हमारा समाज बदलाव की ओर बढ़ रहा है. लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से आगे निकल रही हैं- चाहे शिक्षा हो, खेलकूद या करियर- सभी जगह लड़कियां सफलता के परचम फैला रही हैं. लेकिन बात जब उनके हक़ की आती है, तो उन्हें आज भी वे अधिकार नहीं मिलते, जो कानूनन उन्हें प्राप्त हैं. ख़ासतौर से धन-संपत्ति के मामले में. इस लेख में आज हम लड़कियों के प्रॉपर्टी से संबंधित अधिकारों के बारे में बता रहे हैं, ताकि ज़रूरत पड़ने पर आप अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें.
समाज चाहे बदलाव के कितने भी बड़े-बड़े दावे कर ले, लेकिन सच तो यह है कि जब बात पिता की धन-संपत्ति के बंटवारे की आती है, तो उसमें बेटियों का हक़ न के बराबर होता है और इसकी सबसे बड़ी वजह है कि लड़कियों को आज भी पिता की प्रॉपर्टी में मिलनेवाले अधिकारों के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है. प्रॉपर्टी संबंधित अपने अधिकारों के बारे में सभी लड़कियों को जानकारी होना बेहद ज़रूरी है.
क्या है संपत्ति का अधिकार?
हिंदू क़ानून के अनुसार संपत्ति को दो भागों में बांटा गया है-
1. पैतृक संपत्ति
2. अपने द्वारा कमाकर जोड़ी हुई संपत्ति
पैतृक संपत्ति
क़ानून के मुताबिक़- पुरुषों की चार पीढ़ियों की संपत्ति, जो उन्हें विरासत में मिली हो और जिसका कभी बंटवारा न हुआ हो, उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है. पैतृक संपत्ति पर बच्चों- चाहे लड़का हो या लड़की का अधिकार जन्म से ही होता है.
साल 2005 से पहले पैतृक संपत्ति पर केवल लड़कों का ही हक़ हुआ करता था, लेकिन हिंदू उत्तराधिकार क़ानून (संशोधन), 2005 में संशोधन होने के बाद पिता लड़कियों को संपत्ति में हिस्सा देने से इंकार नहीं कर सकते हैं. इस संशोधिन के अनुसार पैतृक संपत्ति में बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी बराबर का अधिकार मिलेगा. दूसरे और आसान शब्दों में कहें तो बेटी के जन्म लेते ही पैतृक संपत्ति पर उसका क़ानूनन हक़ हो जाता है.
स्थिति 1 : यदि पिता की मृत्यु हो जाए तो क्या है बेटी का अधिकार?
यदि अचानक पिता की मृत्यु हो जाती है और उन्होंने अपनी वसीयत नहीं लिखी है, तो मृतक की संपत्ति पर सबसे पहला हक़ मृतक की क़ानूनन पत्नी, बेटी और बेटे का होगा, बाद में अन्य लोगों का. इतना ही नहीं मृतक की संपत्ति पर पत्नी, बेटी और बेटे का एक बराबर का हक़ होगा. इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म संशोधित क़ानून लागू होने से पहले हुआ है या बाद में. जितना अधिकार बेटे का है, संपत्ति पर उतना ही हक़ बेटी का भी होगा. चाहे वह संपत्ति पैतृक हो या फिर पिता द्वारा ख़ुद की अर्जित की हुई. यहां पर इस बात का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है कि पिता क़ानून लागू होने की तिथि तक जीवित रहे हों.
स्थिति-2: शादीशुदा बेटी का पिता की संपत्ति पर क्या है अधिकार?
भारतीय समाज में बेटी की शादी होने के बाद उसे हिंदू अविभाजित परिवार का हिस्सा नहीं माना जाता है. लेकिन साल 2005 में क़ानून में हुए संशोधन के बाद बेटी को प्रॉपर्टी में समान उत्तराधिकारी माना गया है. उसकी शादी से पिता की प्रॉपर्टी पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है.
स्वअर्जित संपत्ति
पिता द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति में बेटी को हिस्सा देना या न देना पिता की इच्छा पर निर्भर करता है. पिता को यह क़ानूनन अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी मर्जी से अपनी स्वअर्जित संपत्ति में बेटा या बेटी- दोनों में से किसी को भी दे सकता है. उन्हें यह क़ानूनन अधिकार भी प्राप्त है कि वे चाहें तो अपनी स्वअर्जित संपत्ति में से बेटी को कोई हिस्सा न दें. बेटी उस संपत्ति में हिस्सा देने के लिए पिता को बाध्य नहीं कर सकती है.
उपहार में दी गई प्रॉपर्टी पर
बेटी का हक़
क़ानूनी जानकारों के मुताबिक़, यदि कोई व्यक्ति अपनी कमाई से जोड़ी हुई प्रॉपर्टी अपने बेटे को उपहार में देता है, तो ऐसा करने के लिए उस व्यक्ति को किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है. व्यक्ति को अपनी स्वेच्छा से अपनी स्वअर्जित संपत्ति को अपने बेटे को देने का अधिकार है. लेकिन व्यक्ति के ऐसा करने की स्थिति में उसकी पत्नी और बेटी ऑब्जेक्शन कर सकती हैं., क्योंकि वे दोनों भी व्यक्ति की संपत्ति में क़ानूनी वारिस है. उनका ऑब्जेक्शन करना लाज़िमी है. इसके अलावा व्यक्ति की पत्नी भी उससे गुजाराभत्ता की मांग कर सकती है.
पत्नी को है पति का वेतन जानने का अधिकार
कुछ पतियों की आदत होती है कि वे अपनी पत्नी को अपने वेतन के बारे में नहीं बताते हैं. यदि बताते भी हैं, तो सही जानकारी नहीं देते हैं. जबकि शादी होने के बाद हर पत्नी को अपने पति की वेतन के बारे में जानने का अधिकार है. यदि कोई पति अपने वेतन के बारे में पत्नी को नहीं बताता है, तो पत्नी आरटीआई द्वारा भी पति के वेतन की जानकारी प्राप्त कर सकती है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले में दोनों पक्षों की ज़िरह सुनने के बाद अंत में यह आदेश दिया कि शादीशुदा महिला को अपने पति का वेतन जानने का पूरा अधिकार है.
पत्नी होने के नाते जाने लड़कियों के अन्य अधिकार
पति-पत्नी के बीच यदि किसी तरह का विवाद होता है और पत्नी पति से अलग रहती है, तो ऐसी स्थिति में पत्नी गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है. कई क़ानूनी प्रावधान ऐसे हैं, जिनके अनुसार पत्नी को गुज़ारा भत्ता देने की ज़िम्मेदारी पति की होती है. क़ानूनी जानकारों के अनुसार, सीआरपीसी हिन्दू मैरिज एक्ट, हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट और डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के अंतर्गत पत्नी गुज़ारा भत्ते की मांग कर सकती है.
- पूनम नागेंद्र शर्मा
क़ानून कहता है...
सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि हिन्दू अविभाजित परिवार में पिता की पैतृक संपत्ति पर जितना हक़ बेटे का है, बेटी का भी उतना ही हक़ होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटी को अपने पिता की प्रॉपर्टी में बराबरी का अधिकार है. भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने से पहले अगर उसके पिता की मौत हो गई हो तब भी बेटी को पिता की संपत्ति में उतना ही अधिकार मिलेगा, जितना बेटे को.