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फिल्म समीक्षा: सस्पेंस-थ्रिलर के साथ सोशल मैसेज देती ‘ए थर्सडे’ फिल्म (Movie Review: A Thursday)

आज गुरुवार को डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई 'ए थर्सडे' रोमांच और रहस्य से भरपूर ज़बरदस्त मूवी है, जो शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखती है और एक उत्सुकता भी बनाए रखती है कि आख़िर इसका अंत क्या होगा. निर्देशक बेहज़ाद खंबाटा ने सभी कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है, फिर चाहे वह यामी गौतम हों, अतुल कुलकर्णी, नेहा धूपिया, डिंपल कपाड़िया व करणवीर शर्मा. एक फिल्म को कामयाब बनाने में जितना कलाकारों का अभिनय मायने रखता है, तो वहीं निर्देशक की दूरदृष्टि और काबिलियत भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. डायरेक्टर तो जहाज का कप्तान होता है, जो उसे पूरी तरह से नियंत्रण में रखता है और यही काम बेहज़ाद ने बख़ूबी किया है.

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फिल्म में प्ले स्कूल की टीचर नैना के क़िरदार में यामी गौतम ने अब तक की अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है. उनकी भाव-भंगिमाएं, डायलॉग, एक्शन सब कुछ लाजवाब है. पूरी फिल्म को वे अपने कंधे पर लेकर चलती हैं. फिल्म की मुख्य क़िरदार वही हैं.
कहानी इतनी सी है कि नैना अपने प्ले स्कूल के 16 बच्चों को बंधक बना लेती हैं. एसपी बनी नेहा धूपिया से इंस्पेक्टर जावेद खान जो अतुल कुलकर्णी बने हैं, से बात कराने के लिए कहती हैं. फिर उनके सामने कई तरह की अपनी शर्तें रखती हैं, जिसमें करोड़ों रुपयों के अलावा प्रधानमंत्री बनी डिंपल कपाड़िया से बातचीत करना भी शामिल है.

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अब सोचनेवाली बात यह है कि एक महिला किस तरह अपने घर में बने प्ले स्कूल में न केवल छोटे-छोटे 16 बच्चों को अगवा करके रखी है, बल्कि उसने काम करनेवाली बाई सावित्री और ड्राइवर को भी ग़लती से घर के अंदर आ जाने पर बंधक बना लिया है. मीडिया पर भी कड़ा प्रहार किया गया है, क्योंकि उन बंधक बच्चों में एक की मां न्यूज़ एंकर है. यह एंगल भी दिलचस्प तरीक़े से दिखाया गया है.
नैना ऐसा क्यों करती है इसके पीछे की वजह क्या है? यह जानने के लिए आपको फिल्म तो देखनी ही पड़ेगी, लेकिन इतना कह सकते हैं कि एक सोशल मैसेज के साथ फिल्म में सिस्टम पर कड़ा प्रहार किया गया है. कैसे एक आम इंसान परेशान रहता है हमारे इस दोगले सिस्टम के व्यवहार से. कुछ इसी तरह की सिचुएशन नसरुद्दीन शाह की फिल्म 'ए वेन्सडे' में भी थी, बस फर्क़ इतना है उसमें नसरुद्दीन शाह लड़ते हैं और यहां पर यामी गौतम.

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कलाकारों के अभिनय की बात करें, तो यामी गौतम ने अपने बेजोड़ अभिनय से सभी का दिल जीत लिया है. पूरी फिल्म में वे अपने हाव-भाव, ग़ुस्से, फ्रस्ट्रेशन… हर एक्सप्रेशन को लाजवाब तरीक़े से दिखाती हैं. यह जतलाने में सफल होती हैं कि एक आम इंसान किस वजह से इतना बड़ा कदम उठा लेता है और क्यों हमारे सिस्टम में अब तक इसे ठीक नहीं किया गया. ग़लती किससे हो रही है और कहां पर हो रही है. यह सब हमें सोचने को मजबूर कर देता है.


अतुल कुलकर्णी ने जावेद खान के सशक्त क़िरदार को बख़ूबी निभाया है और यामी गौतम को बराबर का टक्कर देते हैं. नेहा धूपिया भी ख़ूबसूरत लगी है.

डिंपल कपड़िया ने भी अपनी छोटी-सी भूमिका के साथ न्याय किया है. इनके अलावा कल्याणी मुले, माया सराओ और बोलोरम दास ने भी बढ़िया काम किया है.

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कह सकते हैं कि एशले माइकल लोबो और बेहज़ाद कंबाटा की कहानी दमदार है और हमारे का सिस्टम पर गहरा चोट भी करती है.
विजय मौर्य के संवाद कहीं व्यंग्यात्मक हैं, तो कहीं हंसाते हैं, तो कहीं बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी करते हैं. इस तरह की एक्शन, सस्पेंस, थ्रिल से भरपूर मूवी में बैकग्राउंड स्कोर काफ़ी महत्वपूर्ण होता है और इसे सफलतापूर्वक निभाया है कायज़ाद घेरदा और रोशन दलाल ने. विक्रम दहिया के एक्शन शानदार है. अनुजा राकेश धवन व सिद्धार्थ वसानी की सिनेमेटोग्राफी ख़ूबसूरत है. फिल्म में कोई नाच-गाना नहीं है, इससे फिल्म और कसी हुई लगती है. सुमित कोटियान ने एडिटिंग भी अच्छी की है. मधुसूदन एन का प्रोडक्शन डिज़ाइन आकर्षक है. आनेवाले दिनों में आरएसवीपी और ब्लू मंकी फिल्म्स की 'ए थर्सडे' भरपूर धमाल दिखाएगी इसमें कोई दो राय नहीं. काश! फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म की जगह सिनेमा हॉल में रिलीज़ किया गया होता, तो यक़ीनन यह रोमांच से भरी थ्रिल फिल्म और भी दमदार और जबरदस्त लगती.
फिल्म को रेटिंग देने की बात करें, तो हमारे हिसाब से 5 में से 3 स्टार…***

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Photo Courtesy: Instagram

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