वैसे तो हमारे देश में काफ़ी समस्याएं हैं, जैसे गरीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, आए दिन लड़कियों, महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार और हत्याएं, लेकिन एक समस्या, जो हमारे समाज को दीमक की तरह चाट रहा है, वह है शराब. नशा समाज में नाश का कारण बन रहा है. शराब के कारण न सिर्फ़ लोग अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि परिवार भी बिखर रहे हैं.
“पहाड़ सी उम्र गुज़ारनी है और जीवन बिल्कुल नारकीय हो चला है. मजदूरी में जो मिल जाए, उससे ख़ुद का व बच्चों का जीवन चलाना है. हर पल खून के आंसू निकलते हैं. ख़ुशी क्या होती है, शादी के बाद यह शब्द जेहन में कभी आया ही नहीं. घर में खाने को तरस जाए, वह क्या ख़ुशी समझेगा? वह अपने बच्चों को क्या ख़ुशी दे पाएगा भाईसाहब?”
यह दुखभरी दास्तां उस महिला की है, जो अपने छोटे बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित है. राजस्थान के थानेटा की रहनेवाली इस महिला के आंसू रुक नहीं रहे हैं अपने दुख बयां करते हुए. यह दशा है उस महिला की, जिसका पति एक सड़क हादसे का शिकार हो गया. बताते हैं वह शराब पीने का आदि था और बड़े वाहन चलाता था. उसे कई बार समझाया पर उसने शराब नहीं छोड़ी और एक दिन वह सड़क हादसे का शिकार होकर दुनिया छोड़ गया. आज उसका परिवार पल-पल दुख और अभावों का सामना कर रहा है.
लेकिन यह व्यथा मात्र थानेटा गांव की एक महिला की नहीं, बल्कि उस गांव में ऐसी कई महिलाओं की है, जो विधवा जीवन जी रही है और आज कठिन परिश्रम कर जैसे-तैसे अपना जीवन ढो रही हैं और अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं.
एक अन्य महिला बताती है कि उसका पति शराब पीकर आता है और उसे इतना पीटता है कि कई बार उसे मर जाना बेहतर लगता है. जो हाथ में आ जाए, उससे पीटने लग जाता है. शराब के नशे में उसे कोई सुध नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है.
बोतलों के ढक्कन चाटते बच्चे…
एक महिला ने तो हैरान कर देनेवाली बात बताई कि एक बार स्कूल से लौटकर घर आए उसके बच्चे के मुंह से जब शराब की दुर्गंध आई, तो वह चौंक गई. बाद में पता चला कि उस मासूम ने रास्ते में पड़ी शराब की बोतल के ढक्कन को चाट रखा था यानी बच्चे तक इस शराब से नहीं बच पा रहे हैं. यही बच्चे बाद में बड़े शराबी बनते हैं.
उसी गांव की युवा सरपंच दीक्षा चौहान कहती हैं कि ‘बहुत ही दुख होता है जब प्रशासन यहां स्कूल के पास शराब का ठेका खोलने की अनुमति देता है. दूध की डेरी भले ही न हो, गांव में शराब ज़रूर परोसी जा रही है. यहां पंद्रह से सोलह साल के लड़के शराब पीने के आदी हो रहे हैं. ठेका भले ही एक है, लेकिन उसकी कई शाखाएं अलग-अलग वार्डों में लगाकर गांव में लोगों को शराबी बनाया जा रहा है.
दरअसल, आज इस शराब ने हमारे समाज में जाति, उम्र, लिंग, स्टेटस, अमीर, गरीब हर प्रकार के बंधनों को तोड़कर अपना एक ख़ास मुक़ाम बना लिया है. समाज का हर वर्ग आज शराब के नशे में झूम रहा है. अब यह केवल ग़म भुलाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि ख़ुशियों को जाहिर करने का पैमाना भी बन गया है. कोई भी ख़ुशी के पल हो, किसी भी प्रकार का सेलिब्रेशन हो, पार्टी, जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो या कोई त्योहार, सब शराब के बिना अधूरा है.
विभिन्न अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि हमारे देश में बढ़ते बलात्कार और अपराध का एक महत्वपूर्ण कारण शराब है. यहां तक की आज बेटियां घर में भी सुरक्षित नहीं है इस शराब के कारण. शराब के नशे में एक पिता अपनी ही बेटी का बलात्कार कर देता है, तो वहीं सगा भाई अपनी बहन का रेप कर उसे मां बना देता है. यह है हमारे समाज की सच्चाई. कितनी ही महिलाओं और बच्चियों को शराब का नशा वो ज़ख़्म दे गया, जिनके निशान उनके शरीर पर से समय ने भले ही मिटा दिए हों, लेकिन उनकी रूह आज भी घायल है.
नशे के कारण दांपत्य जीवन में आ रही है दरारें…
शादी के समय सात जन्मों तक साथ निभाने की दांपत्य डोर पर शराब के पैग भारी पड़ रहे हैं, जो न केवल मनमुटाव पैदा कर रहे हैं, बल्कि दांपत्य जीवन के डोर टूटने का कारण बन रहा है. पिछले साल महिला थाने और सीएलजी के पास ऐसे कई केस आएं, जिसमें नशे के कारण पति-पत्नी के अलग होने तक की नौबत आ गई. कुछ केसो में काउंसिलिंग कर परिवार को बिखरने से बचा लिया गया, लेकिन कई केस ऐसे भी रहे, जिसमें दंपति को एक धागे में पिरोने के प्रयास कामयाब नहीं हो पाएं, यानी पति के शराब की लत के कारण पत्नी ने अलग होना बेहतर समझा.
सुनीता को शादी के बाद पता चला कि उसका पति नशे का आदि है. क़रीब तीन साल तक उसने अपने पति को काफ़ी समझाया, लेकिन रोज़ाना की मार-पीट और गाली-गलौज से तंग आकर आख़िरकार उसने अपने पति से अलग होने का फ़ैसला ले लिया. मायके-ससुरालवालों ने दोनों को समझाकर एक करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए. शादीशुदा ज़िंदगी में अक्सर ऐसी समस्याएं देखने को मिल जाती हैं. अगर पति ड्रग लेने, शराब पीने, आवश्यकता से अधिक धूम्रपान करने और जुआ खेलने का आदि है, तो वैवाहिक जीवन ख़राब होना स्वाभाविक है.
यह सिद्ध हो चुका है कि घरेलू हिंसा में शराब एक अहम कारण है…
एक सर्वे में पाया गया है कि शराबी पति अपनी पत्नियों को सबसे ज़्यादा प्रताड़ित करते हैं और इसकी वजह से महिलाएं घरेलू हिंसा का भी शिकार होती हैं. इसके अलावा पति पत्नी के साथ गाली-गलौज और मारपीट करता है, जिसके कारण बच्चों के जीवन पर इसका ख़राब असर पड़ता है और वैवाहिक जीवन में हमेशा के लिए कड़वाहट घुल जाती है. ये मान भी लिया जाए कि ग़ुस्सा करना कुछ पुरुषों का स्वभाव हो सकता है, लेकिन तब भी पत्नियों पर हाथ उठाना कहां तक जायज़ है? थप्पड़ों, लातों, पिटाई, घमकियों, यौन शोषण और अनेक अन्य हिंसात्मक घटनाओं का सामना महिलाओं को करना पड़ता है. यहां तक की शराब के नशे में पत्नी की हत्या तक कर देते हैं. इन सबके बावजूद इस प्रकार की हिंसा के बारे में लोगों को अधिक पता नहीं चलता है, क्योंकि शोषित व प्रताड़ित महिलाएं इसके बारे में चर्चा करने से घबराती, डरती, झिझकती हैं. लेकिन अनेक डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मचारी हिंसा को एक गंभीर समस्या के रूप पहचानने से चूक जाते हैं. यह अध्ययन महिलाओं पर घरों में होनेवाली हिंसा से संबंधित है. लेकिन महिला को चोट पहुंचानेवाले पुरुष यह दलीलें देते हैं कि उस वक़्त वह शराब के नशे में थे और अपना आपा खो बैठे या वह औरत ही इसी लायक है.
आंकड़े बताते हैं कि शराब की खपत घरेलू हिंसा में काफ़ी हद तक समानता दिखाई देती है. एनएचएफएस-४ (NHFS-4) के अनुसार, २२% पत्नियां जिनके पति शराब नहीं पीते हैं, उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ा. लेकिन ये प्रतिशत बढ़ जाता है अगर पति शराब पीता हो. सर्वे से पता चलता है कि 77% पत्नियां, जिनके पति शराबी हैं ख़ूब पिटती हैं.
युवाओं में नशे की सनक…
• कैलिफोर्निया के एक एलएसडी प्रेमी को नशे की झोंक में यह सनक सवार हो गई कि वह पक्षियों की तरह हवा में उड़ सकता है. इसी सनक को पूरा कर दिखाने के लिए वह एक इमारत की 10वीं पर चढ़ गया और वहां से कूद पड़ा और उनकी मौत हो गई.
• एक हॉस्टल में रह रहे दूसरे छात्र को नशे में यह भ्रम हो गया कि वह अपने आकार से दुगुना हो गया है और उसके पैर 6 फुट लंबे हो गए हैं. 6 फुट लंबे पैर से उसने पासवाली बिल्डिंग पर कूदने के लिए उसी अंदाज़ से छलांग लगाई और नीचे गिर पड़ा. कोई भी वस्तु जिसकी मांग हमारा मस्तिष्क करता है, किन्तु उससे शरीर का नुक़सान हो, नशा कहलाता है.
हमारे समाज में नशे को सदा बुराइयों का प्रतीक माना और स्वीकार किया गया है. लेकिन आजकल नशा यानी शराब पीना फैशन बनता जा रहा है. जबकि शराब सभी बुराइयों की जड़ है. शराब के सेवन से इंसान के सोचने-समझने की शक्ति ख़त्म हो जाती है. वह अपने हित-अहित और भले-बुरे का अंतर नहीं समझ पाता.
गांधीजी ने कहा था कि शराब के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ-साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है. शराबी अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है. लेकिन फिर भी लोग इसके गिरफ़्त में आकर अपनी ज़िंदगी को दांव पर लगा देते हैं. नशे की वजह से जहां युवाओं में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां पैदा हो रही हैं, वहीं वे क्राइम की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं. काउन्सलर दीप्ति शर्मा का कहना है कि समाज के मूल्यों में तेजी से बदलाव का परिणाम है युवाओं में शराब व सिगरेट की बढ़ती लत. आजकल तो स्कूल जानेवाले युवा बच्चे भी आसानी से नशे की गिरफ़्त में फंसते जा रहे हैं, क्योंकि वहां उन्हें आसानी से ये सब चीज़ें मिल जाती हैं.
दिल्ली विश्वविधालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर अशुभ गुप्ता का कहना है कि हमारी शहरी सोसायटी में युवाओं का शराब या सिगरेट पीना आम बात है. अब तो यह युवाओं का स्टेट्स सिंबल बनता जा रहा है. शुरू-शुरू में पैरेंट्स यही सोचते हैं कि हम लिबरल हैं और बच्चों को फ्रीडम दे रहे हैं, वे बच्चों के साथ बैठकर पीने से भी गुरेज नहीं करते हैं. इससे धीरे-धीरे बच्चों की भी हिचक ख़त्म हो जाती है और वे कहीं भी पीना शुरू कर देते हैं. युवतियां भी इसमें पीछे नहीं हैं. भले ही युवावर्ग या समाज इसे माॅर्डन सोसायटी का नाम दे कर बढ़ावा दे रहे हों, लेकिन यह चलन धातक साबित हो रहा है. शराब के नशे में यूथ द्वारा हत्या, लुटपाट, रेप जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है.
हालांकि नशे का प्रचलन केवल आधुनिक समाज की देन नहीं है, बल्कि प्राचीनकाल में भी इसका सेवन होता था. महाभारत और रामायण काल में मदिरा सेवन के वर्णन मिलते हैं, लेकिन वहां भी इसे एक बुरी वस्तु के रूप में ही चित्रित किया गया है. मदिरा सेवन आसुरी प्रवृति के लोग ही करते थे और इससे समाज में उस समय भी असुरक्षा, भय और घृणा का वातावरण उत्पन्न होता था. ऐसी आसुरी प्रवृति के लोग मदिरा का सेवन करने के बाद खुलेआम बुरे कामों को अंजाम देते थे.
देश में नशाखोरी में युवावर्ग सर्वाधिक शामिल हैं...
मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, अकेलापन, बेरोज़गारी और आपसी कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में भारत मादक पदार्थों का सबसे बड़ा बाज़ार बनता जा रहा है. 2009-11 में 1.4 अरब डॉलर के ड्रग का कारोबार भारत में हुआ. इन आकड़ों से पता चलता है कि भारत में नशे के कारोबार में किस हद तक सक्रिय हैं. आज़ादी के बाद देश में शराब की खपत तेजी से बढ़ी. यह सच है कि शराब की बिक्री से सरकार को बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है. मगर इससे हमारा सामाजिक ढांचा क्षत-विक्षत हो रहा है और परिवार के परिवार ख़त्म हो रहे हैं.
अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकारें जिस तरह से शराब को बढ़ावा दे रही है, उससे शहर ही नहीं, गांव के गांव बर्बाद हो रहे हैं. युवा पीढ़ी पतन की राह पर है. गांवों में पानी व दूध भले ही मुश्किल से मिले, पर शराब ज़रूर मिल जाती है. हैरानी तो इस बात की है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री गांधी विचारों के समर्थक हैं. ऐसे में समझ नहीं आता कि चूक आख़िर कहां हो रही है या तो सरकार की कोई सुनता नहीं या फिर सरकार की कथनी व करनी में ही फर्क़ है. इस शराब ने गांवों में महिलाओं की वो हालत बना रखी है कि इसे बयां करना भी मुश्किल है. वहां शहरों से ज़्यादा अपराध होने लगे हैं. महिलाओं का जीवन नारकीय बन गया है. मासूम बच्चे शराब की लत से बच नहीं पा रहे हैं. दिन-दहाड़े महिलाओं के साथ अभद्रता, चोरी-चकारी, लूट-पाट जैसी घटनाएं इसी शराब की वजह से बढ़ रही हैं. ऐसे में न केवल महिलाएं, बल्कि अब तो आम ग्रामीण इस शराब को अपने गांव से बाहर ढकेलना चाहता है. देश में शराबबंदी को लेकर कई बार आंदोलन हुए, मगर सामाजिक, राजनीतिक चेतना के अभाव में इसे सफलता नहीं मिली. यहां तक की महिलाएं और पुरुष सड़कों पर उतरे और जिला मुख्यालय तक भी पहुंचे. लेकिन थानेटा जैसे कुछ गांवों में स्थिति आज भी वैसे ही बने हुए हैं. शराबियों से त्रस्त गांवों में महिलाओं का अकेले बाहर निकलना दूभर हो चुका है. पुलिस से शिकायत करने पर भी जाते हैं, लेकिन उनकी सुनी नहीं जाती.
घूंघट ओढ़े थानेटा गांव की महिलाएं आक्रोशित है. वे हर हाल में अपने गांव को शराब मुक्त बनाना चाहती हैं, ताकि उनके घरों में ख़ुशहाली आए. उनके बच्चे अच्छे से पढ़-लिख सकें. ये महिलाएं तीन साल से शराब बंदी के लिए जूझ रही हैं. एक बुज़ुर्ग महिला ने तो ग़ुस्से में यह तक बोल दिया कि अगर उसका बस चले तो वे गांव का ठेका ही तोड़ दे. लेकिन वह चाहती है कि प्रशासन आगे होकर कार्यवाई करे. अब जनता सुकून चाहती है. शराब जैसी बुराइयों से मुक्ति चाहती है. ऐसे में सरकार व प्रशासन को चाहिए कि वे गांवों में जाएं और उनकी सुने. तभी लोगों का सरकार व प्रशासन के प्रति विश्वास और सम्मान बढ़ेगा.
दिसंबर 2017 में आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के निडामर्रु गांव में 55 साल की वरलक्ष्मी समेत 25 महिलाएं धरने पर बैठी थीं. इनकी मांग थी कि इनके गांव में शराब की दुकान नहीं होनी चाहिए. इसके बाद इन्होंने गांव के एक तलाब में छलांग लगा दी थी. नतीज़ा यह कि आज इस गांव के आसपास कोई भी शराब की दुकान नहीं है. वरलक्ष्मी कहती हैं कि हमने 16 दिनों तक प्रदर्शन किया और लगभग 40 महिलाओं ने इस में भाग लिया. हमने अपना संयम खोते हुए घोषण कर दी कि हम मरने जा रहे हैं और हमने तलाब में छलांग लगा दी. महिलाएं कहती हैं कि आसपड़ोस के गांवों में बूढ़ों सहित कॉलेज जानेवाले लड़के भी शराबी बन चुके थे और इसके कारण हम शराब के विरुद्ध सड़क पर उतरे थे.
कितने बच्चे ऐसे हैं, जिनका पिता के साथ प्यार-दुलार का उनका हक शराब ने ऐसा छीना कि वे अपने बचपन की यादों को भुला देना चाहते हैं. तो फिर क्यों लोग इस शराब से मुक्त होने की बजाय इसमें डूबते ही जा रहे हैं?
शराब पीकर सड़क पर हंगामा करना बेहद आम है. भारत में शराब पीनेवाला हर चौथा आदमी मदिरा सेवन का समापन लड़ाई-झगड़े से करता है. इतना ही नहीं, शराब पीनेवाला हर दूसरा भारतीय एक मौक़े पर कम से कम चार ड्रिंक ज़रूर लेता है.
इस तरह के व्यवहार को ‘हैवी एपिसोडिक ड्रिंकिंग’ यानी बहुत ज़्यादा सेवन करनेवाला माना जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में अल्कोहल का सेवन करने वाले 43% लोग इस कैटेगरी में आते हैं.
सामाजिक न्याय और अधिकारिकता मंत्रालय ने हाल ही में एक सर्वेक्षण किया, जिसमें यह सारी बातें सामने आई हैं.
भारतीयों की पहली पसंद देशी शराब…
भारत में देशी शराब और IMFL (भारत में बननेवाली विदेशी शराब) की खपत सबसे अधिक होती है. शराब पीनेवाला हर तीसरा भारतीय इन उत्पादों पर फ़िदा है. वहीं वाइन पसंद करनेवाले मात्र 4% लोग ही हैं. हालांकि बियर पीने वाले 21% लोग हैं, जिनमें से 12% स्ट्रांग और 9% लाइट बियर पसंद करते हैं.
शराब पीनेवाले लोग पर सर्वेक्षण के दौरान एक बात सामने आई कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बहुत ज़्यादा अल्कोहल का सेवन करते हैं. इतना ही नहीं, पीते वक़्त उसमें बहुत ज़्यादा पानी मिलना भी पसंद नहीं करते.
कितने प्रतिशत भारतीय शराब का करते हैं सेवन?
भारत में शराब पीनेवालों की आबादी 14.60% है. शराब पीनेवाले लोगों की उम्र 10-75 साल के बीच है. वहीं कुछ आबादी की बात की जाए, तो 16 करोड़ लोग अल्कोहल का सेवन करते हैं. इसमें सभी वर्ग के लोग हैं.
अल्कोहल का सेवन करनेवाले 16 करोड़ में से 95% पुरुष हैं, जो 18-49 एज ग्रुप में आते हैं. वहीं शराब सेवन करनेवालों का लिंगानुपात देखा जाए, तो 17 पुरुषों के मुक़ाबले एक महिला है.
पुरुषो की तुलना में महिलाओं को शराब पर ज़्यादा कंट्रोल…
रिपोर्ट के मुताबिक़, शराब पीने का प्रचलन 27.30 प्रतिशत पुरुषों में हैं, जबकि महिलाओं में यह 1.60 फीसदी ही है. इतना ही नहीं महिलाओं को शराब सेवन करने पर ज़्यादा कंट्रोल है यानी कि वो अपनी लिमिट जानती हैं. पुरुष इस मामले में लापरवाह हैं, इसलिए अक्सर पीने के बाद वो हिंसक हो जाते हैं. रिपोर्ट में पाया गया है कि शराब पीनेवाला हर पांचवा आदमी अल्कोहलिक है यानी कि शराब पीने का आदि है. वहीं शराब पीनेवाली हर 16वीं महिला अल्कोहलिक है.
पंजाब नहीं इस राज्य के लोग ज़्यादा अल्कोहल लेते हैं…
गुजरात और बिहार में शराब बेचने पर पाबंदी है. वहीं 10 ऐसे राज्य हैं, जहां की 20 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी अल्कोहल लेती है. इसमें छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश और गोवा प्रमुख है. बिहार और गुजरात को छोड़ दें, तो राजस्थान और मेघालय में शराब पीनेवाले लोग सबसे कम हैं. राजस्थान में 2.1 प्रतिशत और मेघालय में 3.4 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं.
आपको जानकार हैरानी होगी कि त्रिपुरा की 62 प्रतिशत आबादी शराब का सेवन करती है. वहीं छत्तीसगढ़ में 57.2 प्रतिशत और पंजाब में 51.70 प्रतिशत लोग शराब का प्रयोग करते हैं. कुल मिलाकर देखा जाए, तो 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 30 प्रतिशत शराब की खपत होती है. वहीं अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में क्रमानुसार 15 .60 और 13 .70 प्रतिशत महिलाएं शराब पीती हैं.
शराब पीनेवाले लोगों का औसत आयु 18-49 के बीच है, जो पीने के बाद हंगामा करते हैं और हर पांचवा आदमी रात में नहीं, दिन में हंगामा करता है.
विश्व की अगर बात की जाए, तो सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1920 में अपने संविधान में 18वां संशोधन करके मद्य पेय के निर्माण एंव बिक्री पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लगा कर इसके सेवन पर रोक लगाने के प्रयास किए थे, जिसके परिणामस्वरूप लोग अवैध स्रोतों से शराब ख़रीदने लगे और वहां पर शराब के अवैध निर्माताओं एंव विक्रेताओं की समस्या उत्पन्न हो गई. अंतत: 1933 में सविधान संशोधन को ही निरस्त कर दिया गया.
इस्लाम में इसकी मनाही…
यूरोप के अन्य देशों में भी 20वीं सदी के मध्य शराब निषेध का दौर आया था, जिसे लोकप्रिय समर्थन नहीं मिलने की स्थिति में रद्द करना पड़ा. कुछ मुस्लिम देश जैसे सऊदी अरब और पाकिस्तान में आज भी इसे बनाने या बेचने पर प्रतिबंध है, क्योंकि इस्लाम में इसकी मनाही है. भारत की अगर बात करें, तो भले ही गुजरात और बिहार में शराब पर पाबंदी लगा दी गई है. लेकिन आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में यह नाकाम हो चुकी है. केरल सरकार ने भी 2014 में राज्य में शराब पर प्रतिबंध की घोषणा की थी, जिसके ख़िलाफ़ बार एंव होटल के मालिक सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन कोर्ट ने सरकार के फ़ैसले को बहाल रखकर इस प्राकृतिक सौन्दर्य से युक्त राज्य में पर्यटन को देखते हुए केवल पांच सितारा होटलों में इसकी अनुमति प्रदान की. सरकार भले ही शराब बिक्री से मिलनेवाले बड़े राजस्व का लालच छोड़कर इस पर प्रतिबंध लगा दे, लेकिन उसे इस मुद्दे पर जन समर्थन नहीं मिल पाता.
हरियाणा जैसे राज्य में जहां महिलाओं के दबाव में सरकार इस प्रकार का कदम उठाई भी थी, लेकिन इस राज्य के मुख्यमंत्री को मात्र दो साल में अपने निर्णय को वापस लेना पड़ा था. कारण की जो महिलाएं पहले इस बात से परेशान थीं कि शराब उनका घर बर्बाद कर रही है, अब इस मुश्किल में थीं कि घर के पुरुष अब शराब की तलाश में सीमा पार जाने लगे थे. जो पहले रोज कम से कम रात में घर तो आते थे, लेकिन अब दो-तीन दिन तक गायब रहने लगे थे. इसके अलावा दूसरे राज्य से चोरी-छिपे शराब लाकर तस्करी के आरोप में पुलिस के हत्थे चढ़ जाते थे, तो इन्हें छुड़ाने के लिए औरतों को थाने के चक्कर काटने पड़ते थे सो अलग.
नैतिकता से जुड़ी सामाजिक समस्या…
जिन राज्यों में शराबबंदी लागू है वहां की व्यावहारिक सच्चाई सभी जानते हैं. इन राज्यों में शराब से मिलने वाला राजस्व सरकारी ख़ज़ाने में न जाकर प्राइवेट तिजोरियों में जाने लगा और ज़हरीली शराब से होनेवाली मौतों की समस्या अलग से उत्पन्न होने लगी. इतिहास गवाह है कि कोई भी देश क़ानून के द्वारा इस समस्या से नहीं लड़ सकता. चूंकि यह नैतिकता से जुड़ी सामाजिक समस्या है, तो इसका हल समाज की नैतिक जागरूकता से ही निकलेगा.
शराब पीने के नुक़सान…
• शराब पीने के बाद इंसान होश खो बैठते हैं. कई बार इंसान ज़्यादा शराब पीने से ब्लैकआउट यानी अपना होश खो बैठता है. असल में शराब की वजह से हमारे जेहन का हिप्पोकैम्पस ठीक से काम नहीं कर पाता. इससे वो उस दौरान की यादें एकत्र नहीं कर पाता. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अल्कोहल एब्युज एंड अल्कोहलिज़्म के आरोन व्हाइट बताते हैं कि ये ठीक उसी तरह है जैसे किसी टेप का एक हिस्सा खाली हो गया हो. नशेड़ियों का होश खो बैठना आम बात है. 1000 छात्रों पर हुए एक रिसर्च में माना गया कि कम से कम दो तिहाई लोग यानी 66.4 प्रतिशत ने आंशिक ब्लैकआउट कर जाने की बात मानी. 4, 600 लोगों पर किए गए एक और रिसर्च के मुताबिक़, 52 फीसदी मर्दों और 39 फीसदी महिलाओं को कम से कम एक बार ब्लैकआउट होने का तजुर्बा हुआ ही था.
भले ही होश गंवाने की वजह कोई भी हो, इसका एक नतीज़ा होने की आशंका सबसे ज़्यादा होती है, आप संपत्ति का नुक़सान पहुंचा सकते हैं. ख़ुद को नुक़सान पहुंचा सकते हैं. आपके पुलिस के चक्कर में पड़ने का डर होता है. कई लोग तो शराब के कारण शर्मनाक हालत में भी पहुंच जाते हैं. किसी महिला या पुरुष से छेड़खानी, कई लोग यौन हिंसा जैसे बर्ताव भी शराब के नशे में कर बैठते हैं. ऐसा अक्सर होश गंवाने के दौरान होता है.
होश खोने के बाद महिलाएं यौन उत्पीड़न की शिकार हो सकती हैं. इसके बाद नशे में होने की बात को हवाला देते हुए उनकी शिकायत को भी तवज्जो नहीं दी जाती.
शराब से होती हैं सौ बीमारियां…
शराब पीने से नुक़सान होता है यह बात सभी जानते हैं, लेकिन सिर्फ़ शराब पीने से सौ बीमारियां होती हैं, ये जानकार आप ज़रूर चौंक जाएंगे. ये बात बिल्कुल सच है. एक अध्ययन में ये बात सामने आई है कि शराब पीनेवालों को सिर्फ़ शराब के कारण ही सौ से अधिक जानलेवा बीमारियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें कैंसर से लेकर व्यवहारगत बीमारियां शामिल है.
विश्व स्वास्थ संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, शराब के सेवन के कारण लीवर, सिरोसिस, डिप्रेशन, पेंक्रियाटाइटिस और बेचैनी जैसी बड़ी और गंभीर बीमारियों का आक्रमण शरीर पर बड़ी तेजी से होता है और इसके पहले कि इंसान शराब पीने से मिलनेवाले तथाकथित मज़े से बाहर निकले, ये बीमारियां अपनी जड़े जमा चुकी होती हैं. महिलाओं में गर्भाशय से जुड़ी अनेक समस्याएं सिर्फ़ शराब के कारण होती हैं. आजकल सबसे बड़े जानलेवा कारण बनकर उभरे आत्महत्या को सीधे-सीधे शराब से जोड़कर देखा जाता है.
आत्महत्या के पीछे शराब…
देश में आत्महत्या के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं. माना जा रहा है कि आजकल की तनावग्रस्त ज़िंदगी इसके लिए सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं. जहां कोई ख़ुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहा है. इसी तनाव में लोग शराब को एक सहारे के रूप में अपनाते हैं, जो इनका तनाव और अधिक बढ़ाने का काम करता है. अंतत: शराब डिप्रेशन और अवसाद को बढ़ावा देती है, अंत में ज़्यादातर मामलों में ऐसे लोग आत्महत्या को अपना अंतिम उपाय मानकर ज़िंदगी ख़त्म कर लेते हैं. आजकल लोगों के पास तनाव के बहुत से कारण हैं. अपनी निजी ज़िंदगी से लेकर व्यापार, प्रेम, शादी में असफलता, नौकरी न मिल पाने का तनाव इंसान झेल नहीं पाते और उस तनाव से मुक्ति पाने के लिए शराब का सहारा लेने लगते हैं. जिसके कारण वह और तनाव में चले जाते हैं.
आत्महत्या के आंकड़े बताते हैं कि बड़ी संख्या में आत्महत्या करनेवाले ने शराब पीने के बाद ही अपनी जान ख़त्म कर ली. ऐसे में माना जा सकता है कि शराब ने ऐसे लोगों में तात्कालिक अवसाद की मात्रा बहुत अधिक बढ़ा दी, जिसे वे बर्दाश्त न कर सके और अपनी जीवनलीला ख़त्म कर ली.
- मिनी सिंह
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