कई बार तुम्हें दिल के
बेहद क़रीब पाता हूं
लेकिन
ख़्यालों में भी
तुम्हें छूने से
डर जाता हूं
दिल तो चाहता है
तुम्हारे ख़्वाबों के साये से लिपट
तमाम हसरतें पूरी कर लूं
पर डर जाता हूं
क्या पता तुम्हारे ख़्वाब तक
मुझे इसकी इजाज़त न दें
और कहीं
नींद में उनके
आने की कवायद
ठहर जाए
तुम्हें छूने की इजाज़त न सही
ख़्वाब में तुम्हें देखने का
सिलसिला ढेर सारी
अधूरी तमन्ना
पूरी कर देता है
वक़्त ने चाहा तो
एक दिन
सचमुच तुम्हें
छू लेने की इजाज़त मिल जाएगी
और तब तुम्हारे ख़्वाब
मुझे तड़पता हुआ
अधूरा नहीं छोड़ेंगे
मेरा तड़पता बदन
ख़्वाब में भी
तुम्हारी इजाज़त के बिना
तुम्हें छूना नहीं चाहता
मेरी निगाह में
तुम्हारी इजाज़त के बिना
तुम्हें ख़्वाब में भी छू लेना
गुनाह है…
- शिखर प्रयाग
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