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कविता- मेरी नज़र से… (Poem- Meri Nazar Se…)





अब अपनी आंखें खोल देना
और आईने में
ख़ुद को देखना
मेरी नज़र से
जैसे तुम्हें
आईना नहीं
 मैं
देख रहा हूं
देखना अपने माथे के सौंदर्य को
अपनी आंखों में बसे
दूसरों को
प्यार से देखने के हुनर को
और देखना
अपनी हंसी को
मेरी निगाह से
जो इतनी ख़ूबसूरत है
कि न जानें कितने रोते हुए
चेहरों में ताज़गी भर दे
देखना
अपनी तराशी हुई ख़ूबसूरत
गर्दन को
और फिर थोड़ा सा
शरमाते हुए
अपने पूरे बदन को
मेरी निगाह से
सोचना कि
कहां कहां
टिकती और रुकती होगी
मेरी निगाह
तुम्हें देखते हुए
तुम्हारे बदन के
सौंदर्य का रस पीने को
इसे देखते ही
तुम ख़ुद से
बेइंतहा प्यार करने लगोगे
यकीन मानो
कितना कुछ छुपा है
तुम्हारे भीतर
बस तुमने कभी
ख़ुद को
गौर से देखने की
कोशिश ही नहीं की…


- शिखर प्रयाग





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Photo Courtesy: Freepik




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