बातों में बेखटकी है
हंसने में बेफ़िक्री है
पंख फैलना आता है
हवा से हाथ मिलना भाता है
पंछी की तरह ख़ुद में
साहस भरने वाली स्त्रियां
उड़ने वाली स्त्रियां…
तर्क-वितर्क की बात करती
पूरी तरह अपडेट ये रहती
रुचियों को विस्तार देतीं
लिखने-पढ़ने वाली स्त्रियां
उड़ने वाली स्त्रियाँ…
सास-बहू से उठकर ऊपर
आसमान के तारे छूकर
बड़ी-बड़ी मिसाइल बनाकर
कई दफ़ा ये चांद पे जाकर
इतिहास गढ़ने वाली स्त्रियां
उड़ने वाली स्त्रियां…
न द्वारे पे जमघट लगाती
न सहारे को किसी को बुलाती
स्त्री की स्त्री अब बनी सहेली
कहीं खो गई
अब लड़ने वाली स्त्रियां
उड़ने वाली स्त्रियां...
- पूर्ति वैभव खरे
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