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कहानी- मन के बंधन… 2 (Story Series- Mann Ke Bandhan… 2)

बीच में ही उसकी बात काटते हुए माधवी बोली, ’’अजनबियों का नाम जानना और उनसे दोस्ती करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए बेवजह दोस्ती करने की कोशिश ना करें. मैं किसी से सोच-समझकर ही दोस्ती करती हूं.’’

‘‘अच्छा जी, पर हर दोस्त पहले अजनबी ही होते हैं. बातें तो कीजिए, दोस्ती का क्या है? वो तो ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी.’’

    ... ‘‘क्या बात है? आपकी तबीयत ख़राब है क्या?’’ सिर उठाई, तो उसकी बीमारी का कारण सशरीर उसके सामने पासवाले बेंच पर बैठा था. उसने उसकी बातें सुनकर भी जैसे अनसुनी कर दी और उठकर खड़ी हो गई. पर वह सर्वदर्शी संत की तरह उसकी अनकही बातों को भी जान रहा था. बड़ी ही ढिठाई से बोला, ‘‘माधवीजी, आपको आदमी से एलर्जी है क्या?किसी के उपस्थिति मात्र से भन्ना जाती हैं. अब करोना की दुहाई मत दीजिएगा, मैं आपसे लगभग 20 फिट की दूरी पर हूं और मैंने मास्क भी लगा रखे हैं.’’ मेरे बारे में तो आपने ढेर सारी जानकारियां जुटा रखी है. मेरा नाम भी जानते हैं आप. एक हफ़्ते से देख रही हूं, आपके भी कोई हमदम नज़र नहीं आएं. आप भी मेरे जैसे अकेले ही नज़र आते हैं फिर भी..." ‘‘जी... मेरे विषय में इतनी जानकारी हासिल करने के लिए शुक्रिया, पर मुझे भी आपके विषय में जानकारियां हासिल करने के लिए ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि आपने नेमप्लेट पर अपना नाम मोटे-मोटे अक्षरों में लिख रखे हैं. जहां तक अकेले रहने की बात है जी तो किसी को अकेला रहना पसंद है, तो किसी के लिए अकेले रहना उसकी मजबूरी है. वैसे मैं बता दूं कि मै आपके फ्लैट के सामनेवाले फ्लैट में रहता हूं और आपसे दोस्ती करना चाहता हूं. मेरा नाम...’’ बीच में ही उसकी बात काटते हुए माधवी बोली, ’’अजनबियों का नाम जानना और उनसे दोस्ती करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए बेवजह दोस्ती करने की कोशिश ना करें. मैं किसी से सोच-समझकर ही दोस्ती करती हूं.’’ ‘‘अच्छा जी, पर हर दोस्त पहले अजनबी ही होते हैं. बातें तो कीजिए, दोस्ती का क्या है? वो तो ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी.’’ वह शोखी से बोला, तो बहस करने के बदले वह वहां से उठकर चली आई थी, पर घर आकर भी उसे चैन कहां था? पार्क में उस आदमी की कौतूहल और आत्मीयता से भरी बातों ने राख में दबे चिंगारी को जैसे हवा दे दिया. उसके निश्छल मन से किए गए सवालों से बरसों पुराना कोई इतिहास मन पर दस्तक देने लगा था.   यह भी पढ़ें: घर को मकां बनाते चले गए… रिश्ते छूटते चले गए… (Home And Family- How To Move From Conflict To Harmony)   हेमंत... जिससे बिछड़कर उसकी ज़िंदगी कैसी सुनसान और विरान हो गई जैसे कृष्ण से बिछड़कर कभी दूर विरह में राधा ने काटी होगी अपनी ज़िंदगी. वैसे ही घुट-घुटकर वह अपनी ज़िंदगी अब तक जी रही थी. अपने पड़ोस में रहनेवाले हेमंत से बचपन से ही उसकी दोस्ती थी, जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गया था. दोनो के कम उम्र के उस प्यार का एहसास इतना गहरा था कि दोनों एक-दूसरे के बिना जीने की कल्पना नहीं कर पाते थे. उन्ही दिनों हेमंत का आईआईटी में सिलेक्शन हो गया था. दोनों काफ़ी ख़ुश थे. तभी हेमंत के पापा का ट्रांसफ़र पटना से दिल्ली हो गया. दोनों पर जैसे गाज गिरी... अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... रीता कुमारी रीता कुमारी अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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