“इसी का तो डर है मुझे. अब तक तो मैंने इन पर कंट्रोल रखा है, पर यदि मैं वहां पहुंच गई, तो इन को रोक पाना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा. साथ ही मेरे लिए भी अब निहित स्वार्थ से लड़ना कठिन होता जा रहा है. मेरी उपलब्धियां तो तुझे दिखी, पर उन्हें प्राप्त करने के लिए मुझे किस किस से और कितना लड़ना पड़ा मैं बतला नहीं सकती. ये बातें कुछ ऐसी हैं मेरे भाई कि मैं तुझे समझा नहीं सकती, यह केवल अनुभव की जा सकती है.
... “वाह दीदी, तुम ने तो खरगोश की दौड़ लगाने की बजाय कछुए की चाल से ही सबों को मात दे दी. अच्छा यह तो बताओ ये कुटीर उद्योग कैसे आ गए तुम्हारे गांव में. सरकारी विभाग से इसकी उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती.” “ऐसा है, एक बार जब मैं प्रशासन की नज़र में आ गई, तो प्रांतीय एवं राष्ट्रीय स्तर की बैठकों में जो शिष्ट मंडल भेजा जाता, मैं उसका हिस्सा होती. ऐसी ही एक बैठक में मेरी मुलाक़ात एक उदार उद्योगपति से हो गई, जो किसी एक गांव को गोद लेना चाहते थे और उसके विकास हेतु कुछ निवेश करना चाहते थे. मैंने उन्हे अपने गांव के विषय में बतलाया और उन्हे यहां आने का निमंत्रण दे दिया. शायद उत्सुकतावश ही वे हमारे गांव आए और साथ आई उनकी टीम, जिसने पूरे इलाके का सर्वेक्षण किया. हमारी टीम के काम से वे प्रभावित तो थे ही, उनके विशेषज्ञों को यहां कुछ छोटे स्तर के उद्योगों की संभावना भी दिखी, तो लॉन्ग स्टोरी इन शॉर्ट उन्ही के सहयोग से कुटीर उद्योगों की स्थापना हो गई, जो अब तक निर्बाध चल रहे हैं. यह सुविधा न केवल इस गांव के नौजवानों एवं महिलाओं को बल्कि आसपास के लोगों को भी रोज़गार का अवसर प्रदान कर रहा है.” यह भी पढ़ें: स्त्रियों की 10 बातें, जिन्हें पुरुष कभी समझ नहीं पाते (10 Things Men Don't Understand About Women) “दीदी, तुम ग्रेट हो. कितने दिन हो गए तुम्हें प्रधानी करते हुए?” “यह मेरा दूसरा टर्म है. बस एक साल और, फिर मैं अवकाश ले लूंगी. जानता है दूसरी बार मुझे लोगों ने सर्वसम्मति से अपना मुखिया चुना था.” “क्या बात है दीदी, मगर इसके बाद एक बार विधानसभा तक की यात्रा तो बनती है? तुम ने चाचा हमारे एमएलए हैं नामक सीरियल तो अवश्य देखी होगी? हमें भी कुछ ऐसा ही कहने का मौक़ा मिले, तो मज़ा आ जाए. तुम भी ज़्यादा बड़े क्षेत्र की सेवा कर सकोगी और हम सीना चौड़ा कर घूमेंगे. साथ ही जीजू को भी उड़ान के लिए बड़ा आसमान मिल जाएगा.” “इसी का तो डर है मुझे. अब तक तो मैंने इन पर कंट्रोल रखा है, पर यदि मैं वहां पहुंच गई, तो इन को रोक पाना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा. साथ ही मेरे लिए भी अब निहित स्वार्थ से लड़ना कठिन होता जा रहा है. मेरी उपलब्धियां तो तुझे दिखी, पर उन्हें प्राप्त करने के लिए मुझे किस किस से और कितना लड़ना पड़ा मैं बतला नहीं सकती. ये बातें कुछ ऐसी हैं मेरे भाई कि मैं तुझे समझा नहीं सकती, यह केवल अनुभव की जा सकती है. देख तू ही अच्छा है, समाज की उन्नति में बच्चों की शिक्षा के माध्यम से जो योगदान कर रहा है, वही पूरी निष्ठा के साथ करता जा, शेष भूल जा. छोड़ इन बातों को, मैं ही लगातार बक-बक किए जा रही हूं, अब कुछ तू अपनी सुना, बहुत दिनों का बकाया भी है.” फिर हम दोनों रात के भोजन के बाद भी देर तक बातें करते रहे. दबे स्वर में ही सही मैंने एक बार पुनः दीदी से विधानसभा की यात्रा तय करने का आग्रह किया, मगर उन्होंने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया. वैसे सच कहूं, तो दीदी का फ़ैसला सही था, वह स्थान उनके लिए बिल्कुल नहीं था या यूं कहें दीदी उसमें फिट नहीं बैठती. यह तो शुरू के दिनों का उनका संघर्ष था, जिसने उन्हें इतनी शक्ति प्रदान की और वे परिस्थितियों से लड़ते हुए भी समाज को कुछ दे सकी. विश्वास कीजिए, मैं बेहद ख़ुश हूं कि मेरी दीदी एमएलए नहीं है. प्रो. अनिल कुमार यह भी पढ़ें: सुपर वुमन या ज़िम्मेदारियों का बोझ (Why women want to be a superwomen?) अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
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