फिल्म- अतरंगी रे
कलाकार- अक्षय कुमार, सारा अली खान, धनुष, सीमा बिस्वास
निर्देशक- आनंद एल. राय
रेटिंग- 3 ***
बहुत समय बाद कोई दो ऐसी फिल्में रिलीज़ हुई हैं, जो बेहतरीन और दिलचस्प हैं. फिल्म अतरंगी रे जहां त्रिकोण प्रेम के भावनाओं को उजागर करती है, वहीं 83 क्रिकेट के जुनून और भारत के पहली बार वर्ल्ड कप जीतने के जज़्बातों को उम्दा तरीक़े से बयां करती है. दोनों ही फिल्में अपने आप में श्रेष्ठ और ग्रेट हैं. 83 सिनेमाघर में रिलीज़ हुई है, तो वहीं अतरंगी रे ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज़्नी हॉटस्टार पर.
अतरंगी रे फिल्म के निर्देशक आनंद एल. राय दिलचस्प विषयों पर सुलझे और दिल को छू लेनेवाले निर्देशन के लिए जाने जाते हैं. उनकी फिल्मों में कलाकारों की भावनाओं की अभिव्यक्ति लाजवाब तरीक़े से निखरती है, फिर चाहे वो उनकी फिल्म रांझणा हो, ज़ीरो हो या अतरंगी रे.. फिल्म के तीनों ही कलाकार अक्षय कुमार, सारा अली खान और धनुष ने कमाल का अभिनय किया है, जो पूरी फिल्म में बांधे रखता है.
कहानी
सारा के माता-पिता नहीं है. उनकी नानी जिसका क़िरदार बैंडिट क्वीन फेम सीमा बिस्वास ने निभाया है, ने पाला है. सारा अक्षय के प्यार में दीवानी उनसे शादी करने के लिए 21 बार घर से भाग जाने की कोशिश करती हैं, पर नाकामयाबी ही हाथ लगती है. तब उनकी नानी ज़बरदस्ती धनुष से सारा का विवाह करा देती हैं. लेकिन सारा इस रिश्ते को और धनुष को पति मानने से इंकार कर देती हैं. दरअसल, सारा अक्षय कुमार को प्यार करती हैं, जो जादूगर हैं, पर उनकी शादी बिहार के प्रचलित पकड़वा विवाह की तरह धनुष से करा दी जाती है. दोनों ही इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, पर घटनाएं कुछ इस तरह से घटती हैं कि धनुष को सारा को लेकर कुछ-कुछ महसूस होने लगता है. धनुष तमिलनाडु के हैं, जबकि सारा बिहार की. नॉर्थ-साउथ और फिर अक्षय यह ज़बरदस्त संगम कई गुल खिलाता है. कहानी कई मोड़ पर हंसाती है, तो कहीं पर आश्चर्यचकित कर देती है और कुछ लम्हों में तो ग़मगीन भी कर देती है.
ए. आर. रहमान का संगीत और इरशाद कामिल के गीत दिल को छूते हैं. गीतों में काफ़ी गहराई और इमोशंस हैं. वैसे सारा अली खान ने फिल्म के प्रमोशन के साथ ही श्रेया घोषाल के गाए चकाचक… गाने को तो सुपर-डुपर हिट कर ही दिया है. इसके अलावा रेत ज़रा सी, तूफ़ान की सर्दी, लिटिल लिटिल, तेरा रंग… हर गाने सतरंगी हैं, जिनमें प्यार के कई रंग मिले हुए हैं… और सुनने में अच्छे लगते हैं.
अरिजीत सिंह, दलेर मेहंदी, राशिद अली, श्रेया घोषाल सभी ने अपनी आवाज़ का जादू बख़ूबी बिखेरा है. कॉस्ट्यूम, पंकज कुमार की सिनेमैटोग्राफी और हेमल कोठारी की एडिटिंग बेहतरीन तरीक़े से हुई है, जिससे फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती और शुरू से अंत तक बांधे रखती है और भरपूर मनोरंजन भी करती है. प्यार, दर्द, ख़ुशी, मिलन, जुदाई हर भावनाओं को अतरंगी रे में ख़ूबसूरती से दिखाया गया है. अक्षय कुमार, सारा अली खान, धनुष के फैंस के लिए तो यह फिल्म क्रिसमस और नए साल का शानदार गिफ़्ट है.
'83' ने दिल जीत लिया…
फिल्म- 83
कलाकार- रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, पंकज त्रिपाठी, साकिब सलीम, बोमन ईरानी, हार्डी संधू, ताहिर राज भसीन, जीवा, जतिन सरना, चिराग पाटिल, दिनकर शर्मा, निशांत दहिया, साहिल खट्टर, अम्मी विर्क, आदिनाथ कोठारे, धैर्य करवा, आर. बद्री
निर्देशक- कबीर खान
रेटिंग- 3 ***
क्रिकेट पर जब भी कोई फिल्म बनी है लोगों ने उस पर अपना भरपूर प्यार लुटाया है. यही जुनून 83 में भी देखने को मिलती है. कबीर खान की फिल्म 83 भारत द्वारा साल 1983 में पहली बार वर्ल्ड कप जीतने पर आधारित है. इसमें कपिल देव की कप्तानी में देश को गौरवान्वित होने का मौक़ा मिला था. रणवीर सिंह ने फिल्म में कपिल देव की भूमिका में जान फूंक दी है. हर बार की तरह अपने प्रभावशाली अभिनय से वे हर किसी का दिल जीत लेते हैं.
कपिल देव की पत्नी रोमी बनी दीपिका पादुकोण ने अपनी छोटी-सी भूमिका में भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराया. पंकज त्रिपाठी तो हमेशा की तरह ही लाजवाब रहे हैं. भूमिका छोटी हो या बड़ी वे सब में अपने सशक्त अभिनय से गहरी छाप छोड़ जाते हैं. अन्य कलाकारों में बोमन ईरानी, ताहिर राज भसीन, जीवा, साकिब सलीम, जतिन सरना, चिराग पाटिल, दिनकर शर्मा, निशांत दहिया, हार्डी संधू, साहिल खट्टर, अम्मी विर्क, आदिनाथ कोठारे, धैर्य करवा, आर. बद्री सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. एक बार भी देखने पर लगता ही नहीं कि यह फिल्म में कलाकार हैं सभी ने 83 में वर्ल्ड कप की जीत के टीम के क्रिकेटर की भूमिका में इस कदर रच-बस गए हैं कि ऐसे लगता है यही सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ, श्रीकांत, संदीप पाटिल, मदनलाल, रोजर बिन्नी हैं.
कबीर खान के निर्देशन का जादू इस कदर चलता है कि यूं लगता ही नहीं कि हम थिएटर में फिल्म देख रहे हैं. ऐसा लगता हम स्टेडियम में बैठे हैं और भारत के पहली बार वर्ल्ड कप जीतने के उन पलों को जी रहे हैं. हर जगह उमंग-उत्साह से लबरेज हैं लोग, तालियों की गड़गड़ाहट और क्रिकेट का जोश-जुनून लोगों को दीवाना कर रहा है. यह एक निर्देशक की काबिलियत की बानगी है और इसमें कबीर खान सभी का दिल जीत लेते हैं. उन्होंने चाहे रणवीर सिंह हो या सभी क्रिकेटर की भूमिका में कलाकार, उनसे उम्दा अभिनय करवाया है. साथ ही यह शिद्दत से महसूस कराया कि हम वर्ल्ड कप जीतने के उन लम्हों को भरपूर जी रहे हैं. कबीर खान बधाई के पात्र हैं. रणवीर सिंह की मेहनत इस कदर निखर कर दिखती है कि पूरी फिल्म में छाए रहते हैं. उनके अभिनय से ऐसे लगता है कि रणवीर नहीं, कपिल देव ही हैं. उनकी इस तरह की तारीफ़ एक्टर सुनील शेट्टी ने भी फिल्म देखने के बाद की थी. लगता ही नहीं कि हम कोई फिल्म देख रहे, यूं लगा कि हम मैच देख रहे हैं. हम अपने विश्व विजेता बनने के उन पलों को जी रहे हैं और गर्व महसूस कर रहे हैं.
विदेशी क्रिकेटर्स विवयन रिचर्ड्स, क्लाइव लॉयड, ग्रेग चैपल
की भूमिका निभानेवाले एक्टर्स ने भी बेहतरीन काम किया है. एडिटर नितिन वैद ने अच्छी एडिटिंग की है, जिससे फिल्म रोमांच से भरपूर और कसी हुई लगती है. पूरी फिल्म के सीन अच्छे और लाजवाब हैं, लेकिन ख़ासकर कपिल देव का जिंबाब्वे के सामने 175 रन की पारी खेलना, विवयन रिचर्ड्स का विकेट लेनेवाले कपिल देव का कैच और भारत का पहला मैच वेस्टइंडीज के साथ सीन्स बेहद उम्दा हैं.
1983 के वर्ल्ड कप के समय भारतीय क्रिकेट टीम के जो सदस्य थे, एक बार फिर उनकी तारीफ़ करनी होगी, क्योंकि उनकी सिलेक्शन लाजवाब हुई है इसमें कोई दो राय नहीं. फिर चाहे वह फारुख इंजीनियर के क़िरदार में बोमन ईरानी, सुनील गावस्कर बने ताहिर भसीन, यशपाल के रोल में जतिन सरना, मदन लाल बने हार्डी संधू, बलविंदर संधू बने एमी विर्क, श्रीकांत के क़िरदार में तमिल एक्टर जीवा, मोहिंदर अमरनाथ की भूमिका में साकिब सलीम ही क्यों ना हो. सभी ने अपना सौ फ़ीसदी दिया और फिल्म में लाजवाब अभिनय किया है.
क्रिकेट प्रेमी के साथ-साथ भारत को गौरव महसूस करानेवाले, दुनियाभर में भारत का नाम रोशन करनेवाले इन क्रिकेट खिलाड़ियों के जज़्बे, इनके खेल और अभिनय को देखना बेहद दिलचस्प है. इसे हर किसी को ज़रूर देखना चाहिए. अपने उन सभी खिलाड़ियों का आभार, जिन्होंने क्रिकेट में भारत का नाम दुनियाभर में मशहूर किया.
ड्रेसिंग रूम का ड्रामा, इमोशंस, कॉमेडी, क्रिकेट के एक्शन, बैकग्राउंड स्कोर सब कुछ ख़ूबसूरत और आकर्षक हैं और बांधे रखते हैं. ऐसी फिल्मों में गाने का तो कोई कोप नहीं रहता, फिर भी लहरा दो… गाना ज़ुबां पर रह जाता है. आइए फिल्म देखकर एक बार फिर अपने विश्व विजेता बनने के जज़्बे को जीएं और गर्व महसूस करें.
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