हिजाब की मथानी से मक्खन कम मट्ठा ज़्यादा निकल रहा है. जनता नौकरी, रोज़गार, शिक्षा और सुकून चाहती है, लेकिन सांता क्लॉज के थैले से हिजाब, घूंघट और पगड़ी निकल रही है. चुनाव से पहले बस यही दे सकते हैं.
अरे भइया, ये जो सियासत है, ये उनका है काम! हिजाब का जो, बस जपते हुए नाम! मरवा दें, कटवा दें- करवा दें बदनाम. तो सुन लो खासोआम, हिजाब के मामले में हैंडल विद केयर…
आज ऐसा लग रहा है गोया देश मे पहली बार हिजाब देखा गया है. कुछ लोगों का दर्द देख कर तो ऐसा लगता है जैसे कोरोना से भी उन्हें इतनी तकलीफ़ नहीं हुई जितनी हिजाब से है. कोरोना से बचने के लिए जब चेहरा ढक रहे थे उस वक़्त उनकी आस्था को इंफेक्शन नहीं हो रहा था, पर आज अचानक हिजाब देख कर आस्था, पढ़ाई और संविधान तीनों ख़तरे में पड़ गए हैं. पांच राज्यों में चुनाव की आहट आते ही कर्नाटक सरकार को अचानक आकाशवाणी हुई कि कुछ छात्राओं के हिजाब में आने से ड्रेस कोड, अनुशासन और शिक्षा का ऑक्सीजन लेवल नीचे जा रहा है. बस, अनुशासन और शिक्षा का स्तर उठाने के लिए फ़ौरन हिजाब पर रोक लगा दी गई. राज्य की पुलिस दूसरे विकास कार्यों मे लगी थी, इसलिए रोक पर अमल करने के लिए गमछाधारी शांतिदूतों को बाहर से बुलाकर कॉलेज में नियुक्त किया गया. इन दूतों का रेवड़ पूरी निष्ठा से एक अकेली शांति के पीछे गमछा लेकर दौड़ता रहा.
बस फिर क्या था. सियासत की हांडी में नफ़रत की खिचड़ी पकने लगी. सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी जाग उठी और गूगल पर रिसर्च करनेवाले कोमा से बाहर निकल आए (हालांकि इन विद्वानों ने पहले भी हज़ारों बार हिजाब देखा था, पर तब उन्हें पता नहीं था कि यह चीज़ चुनाव, समाज और देश के लिए घातक है). कुरान से लंबी दूरी रखनेवाले विद्वान भी सवाल करने लगे, "बताओ कुरान में कहां लिखा है कि हिजाब लगाना चाहिए." विद्वता की इस अंताक्षरी में इतिहास खोदा जा रहा था. नफ़रत के ईंधन से टीआरपी को ऑक्सीजन दी जा रही थी. चैनल डिबेट चला कर हिजाब को मुस्लिम बहनों के भविष्य और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया जा रहा था. अभी भी चुनाव में उतरी पार्टियां जनहित में समुद्र मंथन कर रही हैं.
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तारणहार अपने-अपने बयानों का हलाहल अमृत बता कर परोस रहे हैं. हिजाब मुक्त पढ़ाई के लिए हर चैनल पर शास्त्रार्थ जारी है. देश को विश्व गुरू बनाने का लक्ष्य 10 मार्च से पहले पूरा करना है.
पहली बार पता चला कि हिजाब मुस्लिम बहनों की तरक़्क़ी में कितना घातक है. हिजाब विरोधी विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इसे लगाते ही छात्राएं २२वीं सदी से मुड़ कर सीधा गुफा युग में चली जाती हैं. इसी हिज़ाब की वजह से मुस्लिम बहनें घरों में क़ैद होकर रह गईं हैं. न डिस्को में जा रही हैं, न कैबरे कर पा रही हैं और न बिकिनी पहन कर टेलेंट दिखा पा रही हैं. हिजाब ने तरक़्क़ी के सारे रास्ते बंद कर दिए- अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी… हिजाब लगाते ही टैलेंट 75 साल पीछे चला गया- कब आएगा मेरे बंजारे! मुस्लिम बहनों की आज़ादी और तरक़्क़ी के लिए शोकाकुल लोग कॉलेज के गेट पर ही हिजाब उतारने के लिए तैयार खड़े हैं. हिजाब देखते ही वह गमछा उठा कर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का कल्याणकारी अभियान शुरू कर देते हैं. अगर कोई दबंग लड़की उनके इस शिष्टाचार का विरोध करती है, तो समाज और देश की तरक़्क़ी रुकने लगती है.
हिजाब चुनाव के पहले चरण में सिर्फ़ तरक़्क़ी विरोधी था, दूसरे चरण में संविधान विरोधी हो गया. १६ फरवरी आते-आते इसमें से आतंकवाद की दुर्गंध आने लगी. हर अंधा अपने-अपने दिव्य दृष्टि का प्रयोग कर रहा है आगे-आगे देखिए होता है क्या!
कोई हिजाबी प्रधानमंत्री बनाने की हुंकार भर रहा है, तो कोई क़यामत तक हिजाब वाले पीएम के सामने बुलडोजर लेकर खड़ा होने का संकल्प ले रहा है. कुछ नेता और संक्रमित चैनलों को हिजाब के एक तरफ़ शरिया और दूसरी तरफ़ संविधान खड़ा नज़र आ रहा है. मुसलमान सकते में है, क्योंकि अब तक उन्हें भी नहीं पता था कि हिजाब इतना गज़ब और ग़ैरक़ानूनी हो चुका है. हिजाब की बिक्री का सेंसेक्स टारगेट से ऊपर जा रहा है. शरिया और हिजाब से अब तक अनभिज्ञ कई धर्मयोद्धा हिजाब के समर्थन और विरोध में उतर पड़े हैं. इस धार्मिक जन जागरण से कई दुकानदारों की अर्थव्यवस्था मज़बूत हो रही है.
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तीसरे दौर का चुनाव सामने है और नेता दुखी हैं. हिजाब की मथानी से मक्खन कम मट्ठा ज़्यादा निकल रहा है. जनता नौकरी, रोज़गार, शिक्षा और सुकून चाहती है, लेकिन सांता क्लॉज के थैले से हिजाब, घूंघट और पगड़ी निकल रही है. चुनाव से पहले बस यही दे सकते हैं. अभी सात मार्च तक यही मिलेगा, इसलिए बलम जरा धीर धरो… जीते जी जन्नत अफोर्ड नहीं कर पाओगे, दे दिया तो मानसिक संतुलन खो बैठोगे. आपस के इसी धर्मयुद्ध ने देश को जवाहर लाल से मुंगेरी लाल तक पहुंचाया है! विकास के अगले चरण में महिलाओं को लक्ष्मी बाई से जलेबी बाई की ओर ले जाया जाएगा. तब तक ताल से ताल मिला…
- सुलतान भारती
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