बंद पलकों के पीछे बैठा अक्स बेवज़ह मुस्कुराहट का सबब बन रहा था. लगा जैसे कोई है कमरे में… आंखें खोली, तो दिल धक्क से रह गया. मेरे ठीक सामने दीया खड़ी थी, मुझे एकटक देखते हुए… मैं इस लम्हें के लिए तैयार नहीं था. हड़बड़ाकर सीधा बैठ गया.
... “क्या कह रहे हो, वो बेटी कहां से हो गई, हमारी सोनू 18 की है और वो 35 की... मुझसे दस साल ही तो छोटी है.” “35 की!” मेरा मुंह खुला रह गया. मैं तो उसे 25 की समझ गिल्ट के बोझ से दबा जा रहा था कि कैसे अपने से आधी उम्र की लडकी पर अटक गया हूं... चलो आज कम से कम वो बोझ तो कुछ कम हुआ. मैंने गहरी सांस भरी और वहां से अपने कमरे में चला गया... 35 की है, तो शादी क्यों नहीं की अब तक... दिखने में कितनी अट्रैक्टिव है, कितनी प्यारी... फिर... उसी के बारे में सोचते-सोचते कब आंख लगी पता ही नहीं चला. अगले दिन संडे था... ख़ूब तान कर सोया और जब बाहर बालकनी में आकर खड़ा हुआ, तो सामने दीया जॉगिंग करती नज़र आई. बस, तब से समझों यहीं बैठा था. सुंगधा तीसरी कप चाय ले आई, डांट के साथ, “आज कितना चाय पियोगे... एसिडिटी हो जाएगी? अब इसके बाद नहीं मिलेगी.” मैंने हड़बड़ाकर फटाफट चाय ख़त्म की और खड़ा हो गया. “आज नाश्ते में क्या बन रहा है?” “मूंग दाल के चीले.” “अरे पिछले हफ़्ते ही तो बने थे?” “वो कल दीया कह रही थी, उसका बड़ा मन है खाने का तो...” “यानी आज वापस उसे बुला लिया...” “अकेली जान है बेचारी, दो-चार चीले खा लेगी, तो आपका क्या बिगड़ जाएगा...” उसने पलटवार किया. यह भी पढ़ें: स्वामी विवेकानंद जयंती: एक युवा, जिसने साधु बनकर दुनिया को असली भारत की पहचान कराई (Swami Vivekanand Jayanti: Power Of Youth) अब कैसे बताता कि मेरा क्या बिगड़ रहा है... बिगड़ा मूड ठीक हो सकता है और बिगड़ा पेट भी… मगर बिगड़ी नीयत का क्या कोई इलाज़ है दुनिया में!.. कुछ ही दिनों में दीया सुगंधा से इतनी घुल-मिल गई थी कि अब तो उसे बुलाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती थी, मेरे दिल की तरह ही मेरे घर में भी बिन-बुलाए धमक पड़ती थी. मगर एक बात, जो मुझे गवारा नहीं थी, वो ये कि वो मेरी प्रेजेंस को बिल्कुल इग्नोर कर ‘दी... दी...’ करती हुई सुगंधा की पुछल्ली बनी घूमती. मुझे घर के किसी बड़े-बुज़ुर्ग की तरह कोने में बैठा दिया जाता और सारी खुसुर-पुसुर रसोई में ही चलती. मेरी ईगो हर्ट हो रही थी... आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा था. दोनों मिलकर यूट्यूब से देख कोई नई रेसिपी ट्राई कर रहे थे. मैं अपने कमरे में बैठा आंख बंदकर ग़ज़ल सुन रहा था- तेरे आने की जब ख़बर महके, तेरी ख़ुशबू से सारा घर महके… यह भी पढ़ें: इस प्यार को क्या नाम दें: आज के युवाओं की नजर में प्यार क्या है? (What Is The Meaning Of Love For Today’s Youth?) बंद पलकों के पीछे बैठा अक्स बेवज़ह मुस्कुराहट का सबब बन रहा था. लगा जैसे कोई है कमरे में… आंखें खोली, तो दिल धक्क से रह गया. मेरे ठीक सामने दीया खड़ी थी, मुझे एकटक देखते हुए… मैं इस लम्हें के लिए तैयार नहीं था. हड़बड़ाकर सीधा बैठ गया. “सर, आपको भी ग़ज़ल सुनना पसंद है... यू नो दिस इज़ वन ऑफ माय फेवरेट..” वो खिड़की पर खड़ी हो गई और आसमान में तकते हुए ग़ज़ल के साथ गुनगुनाने लगी, "शाम महके तेरे तसव्वुर से शाम के बाद फिर सहर महके…"अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें
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