क्या कहें आज क्या माजरा हो गया
ज़िंदगी से मेरा वास्ता हो गया
इक ख़ुशी क्या मिली मैं निखरती गई
ये तबस्सुम मेरा आईना हो गया
ग़म के साये तले हम पले थे मगर
ये हंसी आज साथी नया हो ग़म
कोई ग़म क्यूं रहे आंख नम क्यूं रहे
मुस्कुराने का अब इक नशा हो गया
हर कठिन दौर में हम अकेले थे पर
जब बढ़ाई कदम क़ाफ़िला हो गया
अब किसी से हमें कोई शिकवा नहीं
वो खुदा अब मेरा रहनुमा हो गया
- रेखा भारती मिश्रा
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Photo Courtesy: freepik
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