हमारा स्वास्थ्य काफ़ी हद तक पेट और आंतोंके स्वास्थ्य से संबंध रखता है, लेकिन आजकल हमारी लाइफ़स्टाइल और हमारा खानपान ऐसा हो चुका है कि पेट संबंधी कई तकलीफ़ें अब आम हो चुकी हैं, जैसे- गैस, एसिडिटी और पाचन संबंधी परेशनियां और जब ये समस्याएं लंबे समय तक बनी रहती हैं तो गंभीर रूप औरअन्य रोगों को हुई जन्म देती हैं, जैसे- फ़ैटी लिवर, मेटाबॉलिक सिंड्रोम और जब इन समस्याओं का समय पर इलाज नहींहो पाता तो ये और गंभीर होकर डायबिटीज़ टाइप 2 और हृदय रोगों ke जन्मों का कारण बन जातीं हैं.
इनसे बचने के लिए महत्वपूर्ण है कि आप अपनी ज़रूरत अनुसार अपनी लाइफ़स्टाइल और डायट चेंज करें ताकि आपकापेट और पाचन रहे फिट, हेल्दी और गैस्ट्रोइंस्टेस्टाइनल संबंधी समस्याओं से मुक्त!
इसलिए गैस्ट्रोइंस्टेस्टाइनल संबंधी समस्याओं से ग्रसित रोगियों को उनकी स्थिति और व्यक्तिगत परिस्थितियों केअनुसार, आहार और जीवनशैली की में बदलाव की आवश्यकता होती है, जो एक्सपर्ट अड्वाइस से ही संभव है.
डॉ. रमेश गर्ग, सलाहकार गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट इस संदर्भ में दे रहे हैं ज़रूरी जानकारी- पूरे भारत में गैस्ट्रोइंस्टेस्टाइनल संबंधीसमस्याएं काफ़ी व्यापक हैं, जिसकी मुख्य वजह है- इनएक्टिव लाइफ़स्टाइल यानी गतिहीन जीवनशैली और अनहेल्दीडायट! इनसे निपटने का एक ही तरीक़ा है- दवाओं व इलाज के साथ-साथ डायट में बदलाव और एक्सरसाइज़, जिनमेंइस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि भारत भिन्नता का देश है, आपकी भौगोलिक स्थिति, जलवायु, मौसम, खान-पान, रहन-सहन आदि इसमें बड़ी भूमिका अदा करते हैं! इसलिए लाइफ़स्टाइल और डायट में बदलाव के लिए ये 6 तत्व हैं बेहदमहत्वपूर्ण-
खाना कितनी मात्रा में और कितनी बार खाया जाए: ये हर किसी की व्यक्तिगत ज़रूरत पर निर्भर करता है लेकिन जिन्हेंपेट और आंत संबंधी समस्या है वो 5-6 बार थोड़ा-थोड़ा खाएं और हाई बीपी से हो ग्रसित हैं वो दिन में 3 बार खाना खाएंजिससे एसिड का अधिक निर्माण और स्राव संतुलित हो.
खाना बनाने का तरीक़ा: जी हां, आप खाने को उबालते हैं, स्टीम करते हैं या तलते हैं- ये तमाम बातें प्रभावित करती हैं. जैसेडीप फ़्राई यानी तला हुआ खाना डायबिटीज़, फ़ैटी लिवर और क़ब्ज़ से परेशान लोगों को अवॉइड करना चाहिए. इसकेअलावा सब्ज़ियों को अगर बिना छीले पकाया जाए तो वो सबसे बेहतर है क्योंकि धोने और साफ़ लेने के बाद बिनाछिलका निकाले उन्हें पकाया जाए तो हेल्दी होता है क्योंकि छिलके पोषण और फाइबर का बेहतरीन स्रोत होते हैं जिससेआंतों का स्वास्थ्य भी बना रहता है.
खाने में क्या-क्या हो: आदर्श खाना वही होता है जिनमें सभी पोषक तत्वों का संतुलन हो. जो लोग मोटापे से ग्रसित हैंउनको अनरिफ़ाइंड ग्रेंस और हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ खानी चाहिए, इसी तरह आपके शरीर की ज़रूरतों को देखते हुए प्रोटीन, फाइबर या अन्य तत्व कितनी मात्रा में चाहिए ये भी आपके डॉक्टर या एक्सपर्ट आपको बताएंगे. खाने को लेकरफ़्लेक्सिबल बनें और ज़्यादा-ज़्यादा वेरायटी अपने खाने में शामिल करें.
शारीरिक गतिविधि कितनी है: पेट को और खुद को भी स्वस्थ रखने के लिए एक्सरसाइज़ को शामिल करें अपनीलाइफ़स्टाइल में. घंटेभर वॉकिंग, जॉगिंग, स्विमिंग से गैस और क़ब्ज़ से राहत मिलती है. जिनको पेप्टिक अल्सर कीसमस्या है वो रोज़ 30-60 मिनट तक वॉक करें. इसी तरह धीरे-धीरे फ़िज़िकल एक्टिविटी को अपनी ज़िंदगी का हिस्साबनाएं.
पानी भरपूर मात्रा में पीएं: रोज़ दो से तीन लीटर पानी की सलाह दी जाती है. लेकिन इतना पानी पीना अगर संभव नहीं तोआप वेरायटी एड कर सकते हैं, जैसे- नींबू पानी, सूप, नारियल पानी आदि. लेकिन ये भी व्यक्तिगत ज़रूरत पर निर्भरकरता है इसलिए पाने डॉक्टर से राय ज़रूर लें.
अच्छी नींद और सोने का सही तरीक़ा है बेहद ज़रूरी: सोने की आपकी आदत कैसी है? सोने का पोश्चर, तरीक़ा आदि. एसिड की समस्या वालों को सिर ऊंचा रखकर सोने की सलाह दी जाती है. इसी तरह रात को खाना खाने के फ़ौरन बाद नासोने की भी सलाह दी जाती है. डिनर के एक घंटे के भीतर सोना अवॉइड करें. जितना गैप होगा उतना अच्छा रहेगा. इसीतरह नींद की क्वालिटी भी मायने रखती है. अच्छी गहरी नींद आपके पाचन को बेहतर रखती है.
डॉक्टर श्रीरूपा दास, मेडिकल डायरेक्टर, एबॉट इंडिया का भी कहना है कि हम लोगों में जागरूकता बढ़ाने के प्रतिप्रतिबद्ध हैं ताकि गैस्ट्रोइंस्टेस्टाइनल समस्याओं से ग्रसित लोगों का इलाज और बीमारी का मैनेजमेंट प्रभावी तरीक़े से हो. उन्हें उनकी निजी ज़रूरतों को देखते हुए सही मार्गदर्शन, सलाह और डायट संबंधी जानकारी मिले और वो एक हेल्दी औरखुशहाल जीवन जी सकें!
गोल्डी शर्मा