और फिर एंबुलेंस की आवाज़ और भयानक चीखें…
उसने अपना चेहरा खो दिया, पर औरों के मन में चेतना जगाई अन्याय का विरोध करने की.
अब बस बहुत हो गया!!!
नवरात्रि के प्रथम दिवस पर शताब्दियों से चल रही अनवरत यात्रा में अगुआई का विष पीने वाली चिरैयाओं और परियों को श्रद्धांजलि!
सौ वर्ष पूर्व-
“तू पढ़ने जाएगी? ठीक है जा मेरी चिरैया.”
“मां, मुझे लड़के छेड़ते हैं. धमकियां देते हैं.”
“अरे नहीं, कुछ हो गया तो किसी को मुंह कैसे दिखाएगी. तू पढ़ने मत जा लाडली.”
“नहीं मां, मैं जाऊंगी.”
और फिर एक दिन एक चीख…
उसने नाम की चाह में बदनामी को ख़ुशी से अपना लिया, पर औरों के मन में एक विद्रोह जगा दिया. शिक्षा के अधिकार के लिए आवाज़ उठाने का.
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कुछ दशकों पहले…
“तू इस क्षेत्र में काम करेगी? ये तो पुरुषों का क्षेत्र है. कैसे जीत सकेगी उनके अहं से…”
“नहीं बाबा, मैं तो इसी क्षेत्र में काम करूंगी.”
“ठीक है मेरी परी, तू जा…”
"बाबा, वो मुझे धमकियां देता हैं कि यदि तूने अच्छा प्रदर्शन करके मुझे हराया तो…"
“न न मेरी परी, तू संघर्ष छोड़ दे.”
“नहीं बाबा, मैं नहीं डरूंगी.”
और फिर एंबुलेंस की आवाज़ और भयानक चीखें…
उसने अपना चेहरा खो दिया, पर औरों के मन में चेतना जगाई अन्याय का विरोध करने की.
अब बस बहुत हो गया!!!
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नवरात्रि के प्रथम दिवस पर शताब्दियों से चल रही अनवरत यात्रा में अगुआई का विष पीने वाली चिरैयाओं और परियों को श्रद्धांजलि! पड़ावों को सफलतापूर्वक पार करने वालियों को बधाई और अनगिनत संघर्षरत उड़ानों को शुभकामनाएं!
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