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कहानी- मेरे हिस्से का आकाश 1 (Story Series- Mere Hisse Ka Aakash 1)

लेकिन आज केशव की दी हुई ख़बर ने ऊपर से जमी बर्फ़ के नीचे शांत बह रही नदी में खलबली-सी मचा दी थी. स्मृतियों के तूफ़ान ने बर्फ़ की ऊपरी तह पर जहां-तहां दरारें डाल दी थी. जहां से स्मृतियों के जखीरे प्रवाह के साथ बाहर निकल कर मस्तिष्क पर हथौड़े मार रहे थे...

      प्रज्ञा ने ऑफिस में कदम रखा ही था कि केशव चहकते हुए बोला, “एक धांसू ख़बर सुनाऊं... तो मुझे क्या मिलेगा.” “क्या चाहिए?” प्रज्ञा मंद-मंद मुस्कुराती अपनी सीट की तरफ़ बढ़ती हुई बोली. “अरे वाह, यह तो ब्लैंक चेक हुआ... मैं चाहे जो लिख दूं.” “नहीं, ऐसा भी नहीं है... क्योंकि उस अकाउंट की लिमिट बहुत सीमित है, जहां का चेक काट कर तुम्हें दिया है.” प्रज्ञा ने भी नहले पर दहला मारा. “चलो बताता हूं... अपना यार, दिलदार बैंगलुरू आ रहा है और वो भी अपने ऑफिस में. ख़ूब जमेगी, जब मिल बैठेंगे हम तीन.” केशव मस्त अंदाज़ में बोला. “कौन, क्या अक्षत..?” पलभर के लिए प्रज्ञा की दोनों झीलों में बिजली-सी चमकी फिर बुझ गई. उसका मुंह खुला का खुला रह गया. “तो और कौन..?” “तुम्हें कैसे पता?” “यह गरमागरम ख़बर पूरे ऑफिस को पता है. जब अक्षत श्रीवास्तव का नाम व मुंबई सुना, तो फोन घुमा लिया. बस पक्की ख़बर ले ली, पर बंदा अपना सीनियर बन कर आ रहा है. ऑफिस में थोड़ी दादागिरी तो दिखाएगा, पर ऑफिस के बाहर देख लेंगे अपन उसको.” केशव अपनी ही धुन में बोले जा रहा था, लेकिन प्रज्ञा का भावशून्य चेहरा जैसे अपने अंदर की गुफा में गुम हो कहीं खो गया था. हृदय के उन अनगिनत परतों में जहां अक्षत की अनेकानेक यादें दफन हुई पड़ी थी, उसका नाम सुनकर सरसराहट आरंभ हो गई थी. भयंकर आंधी चलने लगी थी. “अरे, तुम कहां खो गई...” केशव उसे कंधे से पकड़ कर झिंझोड़ता हुआ बोला, ”मैं तो सोच रहा था, अक्षत का नाम सुन कर चेक पर लिखा अमाउंट बढ़ा दोगी... हमारी तिगड़ी एक बार फिर पूरी होने जा रही है.” “नहीं, कुछ नहीं...” वह अपनी सीट पर बैठ कर लैपटॉप ऑन करने लगी. केशव उसे आश्चर्य से घूरता रह गया. फिर कुछ सोचता हुआ अपनी सीट पर लौट आया. प्रज्ञा के मन के अंदर चलनेवाली उठा-पटक से वह भी वाकिफ़ था. यह भी पढ़ें: रिश्तों को लेंगे कैज़ुअली, तो हो जाएंगे रिश्ते कैज़ुअल ही… ऐसे करें अपने रिश्तों को रिपेयर! (Relationship Repair: Simple Ways To Rebuild Trust & Love In Your Marriage) प्रज्ञा लैपटॉप ऑन कर ख़ुद को काम पर फोकस करने का प्रयत्न करने लगी. कई महीनों के वर्क फ्राॅम होम से उकता कर अब जाकर कहीं ऑफिस के दर्शन हुए थे. शुरुआत में हफ़्ते में सिर्फ़ 3 दिन ही आना पड़ता था. इसी हफ़्ते से पूरा वीक हुआ था. वह ख़ुश थी, ऑफिस का एक अलग माहौल होता है, काम को तल्लीनता से करने के लिए, अच्छा लगता है. लेकिन आज केशव की दी हुई ख़बर ने ऊपर से जमी बर्फ़ के नीचे शांत बह रही नदी में खलबली-सी मचा दी थी. स्मृतियों के तूफ़ान ने बर्फ़ की ऊपरी तह पर जहां-तहां दरारें डाल दी थी. जहां से स्मृतियों के जखीरे प्रवाह के साथ बाहर निकल कर मस्तिष्क पर हथौड़े मार रहे थे. केशव, अक्षत व उसने कानपुर आईआईटी से इंजीनियरिंग की थी. इस तिगड़ी में वह पढ़ाई के मामले में अक्सर दोनों को मात दे जाती. केशव जहां हमेशा उसकी बुद्धि को प्रधानता देता, अक्षत उसके लड़की होने को... यहां तक कि उसके रूप को भी इसका कारण बताता. वह मन ही मन आहत हो जाती. “अपनी प्रज्ञा तो भानुमति का पिटारा है.. जब चाहो तब खोलो और जो नहीं आता पूछ लो.” कहकर केशव सरलता से उसका अधिपत्य स्वीकार कर लेता. “हां, लेकिन भानुमति का पिटारा यदि अनुपम सौंदर्य का धनी भी हो, तो बात कुछ और हो जाती है. सब तरफ़ इंप्रेशन अच्छा पड़ता है.” Sudha Jugran सुधा जुगरान       यह भी पढ़ें: रोमांटिक क्विज़: जानिए कितने रोमांटिक कपल हैं आप (Romantic Quiz: How Much Romantic Couple Are You)         अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES  

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