कोरोना ने हमसे बहुत कुछ छीना है, जिसकी भरपाई असंभव है. ऐसी ही एक क्षति है साहित्य के अमर कृतिकार नरेंद्र कोहली. इस क्षति की पूर्ति तो साहित्य में कभी नहीं हो पाएगी, पर आज विजयदशमी के अवसर पर उनकी रामकथा का सारांश आपके साथ बांटते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देने की कोशिश कर रही हूं.
कहते हैं, वाल्मीकि-रामायण को तुलसी ने तब रामचरितमानस के रूप में जनमानस को बांटा, जब उन्हें एक ऐसे आदर्श चरित्र की सख्त ज़रूरत थी, जिसके सामने वो रो सकें, जिसे आपना कह सकें. उन्होंने समाज के उत्थान के लिए भक्ति का वरदान दिया और एक ऐसा चरित्र गढ़ा, जो सबके हृदय में उतरकर उनका ही बन गया.
आज के युग में यही काम नरेंद्र कोहली ने किया. उन्होंने नास्तिक होती जा रही युवापीढ़ी के तर्कों को समझा उनके उद्वेलन को अपनाया और ऐसे चरित्रों की रचना की, जिन्हें आज की पीढ़ी समझ सकती है, जिन चरित्रों से उनकी तर्कशक्ति सहमत हो सकती है और उनके जीवन से मिली शिक्षाओं को आत्मसात कर सकती है. नरेंद्र कोहली ने हमारे धर्मग्रंथों की लगभग सभी काल्पनिक कही जानेवाली घटनाओं और चरित्रों के वैज्ञानिक पहलुओं की व्याख्या कथात्मक ढंग से की है और यही उनकी साहित्य को सबसे बड़ी देन है.
जब 'अभ्युदय' पढ़ा था, तो बहुत दिनों तक विह्वल रही थी. वाल्मीकि के सिया-राम, तुलसी के सिया-राम ने अनेकों बार आपको भाव-विभोर किया होगा, पर मैं जिन सिया-राम की बात कर रही हूं, वो हिंदी के प्रख्यात लेखक नरेंद्र कोहली के सिया-राम हैं. वो ईश्वर नहीं, इंसान हैं, लेकिन मेरा दावा है कि अगर कोई धुर नास्तिक भी इस उपन्यास को एक बार पढ़ ले, तो उसका मन सीता-राम नाम के उन ‘इंसानों’ के प्रति श्रद्धा से नत हुए बिना नहीं रह सकेगा.
नरेंद्र कोहली के राम विष्णु के अवतार नहीं, जिनके आगमन पर प्रत्येक इंसान, ऋषि-मुनि और शोषित जनता उनके चरणों में गिर पड़ती हो. वो एक संवेदनशील, कर्मरत बुद्धिजीवी थे, जिनसे लोग तर्क करते थे, आरंभ में राक्षसों के भय, अपनी अकर्मण्यता, पूर्वाग्रहों तथा कभी-कभी कायरता के कारण असहयोग भी करते थे. और इसी कारण सीता-राम और लक्ष्मण का व्यावहारिक चिंतन उनकी राक्षसी प्रवृत्ति को नष्ट करने और समता पर आधारित सुखी मानव समाज की स्थापना करने की तीव्र आकांक्षा और उसे व्यवहार में परिवर्तित करने के लिए किया गया अथक और निरंतर संघर्ष पूरी सुंदरता के साथ मुखरित हो सका है.
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विश्वामित्र राम को अपने साथ राक्षसों के वध के लिए ले गए, तो उन्होंने वहां क्रूरता का जो आतंक देखा, उससे संवेदनशील राम द्रवित हुए. उन्होंने न्याय के पक्ष में शस्त्र उठाने की आवश्यकता को दिल से महसूस किया. वे विश्वामित्र के आश्रम और आस-पास के ग्रामवासियों के संपर्क में आने से इस सत्य से भी परिचित हुए कि निरंतर शोषण सहते-सहते इंसान कितना डरपोक तथा निराशावादी हो जाता है तथा विरोध के अभाव में सत्ताधारी शक्तियां कितनी उत्शृंखल. विश्वामित्र के प्रयत्नों से राम द्वारा हुआ कुछ राक्षसों का वध बाकी लोगों के मन में जमी निराशा की परत तोड़ने और अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने की प्रेरणा बना.
विश्वामित्र जानते थे कि जनक की पालित पुत्री सीता सिद्धांतों, संवेदनशीलता तथा विचारों में बिल्कुल राम जैसी हैं, इसलिए उन्होंने इन्हें जीवनसाथी बनाने का प्रयत्न किया जो सफल रहा. अहिल्या के मन में जमी पाषाणवत निराशा को भी विश्वामित्र की प्रेरणा से संवेदनशील राम ने तोड़ा.
राम ने विश्वामित्र को वचन दिया कि वे लोगों के बीच जाकर, उनमें से एक बनकर समाज में स्थित दुष्प्रवृत्तियों का नाश करने और फिर उन्नत समाज को संगठित करके राक्षसी शक्तियों के विरुद्ध खड़ा करने का कार्य आजीवन करते रहेंगे.
कैकई के आदेश उन्हें अपने जीवन के इस लक्ष्य के प्रति समर्पित होने के लिए मिला सुअवसर लगे और उनकी संघर्ष यात्रा आरंभ हुई.
संघर्ष यात्रा ही उनकी विजय-यात्रा प्रमाणित हुई. जंगलों में साहसी और संवेदनशील सीता-राम और लक्ष्मण की मुलाक़ात समाज के विभिन्न शोषित-पीड़ित वर्ग के लोगों से हुई. वे उनसे सहानुभूति पाकर और उनकी वीरता पर थोड़ा-बहुत विश्वास करके उन्हें अपनी समस्याएं बताते और राम समस्याओं को सुनकर चिंतन में डूब जाते. सामाजिक विषमता को लेकर पनपा क्षोभ, शोषकों के प्रति क्रोध और शोषितों के प्रति करुणा भाव उन्हें उद्वेलित करता और वे उनकी सहायता के लिए उद्यत हो जाते. कभी-कभी वो व्यावहारिक पक्षों पर विचार करते हुए स्वयंं को किसी शोषक से निर्बल भी पाते. ऐसे में आस-पास के ऋषियों से सहायता मांगते. कोहली की राम-कथा में राम और वन्य ऋषियों की बातचीत, उनके विचार-विमर्श बहुत रुचिकर हैंं. वो राम के बुद्धिजीवी रूप का परिचय कराते हैं
- भावना प्रकाश
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