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कहानी- दूसरा तमाचा (Short Story- Dusra Tamacha)

रवि के गाल पर तड़ाक से तमाचा पड़ा. रवि की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. सावित्री का यह रूप देख कर क्षण भर के लिए वह डर गया, पर हारना उसे मंज़ूर नही था. उसने जैसे ही सावित्री को मारने के लिए हाथ उठाया, सावित्री ने कहा, "यह ग़लती कतई मत करना रवि. मैं सौ नंबर पर फोन कर के पुलिस बुला लूंगी. तुम्हारे ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवा दूंगी. पुलिस तुम्हें पकड़ कर ले गई, तो तुम्हारी नौकरी ख़तरे में पड़ जाएगी."

सरिता तेजी से बस स्टाप पर पहुंची. उसने सोचा था जल्दी बस मिल जाएगी, पर शायद आगे कहीं जाम लगा था इसलिए कोई बस ही नहीं आ रही थी. उसे लगा कि उसका भी घर मैट्रो लाइन पर होता, तो उसे भी ऑफिस आना-जाना कितना आसान हो जाता. वह समझ गई कि आज फिर उसे रवि के ग़ुस्से का शिकार होना पड़ेगा. प्रमोशन मिलने का आनंद पल भर में गायब हो गया. बस आई, वह चढ़ गई. भीड़ में भी एकांत खोज लेना, यह दिल्ली की बसों में यात्रा करने वालों की ख़ासियत है. एक किनारे खड़ी होकर वह अतीत में खो गई.
उसने घरवालों के लाख मना करने के बावजूद रवि से प्रेम विवाह किया था. तब उसने कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतना शंकालु और पजेसिव होगा. पहले वह उसे कितना संभालता था, जो उसे बहुत अच्छा लगता था. जबकि शादी के बाद वह कितनी तेजी से बदल गया था. सरिता को रवि की अपेक्षा ज़्यादा वेतन मिलता था. वह अपने दोस्तों से कहता, "इसमें परेशानी क्या है? वाइफ के पैसे पर मौज करो."
इसके बाद सावित्री के एकाउंट का पैसा कम होने लगा था. जब सावित्री ने पूछा तो रवि ने कहा, "तुम यह जान कर क्या करोगी."
इसके बाद सावित्री की समझ में आ गया था कि रवि ने ज्वाइंट एकाउंट क्यों खुलवाया था. पैसे के लिए कार्ड चाहिए था, तब प्यार दिखानेवाला प्रेमी पति बनने में ज़रा भी नहीं हिचकता था.
कल ही रवि ने घर में शराब की पार्टी की थी. तब वह नौकर की तरह हर चीज़ सर्व कर रही थी. प्रेम करने के बाद उसने विवाह करने में जल्दबाज़ी कर दी थी. घरवाले कितना समझा रहे थे, पर उसने किसी की एक भी बात नहीं सुनी थी. अब वह क्या करे, कहां जाए? यह सवाल उसके सामने मुंह बाए खड़ा था. उसे लगता था कि उसके लिए चारों दिशाएं बंद हो चुकी हैं. मन में आता कि उसे कोई ठोस कदम उठाना चाहिए, पर इसके आगे उसे कुछ सूझता नहीं था.

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दोपहर को लंच के समय होटल में कॉलेज के समय का दोस्त मिल गया था. बातचीत में उसने एक रास्ता बताया था, जिससे बिना कारण के इस परेशानी से छुटकारा मिल सकता था. काफ़ी मन मंथन के बाद कुछ करने के पहले महिला होने का डर उस पर हावी हो जाता था. वह जो सोचती थी, वह उसे ग़लत लगने लगता था और उसके भयंकर परिणाम के बारे में सोच कर वह कांप उठती थी. पिछले एक साल से वह रवि की यातना सहती आ रही थी. वह तैयार होकर आफिस जाने लगती, तो रवि कहता, "क्या बात है, जो आज इस तरह सज-धजकर ऑफिस जा रही हो?"
"रोज़ाना तो इसी तरह ऑफिस जाती हूं." सावित्री कहती.
इसके बाद रवि इस तरह हंसता कि सावित्री का कलेजा फट जाता. उसका मन करता वह ऑफिस जाए ही न. पिछले महीने उसने नौकरी छोड़ने की बात की, तो रवि ने कहा, "नौकरी छोड़ कर घर में बैठ कर क्या करोगी? अभी तो घर का लोन भी बाकी है. जी ऊब गया हो, तो कुछ दिनों की छुट्टी ले लो."


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सावित्री को पता था कि रवि के लिए उसके वेतन का कितना महत्व है. कुछ दिन ठीक-ठाक गुज़रे, उसके बाद फिर वैसे का वैसा. वह सोचती कि कब इस सब से छुटकारा मिलेगा?
घर का वास्तु याद आ गया. एक मंजिला सुंदर घर बनाया था. ऊपर की मंजिल किराए पर दी जा सके, इसलिए ऊपर जाने का रास्ता बाहर से दिया था. उसके बॉस मि. मेहता आए थे. उन्हें विदा करने के लिए वह दरवाज़े तक गई थी. उस रात रवि ने उसे ख़ूब खरी-खोटी सुनाई थी. उसकी समझ में नहीं आया था कि उससे क्या ग़लती हो गई थी.
उसे याद आया बाॅस ने उसकी योग्यता का बखान करते हुए कहा था, "सावित्री, तुम इंटीरियर डेकोरेशन का भी काम कर लेती हो, मुझे आज पता चला. तुम्हारी सूझबूझ देखकर मेरा मन कहता है कि मेरे फ्लैट का भी इंटीरियर डेकोरेशन तुम कर दो."
सावित्री ने हंस कर जवाब दिया था, "श्योर सर."
ज़िंदगी में प्रेम के नाम पर वह छली गई थी. धीरे-धीरे वह अपने काम पर ज़्यादा ध्यान देने लगी थी. उस दिन का प्रमोशन उसी की देन था. उसने बाॅस को 'थैंक्स' कहा, तो मि. मेहरा ने कहा, "आपकी मेहनत ने आपको यह पद दिलाया है. इसमें न मेरा कोई कमाल है और न एहसान. मैं सिर्फ़ इतना ही कहूंगा कि ख़ुद को महत्व देना सीखो. ऑल द बेस्ट फॉर योर फ्यूचर."
उसे लगा, उसने कभी ख़ुद को महत्व दिया ही नहीं. अब तक वह मात्र रवि को ही ख़ुश करने में लगी रही. वह रेती से तेल निकालने का व्यर्थ प्रयत्न करती रही. उसे बदलना चाहिए. तभी उसका स्टॉप आ गया. वह अतीत से बाहर आई. ई-रिक्शा पर बैठ कर घर पहुंची.
"अरे, आज तो बहुत जल्दी आ गई. कुछ खाना-पीना बनेगा या बाहर से ऑर्डर करना होगा?"
"हां, बाहर से ही मंगा लो. आज मेरी ओर से पार्टी."
"किस बात की?" रवि ने हैरानी से पूछा.
"मुझे प्रमोशन मिला है." उत्साह के साथ सावित्री ने कहा.
"तो यह बात है, इसलिए देर हो गई?" रवि ने तिरछी नज़रों से सावित्री की ओर देखा.
"नहीं, बस देर से मिली."
"कहीं बाॅस का बिस्तर तो नहीं गर्म कर रही थी." रवि सावित्री की ओर बढ़ा.
रवि के गाल पर तड़ाक से तमाचा पड़ा. रवि की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. सावित्री का यह रूप देख कर क्षण भर के लिए वह डर गया, पर हारना उसे मंज़ूर नही था. उसने जैसे ही सावित्री को मारने के लिए हाथ उठाया, सावित्री ने कहा, "यह ग़लती कतई मत करना रवि. मैं सौ नंबर पर फोन कर के पुलिस बुला लूंगी. तुम्हारे ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवा दूंगी. पुलिस तुम्हें पकड़ कर ले गई, तो तुम्हारी नौकरी ख़तरे में पड़ जाएगी."
दोस्त राजन के शब्द अचानक सावित्री की मदद आ गए. हर आदमी पुलिस थाने जाने से घबराता है. रिपोर्ट दर्ज करने की बात करोगी, तो रवि डर जाएगा. ग़ुस्से में रवि ऊपर जा कर सो गया. रात को फोन करके सावित्री ने सारी बात राजन को बताई. आगे क्या करना है, राजन ने इसकी जानकारी दी. पर यह सब बड़ी सावधानी से करना. सुबह रवि ने कहा, "सावित्री, जो हुआ उसे भूल जाओ. अब हम नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करते हैं."


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"हां, अब मुझे नए सिरे से जीना है." कहकर सावित्री बाहर निकल गई. रात को रवि ने ऊपर सोने जाने के लिए कहा, तो उसने उससे बगलवाले कमरे में सोने को कहा. रात को महिला के रोने-चीखने की आवाज़ें आती रहीं. अगले दिन बगलवाले ने पूछा, "रात को आपके घर से चीखें आ रही थीं. आप के चेहरे पर यह क्या हुआ?"
"कुछ नहीं, यह तो मैं गिर पड़ी थी."
"रवि मुझे विचित्र तो लगता था, पर इस तरह राक्षस होगा, यह मुझे आज पता चला."
रवि ये बातें सुन रहा था. सावित्री उसके सामने गई, तो उसने पूछा, "यह क्या हुआ?"
"कल रात जो तुम ने मुझे मारा था."
रवि ने डर कर कहा, "सावित्री, चलो हम दोनों अलग हो जाते हैं."
"नहीं, तुम ऊपर और मैं नीचे आज़ादी से रहूंगी. तुम्हें मुझे किराया देना होगा. तलाक़ तो मैं तुम्हें कभी नहीं दूंगी."
पैसे की ज़रूरत पड़ने पर रवि ने कार्ड मांगा. रवि को पता चला एकाउंट में पैसे ही नहीं हैं. खीझ कर रवि ने पूछा, "आख़िर तुम चाहती क्या हो?"
"आवाज़ नीची करके बात करो. अब मैं अपने ढ़ंग से रहूंगी. एक व्यक्ति के रूप में जीऊंगी. अगर तुम ने मेरे सामने कुछ करने या पति बनने की कोशिश की, तो पड़ोसी गवाह है."
रवि ने दूसरा गाल सहलाया. सावित्री का यह जवाब दूसरा तमाचा था.

वीरेंद्र बहादुर सिंह

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Photo Courtesy: Freepik

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