"तुम्हें पता है कार्तिक, जनतंत्र का चौथा महत्वपूर्ण स्तंभ होता है- प्रेस यानी समाचारपत्र. आधे से ज़्यादा देश किसी भी मुद्दे पर अपनी राय समाचारपत्र पढ़कर बनाता है. हमारे हाथों में एक बहुत महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है. लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हमें कोई हक़ नहीं है. कल के सर्वे का रूझान न केवल चौंकानेवाला, वरन चिंता में डालनेवाला था. मेरा अब तक का अनुभव चीख-चीखकर कह रहा था कि मां जैसी गरिमामयी पदवी को मखौल का विषय नहीं बनाया जा सकता. हम कल वाली सर्वे रिपोर्ट भी प्रकाशित करेगें और आज वाली सर्वे रिपोर्ट भी. निष्कर्ष यह निकलता है कि मां हर परिस्थिति में बच्चों का भला ही सोचती है. मदर्स डे के दिन भी मां ने अपने लिए नहीं अपने बच्चों के लिए ही कुछ मांगा.
बतौर पत्रकार यह मेरा पहला सर्वे था. इसलिए मैं इसे हर तरह से प्रभावपूर्ण और रूचिकर बनाना चाहता था. रेण्डम सेंपलिंग के तौर पर मैंने अलग-अलग पृष्ठभूमि और परिवेशवाले तीन युवा चुने थे. बॉस ने मुझे मदर्स डे पर युवाओं के अनुभव एकत्र करने का काम सौंपा था. चूंकि मैं अनुभव के नाम पर शून्य था, इसलिए चुनाव विश्लेषण, उसमें जातिगत समीकरण जैसे संवेदनशील मुद्दे मुझे सौंपकर बॉस कोई ख़तरा मोल नहीं लेना चाहते थे. पर मैंने इस काम को भी लगन से पूरा करने का प्रयास किया. अपने सर्वे के परिणाम ख़ुद मुझे ही चौंका गए. जिस दिन को मैं मां के प्रति श्रद्धा और भक्ति का पर्व मान रहा था, उसे लेकर युवाओं की सोच विस्मयकारी थी.
पहले युवक ने निराशा से अपने छंटे हुए बालों पर हाथ फेरा, "यह मेरा गंजा सिर देख रहे हैं न आप?" मैं आश्चर्य से उसके सिर की ओर देखने लगा था. बाल छोटे थे, मगर गंजा..? खैर…
"यह सब मदर्स डे की मेहरबानी है. मैं पोनी रखता था. एकदम कूल ड्यूड वाला लुक था मेरा! पता है मदर्स डे के दिन एक लंबी चौड़ी भूमिका बांधकर मां ने क्या मांगा? एक नीट हेयरकट! यानी मेरी बरसों की उगाई खेती एक दिन में सफाचट!" *
दूसरे युवक का मुखड़ा मेरा प्रश्न सुनते ही निचुड़े हुए नींबू की भांति सिकुड़ गया.
"आपको मेरी क्या उम्र लगती है? महज़ 29 बरस का हूं मैं! थोड़ा करियर बनाने में लग गया था. पर मां को तो लगता है एकाध साल और ब्याह नहीं किया, तो कोई पहाड़ टूट पड़ेगा. मुझे कोई लड़की ही नहीं मिलेगी. इसलिए मदर्स डे पर मुझे इमोशनल फूल बनाकर चढ़ा दी मेरे कुंआरेपन की बलि. 3-3 मेट्रिमोनियल साइट्स पर मेरा बायोडाटा अपलोड करवा दिया. अब मुझे मालूम थोड़े ही न था कि मदर्स डे के गिफ्ट के बतौर वह ऐसा कुछ मांग लेगी, वरना मैं हां ही नहीं करता.
उसे सांत्वना देकर मैं अपने तीसरे सैंपल के पास पहुंच गया था. यह एक युवती थी. पूछते ही फट पड़ी. "अच्छी बेवकूफ़ बनी मैं मदर्स डे के नाम पर! मैंने तो ऐसे ही मां से गिफ्ट के लिए पूछ लिया था. सोचा था ड्रेस, फूल, कार्ड या चॉकलेट जो मांगेगी ला दूंगी, पर पता है मां ने क्या मांगा?"
"आज के आज अपने बॉयफ्रेंड से मिला."
"कब से टाल रही थी मैं! पर आख़िर चपेट में आ ही गई. मिलवाना पड़ा. उफ़ हॉरिबल! मां ने क्या क्लास ली बेचारे की?"
तीनों युवाओं का एक मत था कि इन मांओं का आईक्यू लेवल कैसा भी हो, पर बाइ गॉड ईक्यू लेवल कमाल का होता है. इसे कहते हैं, इमोशनली ब्लेकमेल होना.
अपनी सर्वे रिपोर्ट बॉस के केबिन में रख मैं लौट आया था. दोस्तों से अनुभव साझा किया, तो वे भी हैरान रह गए.
"कमाल है, युवाओं का सोचने का नज़रिया इतना बदल गया है? पर कुछ भी कहो, पाठकों को मज़ा आ जाएगा. बहुत चटपटी और रूचिकर रिपोर्ट बनी है तुम्हारी! बॉस ख़ुश हो जाएंगे." दोस्तों ने तारीफ़ों के पुल बांध दिए, तो मैं भी उत्साहित हो उठा. तारीफ़ों के ऐसे ही कशीदे बॉस के मुंह से सुनने के लिए व्याकुल हो उठा. काफ़ी लंबे इंतज़ार के बाद उनका बुलावा आया. मैं जितने उत्साहित मन से अंदर गया था वापसी में मुंह उतना ही लटका हुआ था. दोस्तों ने घेर लिया. मैंने रिपोर्ट टेबल पर पटक दी.
"क्या हुआ?"
"बॉस ने सर्वे दुबारा करने के लिए कहा है." मैंने मरियल आवाज़ में बताया.
"क्यों?" "ओह नो" जैसी प्रतिक्रियाएं उभरने लगीं.
"मुझे लगता है तुम्हारा सर्वे व्यापक नहीं था. कुछ लोगों की प्रतिक्रिया को पूरे समाज की प्रतिक्रिया कैसे माना जा सकता है? बॉस ने ज़रूर तुम्हें कुछ और लोगों की राय जानने को कहा होगा." एक अनुभव दराज सहयोगी ने अपनी राय रखी.
"नहीं. उन्होंने कहा है इन्हीं 3 लोगों की राय दुबारा लेकर आओ."
सबकी आंखों में कौतूहल जाग उठा था. पर इस पहेली को सुलझा पाना किसी के बस की बात नहीं थी और उम्रदराज़ बॉस से पूछने का साहस कोई नहीं जुटा पा रहा था. मैंने बेमन से रिपोर्ट उठाई और पहुंच गया वापिस अपने उम्मीदवारों के पास. अपना मूड ठीक करने में मुझे कुछ वक़्त अवश्य लगा, पर अब मैं पूरी तरह तैयार था.
"क्यों कूल ड्यूड, कैसा लग रहा है नए गेटअप यानी कि नए हेयरकट में?"
"अरे बॉस, कुछ मत पूछो. कमाल हो गया है. एक ही दिन में लड़कियों की लाइन लग गई है. सबका कहना है मेरा लुक मैच्योर और डिसेंट हो गया है. और तो और सब मुझे सीरियसली लेने लगे हैं. थैंक्स टू मॉम! उनकी वजह से मेरे अंदर एक नया आत्मविश्वास जाग उठा है."
प्रत्युत्तर अप्रत्याशित था पर मैंने नोट कर लिया.
दूसरा उम्मीदवार मुझे देखकर उत्साहित हो उठा और मेरे गले लग गया.
"अच्छा हुआ भाई आप वापिस मिल गए. मैं आपको ही खोज रहा था. उस दिन ग़ुस्से में मां के बारे में जाने क्या-क्या बोल गया था. मेरे थोड़ी टेंपरामेंट की प्रॉब्लम ही है. दिनभर कंप्यूटर में सिर खपाने के बाद और किसी काम के लिए एनर्जी बचती ही नहीं है. पर मां कह रही थी शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. मां को मैंने इतना ख़ुश पहले कभी नहीं देखा. मेरे विचार भी बदलने लगे हैं. रिश्तों की तो बाढ़-सी आ गई है. मैं जल्द ही उनमें से एक सुसंस्कृत लड़की तलाश कर घर बसा लेना चाहता हूं. वैसे ही बहुत देर हो चुकी है. सच में, वक़्त रहते मां न चेताती, तो मैं कुंआरा ही रह जाता. मुझे समझ आ गया है कि हर चीज़ का अपना एक वक़्त होता है."
मैं गहरी सोच में पड़ गया था.
तीसरे उम्मीदवार यानी उस युवती से मिले बिना मेरा सर्वे अधूरा था. फोन पर बात की, तो उसने बताया वह घर पर ही मिलेगी. मैं असमंजस में पड़ गया. घर पर तो उसकी मां भी होगी. उनके सामने वह कैसे अपने दिल की भड़ास निकालेगी, पर अब जहां बुलाया है, वहीं जाना पड़ेगा. मैं नियत समय पर पहुंच गया. वह प्यार से मिली.
"आपकी मां और आपके बॉयफ्रेंड की मुलाक़ात कैसी रही?"
"ओह वो, उससे तो मैंने अगले ही दिन ब्रेकअप कर लिया. वह लड़का मेरे लिए सही नहीं था. बहुत अच्छा हुआ वक़्त रहते मुझे उसके इरादे पता लग गए. और यह सब हुआ मां की बदौलत."
तब तक युवती की मां मेरे लिए चाय-नाश्ता ले आई थी.
"बेटा, बच्चे कितने भी बड़े हो जाएं मां-बाप के लिए तो बच्चे ही रहते हैं. और उनकी शिक्षा-दीक्षा सब मां-पिता के अनुभव के आगे फीकी है. फिर हम अपने बच्चों के लिए बुरा क्यों चाहेंगे? हम तो हर पल, हर कदम पर उनका भला ही चाहेंगे. तुमने किंवदती तो सुनी होगी. पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं होती."
बेटी ने उठकर पीछे से मां के गले में अपनी बांहें डाल दी थीं. जिन्हें मां ने प्यार से सहेज लिया.
"बच्चे भले ही मां-बाप को ग़लत समझ लें, उनसे नाराज़ हो जाएं, लेकिन पैरेंट्स के दिलों में उनका जो विशिष्ट स्थान है, वह कोई नहीं छीन या मिटा सकता. भगवान ने उनके जैसा विशाल हृदय और किसी को नहीं दिया है. यह बात तुम लोग अभी नहीं समझ सकते. जिस दिन ख़ुद माता-पिता बनोगे, उसी दिन समझोगे."
मेरे अंदर भयंकर उथल-पुथल मच गई थी. उन आंटी की बातों ने मुझे अंदर तक छू लिया था. मुझे लग रहा था असली मदर्स डे तो देश आज मना रहा है. कार्ड पर लिखे शब्द इन भावनाओं का भला क्या मुक़ाबला करेंगें?
मेरी सर्वे रिपोर्ट तैयार थी. सच कहूं तो उसमें मेरा अपना लिखा कुछ भी नहीं था. मैंने सिर्फ़ लोगों की भावनाओं को शब्दों में ढाला था.
बॉस को रिपोर्ट सौंपकर मैं चुपचाप सामने बैठ गया था. कल वाला उत्साह अब दिल में शेष नहीं रहा था. रिपोर्ट पढ़ते-पढ़ते ही बॉस की आंखें चमकने लगी थीं. जबकि कल यही चेहरा बुझा-बुझा सा था.
"तुम्हें पता है कार्तिक, जनतंत्र का चौथा महत्वपूर्ण स्तंभ होता है- प्रेस यानी समाचारपत्र. आधे से ज़्यादा देश किसी भी मुद्दे पर अपनी राय समाचारपत्र पढ़कर बनाता है. हमारे हाथों में एक बहुत महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है. लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हमें कोई हक़ नहीं है. कल के सर्वे का रूझान न केवल चौंकानेवाला, वरन चिंता में डालनेवाला था. मेरा अब तक का अनुभव चीख-चीखकर कह रहा था कि मां जैसी गरिमामयी पदवी को मखौल का विषय नहीं बनाया जा सकता. हम कल वाली सर्वे रिपोर्ट भी प्रकाशित करेगें और आज वाली सर्वे रिपोर्ट भी. निष्कर्ष यह निकलता है कि मां हर परिस्थिति में बच्चों का भला ही सोचती है. मदर्स डे के दिन भी मां ने अपने लिए नहीं अपने बच्चों के लिए ही कुछ मांगा. इसके लिए वह अपने मान-सम्मान की भी परवाह नहीं करती. ममता के बंधन के आगे सारे बंधन ढीले पड़ जाते हैं. तुम्हारी आज की रिपोर्ट ने मां की गरिमा एक बार फिर से पुर्नस्थापित कर दी है. जमाना कितना भी बदल जाए, कितनी ही नई पीढ़ियां आ जाएं, मां के गौरव को कोई एक बालिश्त भी कम नहीं कर सकता. तुमने अपना रोल बख़ूबी निभाया. इस क्षेत्र में बने रहना है, तो अपनी भूमिका की अहमियत समझो और देश को इसी तरह गुमराह होने से बचाते रहो. कोई भी भूमिका अमहत्वपूर्ण नहीं होती. महत्वपूर्ण होता है अपनी भूमिका को ज़िम्मेदारी से निभाना. मैं उम्मीद करता हूँ कि आगे भी तुम इसी तरह निष्पक्षता से अपना कर्तव्य पालन करोगे. मैं तुम्हें एक और…"
"सर, मैं कुछ दिनों की छुट्टी चाहता हूं." इससे पूर्व कि बॉस मुझे अगली ज़िम्मेदारी सौंपे मैंने अपने दिल की बात उनके सम्मुख रख दी.
"छुट्टी? पर तुमने अभी-अभी तो जॉइन किया है. कार्तिक, सच सच बताओ क्या समस्या है?"
"सर मैं घर जाना चाहता हूं. मां से मिले बहुत समय हो गया है. बहुत भटक लिया… अब कुछ समय उनके साथ…" मेरा स्वर न चाहते हुए भी भर्रा उठा था.
बॉस ने अपने आगे रखा पानी का गिलास मुझे पकड़ाया, जिसे मैंने एक ही सांस में खाली कर दिया.
"तुम चाहो तो अपने मन की बात मुझसे शेयर कर सकते हो. मैं तुम्हारे पिता की उम्र का हूं. और वैसे भी मैं नहीं चाहता कि मेरे स्टाफ की कोई व्यक्तिगत परेशानी उसके प्रोफेशन पर हावी हो. इसलिए मैं तुम्हारी व्यक्तिगत समस्या को हल करना चाहता हूं… यदि तुम मुझे अपना समझकर शेयर करो तो…"
‘सर, मेरे पिता नहीं हैं और मां से मैं काफ़ी समय पूर्व लड़-झगड़कर अलग हो गया था. दरअसल, मेरी पढ़ाई-लिखाई और मुझे कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण दिलाने के मंतव्य से मां ने एक पूंजी जोड़ रखी थी. लेकिन मैं कुछ रईस दोस्तों की सोहबत में पड़कर रास्ते से भटक गया था. उनके संग कहीं पैसे निवेश करने का प्लान बना, तो मैंने मां से वह पूंजी मांगी. उनके लाख समझाने, इंकार करने के बावजूद मैं उनसे झगड़ा कर वह पूंजी लेकर चला गया और जैसा कि होना ही था नौसिखिए हाथों में जाकर पूंजी बिना कोई लाभ दिए समाप्त हो गई. उन रईस दोस्तों को कोई फ़र्क नहीं पड़ा, पर मेरा तो भविष्य दांव पर लग गया. कुछ दिन उनकी खैरात पर पलता रहा. उनके द्वारा बताए पतों पर जाकर नौकरी के जुगाड़ में मुंह मारता रहा. पर फिर धीरे-धीरे सबने हाथ खींच लिए. मां के पास लौटने का साहस नहीं हुआ. बहुत ठोकरें खाने के बाद यह नौकरी मिली. सोचा तो था कभी घर नहीं लौटूंगा, पर अब…" आगे के शब्द भावनाओं में अवरूद्ध हो गए थे.
"तुम्हें ज़रूर जाना चाहिए, बल्कि मैं तो कहता हूं बहुत पहले लौट जाना चाहिए था."
"मैं उन्हें यहां लाकर अपने साथ रखना चाहता हूं, पर सशंकित हूं क्या वे मुझे माफ़ कर देंगी?"
"तुम शायद मां की महिमा का अभी तक भी सही आंकलन नहीं कर पाए हो. निश्चित मानो, जब तुम उनके पैरों में झुकोगे न, तो तुम पूरा झुक ही नहीं पाओगे. वे कंधों से ही तुम्हें पकड़कर अपने सीने से लगा लेंगी. यह मैं नहीं, मेरा ज़िंदगी के अनुभवों का अब तक का सर्वे बोल रहा है."
बॉस के आत्मविश्वासपूर्ण बोलों ने मेरे अंदर उम्मीद की नई ज्योति जगा दी थी. एक दृढ़ निश्चय लिए मैं उठ खड़ा हुआ.
संगीता माथुर
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