रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) महिला शरीर में होने वाला एक शारीरिक परिवर्तन है. जब अंडाशय से अंडाणु के स्राव की प्रक्रिया धीमी होने लगती है और अंत में माहवारी यानी पीरियड्स होना बंद हो जाता है. जब लगातार 12 महीनों तक पीरियड्स पूरी तरह न हो, तो यह कहा जाता है कि महिला को मेनोपॉज़ हो गया है. मेनोपॉज़ के कुछ वर्ष पहले स्त्री में कई शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं.
मेनोपॉज़ की आयु निश्चित नहीं होती है. भारतीय महिलाओं में 40 साल की उम्र के बाद प्रीमेनोपॉज़ के लक्षण धीरे-धीरे दिखाई देने लगते हैं. 47 वर्ष की उम्र तक महिलाएं मेनोपॉज़ की अवस्था में पहुंच जाती हैं. जबकि कुछ महिलाओं में इसका अनुभव कुछ जल्दी अर्थात 42-45 वर्ष की आयु के बीच ही हो सकता है. इसे शीघ्र रजोनिवृत्ति (अर्ली मेनोपॉज़) कहा जाता है. यदि यह 40 साल से पहले होता है, तो इसे प्रीमैच्योर मेनोपॉज़ कहा जाता है. विलंबित रजोनिवृत्ति की स्थिति भी देखने को मिलती है, जब महिलाओं को 50 वर्ष की आयु तक पीरियड्स होता रहता है. हालांकि ऐसी बहुत ही कम महिलाएं होती हैं, जिनमें 51-52 साल की उम्र में पीरियड्स होता है. इस पर और भी कई ज़रूरी बातें नवी मुंबई के रिलायंस हॉस्पिटल की डॉ. बंदिता सिन्हा, जो हेड ऑफ डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनकोलॉजी हैं ने बताई.
भारतीय महिलाओं में पीरियड्स की शुरुआत ज़्यादातर 12-13 साल की उम्र में हो जाती है और वो जल्दी ही प्रजनन अवस्था में पहुंच जाती हैं. पिछले दो दशकों के आंकड़ों के आधार पर 10-11 साल की उम्र में माहवारी की शुरुआत ज़्यादातर देखने को मिली है. यही वजह है कि भारतीय महिलाओं में 45-48 साल की उम्र के बीच पीरियड्स रूक जाता है. इसके विपरीत पश्चिमी देशों की महिलाओं में 16-17 वर्ष की उम्र में पीरियड्स शुरू होता है और इसका कारण प्रजनन तंत्र के विकास में देरी है और और इसका एक कारण उन क्षेत्रों की ठंडी जलवायु हो सकती है. इसलिए औसतन 52 साल तक उनमें पीरियड्स होता है.
आजकल प्रीमैच्योर मेनोपॉज़ के उदाहरण आम हो रहे हैं, क्योंकि लड़कियों की डिम्बग्रंथि क्षमता कम हो रही है यानी कि ओवेरियन रिजर्व धीरे-धीरे घट रहा है. फर्टिलिटी उपचारों के आंकड़ों से यह बिल्कुल स्पष्ट है. प्रत्येक 10 में से 2-3 महिलाओं में किसी न किसी हद तक बांझपन देखने को मिलता है. महिलाओं के लिए गर्भ धारण करना मुश्किल होता है, क्योंकि प्रजनन क्षमता घट रही है और यह भी अर्ली मेनोपॉज़ का कारण है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, उर्वरकों के चलते भोजन और पानी में प्रवेश करने वाले विषाक्त पदार्थ, आनुवांशिक कारक, इन सभी का प्रभाव भी इस पर पड़ सकता है. 40 साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी. कुछ ऐसे भी मामले में देखने को मिले हैं, जिनमें 20-30 वर्ष की उम्र में ही महिलाओं का मेनोपॉज़ हो गया. अर्ली मेनोपॉज़ का कारण तनाव, जीवनशैली, कम नींद आदि भी हैं, क्योंकि ये कारक हॉर्मोन्स को प्रभावित करते हैं. जिनके चलते हार्मोनल असंतुलन होता है और इससे भी मेनोपॉज़ के लक्षण बढ़ सकते हैं. अर्ली मेनोपॉज़ आनुवंशिक भी हो सकती है.
विवाह का मेनोपॉज़ की उम्र से कोई लेना-देना नहीं है, यह एक बड़ा मिथक है, लेकिन पीरियड्स की शुरुआत का संबंध विवाह से है. लड़कियों में एक निश्चित/सीमित संख्या में अंडाणु मौजूद होते हैं और यदि उनमें पीरियड्स की शुरुआत शीघ्र हो जाती है, तो अंडाणुओं की संख्या घटती जाती है. इसके अलावा कैंसर के कारण होने वाले रेडिएशन उपचार से मेनोपॉज़ जल्दी हो जाती है, क्योंकि यह अंडाणुओं को नुक़सान पहुंचाता है. कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव के चलते भी अर्ली मेनोपॉज़ होती है.
कम उम्र अर्थात् 40 वर्ष की उम्र से पहले ही बच्चेदानी निकालने के बढ़ते चलन ने भी अर्ली मेनोपॉज़ बढ़ा दी है.
इसका बेहतर उपाय यह है कि बचपन/किशोरावस्था से ही लड़कियों की जीवनशैली में कुछ बदलाव लाए जाएं. फास्ट फूड के कम सेवन, आउटडोर गतिविधियों को प्रोत्साहन के ज़रिए पीरियड्स की शुरुआत होने की उम्र थोड़ी बढ़ सकती है, क्योंकि वसायुक्त भोजन, फास्ट फूड, प्रिजर्वेटिव युक्त खाद्य पदार्थ का हॉर्मोन्स पर प्रमुख रूप से प्रभाव पड़ता है. यदि जीवनशैली में उचित परिवर्तन करके इन पर्यावरणीय कारकों में बदलाव लाया जाए, तो पीरियड्स शुरू होने की उम्र को बढ़ाया जा सकता है.
- ऊषा गुप्ता
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