कभी सोचा नही था यूं किसी से प्यार हो जाएगा… ये कहां जानती थी कि खुद का दिल खुद का नही रह जाता… दिल के हाथों मजबूर होना पड़ता है, ये तब समझ में आया, जब मुझे प्यार का मतलब समझ में आया. उससे मेरी पहली मुलाकात कैंसर हॉस्पिटल में हुई थी. मै वहां नर्स थी और वो कैंसर पेशेंट. वह हॉस्पिटल में अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिन काट रहा था. एक दिन मैंने देखा वो वह गुनाहों का देवता उपन्यास पढ़ रहा था… “यह मेरा पंसदीदा उपन्यास है.” मैंने इंजेक्शन तैयार करते हुए कहा.
उसने उपन्यास को एक तरफ रखते हुए कहा, “अरे, आप लोग भी रोमांस से भरी किताबें पढ़ते हैं.” मैंने उसे घूरते हुए देखा.
“नहीं, वो आप लोग इंसानों की चीरफाड़… मुझे लगा आप लोग निष्ठुर होते हो. पेशेंट कितना भी चीखे आप जलने वाली दवा ज़ख्मों पर लगाते ही हो.”
“वो इसलिए कि मरीज़ ठीक हो जाए… कभी-कभी कठोर बनना पड़ता है.”
“आप लोग प्यार-व्यार जानते हो ये नहीं सोचा था...” वह मेरे चेहरे पर नज़रें गड़ाते हुए बोला.
मै मुस्करा कर रह गई.
दूसरे दिन मैं जब उसका चेकअप कर रही थी, तो वो पूछ बैठा- “आपके पास अमृता इमरोज़ हों, तो देना… मैं पढ़ना चाहता हूं. कल लौटा दूंगा.”
जिसके जीवन के अगले पल का भरोसा नहीं, वो आने वाले कल की उम्मीद लगाए बैठा है… मैं अनायास ही मुस्करा दी.
“आपकी मुस्कराहट ओस के मोती जैसी है”उसने तारीफ करते हुए कहा.
उस दिन मेरी नाइट ड्यूटी थी. मैंने उसे उपन्यास पढ़ने को दिया, वह इतना खुश हुआ था, जैसे मचलते बच्चे को चॉकलेट का मिल गई हो.
वह फ़ौरन पढ़ने बैठ गया. मैं बीच-बीच में उसके वॉर्ड में जाकर उसे देखती, पर वो पढ़ने में ही तल्लीन था. “रात के दो बजे गए, अब सो जाओ.”
“कुछ दिन बाद चिर निंद्रा में सोना ही है, क्यों न कुछ देर जाग लूं.” मेरे पास उसकी बात का जवाब नहीं था. दो कप कॉफ़ी लेकर मैं उसके पास पहुंची. “मुझे भी नींद नहीं आ रही है, चलो कॉफ़ी पीते हैं.” वह कॉफ़ी पीते-पीते बोला, “प्यार भी अजीब चीज़ है.”
“उपन्यास का जादू चढ़ा है या किसी से प्यार किया है” मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा.
“एक आरज़ू, एक जुस्तजू, एक ख्वाब, एक नशा… न जाने कितने नाम होते हैं प्यार के. चाहा जो मिल जाए, तो ज़िंदगी से शिकायत कैसी? मै प्यार करता था उससे. मुझे कैंसर है यह बात पता चलते ही वह किनारा कर गई. सच तो है प्यार की परिणति प्यार ही हो ये ज़रूरी नहीं. मैं प्यार नहीं पा सका, पर उसका एहसास मेरे आसपास आज भी मौजूद है. मैं प्रेम कहानियों को जीना चाहता था. वो ख्वाहिश आपने पूरी कर दी.”
मैं कुछ दिनों से उसके लिए अलग-सा महसूस करने लगी. मुझे उससे एक अजीब-सा लगाव हो गया था. उसके बगैर कुछ खालीपन लगने लगा था. कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि इस तरह किसी से मुझे प्यार हो जाएगा. मैं खुद को समझाने लगी थी, पर उसकी बातें, उसकी मुस्कुराहट, उसका एहसास मुझे बैचेन कर रहा था. उस दिन जब मैं हॉस्पिटल पहुंची, तो पता चला वो नहीं रहा. दिल बैठ गया… पर ये तो होना ही था. फिर भी मुझे बुरा लग रहा था. रह-रहकर मुझे उसकी याद आ रही थी. कुछ देर बाद वॉर्ड बॉय ने एक लेटर थमाते हुए कहा, “मरने से पहले उन्होंने यह पत्र आपको देने को कहा था.”
मैंने जल्दी से पत्र खोला, लिखा था…
‘प्रिय दोस्त,
ख्वाहिशों की कोई उम्र नहीं होती, इन चंद दिनों में मेरे मन में आपके प्रति प्यार एक अलग-सा लगाव, कशिश या सच कहूं तो प्यार जाग गया था. चाहा था कि आपके दिल का एक कोना मेरे लिए, मेरी मुहब्बत से गुलज़ार हो और मेरे प्यार की खुशबू से आपका तन-मन महके, हर लम्हा सुकून से भरा हो, ख्यालों में प्यार की ख़ामोशी हो… और भी न जाने क्या-क्या… पर ऐसा हो न सका. मेरा पास वक्त नहीं है, फिर भी मुझे अफसोस नहीं… आपके साथ गुज़ारे इन पलों की याद और आपके प्यार की महक साथ लिये जा रहा हूं. शुक्रिया! मेरी ज़िंदगी के आखिरी पलों को खुशनुमा बनाने के लिए.
- तुम्हारा प्यारा दोस्त
ख़त पढ़ते-पढ़ते मेरी आंखें भीग गईं. उसके प्यार की धरोहर मैंने सहेज ली. उसकी बातें मेरे दिल में गूंज रही थी… प्यार की परिणति प्यार तो नहीं. मैं भी… मैं भी तुमसे प्यार करती हूं मेरे दोस्त… सदा के लिए अलविदा! तुम हमेशा मेरे दिल में, मेरी यादों में रहोगे.
- शोभा रानी गोयल
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