैसे उसे इस बुलावे का इंतज़ार था.
“दोपहर दो से तीन तुम्हारा लेक्चर रहता है क्या?” शिवम ने नजदीक आकर कहा.
“नहीं, क्यों?”
“वो मैं सोच रहा था कि अगर तुम बुरा न मानो और खाली हो तो कल कॉफी पीने चले.”
“ओके.” मेघा ने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया था.
मेघा की हां होते ही शिवम के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई थी. वो ज़ोर से उछलना चाहता था.
“ठीक है फिर कल दो बजे मिलते है कैंटीन में.” शिवम् ने अपना उत्साह दबाते हुए कहा.
“ठीक है.” कहकर मेघा वापस जाने को मुड़ गई थी. उसके मुड़ते ही वही उत्साह वाली ख़ुशी मेघा के चेहरे पर भी देखी जा सकती थी. उसकी मुस्कान ऐसी थी जैसे वो कह रही हो की शिवम् पूरे पागल हो तुम. कॉलेज कैंटीन में होने वाली मुलाक़ातें जल्द ही बाहर कैफे तक जा पहुंची थी.
समय बीतता रहा और दोनों नजदीक आते रहे. गर्मियां बीत बारिश आई, तो शिवम व मेघा और भी घुल मिल गए थे. वापस से सर्दियों के आते ही दोनों प्यार में थे. दो साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. अगली गर्मियों तक दोनों ने साथ-साथ रहने और साथ जीवन बिताने का निर्णय कर लिया था. दिल्ली ने कई सारे मौसम देखे और उनमें से एक मौसम मेघा और शिवम के प्यार का भी था.
दोनों की शादी हो गई. दोनों ही वृश्चिक राशि के थे. दोनों एक ही स्वभाव के थे दोनों ही उम्रभर एक-दूसरे के साथ इश्क़ में रहे. समय कैसे बीता दोनों को पता ही नहीं चला. शादी को 22 साल बीत गए. 22 साल में दोनों ने ख़ूब तरक़्क़ी की. दो बच्चो के मां-बाप बन गए. बच्चे बड़े होकर बाहर रहने लगे. दोनों के बीच प्यार तो रहा, पर उसको प्रदर्शित करने का तरीक़ा अब दोनों ही भूल चुके थे.
11 नवंबर 2019
दिवाली बीत गई थी. आज सुबह से शिवम कुछ खोजने में व्यस्त था जब अचानक से मेघा आई. उसके हाथ में पूजा की थाली थी. उसने शिवम को टीका लगाया और जन्मदिन की शुभकामनाएं… बोल उसके चेहरे को ताकती रही थी.
“हैप्पी बर्थडे मेघा.” कहकर शिवम ने प्यार से मेघा के चेहरे पर हाथ फेरा था.
“लाइए मेरा तोहफ़ा?” कहते हुए मेघा ने अपना हाथ आगे कर लिया था.
“बताओ क्या चाहिए?” शिवम् ने उसकी तरफ़ देखते हुए जवाब दिया था.
“कुछ नहीं मैं तो बस ऐसे ही मज़ाक कर रही थी.” कहकर मेघा वापस जाने को पलट गई थी.
“आज नई शर्ट पैंट निकाल दी है, वही पहनिएगा.” जाते-जाते उसने शिवम से कहा था.
शिवम को जाने क्यों आज वही अकेलापन महसूस हो रहा था, जो उसने उस रात महसूस किया था जब वो पहली बार पीसीओ बूथ से बाहर आकर हॉस्टल जाते टाइम महसूस कर रहा था. वही रात जिस रात वो पहली बार मेघा से मिला था. क़रीबन 24 साल बीत चुके हैं उस रात को और सब कुछ वैसा ही हो चुका है. रिश्तों के नाम पर उसके पास सब कुछ है, लेकिन आज अपने ख़ास दिन पर वो अकेला है एकदम अकेला.
मेघा के पास हर चीज़ है, लेकिन वो भी अपने जन्मदिन पर उतनी ही अकेली है, जितनी वो उस रात थी.
शिवम ने कुछ न कहा और चुपचाप ऑफिस के लिए निकल गया. शाम वापस आते ही उसने मेघा को डिनर के लिए बाहर लेकर गया था. डिनर के बाद दोनों वापस घर आने को चल पड़े थे. वापसी में शिवम ने कार सड़क के किनारे रोक कार के शीशे नीचे उतार दिए थे. ठंडी हवा कार के अंदर आने लगी थी. मेघा ने कुछ न कहा. वो समझ गई थी की शिवम कुछ परेशान है. शिवम परेशान होने पर अक्सर ऐसे अजीब-सी हरकतें करता था.
“आइसक्रीम खाओगी?” शिवम् ने कार का इंजन बंद करते हुए पूछा.
सर्दियों में आइसक्रीम खाना मेघा को बहुत पसंद था. उसने तुरंत ही हां कर दी. शिवम जाकर दोनों के लिए नजदीक के एक ठेले से आइसक्रीम ले आया था. मेघा ने बिना कुछ कहे आइसक्रीम ले ली थी.
“मेघा क्या अब हम दोनों एक-दूसरे से प्यार नहीं करते?” कुछ देर की ख़ामोशी के बाद शिवम ने कहा था.
“अच्छा और ऐसा अचानक से क्यों लगने लगा तुम्हे?” मेघा ने उसकी तरफ़ देखकर कहा.
“नहीं पहले तुम मेरे सवाल का जवाब दो. क्या हम अब भी एक-दूसरे से प्यार करते हैं?”
“हां शिवम. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं और तुम भी मुझसे प्यार करते हो. अचानक से क्या हो गया तुम्हे. तुम ऐसे क्यों सोच रहे हो.”
“तो फिर हम जताते क्यों नहीं. तुम्हे याद भी है कब आख़िरी बार मैंने तुम्हे कॉलेज के दिनों की तरह गले लगकर आई लव यू कहा था.”
“नहीं वो तो नहीं याद और जताते इसलिए नहीं, क्योकि जताने की ज़रुरत कभी पड़ती ही नहीं है. जताया तब जाता है, जब सामने वाले को पता न हो की हम उससे प्यार करते है.
तुम्हे याद है कई सालों पहले आज के दिन लगभग इसी वक़्त मैं और तुम पहली बार मिले थे और फिर साथ ही हॉस्टल तक गए थे. उस दिन भी मैं और तुम ऐसे ही अकेले थे. उस दिन मैं तुम्हे जानती नहीं थी. उस दिन के बाद हम प्यार करने लगे. जताने की ज़रुरत तब थी. जिस दिन हमने ये कबूल किया की हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं. उस दिन से जताने की ज़रुरत कभी पड़ी ही नहीं. हमारा इतने सालों का साथ प्यार नहीं तो और क्या है.
उस रात क्या तुमने सोचा था की आज से 20-22 साल बाद ठीक इसी वक़्त मैं इस लड़की के साथ होऊंगा? नहीं न? लेकिन आज अगर हम साथ है, तो इसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही वजह है और वो है हमारे बीच का प्यार. तुम्हे सर्दियों में आइसक्रीम खाना पसंद नहीं, फिर भी तुम खा रहे, क्योकि ये मुझे पसंद है ये भी तो प्यार ही है. तुमने देखा है मेरे बाल सफ़ेद होने लगे है, लेकिन क्योकि तुम अपने बालों में कलर नहीं करते मैं भी नहीं करती ये प्यार ही है शिवम.
उम्र के इक पड़ाव के बाद प्यार जताया नहीं जाता उसे सिर्फ़ साथ रहकर निभाया जाता है, जो तुम बहुत अच्छे से निभा रहे हो. अब प्लीज़ कांच ऊपर कर दो मुझे ठंड लग रही है.” मेघा ने आइसक्रीम का कोन होल्डर में रख अपनी हथेलियां रगड़ते हुए कहा था.
शिवम ने गाडी का कांच बंद कर हीटर चला दिया था. शिवम मुस्कुरा रहा था. मेघा मुस्कुरा रही थी. दोनों को अच्छा लगा था कि शादी के इतने सालों बाद भी दोनों का प्यार उतना ही बना हुआ है.
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