"ममा... मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं. मैंने…" वह आगे कुछ कहना चाहती थी कि तभी रमेश बोला," सीमा, वह दरअसल आभा तुम्हें बतानेवाली थी, पर तुम थोड़ा शांति से सुनना... वह चाहती है कि…" अब अपने पिता की बात को बीच से काटते हुए संवाद की कमान आभा ने अपने हाथ में ले ली और कहना प्रारंभ किया, "अरे पापा, आप इतना क्यों डर रहे हैं? मैं किसी का खून तो नहीं करनेवाली हूं..."
... उस बेंच पर बैठकर दोनों में कभी भी घर-परिवार की बातें नहीं होती थी. बेंच पर बैठते ही सीमा की उम्र जैसे 20 वर्ष की हो जाती. मानो वह बेंच, बेंच नहीं बल्कि टाइम मशीन हो, जो उसे उसके कॉलेज के ज़माने में ले जाता था. सीमा समझ नहीं पा रही थी कि यह उस बेंच का जादू था या सूरज का, जो उसे ज़बरदस्ती हाथ पकड़ कर रोशनी की ओर खींचता जा रहा था. सीमा और सूरज की दोस्ती को चाहे चार-छह महीने हो चुके थे, पर सीमा ने अपने जीवन के अंधेरे आज तक सूरज के सामने ज़ाहिर नहीं किए थे. वह चाहती तो थी कि सूरज को उसके मन में चलते द्वंद के बारे में बताएं, पर अब उसे सूरज को खोने का डर सता रहा था. सीमा अब तक सूरज की जंगली मंडली का हिस्सा तो नहीं बनी थी, पर उसने उस मंडली में प्रवेश ज़रूर कर लिया था. उस मंडली के सभी सदस्य 18 से 20 साल के बीच के थे. सब खुले दिल से हर विषय पर बात करते थे. अपनी समस्याएं एक-दूसरे को बताते थे. और इस सब में उनका पूरा साथ देता था सूरज. जब वह इन नवयुवकों-युवतियों की किसी समस्या का समाधान करता था, तब वह कोई फूहड़ मज़ाकिया नहीं, बल्कि परिपक्व सलाहकार सा लगता था. सूरज के व्यक्तित्व के इतने सारे रंगों में जाने-अनजाने सीमा रंगने लगी थी. उसका अवसाद कुछ कम सा होने लगा था... और जिस दिन उसे ऐसा लगा कि अब वह कुछ बेहतर महसूस करने लगी है, उसी दिन सुबह नाश्ते की मेज पर एक नया बवाल हुआ. रोज़ की ही तरह टहल कर सीमा घर पहुंची और नहा-धोकर मेज पर पहुंची. आज नाश्ते की मेज पर कुछ ज़्यादा ही शांति थी. आभा और रमेश तूफ़ान के पहले की शांति समेटकर बैठे थे. सीमा स्थिति को कुछ-कुछ भाप तो गई थी, पर मसला उसे समझ में नहीं आया, तो उसने पूछा, "आभा, क्या बात है? आज तुम समय से उठकर नाश्ते के लिए आ गई और इतनी शांत क्यों हो?" आभा ने बात शुरू की, "ममा... मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं. मैंने…" वह आगे कुछ कहना चाहती थी कि तभी रमेश बोला," सीमा, वह दरअसल आभा तुम्हें बतानेवाली थी, पर तुम थोड़ा शांति से सुनना... वह चाहती है कि…" अब अपने पिता की बात को बीच से काटते हुए संवाद की कमान आभा ने अपने हाथ में ले ली और कहना प्रारंभ किया, "अरे पापा, आप इतना क्यों डर रहे हैं? मैं किसी का खून तो नहीं करनेवाली हूं. ममा, आपको तो मेरी हर एक बात से प्रॉब्लम होता है. इसलिए मैंने आपको कुछ नहीं बताया. मैंने अपने दोस्तों के साथ मुंबई के एक कॉलेज में एडमिशन ले लिया है. 4 महीनों में मुझे मुंबई शिफ्ट होना है. मैं पढ़ाई के साथ-साथ कंटेंपरेरी डांस भी सीखना चाहती हूं." सीमा मामले को पूरा समझे ना समझे पर इस बात ने उसे हिला दिया कि आभा ने अपनी मर्ज़ी से कोई निर्णय लिया है और यह उसे कतई गवारा नहीं था. वह ग़ुस्से से लाल हो गई. लगभग चिल्लाने के अंदाज़ में बोली, "आभा... यह मनमानी नहीं चलेगी. मैं तय करूंगी कि तुम कहीं जाओगी या नहीं. कोई डांस डांस सीखने की ज़रूरत नहीं है." सीमा की सांस फूलने लगी रमेश ने आकर सीमा को संभाला और आभा को अंदर जाने का इशारा किया... वह बोला, "सीमा, शांत हो जाओ. ऐसे तो तुम अपनी तबीयत ख़राब कर लोगी." उसने कुछ देर बाद सीमा का हाथ अपने हाथों में लिया और बोला, "क्या बात है सीमा क्यों सब से नाराज़ हो. हम इस समस्या पर शांति से बैठकर भी तो बात कर सकते थे." अभी भी सीमा कुछ भी कहने-सुनने की परिस्थिति में नहीं थी. वह नींद की दवाई खा कर सो गई. यह भी पढ़ें: रिश्तों में बदल रहे हैं कमिटमेंट के मायने… (Changing Essence Of Commitments In Relationships Today) सुबह जल्दी ही टहलने निकल गई और बेंच पर बैठकर सूरज का इंतज़ार करने लगी. अपने तय समय में सूरज आया और सीमा को अकेले बैठा देखकर उसके पास गया और गौर से देखकर बोला, "तुम्हारी यह वाली शक्ल मैं ख़ूब पहचानता हूं. पता नहीं किस चीज़ का बोझ अपने सिर पर लेकर घूमती हो और मुझे यह भी अच्छे से पता है कि चाहे मैं कितनी बार भी पूछ लूं, तुम मुझे कुछ नहीं बताओगी. तो ठीक है चलो चाय ही पी जाए." सूरज का यह बेफ़िक्र और लापरवाह अंदाज़ सीमा के लिए नया नहीं था. चायवाला कुछ ही समय में चाय लेकर आया. सूरज को चाय देकर जैसे ही वापस चलने को हुआ पीछे से सीमा ने आवाज़ दी, "सुनो... भैया आज क्या मुझे भी चाय पिलाओगे?" चायवाले की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा उसके चेहरे की जगमगाहट देखने लायक थी. सीमा को चाय पिलाकर उसे क्याआनंद मिलनेवाला था यह तो वही जाने. अपने उत्साह को शब्दों में पिरोकर वह बोला, "अरे मैडमजी क्यों नहीं पिलाएंगे अभी अदरक कूटते हैं और बनाते हैं एक कड़क प्याला चाय." इन सबके बीच सूरज सीमा को आवाक-सा देख रहा था. वह अचंभित था. वह बोला, "क्या बात है..? जीना सीख गई हो या आज कुछ ज़्यादा ही परेशान हो? क्या सच में चाय पीयोगी?" सूरज का प्रश्न जो भी था, पर सीमा ने उत्तर वही दिया, जो वह देना चाहती थी. इतने में चायवाला गरमा गरम चाय लेकर आया. सीमा चाय की प्याली हाथ में लेकर खोए से अंदाज़ में कहा, "कभी-कभी मुझे लगता है मैं घर की किसी उपेक्षित दीवार पर लटकी हुई पेंटिंग हूं. मेरा होना ना होना कोई महत्व नहीं रखता. मैं बस हूं... यही मेरा औचित्य और अस्तित्व है. आईने के अलावा ख़ुद को कहीं देख ही नहीं पा रही."अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
माधवी निबंधे यह भी पढ़ें: उत्तम संतान के लिए माता-पिता करें इन मंत्रों का जाप (Chanting Of These Mantras Can Make Your Child Intelligent And Spiritual) अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES https://www.merisaheli.com/category/others/short-stories/
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