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कविता- हैलो न्यू ईयर… (Kavita- Hello New Year…)

हैलो न्यू ईयर
तुम फिर आ गए
बड़े अजीब शख़्स हो यार
हर साल टपक पड़ते हो
कुछ साल पहले
तुमसे मिलाए हुए हाथ की गर्मी का एहसास
अभी भी मेरे सीने में क़ैद है
मगर ये पिछले दो ढाई साल से तो
जैसे दिलो दिमाग़ में
एक सर्द एहसास भर गया है
कभी कोरोना तो कभी लॉकडाउन
अभी दूसरी लहर से निपटे
वैक्सीन ने हिम्मत जगाई कि तुम फिर आ टपके
क्या जश्न मनाएं
ऑफिस खुलने को थे
पार्टियां बुक हो रही थीं कि
ओमिक्रॉन लेकर टपक पड़े


ख़बरदार जो
इस बार मेरी ज़िंदगी में घुसे
दरअसल ग़लती तुम्हारी नहीं है
तुम ठहरे वक़्त के ग़ुलाम
वह तो हम हैं जो
वक़्त पहचानने में भूल कर जाते हैं
ज़िंदगी में कोई भी काम
सही वक़्त पर करते ही नहीं
जब घूमने का वक़्त था तो हम
सोशल मीडिया में क़ैद हो गए
और आज जब तुमने
घरों में क़ैद कर दिया है तो हम
परिंदों सा उड़ने को बेताब हैं
हमने पार्टियों के दौर देखे हैं
कैम्प फायर और बारह बजे जश्न होते देखा है
मैं हैप्पी न्यू ईयर के लम्हे को जानता हूं
मुझे नए साल में दिलों में उठने वाली
तरंगे पता हैं
मैं हर नए साल में ढेर सारी उम्मीद लेकर
जीने का आदी हूं
इससे पहले कि बात और बढ़ जाए
ज़रा दरवाज़े पर ठहरो
मास्क लगा कर नए साल के डोर
ओपन करूंगा
दोस्तों से हाथ न मिला कर
हाथ जोड़ लूंगा
चॉकलेट के पैकेट और फूलों के गुलदस्ते
व्हाट्सएप पर भेज दूंगा
सेनेटाइज़र डाल कर
दरवाज़े पर तुम्हारा स्वागत करूंगा
और कहूंगा
आओ दोस्त
आज तुम मुश्किल दौर से गुज़र रहे हो
मुझ से ख़ुशी उधार ले लो
तुमने भी तो सालों मुझे
ढेरों ख़ुशियों के लम्हे दिए हैं
मेरी उम्र, मेरी सफलताएं
तुम्हारे एहसान तले दबी हैं
बचपन से आज तक
तुम्हीं तो थे जो
मुझे उम्मीद के दामन में जीना सिखाते थे
जो निराशा के बंधन तोड़ देते थे
यह कह कर कि
नए साल में कुछ नया करेंगे
नए साल में
क़िस्मत बदल जाएगी
क़िस्मत का तो पता नहीं
हौसले ने तक़दीर ज़रूर बदल दी
यह कह कर कि
हाथ की रेखाएं
मेहनत के आगे बदल जाती हैं
सो आज भी निराशा कैसी
उदासी और सन्नाटा कैसा
आओ मेरे पास
मेरे भीतर
उम्मीद की दौलत सांस ले रही है
जो कहती है
इंसानियत को ज़िंदा रखने के लिए
ऐसी चुनौतियां भी ज़रूरी हैं
आओ नव वर्ष
इस साल तुम
इंसान को
इंसानियत सिखाने आना
उसके सर्वशक्तिमान हो जाने के
घमंड को तोड़ने आना
तुम आओ
और लोगों को
वक़्त की क़ीमत बता जाओ


हे नव वर्ष
इस बार तुम
क़ुदरत की ख़ूबसूरती पर
प्यार की दौलत लुटा जाओ
पैसे के लिए
पागल हुई दुनिया को
सुबह और शाम की
अहमियत बता जाओ
आओ नव वर्ष
हमें फिर से
इंसान की तरह
जीना सीखा जाओ
आओ नव वर्ष आओ
हमें फिर से
हंसना, बोलना और लोगों से
मिल जुल कर रहना
बता जाओ
नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है
इंसान को सच्ची ज़िंदगी का
मतलब बता जाओ…

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

यह भी पढ़े: Shayeri

Photo Courtesy: Instagram

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