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बचें इन ३० पैरेंटिंग मिस्टेक्स से
ना तो कोई पैरेंट परफेक्ट होता है, ना हर बच्चा आदर्श होता है. हां हर पैरेंट की ये ख़्वाहिश ज़रूर होती है कि उनका बच्चा दुनिया का सबसे अच्छा बच्चा हो, बड़ा होकर खूब नाम कमाए, उसे ज़िंदगी की हर ख़ुशी मिले. इस चक्कर में वे कभी बहुत ज़्यादा उदार हो जाते हैं तो कभी बहुत ज़्यादा सख़्त और कई ग़लतियां भी कर बैठते हैं. यहां हम कुछ ऐसी ही ग़लतियों पर चर्चा कर रहे हैं, जो अक्सर पैरेंट्स कर बैठते हैं और जिसका बच्चे के मन पर बुरा असर होता है.
१. अपना पैरेन्टल अधिकार बनाए रखें: भले ही बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करें, लेकिन सीमा ज़रूर निर्धारित करें. शेयरिंग, केअरिंग, हंसने-खेलने में उनका रोल भी समान होना चाहिए, किंतु पथ-प्रदर्शन, शिक्षा, सुरक्षा व अनुशासन आपकी ज़िम्मेदारी है.
२. खिलौना हो या पुस्तक- स्वतंत्रता हो या जिम्मेदारी- न उसे समय से पहले दें, न ज़रूरत से ज़्यादा, ताकि वो चीज़ों व भावनाओं की कद्र करना जाने.
३. बच्चों से यदि कोई वादा किया है तो उसे निभाएं ज़रूर. कभी-कभी पैरेंट्स को समय नहीं मिल पाता और वो चाहते हुए भी उसे समय पर नहीं निभा पाते हैं. ऐसे में बच्चा आपको झूठा समझ लेता हे.
४. हर बात में नुक्ताचीनी न करें. वो आपसे भले ही कुछ न कहें, लेकिन अपनी मित्रमंडली में दूसरों को टोकना, छेड़ना या बुली करना उनका स्वभाव बन सकता है.
५. उनके डर का मज़ाक न बनाएं. कोई बच्चा अंधेरे से डरता है, कोई प्लास्टिक की छिपकली से तो कोई पेड़ की टहनी से. उनके डर का मज़ाक न उड़ाएं, ना ही बार-बार उस स्थिति में उसे ले जाएं, जिससे वो डर रहा है.
६. अपने बच्चों को लेकर बहुत अधिक महत्वाकांक्षी न बनें. अक्सर माता-पिता की महत्वाकांक्षा पर खरे न उतर पाने पर बच्चे कुंठाग्रस्त हो जाते हैं और आत्महत्या जैसे मामले सामने आते हैं.
७. बच्चों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों की अनदेखी न करें. पैरेंन्टस की लापरवाही एक ओर बच्चों को गैर ज़िम्मेदार बनाती है तो दूसरी ओर मनमाना रवैया अपनाने में उसे देर भी नहीं लगती.
८. उनकी बातों को ध्यान से सुनें. हमारी इंडियन फैमिलीज़ में इसे ज़्यादा ज़रूरी नहीं समझा जाता. ज़्यादातर पैरेंट्स बोलते हैं और बच्चे उनकी हर बात सुनते हैं, किंतु चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट का कहना है कि बच्चे को अपनी बात कहने का मौका दिया जाना चाहिए और उसे ध्यान से सुना भी जाना चाहिए. इस प्रकार बच्चे को दिशा देना आसान हो जाता है.
९. हर व़क़्त उन्हें अनुशासन के दायरे में न रखें, ना ही एक दिनचर्या बनाकर उसका अनुसरण कराएं. इस तरह बच्चे की अपनी रचनात्मकता तथा व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता.
१०. दायरा संकुचित न करें. बच्चे को जितना अधिक एक्सपोज़र या खुलापन मिलेगा, वो जितनी ज़्यादा दुनिया देखेगा, जितनी ज़्यादा पुस्तकें पढ़ेगा, उतना ही ज़्यादा मानसिक विकास होगा.
११. पॉकेटमनी देने के बाद यह आशा न करें कि वह आपकी मर्ज़ी के मुताबिक ख़र्च करे. हां पैसे की क़ीमत, प्राथमिकताएं और बचत अवश्य समझाएं.
१२. उम्र के फासले या जेनरेशन गैप को लेकर विचारों में टकराव न आने दें. हमेशा ही पीढ़ियों के अंतर के कारण बदलते समय के साथ विचार भी बदल जाते हैं. देखना ये है कि समय और परिस्थिति के साथ किसके विचार सही हैं.
१३. संकोची बच्चे को बार-बार संकोची न कहें और न ही उसके व्यवहार की दूसरों के सामने चर्चा करें, वरना बच्चा और भी संकोची हो जाएगा. उसके प्रति हमेशा प्रेरणात्मक रवैया अपनाएं.
१४. बच्चों के दोस्तों की आलोचना न करें, ख़ासकर किशोर बच्चों के मित्रों की. १५. बच्चों की ज़िद को उनका स्वभाव न समझें. ज़िद करना बाल सुलभ स्वभाव है. आपके समझदारीपूर्ण रवैये से ये यह आदत स्वत: ही बदल जाएगी.
१६. बच्चों के सामने तर्क, कुतर्क या अपशब्दों का प्रयोग कभी न करें. इस तरह उनमें असुरक्षा की भावना पैदा होने लगती है और वो घर से बाहर मित्रों या मित्र परिवार के बीच समय गुज़ारना पसंद करने लगते हैं. प़ढ़ाई के प्रति कॉन्सेंट्रेशन भी कम होने लगता है.
१७. ख़ुद को इतना व्यस्त न करें कि बच्चों के लिए समय ही न हो. बच्चों के विकास और दिनचर्या में शामिल होना भी बच्चों के संपूर्ण विकास का हिस्सा है.
१८. बच्चों के सामने झूठ न बोलें और यदि झूठ बोलना ही पड़ा है तो आगे-पीछे उसकी वजह बताएं और उसे विश्वास दिलाएं कि अगली बार आप सच्चाई के साथ परिस्थिति का सामना करेंगी.
१९. बच्चों को अपने संघर्ष की कहानी सुनाकर उनके साथ अपनी तुलना न करें. यदि आप संपन्न हैं तो उन्हें ख़ुशहाल बचपन दें. आपका संघर्ष उनकी प्रेरणा बन सकता है.
२०. पढ़ाई को लेकर ताने न मारें. बेहतर होगा, उनकी टीचर्स से संपर्क करें. कक्षा में ज़्यादा अंक प्राप्त करनेवाले बच्चे से उसकी तुलना न करें.
२१. पीयर प्रेशर(दोस्तों की देखादेखी) को अनदेखा न करें. इससे बच्चों में कॉम्प्लेक्स आ सकता है.
२२. बच्चों को अपने आपसी झगड़ों के बीच इस्तेमाल न करें और न ही फैमिली पॉलिटिक्स की चर्चा करें. इसका बच्चे के दिलोदिमाग पर बुरा असर हो सकता है.
२३. बच्चों की जिज्ञासा की अवहेलना न करें. बच्चे नई चीज़ छूना या देखना चाहते हैं. बड़ों के बीच होनेवाले वार्तालाप में अचानक ही प्रश्न कर बैठते हैं. ऐसे में उन्हें डांट कर चुप करा देने की बजाय उन्हें सही तरीका बताएं.
२४. हर उम्र में बच्चों से समान व्यवहार की अपेक्षा न करें. कल तक बच्चा आपकी हर बात मानता रहा है, लेकिन हो सकता है कि आज उसी बात के लिए प्रश्न करने लगे.
२५. बच्चे को गुस्सा आए तो उसे दंड न दें. साथ ही अनुशासन को भी दंड न बनाएं
२६. बच्चों को बहुत जल्दी आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश न करें. उम्र के अनुसार उन्हें उतनी ही ज़िम्मेदारी सौंपें जितनी वो संभाल सकें.
२७. डॉमिनेटिंग पैरेंट न बनें. जैसे कहते हैं वैसा करो वाली भाषा न बोलें, बल्कि अच्छे रोल मॉडल बनकर उनके भावनात्मक व संवेदनात्मक विकास को सही रूप से हैंडल करें.
२८. स्कूली समस्याओं के प्रति उदासीन न हों, बच्चे की प्रॉब्लम को सुनें और उसे सॉल्व करने की कोशिश करें.
२९. चोरी-छिपे बच्चों की बातें सुनना या ताका-झांकी करना ग़लत है. इस तरह आपके प्रति उनका आदर कम होगा. आपकी इस आदत को वो पॉज़िटिव रूप में नहीं लेंगे.
३०. टीनएज के विद्रोह को चुनौती न समझें. उनके अंदर कुछ कर दिखाने का ज़ज़्बा होता है, औरों से अलग कुछ करने की चाहत होती है. इसे सहज रूप से लें.