फिल्म- शेरशाह
कलाकार- सिद्धार्थ मल्होत्रा, कियारा आडवाणी, निकितिन धीर, शिव पंडित, साहिल वैद, मीर सरवर, पवन चोपड़ा और शताफ फिगार
निर्देशक- विष्णु वर्धन
रेटिंग- ***
देशभक्ति की कहानी हमेशा ही पसंद की जाती रही है और ख़ासकर अगर युद्ध की कहानी हो, दुश्मनों के साथ लड़ाई की हो, तो उसे लोग काफ़ी पसंद करते रहे हैं. शेरशाह फिल्म की कहानी साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध पर आधारित है. इसमें कैप्टन विक्रम बत्रा जो शहीद हो गए थे, उनके जीवन के तानेबाने को लेकर बुना गया है.
विक्रम बत्रा जब कारगिल युद्ध में गए थे, तब उन्हें शेरशाह कोडनेम दिया गया था, उसी पर फिल्म का शीर्षक आधारित है. साथ ही जब उन्हें जीत के बाद का जो कोड दिया गया था, वो था यह दिल मांगे मोर…
फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कैप्टन विक्रम बत्रा की भूमिका को प्रभावशाली तरीक़े से निभाया है. उनके भाई विकास बत्रा से फिल्म की शुरूआत होती है, जो अपने भाई की ज़िंदगी के सफ़र को बताते हैं. कैसे बचपन में ही उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें फौज में भर्ती होना है.
टीवी धारावाहिक परमवीर चक्र में मेजर सोमनाथ के साहस और उनके फौजी जज़्बे को देख छोटे विक्रम बेहद प्रभावित होते हैं और निश्चय कर लेते हैं कि उनको आर्मी में भर्ती होना है. उस सीरियल में मेजर सोमनाथ की भूमिका अभिनेता फारुख शेख ने निभाई थी. विक्रम के बचपन और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए स्कूल, कॉलेज, दोस्त, आर्मी, प्यार, युद्ध आदि से कहानी गुज़रती है.
विक्रम एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे. अपने ज़िद से वे आर्मी में जाते हैं. जब विक्रम अपने आर्मी ऑफिसर से कहते हैं कि टीचर का बेटा फौजी बन सकता है… कोई भी फौजी बन सकता है. फौजी केवल फौजी होता है. फिर वह चाहे किसी भी क्षेत्र से क्यों हो.. ये संवाद बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देते हैं.
जब विक्रम चंडीगढ़ में कॉलेज में जाते हैं, तब उनकी मुलाक़ात डिंपल चीमा से होती है. दोनों में प्यार हो जाता है. कियारा आडवाणी ने प्रेमिका की भूमिका ख़ूब निभाई है. वैसे भी इस किरदार में वे हमेशा ही अच्छी लगी हैं, ख़ासकर कबीर सिंह में. शेरशाह में भी वे ख़ूबसूरत और आकर्षक लगी हैं. उन्होंने अपनी सादगी और शोखियों से प्रभावित किया है.
फिल्म में फौजी जीवन से लेकर विक्रम के व्यक्तिगत जीवन दोनों को बेहतरीन तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है. कियारा सिख हैं और सिद्धार्थ पंजाबी खत्री. दोनों के परिवार शादी के लिए राजी नहीं. लेकिन बात कुछ संभालती है कि तब कारगिल युद्ध छिड़ जाता है. विक्रम की कश्मीर में 13JAF राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर पोस्टिंग होती है और फिर वे कारगिल युद्ध से जुड़ते हैं. विक्रम-डिम्पल की आख़िरी मुलाक़ात के उनके जुदा होनेवाले सीन काफ़ी इमोशनल है.
विक्रम बत्रा के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अब तक की अपनी सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है. यूं तो उन्होंने हर तरह की भूमिकाएं की हैं. स्टूडेंट ऑफ द ईयर से शुरू हुआ उनका करियर अब तक काफ़ी अलग-अलग मोड़ों से गुज़रता रहा है. उन्होंने हमेशा ख़ुद को बेहतर साबित कर दिखाया है. लेकिन यह फिल्म उनकी अब तक की सबसे लाजवाब फिल्म है. सिद्धार्थ मल्होत्रा ने एक फौजी, बेटा, भाई, दोस्त, और प्रेमी हर भूमिका के साथ न्याय किया है.
कुछ सीन तो बहुत ही ख़ूबसूरत हैं. जैसे जब वे कारगिल के युद्ध के लिए जाते हैं, तो अपने दोस्त से कहते ही तिरंगा लहरा कर आऊंगा या तिरंगे में लिपट कर आऊंगा, पर आऊंगा ज़रूर… फिल्म के डायलॉग काफ़ी प्रभावशाली हैं और अनेक बार दिल को छू जाते हैं. जब एक सीन में कैप्टन विक्रम बत्रा अपने साथियों से कश्मीरियों का भरोसा फौज से न उठने देने की बात कहते हैं. फिर वो सीन, जहां एक कश्मीरी लड़का अपने पिता से कहता है- दहशतगर्दों की मदद करके मरने से बेहतर है, फौज की मदद करते हुए मरना…
फौजियों की आपसी बॉन्डिंग के सीन्स भी अच्छे हैं, जहां उनका एक-दूसरे के साथ कनेक्शन महसूस होता है और अच्छा भी लगता है.
साहिल वैद कैप्टन संजीव जामवाल के क़िरदार में जमे हैं. एक ऐसा किरदार, जो बाहर से जितना कठोर दिखता है, अंदर से उतना ही नरम है. निकेतन धीर मेजर अजय सिंह जसरोटिया के किरदार में अच्छे लगे हैं. उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया और अपनी विशेष छाप छोड़ी है. शतफ फिगार कर्नल योगेश कुमार जोशी के रोल में प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे. शिव पंडित भी जंचे हैं. फिल्म में कुछ कमियां भी हैं, लेकिन कलाकारों का अभिनय उन्हें छुपा लेता है. वैसे रूढ़िवादी विचार और बरसों से चली आ रही सोच भी दिखती है, ख़ासकर पाकिस्तान को लेकर.
कहानी और पटकथा संदीप श्रीवास्तव ने प्रभावशाली ढंग से लिखी है. निर्देशक विष्णुवर्धन की यह पहली फिल्म है. वे दक्षिण फिल्मों के बेहतरीन निर्देशक हैं. उन्होंने दक्षिण में अरिंथुम अरियामलम, पट्टियाल, बिल्ला, सर्वम जैसी लाजवाब फिल्में बनाई हैं. लेकिन उनकी पहली कोशिश हिंदी फिल्म में भी प्रभावित करती है, ख़ासकर रोमांस और लड़ाई दोनों ही उम्दा तरीक़े से पेश की है.
वहीं कमलजीत नेगी का छायांकन बेहतरीन है. फिल्म में दो ही गाने हैं, जो पहले से ही हिट हो गए हैं और लोगों को काफ़ी पसंद भी आ रहे हैं. तनिष्क बागची द्वारा कंपोज किया गया रातां लंबियां… और जसलीन रॉयल द्वारा गाया और कंपोज किया गया गाना रांझा… जो कानों को सुकून देते हैं.
साल 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ था और दो पोस्ट भारत ने जीती थी. आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में यह युद्ध अब तक की सबसे मुश्किलोंभरा था. जहां 17,000 फीट की ऊंचाई पर लड़े गए इस ऐतिहासिक युद्ध में देश ने बहुत कुछ खोया. हमने अपने 527 जवानों को खोया था. उनके अतुलनीय साहस और पराक्रम के कारण ही कारगिल की चोटी पर फिर से तिरंगा लहराया था. हमारे बहादुर वीर शहीदों की याद में यह वैसे ही कहानी सबको काफ़ी दिल को छू जाती है. इसे फिल्मों में पेश करना कोई आसान काम नहीं था, पर निर्माता करण जौहर और निर्देशक विष्णुवर्धन ने कोशिश की और वे कामयाब भी रहे. फिल्म की कहानी हमें प्रेरित करती है और अपने फौजी भाइयों की व्यक्तिगत ज़िंदगी को भी समझने की कोशिश करती है. सपनों को उड़ान देने के लिए इंजीनियरिंग और मेडिकल व्यवसाय में जाने की नब्बे के दशक की भेड़चाल के बीच विक्रम बत्रा फौज को अपना प्रोफेशन चुनते हैं और केवल 25 साल की उम्र में बर्फ़ में लिपटे पहाड़ों के सीने पर शौर्य और शहादत की अमिट दास्तान लिख मुस्कुराते हुए दुनिया को अलविदा कहते हैं… उनके जज़्बे को सलाम!.. शेरशाह फिल्म और वे सदा याद रहेंगे…