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कहानी- प्रेम ना बाड़ी उपजे 2 (Story Series- Prem Na Badi Upje 2)
मैंने कैसे अपने मन को वश में रखा यह कौन समझ सकता है? हर थोड़ी देर बाद बुलवा भेजतीं बुआ मुझे. वह तो चाहती थीं कि मैं वहीं रहूं, पर वहां रहने का मतलब हर समय आयुष के पास होने के एहसास में जीना. हर थोड़ी देर में उससे टकरा जाने, ख़ुशी दर्शाने का भाव क़ायम रखना- मैंने सब निभाया.
... भैया के विवाह ने एक और अवसर प्रदान कर दिया मुझे. पिता अपनी अवकाश प्राप्ति से पहले भैया का विवाह कर अपनी एक ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. भैया ने एमबीए पूरी कर एक अच्छी नौकरी भी पा ली थी. मुझे घर जाने का दोगुना उत्साह था. भाई का विवाह तो था ही, आयुष से मुलाक़ात होने के ख़्याल से भी रोमांचित थी.
दिन में अनेक बार आते वह हमारे घर. विवाह संबंधी अनेक काम उनके ज़िम्मे थे. इतनी हैसियत नहीं थी हमारी कि चेक काटो और सब कुछ बना बनाया उठा लो. सोच-समझकर ख़रीददारी करनी होती थी. थोक बाज़ार से जाकर सामान लाया गया. घर सजाने का बहुत-सा काम तो हमने स्वयं ही किया. आयुष ने ही सब निपटाया.
मैं अतिरिक्त उत्साह से तैयार हुई थी. आयुष ने नोट भी किया था, “ग़ज़ब ढा रही हो, किस-किस के क़त्ल करने का इरादा है?” पर वह मैत्रीवाला स्वर था, कॉम्प्लिमेंट पकड़ा कर आगे बढ़ जानेवाला.
भाभी घर आ गई थी. घर में सब ओर ख़ुशियां बिखरी हुई थीं, बस मैं ही सूने मन लौट गई.
मैं अपनी पढ़ाई के अंतिम वर्ष में थी, जब मां से आयुष के विवाह का समाचार मिला था. सुधा बुआ ने भी फोन पर आग्रह किया, "बहन की रीतियां तो तुम्हें ही निभानी हैं. कम छुट्टी नहीं चलेगी.” वर्षों बाद उनके घर ख़ुशियां आई थीं. बुआ अपने सब चाव पूरे कर लेना चाहती थीं अपने इकलौते बेटे के विवाह में.
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मैंने कैसे अपने मन को वश में रखा यह कौन समझ सकता है? हर थोड़ी देर बाद बुलवा भेजतीं बुआ मुझे. वह तो चाहती थीं कि मैं वहीं रहूं, पर वहां रहने का मतलब हर समय आयुष के पास होने के एहसास में जीना. हर थोड़ी देर में उससे टकरा जाने, ख़ुशी दर्शाने का भाव क़ायम रखना- मैंने सब निभाया. विवाह के दिन तो पूरा समय ब्याह के घर में ही रही. ख़ुद ही सजाया सुहाग कक्ष को. बारात चलने से थोड़ा पहले तैयार होने के बहाने मैं अपने घर आ गई.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
उषा वधवा
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